Thursday, February 29, 2024

अक्ल और नकल

     उत्तरप्रदेश के शहर कन्नोज के एक होनहार युवक ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। आपके मन में यह बात आ सकती है कि यह कौन सी नई बात है। अपने देश में युवाओं का मौत को गले लगाना तो आम बात है। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जिस दिन किसी न किसी अखबार में यह खबर पढ़ने में न आती हो कि परीक्षा में फेल होने, नौकरी नहीं लगने, प्यार में धोखा खाने या किसी अन्य वजह से परेशान होने की वजह से युवक या युवती ने खुदकुशी न की हो। अच्छे खासे युवाओं की तनाव की वजह से आत्महत्या करने की खबरें भी देशवासियों के लिए रोजमर्रा की हकीकतें हैं। ब्रजेश पाल ने हाल ही में यूपी पुलिस में भर्ती होने के लिए परीक्षा दी थी। सरकारी नौकरी हासिल कर अपने परिवार को खुशहाल बनाने का उसका सपना था। इसके लिए उसने महीनों टूटकर मेहनत की थी। पेपर भी उसने अच्छे से हल किया था। उसने अपने दोस्तों से कहा भी था कि, उसका चयन होना निश्चित है, लेकिन जैसे ही उसे पेपर के लीक होने की खबर लगी तो उसे बहुत धक्का लगा। उसे लगने लगा कि उसका सपना अब पूरा नहीं हो पायेगा। वो लोग बाजी मार लेंगे, जिन्होंने जोड़-जुगाड़ कर पहले ही पेपर हासिल कर लिया था। उसकी अटूट मेहनत और डिग्री के कोई मायने नहीं हैं। निराशा से घिरा ब्रजेश चुप-चुप रहने लगा था। घरवालों से भी बात करने से कतराने लगा था। उसे बस यही चिंता खाये जा रही थी कि, उसके भविष्य का क्या होगा? आधी उम्र पढ़ते-पढ़ते निकल गई। ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जो एक नौकरी न दिला सके। वह कब से सोचता आ रहा था कि, नौकरी लगने के बाद फटाफट पैसे जमा कर सबसे पहले किसी योग्य युवक से अपनी बहन की शादी करवायेगा। 22 फरवरी, 2024 की देर रात ब्रजेश ने आखिरकार फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा, ‘‘मां और बाबूजी, मुझे माफ कर देना। आप दोनों को मुझसे बहुत सी उम्मीदें थीं, लेकिन मैं आपको धोखा देने जा रहा हूं। मेरी मौत के बाद किसी को परेशान ना किया जाए। मैं अब और नहीं जीना चाहता। बस मेरा मन भर गया है। मेरी प्यारी मां, बाबूजी का ख्याल रखना और बोल देना कि हमारा तुम्हारा इतना ही साथ था। मेरी बहन संगीता की शादी अच्छे से लड़के से करना, भले ही हम नहीं होंगे। हमने बीएससी के सारे कागज जला दिए हैं। ऐसी डिग्री का क्या मतलब जो व्यर्थ हो। हमारी आधी उम्र इस डिग्री को पाने के लिए निकल गई।’’

    परीक्षा में पेपर लीक होने के बाद युवा सड़कों पर उतर आये। ऐसा भी नहीं कि यूपी में पहले कभी पेपर लीक नहीं हुए हों। परीक्षा के पेपर खरीदकर बिना मेहनत किये सफलता का झंडा नहीं गाड़ा गया हो, लेकिन इस बार यह धांधली चुनावी मौसम में हुई। लोकसभा चुनाव निकट होने के कारण उत्तरप्रदेश तथा केंद्र सरकार को चिंता और बेचैनी ने घेर लिया। क्रोध में उबलते छात्र-छात्राओं का कहना था कि हम लोग दिन-रात परीक्षा की तैयारी करते हैं। मां-बाप की हैसियत नहीं होती फिर भी उनका खर्चा करवाते हैं। उन्हें बेहतर भविष्य के सपने दिखाते हैं, लेकिन जब परीक्षा देने जाते हैं, तो पता चलता है कि, पेपर तो लीक हो चुका है। उसे परीक्षा के दिन से पहले ही धनवानों ने खरीद कर अपना मकसद पूरा कर हमारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। हम मर-मर कर परीक्षा की तैयारी करते हैं, ताकि कुछ बन जाएं, लेकिन बाजी दूसरे मार ले जाते हैं। यह अन्याय वर्षों से हमारे साथ होता चला आ रहा है। पेपर माफिया और नकल माफिया को शासन और प्रशासन के लोग भी जानते हैं। इनकी आपसी मिलीभगत का भी कई बार पर्दाफाश हो चुका है। युवाओं के आक्रोश और विपक्ष के द्वारा इसे चुनावी मुद्दा बनाने की प्रबल संभावना को देखते हुए यूपी सरकार ने परीक्षाओं को रद्द करते हुए छह महीने के भीतर दोबारा परीक्षा कराने की घोषणा कर दी। हर बार की तरह सरकार ने यह आश्वासन भी दिया कि आगे से किसी भी परीक्षा में धांधली नहीं होने दी जाएगी। 

