Thursday, October 25, 2012

यह चिल्लर क्या बला है?

इसे ही तो कहते हैं चोरी और उस पर सीना जोरी। कांग्रेस के नेता वीरभद्र सिं‍ह, पत्रकारों के सवालों के जवाब देने की बजाय उनके कैमरे तोडने की धमकी देने पर उतर आए। उनका बस चलता तो पत्रकारों की ठुकाई भी कर देते। हम तो यही सुनते आये थे कि इंसान जब गलती करता है तो उसका सिर शर्म से झुक जाता है। ये नेता तो देश को लूट रहे हैं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ने इनके चरित्र की नस-नस में अपनी जगह बना ली है फिर भी इन्हें शर्म नहीं आती! झुकना छोड दादागिरी दिखाने लगे हैं। ये बेशर्म जितने नंगे हो रहे हैं उतने ही दबंग होते चले जा रहे हैं। नेता और नेतागिरी को कलंकित करने वाले इन सफेदपोश गुंडो के तेवर वाकई देखते बनते हैं। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिं‍ह कहते हैं कि नेताओं के खिलाफ बोलने वालों को भाव देना बेवकूफी है। ये लोग कितना चीखेंगे और चिल्लायेंगे। आखिर एक दिन तो थक हार चुपचाप बैठ ही जाएंगे। पहले तो कुछ नेता ही ऐसी भाषा बोलते थे, पर अब तो इनकी तादाद काफी बढ गयी है। बेखौफ होकर लूट मचाते हैं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं और जब पत्रकार इनकी पोल खोलते हैं तो ये डंके की चोट पर खुद को पाक-साफ बता ऐसे आगे निकल जाते हैं जैसे कि ये दूध के धुले हों और असली गुनहगार पत्रकार ही हों। अपनी करोडों की काली कमायी को सफेद करने वाले वीरभद्र सिं‍ह कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। उन्हें हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के सपने भी कांग्रेस देख रही है। एक आयकर चोर जब प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा तो प्रदेश में कैसे-कैसे लोग फलें-फूलेंगे यह लिखने और बताने की जरूरत नहीं है। नेताओं के साथ ही राजनीतिक पार्टियों ने भी अपनी नैतिकता बेच खायी है। इनके लिए वही नेता असली नेता है जो चुनाव के समय फंड का जुगाड कर सके। इसके लिए भले ही वह कैसे भी तौर-तरीके क्यों न अपनाये। पार्टियों को तो सिर्फ धन से ही मतलब है जिसकी बदौलत वोटरों को बरगलाया और खरीदा जाता है। शरद पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस के कर्ताधर्ता हैं तो नितिन गडकरी भाजपा के घोर विवादित अध्यक्ष हैं। शरद पवार तो अपनी मर्जी के राजा हैं। गडकरी को झेलना भाजपा की मजबूरी है। एक तो संघ का दबाव दूसरा गडकरी का धन जुटाने का गुण सब पर भारी पडता है। गडकरी विधानसभा और लोकसभा के पचासों प्रत्याशियों को धन-बल प्रदान कर चुनाव लडाने की क्षमता रखते हैं। एक इशारे पर धन की बरसात कर सकते हैं। यह कला हर नेता में नहीं होती। भाजपा के ही स्वर्गीय प्रमोद महाजन को भी फंड जुटाने में महारत हासिल थी। उनकी भी बडे-बडे उद्योगपतियों, व्यापारियों और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के दिग्गजों के साथ गजब की मित्रता थी जिसकी बदौलत बडे-बडे काम निपटाये जाते थे।
महाराष्ट्र में वैसे भी राजनीति और व्यापार का चोली-दामन का साथ है। कई राजनेता ऐसे हैं जो राजनेता से पहले व्यापारी हैं। उनके स्कूल कालेज और शक्कर के कारखाने चलते हैं। कुछ तो दारू की फैक्ट्रियां भी चलाते हैं और लोगों को मदहोश करने में लगे रहते हैं। ऐसों की भी कमी नहीं है जिनकी भूमाफियाओं और खनिज माफियाओं से रिश्तेदारी जैसी करीबियां हैं। नेताओं का इन पर वरदहस्त रहता है जिसकी बदौलत यह लोग लूट का तांडव मचाते रहते हैं। कई भू-माफिया तो हजारों करोड की दौलत के मालिक बन चुके हैं। कुछ नेताओं की हैसियत के बारे में भी हैरतअंगेज बातें सुनने में आती रहती हैं। कोई दमदार नेता पांच हजार करोड तो कोई दस हजार करोड का आसामी है। महाराष्ट्र में राजनीति के अपराधीकरण का हो-हल्ला वर्षों से सुर्खियां पाता रहा है। कई अपराधियों ने राजनेताओं की चरणवंदना कर राजनीति के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के कीर्तिमान रचे हैं। दरअसल राजनीति वो कवच है जो हर भ्रष्ट की रक्षा करता है। अपराधी और व्यापारी तो इसकी बदौलत इतना फलते-फूलते हैं कि लोग देखते रह जाते हैं। अपराधी तो अपराधी होते हैं, उनसे बेहतरी की उम्मीद रखना खुद के गाल पर तमाचा जडना है। असली कसूरवार तो वो नेता हैं जो इन्हें आश्रय देते हैं। यह भी सच है कि सभी नेताओं को बिना सोचे-समझे कटघरे में नहीं खडा किया जा सकता। पर हकीकत को नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। देशभर का मीडिया चीख-चीख कर बता रहा है कि कांग्रेस के वीरभद्र सिं‍ह और भाजपा के नितिन गडकरी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों ही काले को सफेद करने वाले ऐसे जादूगर हैं जिनके बिना राजनीतिक पार्टियों का पत्ता भी नहीं हिल सकता।  कोई 'सेब' से धन कमा कर दिखाता है तो कोई 'पुल' से। हर किसी की कलाकारी के अपने-अपने अंदाज हैं। वीरभद्र पत्रकारों के कैमरे तोडने पर उतारू हो जाते हें तो गडकरी मुस्कराते हुए यह कह आगे खिसक जाते हैं कि बात करनी है तो बडे भ्रष्टाचार की करो... चिल्लर में क्या धरा है...। राबर्ट वाड्रा जब घेरे में आये तो उन्होंने सफाई दी कि वे व्यापारी हैं, उन्हें बेवजह लपेटा जा रहा है। देश के कानूनमंत्री ने लाखों की हेराफेरी की तो कांग्रेस के बेनीप्रसाद वर्मा बोल पडे कि छोटे-मोटे भ्रष्टाचार का शोर मचाकर हमारा और अपना वक्त क्यों बरबाद करते हो। नितिन गडकरी के बोलवचन हैं कि मैं चिल्लर बातों की परवाह नहीं करता। ऐसे में यह कहना गलत तो नहीं- कि देश धंधेबाजों की चंगुल में फंस कर रह गया है। ऐसे में मेरे मन में अक्सर यह विचार आता है कि जिस तरह से कोई उद्योगपति अपने प्रतिस्पर्धी की कमायी का आकलन कर जलता-भुनता है, कही वैसे ही हाल इस मुल्क के तथाकथित राजनेताओं के तो नहीं हैं। क्योंकि अधिकांश का पेशा एक जैसा ही है। जितनी लूट मचानी है, मचा लो। इस लूट के खेल में चिल्लर व्यापारी थोक व्यापारियों को मात दे रहे हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा है तो इन चिल्लर के समक्ष टाटा-अंबानी भी फीके नजर आयेंगे...।

Thursday, October 18, 2012

यह कैसा भयावह दौर है?