    सच तो यह है कि परीक्षाओं में नकल करने और करवाने तथा किसी भी तरह से परीक्षा से कुछ घंटे पहले पेपर पाने के खेल में छात्रों के माता-पिता भी हाथ आजमाने से नहीं घबराते। अधिकांश अभिभावकों का एक ही मकसद होता है कि किसी भी तरह से अपने बच्चों को परीक्षा में सफलता दिलवाना। इसके लिए वे किसी भी हद तक गिरने को तैयार हो जाते हैं। कोरोना की महामारी के दौरान जब स्कूल, कॉलेज बंद थे। लैपटाप, कम्प्यूटर, मोबाइल के माध्यम से पढ़ाई और परीक्षाएं हुईं तब ऐसे कम ही अभिभावक थे, जिन्होंने नकल को अपने बच्चों की सफलता का हथियार न बनाया हो। यूं तो हर परीक्षा केंद्र में मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा और चस्पा रहता है कि परीक्षा में नकल करना पाप है। नकलची छात्रों का भविष्य अंतत: अत्यंत अंधकारमय होता है, लेकिन कई कोचिंगबाज शिक्षक नकल करवाने के कीर्तिमान रचते देखे जाते हैं। यही कारोबारी शिक्षक पेपर लीक करने वालों से भी मिले रहते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र के अकोला में बारहवीं की परीक्षा के पहले पेपर में बहन को कॉपी दिलाने के लिए भाई पुलिस की वर्दी पहनकर सीधे परीक्षा केंद्र जा पहुंचा। बहन को नकल कराने के लिए नकली पुलिस बने इस भ्राता ने वहां पर मौजूद असली खाकी वर्दीधारी अफसर को बड़े अदब के साथ सलाम भी ठोका। अफसर ने जब उसे गौर से देखा तो पाया कि उसकी वर्दी पर लगी नेमप्लेट गलत है। उसकी तलाशी ली गई तो उसके पास से अंग्रेजी विषय की एक कॉपी मिली। जेल जाने के भय से वह फूट-फूट कर रोने लगा। आज की तारीख में देशभर में ऐसे कई पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, प्रिंसीपल, प्रशासनिक अधिकारी हैं, जिन्हें नकल ने अपनी मनचाही मंजिल तक पहुंचाया है। यह नकली असली पर बहुत भारी हैं।

Thursday, February 22, 2024

खरीद-फरोख्त की मंडी

    नेता बड़ी तेजी से अपना रंग बदलने लगे हैं। इनका कोई भरोसा नहीं। आज इस दल में तो कल पता नहीं किस दलदल में। जनता को भ्रम में रखने का इन्हें खूब हुनर आता है। झूठ पर झूठ बोलने में भी इनका कोई सानी नहीं। दस-बीस नेता फरेबी होते तो बात आयी गयी हो जाती, लेकिन यहां तो इस मामले में भी प्रतिस्पर्धा चल रही है। लोगों का माथा चकरा रहा है। कल तक जो घोर शत्रु थे, अछूत थे, झूम-झूम कर उन्हें गले लगाया जा रहा है। देश के हुक्मरान भी किधर जा रहे हैं? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। मेल-मिलाप के इस अजूबे खेल ने वोटरों को असमंजस की जंजीरों में जकड़ कर रख दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के किले को खंडहर में तब्दील करने के जो मंजर नज़र आ रहे हैं, उनकी तो कल्पना ही नहीं की गई थी। जो नींव के पत्थर थे, वही खिसकते जा रहे हैं। दूसरे दलों के दिग्गज नेता भी भाजपा के जहाज की सवारी के लोभ में अपनी पुरानी कश्तियों में छेद कर उन्हें बड़ी बेशर्मी से डुबो रहे हैं। 