कांग्रेस के कारवां में शामिल लुटेरों के मुखौटे लगातार उतरते चले जा रहे हैं। कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी की सजगता और दूरदर्शिता की अनेकों दास्तानें हैं। फिर भी हैरत होती है कि वे अपने आसपास के चमत्कारों से अंजान रह जाती हैं! उनके दामाद ने मात्र पांच वर्षों में ५० लाख से ३०० करोड का आलीशान साम्राज्य खडा कर लिया। आखिर उन्हें इसकी खबर क्यों नहीं लग पायी? लोग अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि सोनिया गांधी ने ही दामाद बाबू को छूट दे रखी है। पर इतनी छूट कि वे खुल्लम-खुल्ला लूटमार पर उतर आएं और हंगामा बरपा हो जाए? पिछले दो-ढाई साल से देश में यही सब तो हो रहा है। एक घपले की खबर ठंडी पडती नहीं कि दूसरी और तीसरी खबर मनमोहन सरकार के गाल पर ऐसा तमाचा जड देती है कि सहलाने का मौका भी नहीं मिल पाता। घपलों-घोटालों के आरोप-दर-आरोप झेल रही कांग्रेस के लिए राबर्ट का मामला जहां जख्मों पर नमक छिडकने वाला रहा, वहीं केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मनमोहनी सरकार को ही निर्वस्त्र करके रख दिया। सत्ता के खिलाडि‍यों का यह चेहरा वाकई चौंकाने वाला है। एक न्यूज चैनल के स्टिंग आपरेशन में दावा किया गया कि सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी के ट्रस्ट (डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट) को १७ जिलों में विकलांगो को ट्राइसाइकिल और सुनने की मशीन बांटने के लिए जो ७१.५० लाख रुपये दिये गये थे, उनमें काफी गोलमाल किया गया है। १७ में से १० जिलों में तो कैम्प लगे ही नहीं। यानी कानून मंत्री ने विकलांगो के हक की रकम डकार ली! जिस देश के कानून मंत्री पर ऐसे शर्मनाक आरोप हों वहां की आम जनता खामोश और अंधी तो नहीं बनी रह सकती। वहां पर एक नहीं, सैकडों अरविं‍द केजरीवाल सडक पर उतर सकते हैं। कानून मंत्री का बौखला जाना और फिर यह कह गुजरना कि अब तो कलम की बजाय 'खून' का सहारा लेना होगा, आखिर क्या दर्शाता है! देशवासियों को वे कैसी सीख देना चाहते हैं? लोकतंत्र को जंगलराज में बदलने की मंशा तो नहीं पाल ली इस नेता ने?
एक अन्य राजनेता का बयान भी कम चौंकाने वाला नहीं है। उनका कहना है कि लाखों का भ्रष्टाचार भी कोई भ्रष्टाचार होता है। यह तो करोडों-अरबों-खरबों की लूट और हेराफेरी का दौर है। यानी कानून मंत्री तो भोले इंसान है। असली भ्रष्टाचारी होते तो हजारों करोड के वारे-न्यारे कर जाते और किसी को खबर भी न लग पाती। नेताजी यह संदेश भी देना चाहते हैं कि डाकूओं के पकडे जाने पर हो-हल्ला मचाओ और चोरों को नजरअंदाज करते चले जाओ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिं‍ह यादव भी फरमा चुके हैं कि छोटी-मोटी हेराफेरी करने में कोई हर्ज नहीं है। देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों और उनके कर्ताधर्ताओं यही सोच है, जो उनके असली चरित्र को दर्शाती है। भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड टूटने और आम जनता में आक्रोश होने के बावजूद कांग्रेस की मुखिया की चुप्पी हैरान-परेशान तो करती ही है। ऐसे में वोटर कांग्रेस को उसकी करनी के प्रतिफल का स्वाद चखाने को कितने आतुर हैं उसका अनुमान लोकसभा के दो उपचुनावों के नतीजो से लग जाता है।
उत्तराखंड तिहरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पडी है। कांग्रेस ने यहां पर विकास के नाम पर चुनाव लडते हुए प्रदेश के कायाकल्प के सपने दिखाये थे। यह राज्य के मुख्यमंत्री की खाली हुई सीट थी जहां से उनके पुत्र को यह सोच कर खडा कर दिया गया कि लोग मुख्यमंत्री का तो मान रखेंगे ही। पर लोग अब भावुकता छोड हकीकत का दामन थाम चुके हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने बेटे को विजयश्री दिलवाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। पर उनकी सारी की सारी मेहनत और तिकडम पर पानी फिर गया। इसी तरह से पश्चिम बंगाल के जंगीपुर में कांग्रेस उम्मीदवार और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लाडले अभिजीत मुखर्जी जैसे-तैसे मात्र २५३६ वोटों से चुनाव जीत पाये। इस जीत ने कांग्रेस को शर्मिंदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। देश के राष्ट्रपति का सुपुत्र उन्हीं की सीट से चुनाव लडे और ऐसी हल्की-फुल्की जीत हो तो लोग चौकेंगे ही। गौरतलब है कि प्रणब मुखर्जी यहीं से एक लाख २८ हजार वोटों से जीते थे। दरअसल ये नतीजे दर्शाते हैं कि वोटर केंद्र सरकार से नाखुश हैं। भ्रष्टाचार और महंगाई ने कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढाई है। ऐसे में यदि कहीं मध्यावधि चुनाव होते हैं तो कांग्रेस की कैसी दुर्गति होगी इसका भी अनुमान लगाया जा सकता है। वैसे भी कुछ ही महीनों के बाद देश के ११ राज्यों में आम चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस का भविष्य तो स्पष्ट नजर आ रहा है। भाजपा भी लोगों की निगाह से गिर चुकी है। उसके 'कारोबारी' अध्यक्ष की भी पोल खुल गयी है। सजग जनता कभी भी नहीं चाहेगी कि देश एक ऐसा बाजार बन कर रह जाए जहां सौदागर अपनी मनमानी करते रहें। ऐसे विकट दौर में कोई पाक-साफ दल ही देशवासियों की पहली पसंद बन सकता है। पर कहां है वो राजनीतिक दल? यकीनन देशवासियों के समक्ष कोई विकल्प ही नहीं है। चोर-चोर मौसेरे भाइयों के इस काल में देश की आम जनता असमंजस की गिरफ्त कसमसा रही है...।

Thursday, October 11, 2012

क्या हैं इस गुस्से के मायने?

भीड तो भीड होती है। उसका अपना कोई चरित्र नहीं होता। यही भीड जब आपा खो बैठती है तो अनर्थ भी हो जाता है। कानून किसी कोने में दुबका सिर्फ तमाशा देखता रह जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि भीड इतिहास दोहराने को विवश हो जाती है? नागपुर की एक झोपडपट्टी में भीड ने एक गुंडे को मौत के घाट उतार दिया। आतंक का पर्याय बन चुके इस बदमाश का सगा भाई निकल भागा। इनकी दादागिरी से महिलाएं भी परेशान थीं। शहर के बीचों-बीच बसी झोपडपट्टी में जुए का अड्डा चलाने के साथ-साथ अनेकानेक अपराधों को ये बेखौफ अंजाम देते चले आ रहे थे। कई पुलिस वालों का भी उनके अड्डे पर आना-जाना था। यही वजह थी कि शरीफ लोग बदमाशों से डरे-सहमे रहते थे। झोपडपट्टी में स्थित जिस कमरे में जुआ खिलाया जाता था, वहां शहर भर के जुआरियों और बदमाशों की बैठकें जमा करती थीं। कुछ सफेदपोश भी अक्सर वहां देखे जाते थे। भोली-भाली लडकियों की अस्मत लूटने के साथ-साथ शराबखोरी और मारपीट भी चलती रहती थी। नशे में धुत होकर गुंडे-बदमाश आसपास की महिलाओं और युवतियों से छेडछाड करते रहते। कोई विरोध करता तो धमकाया और प्रताडि‍त किया जाता था। नेताओं और पुलिस विभाग के