    कुछ ही हफ्तों के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी भाजपा की तूफानी जीत का दावा करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति भी किसी पहेली से कम नहीं। देश की आम जनता मान चुकी है कि देश में कोई भी चेहरा मोदी जितना दमदार नहीं। विपक्ष जितना बेबस और बेचारा आज दिख रहा है, वैसा पहले कभी नहीं दिखा। दिखावे के तौर पर वह कुछ भी दावे करता रहे, लेकिन संपूर्ण विपक्ष जानता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसकी दाल नहीं गलने वाली। फिर भी मैदान में उतरना जरूरी है। नहीं उतरेंगे तो हंसी के पात्र बनेंगे। भविष्य चौपट हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते नहीं थकते कि देश के सजग मतदाता भाजपा को 370 सीटों पर विजयी बनाने के साथ-साथ एनडीए को 400 के पार पहुंचा कर विपक्ष के होश ठिकाने लगायेंगे। ऐसे में प्रश्न यह है कि जब उन्हें इस कदर भरोसा है तो इधर की ईंटों और उधर के रोढ़ों को क्यों अपने साथ जोड़े जा रहे हैं? विपक्षी पार्टियों के नेताओं के काले अतीत को नजरअंदाज करने की पीछे कौन से मजबूरियां हैं? भाजपा तथा मोदी की साम, दाम, दंड और भेद की रणनीति कहीं उनकी अंदर की घबराहट का प्रतिफल तो नहीं? प्रधानमंत्री जीत का कोई भी रास्ता नहीं छोड़ना चाहते। हर बाधा को दूर कर लेना चाहते हैं? इसलिए सभी के लिए दरवाजे खोल दिए गये हैं! जगजाहिर बेइमानों को भी मालाएं पहनाकर तहेदिल से गले लगाया जा रहा है। जिन विधायकों, मंत्रियों, सांसदों के काले कारनामों के विरोध में कभी शोर मचाया करते थे, उनके गले में भाजपा का दुपट्टा पहनाना मोदी के कद को कहीं न कहीं घटा रहा है। यह अलग बात है कि इस तमाशे को राजनीति की रणनीति कहकर पल्ला झाड़ लिया जाए, लेकिन सजग भारतीयों को भाजपा का यह चलन अंदर ही अंदर चुभ रहा है। आहत और निराश तो भाजपा के वो नेता और समर्पित कार्यकर्ता भी हैं, जिन्हें अपनी पार्टी की यह नीति डराने लगी है। उन्हें अपनी वर्षों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आने लगा है और भविष्य अंधकारमय लगने लगा है। उनके मन में बार-बार यह विचार भी आता है, जिस तरह से उनकी पार्टी खरीद-फरोख्त की मंडी में तब्दील हो रही है। सत्ता की सुरक्षा के लिए अशोभनीय समझौते करती चली जा रही है, तो ऐसे में उस विचारधारा और सिद्धांतों का क्या होगा, जिनके लिए उसे मान-सम्मान मिलता रहा है। अपनी पुरानी पार्टी को छोड़ नयी पार्टी में शामिल होकर दुपट्टा ओढ़ने वाले अधिकांश नेताओं की तिजोरियां नोटों से लबालब हैं। मतदाताओं को लुभाने और कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाने के हर गुर में यह धुरंधर पारंगत हैं। चुनावो में पानी की तरह धन बहाना इनके बायें हाथ का खेल है। अपने देश भारत में चुनावी लड़ाई अब पैसे वालों का मनोरंजक खेल भी बन चुकी है। कोई भी सरकार चुनावों में पैसों के दानवी खेल को खत्म नहीं करना चाहती। सरकारों को आखिर चलाते तो नेता ही हैं, जिन्हें अपना बहुमूल्य वोट देकर वोटर सांसद और विधायक बनाते हैं। यह सच अपनी जगह है कि बाद में वे उन्हें भूल जाते है और व्यापार की डगर अपनाते हैं। अभी हाल ही में मेरे पढ़ने में आया कि हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओबिन की चुनाव के दौरान जिन रईस दोस्तों ने आर्थिक सहायता की थी, बाद में उन्हीं को धड़ाधड़ सरकारी ठेके हासिल हुए और देखते ही देखते वे देश के सबसे अमीर शख्स बन गए। शातिर चतुर और चालाक लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि शीर्ष नेताओं से दोस्ती कितनी-कितनी फायदेमंद होती है। यह नजारा भारत में भी बड़ा आम है। यह कलमकार ऐसे विधायकों, मंत्रियों को जानता है, जो अपने करीबी रिश्तेदारों, दोस्तों तथा समर्पित कार्यकर्ताओं को सरकारी ठेके दिलवा कर उनकी बदहाली को खुशहाली में बदलने का काम करते हैं। इन चुने हुए जनप्रतिनिधियों के यहां चम्मचों की भीड़ लगी रहती है। उनकी खास कैबिन में शराब, खनिज और तरह-तरह की लूट का धंधा करने वाले खूंटा गाड़ कर जमे रहते हैं। आम जनता से मिलने के लिए ‘साहेब’ के पास वक्त ही नहीं होता।

Thursday, February 15, 2024

राजनीति के अस्त्र-शस्त्र

    इन दिनों देश की राजनीति का तापमान बड़ा अजब-गजब है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बमबारी जोरों पर है। वैसे तो हर चुनाव से पहले नेता, राजनेता और उनकी भक्त मंडली ढोल- मंजीरे बजाने लगती है, लेकिन इस बार उठा-पटक और शोर-शराबा बहुत ज्यादा है। विपक्ष किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी की कुर्सी छीनने का हठ पाले हुए है, लेकिन उसे यह भी पता है कि उसकी दाल नहीं गलने वाली। प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ही दूसरे वो प्रधानमंत्री हैं, जिनके असीम भय से संपूर्ण विपक्ष भयभीत है। उसे अपनी उड़ान पर ही भरोसा नहीं। देश की सबसे पुरातन पार्टी कांग्रेस के तो कई दिग्गज नेता उसका दामन झटक कर भाजपा तथा दूसरे राजनीतिक दलों में कूच करने लगे हैं। गठबंधन की सतत खुलती-बिखरती गांठ भाजपा और मोदी को ताकत दे रही है। भाजपा के इस अद्भुत योद्धा ने सभी विपक्षी नेताओं की धड़कनें बढ़ा दी हैं। धड़कनें तो मीडिया की भी बढ़ी हुई हैं। पिछले दस साल से एकतरफा पत्रकारिता करते चले आ रहे पत्रकारों-संपादकों की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। विपक्षी नेताओं की तरह इन पत्रकारों ने भी सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने की कसम खा रखी है। ये पत्रकार कौन हैं? सभी जानते हैं। 

    राजदीप सरदेसाई भी मोदी की खिलाफत करने वाले पत्रकारों, संपादकों में शामिल हैं। उनकी यह लत बीमारी का रूप ले चुकी है। यही हाल उनकी पत्नी सागरिका घोष का भी है, जिन्हें नरेंद्र मोदी में हजारों बुराइयां दिखती हैं। उनके शासन में हुए विकास कार्य नहीं दिखते। दरअसल वह देखना भी नहीं चाहतीं। उनके लिए यह अंधापन बहुत लाभकारी है। मोदी जी तो कुछ देने से रहे। जो भी मिलना है, विपक्ष से ही मिलना है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी ममता लुटाते हुए अपनी तृणमूल कांग्रेस पार्टी की तरफ से राज्यसभा की सांसदी की टिकट सागरिका की झोली में डाल दी है। उनके पति भी राज्यसभा जाने की राह देख रहे हैं। ये पति-पत्नी मोदी विरोधी अभियान में दिन-रात लगे रहते हैं। यदि उन्हें कोई बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कई विकासकार्य भी किये हैं, तो इनका पारा चढ़ जाता है। सभी माता-पिता अपनी औलाद को अपने पदचिन्हों पर चलते देखना चाहते हैं, लेकिन राजदीप के साथ तब बड़ी अनहोनी हो गयी जब उसके बेटे ने जयपुर से लौटने के पश्चात फोरलेन हाइवे की धड़ाधड़ तारीफें करनी प्रारंभ कर दीं। एकतरफा तीर चलाने वाले पत्रकार का तो माथा ही घूम गया। वे निरंतर अपने पुत्र का चेहरा देखते रह गये। यह क्या अंधेर हो गया। मेरा ही खून मेरे दुश्मन की तारीफ कर रहा है। इसकी अक्ल तो ठिकाने है? राजदीप के बेटे ने जब कहा, ‘मोदी जी को देखिए, उन्होंने सड़कों का कायाकल्प ही करके रख दिया है।’ जले-भुने पिता ने पुत्र को टोकते हुए कहा, नितिन गडकरी केंद्रीय सड़क मंत्री हैं, उन्होंने भी बड़ी मेहनत की है। प्रत्युत्तर में बेटा तपाक से बोला, ‘उसे सब पता है, लेकिन असली नायक तो मोदी जी ही हैं। उन्हीं के नेतृत्व और मार्गदर्शन में सभी मंत्री और अधिकारी काम करते हैं।’ अपने ही घर में मोदी समर्थकों का होना कई जन्मजात मोदी विरोधी पत्रकारों तथा नेताओं की नींद को उड़ा चुका है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार ने पहले कर्पूरी ठाकुर, फिर लालकृष्ण आडवाणी और उसके तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को ‘भारत रत्न’ से सुशोभित करने की घोषणा कर अपने विरोधियों के पैरोंतले की जमीन ही छीन ली है। ‘भारत रत्न’ देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। देश के विकास और बदलाव में उल्लेखनीय योगदान देने वाली शख्सियतों को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाता है। भारत रत्न के लिए देश के प्रधानमंत्री किसी भी व्यक्ति को नामित कर सकते हैं। मंत्रिमंडल के सदस्य, राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री को अपनी सिफारिश भेज सकते हैं। इन सिफारिशों पर प्रधानमंत्री की मुहर लगने के बाद ही राष्ट्रपति को अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाता है। ‘भारत रत्न’ देने की शुरुआत 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल में हुई थी। 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ‘भारत रत्न’ दिया गया था। 1971 में इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया था। पाकिस्तान के अब्दुल गफ्फार खान और साउथ अफ्रीका के नेल्सन मंडेला भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किये जा चुके हैं। अब्दुल गफ्फार खान ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान दिया था। साउथ अफ्रीका के गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला ने काले-गोरे का भेद मिटाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। 