कर्ताधर्ताओं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। लोग शिकायतें लेकर थाने जाते पर उनकी कतई नहीं सुनी जाती। एक युवती के साथ जब सरेआम दुराचार किया गया तो महिलाओं के सब्र का बांध टूट गया। सबसे पहले इकबाल हाथ में आया तो गुस्सायी भीड ने उसे मार डाला। एक को ऊपर पहुंचाने के बाद भी भीड का गुस्सा शांत नहीं हुआ। वह तो गिरोह के सभी बदमाशो को सबक सिखाने पर उतारू थी। मृत बदमाश के एक भाई ने अपने बचाव के लिए थाने की शरण ले ली। यकीनन उसके लिए इससे सुरक्षित जगह और कोई नहीं थी। अधिकांश वर्दीधारी उसके जाने-पहचाने और 'अपने' थे। पर गुस्सायी भीड वहां भी जा पहुंची। लाठी-डंडो और जूतों से लैस भीड को शांत कर पाना आसान नहीं था, फिर भी खूंखार गुंडे को किसी तरह से पुलिस वालों ने बचा लिया वर्ना उसकी मौत भी तय थी।
यह घटना ९ अक्टुबर २०१२ के दिन घटी। अगस्त २००४ में इसी तरह से भीड ने अक्कु नामक बदमाश को भी अदालत में पकड कर इतना पीटा था कि उसकी मौत हो गयी थी। उस भीड में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। अक्कु की भी अपने इलाके में खासी दहशत थी। वह भी महिलाओं के साथ बदसलूकी करता था। कई पुलिस वालों से भी उसका याराना था। जिस किसी के घर में घुस जाता वहां अपनी मनमानी कर गुजरता। युवतियां उसकी परछाई से खौफ खाने लगी थीं। जब खौफजदा महिलाओं को लगा कि अक्कु का पुलिस कुछ नहीं बिगाड सकती तो उन्होंने ही उसे परलोक पहुंचा दिया। इस हत्याकांड ने देश ही नहीं पूरे विश्व को अचंभित करके रख दिया था। पुलिस चाहती तो अक्कु की हत्या के बाद सतर्क हो सकती थी। पर खाकी वर्दी वाले तो अपनी ही धुन में मस्त रहते हैं। जब तक बडा धमाका नहीं होता, उनकी नींद ही नहीं खुलती।
पुलिस की लापरवाही की वजह से न जाने कितने अपराधी जन्म लेते हैं और फिर धीरे-धीरे आतंक का पर्याय बन जाते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट आयी है जो यह बताती है कि गरीबी और अपराध के बीच काफी गहरे रिश्ते हैं। भुखमरी और बदहाली के शिकार लोग बडी आसानी से अपराध की राह पकड लेते हैं। हमारे ही समाज में ऐसे अमीर भरे पडे हैं जिनकी चमक-दमक देखते बनती है। इन धनपतियों की तुलना में कंगालों की संख्या कई गुणा ज्यादा है। कहते हैं कि गरीबी कभी-कभी इंसान का विवेक भी छीन लेती है। अपनी जरूरतों को पूरा न कर पाने के गुस्से में शरीफ भी बदमाश बन जाते हैं। पर उन्हें क्या कहा जाए जो हर तरह से सम्पन्न होने के बावजूद अपराधी बन दूसरों की बहू-बेटियों का शील हरण करने से बाज नहीं आते?
हरियाणा के जींद जिले के गांव सच्चाखेडा में एक नाबालिग लडकी पर बलात्कार करने वाले सभी बलात्कारी सम्पन्न घरानों से ताल्लुक रखते हैं। जिस लडकी पर बलात्कार किया गया उसने आहत होकर मिट्टी का तेल छिडक कर खुद को जला लिया। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। गीतिका खुदकशी कांड के पीछे जिस नेता का हाथ है वह भी अरबो-खरबों की आसामी है। हरियाणा प्रदेश की सरकार में सक्षम मंत्री होने के बावजूद उसने निष्कृष्ट कर्म किया। उसकी हवस की शिकार हुई युवती को आत्महत्या के लिए विवश होना पडा। हाल ही में उत्तरप्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार में पशुधन और विकास राज्यमंत्री रहे अवधपाल सिं‍ह यादव को एक दलित महिला पर बलात्कार करने तथा उसे जान से मारने की धमकी देने के संगीन आरोप