    ‘भारत रत्न’ को लेकर विवाद-प्रतिवाद भी होते रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि ‘भारत रत्न’ देने के पीछे राजनीति का अहम योगदान होता है। सरकार के समर्थकों के हिस्से में ही ज्यादातर ‘भारत रत्न’ सम्मान आता है। इस बार के ‘भारत रत्न’ को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निशाने पर हैं। निशानेबाज भूल गये हैं कि अपने ही देश में दो प्रधानमंत्री खुद को ही ‘भारत रत्न’ से सुशोभित करने का कीर्तिमान रच चुके हैं। मोदी ने तो ऐसा कोई कारनामा नहीं किया। राजनीति के खेल में विरोधियों को जरूर अस्त्र विहीन किया है। उन्होंने जिन्हें इस गौरवशाली पुरस्कार से नवाजा है वे उनके रिश्तेदार नहीं हैं। इनकी देश सेवा की गाथाएं इतिहास में दर्ज हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, पिछड़ा वर्ग के परम हितैषी जननायक कर्पूरी ठाकुर ने देश में पहली बार पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था करके सामाजिक न्याय को नयी दिशा दी थी। जाट और किसान नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को आर्थिक सुधारों, अच्छे शासन-प्रशासन के लिए जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी वो कर्मठ नेता हैं, जिन्होंने भाजपा को बुलंदियों पर पहुंचाया। कृषि वैज्ञानिक हरितक्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन महात्मा गांधी से अत्यंत प्रभावित थे। देश की गरीबी और भुखमरी से हमेशा परेशान और चिंतित रहने वाले इस किसान प्रेमी का एक ही मकसद था, देश में सर्वत्र खुशहाली लाना। देश के हर व्यक्ति को तीन वक्त का पोषक आहार मिले। कोई भी भूखा न रहे। स्वामीनाथन इकलौते ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक के साथ काम किया था। गौरतलब यह भी है कि स्वामीनाथन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। वे पूरी तरह से गैर-सियासी हस्ती थे। यहां आरएलडी नेता जयंत चौधरी का बयान भी काबिलेगौर है कि मोदी सरकार ने उनके दादा चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित कर उनका दिल जीत लिया है।

Thursday, February 8, 2024

असरकारी सफर

    कुछ खबरें बड़ी ही दिल को छू लेने वाली होती हैं। बनी-बनायी धारणाओं को चकना-चूर करने वाली खबरों की नायिकाएं और  नायक बड़ी तेजी से दिल-दिमाग में बस जाते हैं। उन्हें याद करना बहुत सुहाता है। दूसरों को भी उनके बारे में बार-बार बताने का मन हो आता है...। आईए सबसे पहले मिलते हैं राजस्थान के शहर अलवर की पायल से। पायल कक्षा नौंवी में पढ़ रही है। उम्र है 14 वर्ष। पायल जब मात्र छह वर्ष की थी तब खेत में बॉल पकड़ने के लिए दौड़ रही थी तभी अचानक उस पर 11 हजार वोल्ट की बिजली की लाइन टूट कर आ गिरने से उसके दोनों हाथ करंट से जल गए। उसकी जान तो बच गई, लेकिन दोनों हाथ जिस्म से अलग करने पड़े। छह साल की बच्ची को ज्यादा समझदार नहीं समझा जाता, लेकिन पायल को विधाता ने किसी और ही मिट्टी से रच कर धरा पर भेजा है। तभी तो उसने मात्र 18 दिन में ही हाथों के सदा-सदा के लिए छिन जाने के गम को भुलाते हुए पैरों से ही लिखना सीख लिया। डॉक्टरों ने जो कृत्रिम हाथ लगाए उन्हें डेढ़-दो माह में ही हटा दिया। डॉक्टर हैरान स्तब्ध थे। ऐसी हिम्मती बच्ची तो पहले उन्होंने नहीं देखी। शरीर के घाव भरे भी नहीं, स्कूल जाने लगी। उसे किसी की दया पर जीना पसंद नहीं। दिव्यांग कहलाना भी उसे बिलकुल नापसंद है। आठवीं की बोर्ड परीक्षा में दिव्यांग बच्चों को मिलने वाली अतिरिक्त समय की सुविधा को उसने लेने से साफ मना करते हुए प्रिंसिपल को अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि, मैडम मेरे हाथ नहीं हैं, इसलिए मुझ पर रहम कर दूसरों से ज्यादा समय दे रही हैं...! मैं सभी के टाइम में ही  पेपर हल करूंगी। उसे समझाया गया कि यह तो बोर्ड का नियम है। यह उसका अधिकार है, लेकिन पायल नहीं मानी। पायल आईएएस बनना चाहती है। सभी का यही कहना है कि हौसले और उत्साह से लबालब यह लड़की अपने हर सपने को साकार कर दिखाएगी...। 

    नागपुर की नेत्रहीन ईश्वरी पांडे ने तो इतिहास ही रच दिया। मुंबई के एलीफेंटा से गेटवे ऑफ इंडिया की समुद्री दूरी 4 घंटे, 2 मिनट में पूर्ण कर समुद्र के ठंडे पानी और ऊंची-ऊंची लहरों के होश ठिकाने लगा दिए। अद्भुत साहस से ओतप्रोत ईश्वरी की इस शानदार प्रेरक उपलब्धि को एशियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कर गौरवान्वित किया गया है।

    भारत की राजधानी दिल्ली में रहती हैं, पूजा शर्मा। 26 साल की हैं। अभी तक 4000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। 13 मार्च, 2022 को पूजा के तीस वर्षीय बड़े भाई की मामूली-सी बात पर गुंडों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। तब पिता को तो इस कदर धक्का लगा था कि वे कोमा में चले गए थे। पूजा ने भाई को खोने के गम में डूबने की बजाय उन शवों का अंतिम संस्कार करने का पक्का मन बना लिया, जिन्हें लावारिस माना जाता है। अपने भाई का अंतिम संस्कार करने के दूसरे दिन से उसने दूसरों की मदद का जो संकल्प लिया वो आज भी बरकरार है। पूजा ऐसे शवों के बारे में पुलिस और अस्पतालों से जानकारी जुटाती हैं, जिनके परिवार या फिर सगे संबंधी नहीं होते। अब तो अस्पताल तथा पुलिस वाले भी पूजा को तुरंत लावारिस शवों की खबर कर देते हैं और पूजा दौड़ी-दौड़ी पहुंच जाती हैं और समर्पित भाव से अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाती हैं। अपने भाई को खोने से मिले अथाह दुख को दूसरों की सेवा करने के मिशन में तब्दील कर चुकी पूजा किसी प्रेरक ग्रंथ से यकीनन कम तो नहीं। उसके लिए सभी धर्मों के लोग एक समान हैं। शव चाहे हिंदु का हो, मुसलमान का हो सिख या ईसाई का हो वह तो बिना भेदभाव के अपना धर्म निभाती है...। 

    यह सच अपनी जगह अटल है कि जिनमें सेवाभाव का ज़ज्बा होता है वे धर्म और जात से परे होते हैं। नारंगी नगर नागपुर के निकट स्थित कामठी में एक हिंदू व्यक्ति के शव को मोक्षधाम ले जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल रही थी। यह खबर जब मुस्लिम कब्रिस्तान कमेटी के सचिव इलाही बक्श तक पहुंची तो उन्होंने फूलचंद के शव को मोक्षधाम पहुंचाने के लिए कब्रिस्तान की गाड़ी भेजने में किंचित भी देरी नहीं की। कई बार छोटे बच्चे बड़ों को बहुत बड़ी सीख देते हैं। दिल्ली की एक अदालत में पति-पत्नी के बीच तलाक का केस अंतिम चरण में था। उनके मध्यस्थ ने उनसे अंतिम बार पूछा कि क्या आप दोनों साथ रहना चाहते हैं। हमेशा की तरह उन्होंने कहा, बिलकुल नहीं...। उन दोनों का 11 साल का एक बेटा भी है, जो तब कोर्ट में मौजूद था। अपने मां-बाप के फैसले को सुनते ही वह रोने लगा। जज ने बच्चे को रोता देख पूछा, बेटे आप दोनों में से किसके साथ रहना चाहेंगे? बच्चे का जवाब था, जज अंकल मुझे तो मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना है। जज ने बच्चे को समझाते हुए कहा कि बेटा, आप के मम्मी-पापा की आपस में नहीं बनती, इसलिए उनका तलाक हो रहा है। इसमें ही उनकी खुशी है। बच्चे ने मासूमियत भरे लहजे में कहा, जज अंकल ऐसे में मुझे भी इनके साथ नहीं रहना है। मुझे इन दोनों से तलाक दिलवा कर कहीं और भेज दीजिए। बच्चा अपने मन की बात कहते-कहते फिर रोने लगा। मां-बाप ने उसे चुप कराने की तो कोशिश की पर वह उनका हाथ झटक कर जज के पास चला गया। बच्चे के इस बर्ताव ने माता-पिता को झकझोर कर रख दिया। दोनों की आंखों ही आंखों में बात हुई और तुरंत अलग कमरे में चले गए। आधे घंटे बाद कोर्ट के समक्ष आकर उन्होंने कहा, ‘वे भी अपने बच्चे से अलग रहकर नहीं जी पाएंगे। आपसी मनमुटाव और रोज की किचकिच में उलझ कर उन्होंने अपने बच्चे को ही भुला दिया था।’ अब दोनों ने तलाक नहीं लेने का निर्णय किया है। इसके साथ ही एक दूसरे के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने जा रहे हैं...।