में गिरफ्तार किया गया है। ऐसी न जाने कितनी घटनाएं हैं जो देशभर में निरंतर घटती रहती हैं। यह कहना और सोचना गलत है कि गरीबी के बोझ तले दबे लोग ही तरह-तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं। अपराधी कहीं भी जन्म ले सकते हैं। इस सच्चाई को भी नहीं नकारा जा सकता कि तथाकथित सम्मानित और 'ऊंचे' लोगों की छाप भी समाज पर पडती है। हमारे यहां के राजनेता, समाजसेवक, मंत्री-संत्री अक्सर अपने दुष्कर्मों के चलते बेपर्दा होते रहते हैं। उन्हें अपना आदर्श मानने वाले भी उनकी राह पर चल निकलते हैं। नायकों की तरह खलनायकों के प्रशंसकों की भी कभी कमी नहीं रही। इस मुल्क के अधिकांश राजनेताओं को तो सत्ता के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री का यह कहना कि यदि बढते बलात्कारों पर अंकुश लगाना है तो लडकियों की शादी पंद्रह साल की उम्र में ही कर दी जानी चाहिए, आखिर क्या दर्शाता है? जिस देश में ऐसे बेवकूफ नेताओं की भरमार हो उस देश के वर्तमान और भविष्य की सहज ही कल्पना की जा सकती है।

Thursday, October 4, 2012

गांधी के 'चेलों' को पहचानो

ऐसा हो ही नहीं सकता कि २ अक्टुबर के दिन देश को बापू की याद न आए। कांग्रेसी भले ही उन्हें भूल जाएं, पर देशवासी नहीं। न जाने कितने सडक छाप नेताओ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम की कस्में खाकर अपनी किस्मत चमकायी है। खुद को उनका सच्चा अनुयायी कहने वाले कितने सच्चे हैं यह उनकी तरक्की और देश की बदहाली को देख कर सहज ही जाना जा सकता है। इस बार के दो अक्टुबर के दिन एक खबर ने हैरत में डालकर रख दिया। नागपुर की जेल में बंद कैदियों का बयान आया कि अपराध करने से पहले यदि उन्होंने बापू के जीवन चरित्र को पढ लिया होता तो भूलकर भी अपराध का मार्ग नहीं अपनाते।
नागपुर के मध्यवर्ती कारागृह के कैदियों को सुधारने के लिए कई तरह के प्रयोग और प्रयास किये जाते हैं। हिं‍सा के मार्ग पर चलकर जेल की सलाखों तक पहुंचने वाले अपराधियों को सत्य और अहिं‍सा का पाठ पढाने के लिए गांधी के मूलभूत विचारों से अवगत कराया जाता है। यह सिलसिला पिछले पांच-सात साल से चला आ रहा है। कैदियों को मानवता के सच्चे पुजारी महात्मा गांधी की किताब पढने को दी गयी। कैदी महात्मा गांधी को कहां तक समझ पाये यह जांचने के लिए उनका इम्तहान भी लिया गया। १७५ पुरुष व महिला कैदियों ने 'गांधी जी' नामक किताब को पढने के बाद बडे उत्साह के साथ परीक्षा में भाग लिया। युवा कैदियों के साथ-साथ उम्रदराज कैदियों का उत्साह भी देखते बनता था। एक बुजुर्ग कैदी को इस बात का बेहद मलाल था कि वह गांधी को पहले क्यों नहीं जान पाया। अगर उसने इस महापुरुष की किताब पहले पढी होती तो आज वह अपराधी होने की बजाय देश का एक कर्मठ और ईमानदार नागरिक होता।
कैदियों की पीढा में छिपा संदेश बहुत कुछ कह रहा है। गांधी की तस्वीर पर माला पहनाने और सिर पर टोपी लगाने वाले नेता क्या इस पर गौर फरमायेंगे और देश को गर्त में धकेलने से बाज आएंगे? गांधी जी के नागपुर से बडे करीबी रिश्ते थे। इस शहर के कुछ नेताओं ने भी भ्रष्टाचार और अनाचार के कीर्तिमान रचे हैं। बापू के नाम की ढोलक हमेशा उनके गले में लटकी रहती है। बापू के हत्यारे गोडसे के प्रशंसक भी महात्मा के नाम की माला जपने लगे हैं। चुनाव के मौसम में यह नाम बडा फायदेमंद साबित होता