Thursday, February 1, 2024

ज्ञानी-अज्ञानी

    यह तरक्की नहीं, अवनति है, दुर्गति है। सदाचार नहीं, अनाचार है। अपने देश के ये कैसे हाल हैं? हर कोई ईमानदारी के रास्ते पर चलने का हिमायती है। सभी को धोखाधड़ी से नफरत है। हर कोई भरोसे की डोर टूटने पर आहत होता है। सभी धूर्तों, धोखेबाजों और कपटियों से घृणा करते हैं। बेईमान और भ्रष्टाचारी भी किसी को पसंद नहीं। फिर भी बहुतेरे भारतीयों को छल कपट और पीठ पर छुरा घोंपने में कोई परहेज नहीं! अपने देश में कुछ पेशे ऐसे हैं, जिनके प्रति श्रद्धा, आस्था और विश्वास विद्यमान है। वकील और वकालत भी उन्हीं पेशों में शामिल है। जिस तरह से डॉक्टर के पास बीमार इस उम्मीद के साथ जाता है कि वह उसकी देखरेख में शीघ्र रोग मुक्त होगा। स्वस्थ होकर अस्पताल से घर लौटेगा। इसी तरह से हर पीड़ित को वकील के माध्यम से शीघ्रता-शीघ्र न्याय पाने की आस होती है। जिस तरह से मरीज डॉक्टर से अपनी बीमारी की कोई बात नहीं छुपाता उसी तरह से न्याय का अभिलाषी इंसान वकील को पूरी हकीकत बता देता है। 

    केरल की पुलिस हाईकोर्ट के सीनियर वकील पीजी मनु को दबोचने के लिए शहर-शहर-गांव-गांव की खाक छान रही है। इस धूर्त वकील के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी कर दिया गया है। इस वकील ने वकालत के सेवाभावी पेशे को कलंकित किया है। हुआ यूं कि एक तीस वर्षीय महिला किसी दुराचारी की हवस का शिकार होने के पश्चात इस वकील के पास कानूनी सलाह लेने के लिए गई थी। किसी ने उसे इस वकील का नाम सुझाया था। सजी-धजी खूबसूरत महिला की आपबीती सुनते-सुनते वकील की नीयत में खोट आ गया। उसने महिला को मामले पर चर्चा करने के बहाने अपने घर के अंदर बुलाया और दरवाजा बंद कर उसका रेप करने के साथ-साथ अश्लील तस्वीरें भी खींच डालीं। हैरान, परेशान महिला ने वकील की हरकत का पुरजोर विरोध किया तो शातिर वकील ने मामले को पलट देने और उसे ही आरोपी बना फसाने की धमकी दे दी। वह वॉट्सएप कॉल और चैट के जरिए उससे जब-तब अश्लील बातें भी करने लगा। एक दिन जब पीड़िता के घर पर कोई नहीं था तो शैतान-हैवान वकील उसके घर में जबरन घुस गया। बार-बार उसकी अंधी हवस की शिकार होती महिला ने आखिरकार पुलिस की शरण ली तो बलात्कारी वकील फरार हो गया...। 