है। गांधी जी का आजादी के आंदोलन के दौरान  इस शहर में आना-जाना लगा रहता था। घंटे भर की दूरी पर स्थित 'सेवा ग्राम' इस तथ्य की पुष्टि करता है। कई और भी निशानियां हैं जिनपर उनकी छाप आज भी जिं‍दा है। बापू के दो बेटों ने भी इस शहर के गली-कूचों की खाक छानी थी। उनके द्वितिय पुत्र हीरालाल गांधी को अपने पिता के उसूल रास नहीं आते थे। दरअसल हीरालाल में पिता के किसी गुण का नामोनिशान नहीं था। सच्चाई से दूर भागने वाला हीरालाल नशे में धुत रहता था। यह १९३७ की बात है। तब नागपुर के कई लोगों ने उसे नशे में यहां-वहां पडे हुए देखा था। उन्हीं में से एक सज्जन, जो कि महात्मा जी के सहयोगी भी थे, ने हीरालाल को नशे की हालत में कहीं सोये हुए देखा। उन्हें जब पता चला कि हीरालाल, महात्मा गांधी के पुत्र हैं तो उन्होंने उसे समझाया कि उसकी हरकतों से बापू की बदनामी होगी। उन्होंने ही हीरालाल गांधी को नागपुर नगर परिषद कार्यालय में लिपिक की नौकरी भी दिलवा दी।
महात्मा गांधी को जब यह बात पता चली तो वे नौकरी दिलाने वाले महानुभाव पर जमकर उखडे थे कि उन्होंने एक शराबी को नौकरी क्यों दिलवायी। तय है कि गांधी जी का बेटा होने की 'योग्यता' के चलते ही नियम-कायदों को ताक पर रखकर हीरालाल गांधी को नौकरी दे दी गयी थी। गांधी जी की लताड के बाद हीरालाल को नौकरी से हाथ धोना प‹डा था। इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया था। अपने सिद्धांतवादी पिता से खार खाने वाला पुत्र का आगबबूला हो उठना स्वाभाविक था। गांधी जी ने इसकी कतई परवाह नहीं की। वे अपने आंदोलन को गति देने में लीन रहे। सत्य और इंसाफ के इस पुजारी के तीसरे बेटे राम मोहन गांधी ने १९६७ तक नागपुर शहर के एक दैनिक अखबार में नौकरी कर जैसे-तैसे अपने दिन काटे थे। यह था राष्ट्रपिता के जीवन का असली सच। बापू कहते थे कि योग्य आदमी को उसका हक मिलना चाहिए। गरीबी भी qहसा का प्रतिरूप है। यह हिं‍सा आज भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। इसे फैलाने वाले ज्यादातर बापू के तथाकथित चेले हैं जो सत्ता और अपनों के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरते। सरकारी संपदा को लूटने और लुटवाने में लगे अधिकांश राजनेताओं को भूल-बिसरे ही आम आदमी याद आता है। हां चुनाव के वक्त जरूर उन्हें उनकी चिं‍ता सताने लगती है। देशवासियों को त्याग और समर्पण का संदेश देने वाले हुक्मरान कितने दो मुंहे और निर्दयी हैं इसका ज्वलंत उदाहरण हाल ही में देखने में आया है। मनमोहन सरकार ने पिछले दिनों अपनी सरकार की वर्षगांठ मनायी। इसमें हर तरह के तामझाम थे। डिनर में एक प्लेट पर ८००० रुपये फूंक कर इस देश को चलाने वालों ने बता दिया कि वे किसी राजा से कम नहीं हैं। जनता चाहे कंगाली की दहलीज पर बैठकर रोती-कलपती रहे पर उन्हें तो मौज मनानी ही है। यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। कांग्रेस की प्रवक्ता रेणुका चौधरी से जब इस शाही खर्चे को लेकर सवाल किया गया तो वे बौखला उठीं। उनका कहना था कि अगर जनता भूखी मर रही है तो क्या हम भी भूखे रहें? खाना-पीना बंद कर दें! मतलब साफ है कि सरकारी खजाने के लूटेरे इतने निर्मम हो चुके हैं कि उनके लिए राष्ट्रपिता के विचार और संदेश कोई मायने नहीं रखते। गांधी के नाम पर वोट हथियाना और सत्ता सुख पाना ही उनका एकमात्र मकसद रह गया है...।