    आज के दौर में सोशल मीडिया के प्रति जो दीवानगी है, वह बहुत ही अद्भुत है। यह कहना गलत नहीं लगता कि बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इसके नशे की जबरदस्त गिरफ्त में हैं। एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में भारत इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में दूसरे स्थान पर है। गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहे देश में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर लोग औसतन ढाई घंटे से ज्यादा वक्त बिताते हैं। अखबारों और न्यूज चैनलों की खासी जगह सोशल मीडिया ने हथिया ली है। अधिकांश खबरें और विभिन्न सूचनाएं सोशल मीडिया तुरंत उपलब्ध करवा देता है। एक-दूसरे से संपर्क में रहने का भी सशक्त जरिया बन गया है सोशल मीडिया, लेकिन इसका बड़ी तेजी से दुरुपयोग भी होने लगा है। असम के सिलचर शहर में रहने वाली संचाइता भट्टाचार्या नामक युवती ने सोशल मीडिया पर खुद को कैंसर की गंभीर रोगी बताकर परिचितों और अपरिचितों से करोड़ों रुपये ऐंठ लिए। इस युवती को कहीं न कहीं से प्रेरणा तो जरूर मिली होगी। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर खुद को अपाहिज, बीमार, दुखियारा दर्शाकर फंड जमा करने वालों की भीड़ लगी रहती है। इनमें कुछ वास्तव में मजबूर और जरूरतमंद होते हैं, जिनकी यकीनन सहायता की जानी चाहिए। एक दूसरे के काम आना ही सच्ची मानवता है, लेकिन इन ठगों और लुटेरों की शिनाख्त कैसे की जाए। इन धूर्तों से कैसे निपटा जाए? संचाइता भट्टाचार्या ने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाते हुए लिखा कि वह गरीब, अनाथ, आदिवासी युवती है। वह कैंसर की जानलेवा बीमारी से लड़ते-लड़ते थक चुकी है। वह जीना चाहती है, लेकिन इलाज के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। संचाइता को सहायता करने वाले भावुक और परोपकारी लोगों की कतार लग गई। देश और विदेश से उसे जो धन मिला वो लाखों नहीं करोड़ों में था। उम्मीद से ज्यादा धन झोली में भरने के पश्चात उसने बड़े ही शातिराना तरीके से अपनी मौत की खबर भी फैला दी, लेकिन उसी के दोस्त ने ही उसकी पोल खोल दी। इस दोस्त को भी अंधेरे में रखकर संचाइता ने उससे लाखों रुपये की ठगी की थी। प्रेमिका के फ्राड का शिकार हुए प्रेमी ने ही पर्दाफाश किया कि संचाइता को डेंगू हुआ था। डेंगू की रिपोर्ट में हेरफेर कर उसने खुद को स्टेज-4 की कैंसर रोगी दर्शाकर सहानुभूति बटोरी और अनेकों लोगों के साथ धोखाधड़ी कर डाली। 

    हर बीमारी का इलाज सक्षम डॉक्टर ही कर सकता है। उस पर कैंसर तो ऐसा रोग है, जो बड़े-बड़े जिगरवालों को पस्त कर देता है, लेकिन फिर भी अपने ही देश में कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को सही इलाज और अटूट मनोबल के दम पर परास्त कर दिखाया है। यह पढ़-सुनकर हैरत होती है कि कई लोग आज भी घोर अंधविश्वास के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फंसे हैं। उन्हें अस्पताल से ज्यादा तंत्र-मंत्र आकर्षित करते हैं। अनुभवी चिकित्सकों की बजाय ढोंगी बाबाओं के दरबार उन्हें हितकारी लगते हैं। राजधानी दिल्ली के रहने वाले एक परिवार के पांच साल के बच्चे को ब्लड कैंसर ने जकड़ लिया था। बच्चे तो अपने मां-बाप पर ही आश्रित होते हैं। अच्छी देखभाल और सिद्धहस्त डॉक्टर से इलाज करवाना उन्हीं का दायित्व होता है, लेकिन इस बच्चे के मां-बाप के कान में किसी ने मंत्र फूंका कि गंगा मैया की शरण में जाने से बच्चा नाचने-कूदने लगेगा। बच्चे के माता-पिता कड़ाके की ठंड में बच्चे को गंगा स्नान कराने के लिए हरिद्वार जा पहुंचे। बच्चे की मौसी भी उनके साथ थी। गंगा के तट पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने कंपकंपा देने वाली ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहन रखे थे। उम्रदराज बड़े-बूढ़े शॉल और कंबल में होने के बावजूद कांप रहे थे। हरिद्वार में ही कई लोग भीषण जाड़े के कारण दम तोड़ चुके थे। पूरी धार्मिक नगरी कड़ाके की सर्दी से ठिठुर रही थी। बच्चे के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था। मौसी ने जोश ही जोश में बीमार-निर्वस्त्र बच्चे को काफी देर तक ठंडे पानी में डुबोये रखा, जिससे मासूम के प्राण पखेरू उड़ गये। फिर भी मौसी यही कहती रही कि गंगा मैया बच्चे को जिन्दा कर देंगी। आसपास खड़े लोग उसे कोस रहे थे, लेकिन वह उन्हीं पर ऐसे हंसे जा रही थी जैसे वे हद दर्जे के मूर्ख हों और वह अंतर्यामी और महाज्ञानी हो...।