एक व्यंग्य चित्र मेरे सामने है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष एक दुबला-पतला हिन्दुस्तानी खडा पूछ रहा है कि साहेब, वो १५ लाख पर ब्याज, साधारण मिलेगा या चक्रवृद्धि... तीन साल हो गये तो सोचा पूछ ही लूं। हां नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता पर काबिज हुए पूरे तीन साल हो गए हैं। जिन लोगों की याददाश्त कमजोर नहीं है वे उनसे कई सवाल करना चाहते हैं। भले ही जवाब मिलें या न मिलें। भारतीय लोकतंत्र में जनता की तब तक पूछ है जब तक चुनाव नहीं हो जाते। चुनावों के बाद नेता शासक और जनता प्रजा हो जाती है। बेचारी प्रजा हमेशा शासको के रहमोकरम की राह ताकती रहती है। शासक अपने हिसाब से काम करते हैं। अधिकतर तो अतीत में किये गये अधिकांश वायदों को ताक में रख देते हैं। बेचारी प्रजा उन्हें बार-बार याद दिलाती रहती है। प्रधानमंत्री मोदी जब देशभर में लोकसभा चुनाव का प्रचार करते घूम रहे थे तब उन्होंने कई वादे किए थे और प्रलोभन के जाल भी फेंके थे। चुनावी मंचों पर उन्होंने सीना तान कर कहा था कि जैसे ही वे देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, विदेशों में पडा देश का अपार धन वापस लाएंगे और हर भारतवासी के बैंक खाते में कम अज़ कम १५ लाख रुपये तो आ ही जाएंगे। १५ लाख रुपये कोई छोटी-मोटी रकम नहीं होती।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहने में जरा भी देरी नहीं लगायी कि चुनाव के समय जुमलों की बरसात करनी ही पडती है। यह १५ लाख का वादा भी दरअसल जुमला ही था, लेकिन लोग हैं कि भूलने को तैयार ही नहीं हैं। विरोधी दलों के नेताओं को भी जब भाजपा और प्रधानमंत्री पर वार करना होता है तो वे इस पंद्रह लाख का तीर छोड ही देते हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने पर विभिन्न राजनीतिक विद्धान अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। वैसे भी तीन वर्ष का कार्यकाल कम नहीं होता। लोगों को आकलन करने का पूरा अधिकार है। तीन वर्ष पूर्व मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तब देश में गजब की निराशा का वातावरण था। सोनिया-मनमोहन के दस वर्ष के शासन काल में भ्रष्टाचार और घोटालों की खबरों के सिवाय और कुछ सुनने और प‹ढने में नहीं आता था। देशवासी बदलाव चाहते थे। इसी के परिणामस्वरूप २०१४ के आम चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को ऐसा अभूतपूर्व जनादेश मिला जिसकी कल्पना नहीं की गई थी। मोदी ने सत्ता संभालते ही कहा था कि वे एक जनसेवक के रूप में 'सबका साथ, सबका विकास' की नीति पर चलते हुए शीघ्र ही देश की तस्वीर बदल देंगे। देशवासियों को तो उनपर भरोसा था ही, लेकिन क्या उनका कहा सार्थक हो पाया? क्या देशवासियों के अच्छे दिन आ गए हैं? क्या यह सरकार पहले वाली सरकारों से अलग है?
सबसे पहले तो इस सरकार की इस बात को लेकर तारीफ करनी होगी कि अभी तक कोई भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया। हालांकि विरोधी पार्टियों और नेताओं ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए मोदी सरकार को नकारा साबित करने का अभियान चला रखा है। महागठबंधन बनाकर मोदी को घेरने के तरीके खोजे जा रहे हैं। सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेता विपक्ष को खिसियानी बिल्ली करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार का तीन साल का कार्यकाल अत्यंत प्रभावी रहा है। नरेंद्र मोदी की गरीबों के मसीहा की जो छवि बनी है उसे विपक्षी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। देशभर में बजते मोदी के नाम के डंके ने उनकी नींद उडा दी है। मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता संभालते ही बुनियादी बदलाव पर अपना ध्यान केंद्रित किया। मेक इन इंडिया, स्मार्ट इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छता अभियान और नोट बंदी का ऐतिहासिक फैसला लेकर यह संदेश दे दिया है कि वे नये भारत का निर्माण की दिशा में कदम ब‹ढाया जा चुका है। 'बेटी पढाओ, बेटी बचाओ' उनके लिए महज नारा नहीं है। सरकार समाज के हर वर्ग के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। तीन तलाक के मसले पर मोदी सरकार की लडाई को मुस्लिम महिलाओं ने भी बेहद सराहा है और अपना भरपूर समर्थन दिया है। बिजली की बचत के लिए एलईडी बल्ब के प्रयोग को प्रोत्साहन देना, गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस की उज्ज्वला योजना, फसल बीमा योजना, जन धन योजना से करोडों लोगों के लाभान्वित होने का दावा किया जा रहा है। जीएसटी के लागू होने से भी सकारात्मक नतीजों की उम्मीद की जा रही है। नोटबंदी के बाद आयकर दाताओं की संख्या करीब ९० लाख बढी है। फिर भी यह तो कतई नहीं कहा जा सकता कि मोदी सरकार पूरी तरह से जन कल्याणकारी सफल सरकार है और देश का जन-जन उसके क्रियाकलापों से प्रसन्न है। देशभर में सडकों का जाल बिछाने के साथ-साथ मेट्रो आदि का काम भी तेजी से चल रहा है, लेकिन इस देश की आधे से ज्यादा जनता रोटी, कपडा और मकान की समस्या से जूझ रही है। बेरोजगार आज भी रोजगार के लिए तरस रहे हैं। अशिक्षा और अपराध उफान पर हैं। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वही पुराना दस्तूर निभाया जा रहा है। महिलाएं अपराधियों के खौफ से डरी-सहमी रहती हैं। दलितों, शोषितों, वंचितों और गरीबों के चेहरे के रंग वैसे ही उडे नजर आते हैं जैसे सोनिया-मनमोहन काल में थे। यह भी सच है कि अधिकांश मीडिया भी मोदी के गुणगान में खुद को समर्पित कर चुका है। भाजपा भाग्यवान है। मोदी खुशनसीब हैं। थके-हारे निराश लोगों के समक्ष और कोई राजनीतिक विकल्प भी नहीं है। इसलिए तो दिल्ली के एमसीडी चुनाव में दस साल बाद भी भाजपा हैट्रिक लगाने में सफल हो गई। जबकि एमसीडी के भ्रष्टाचारी रवैय्ये और नालायकी के चलते दिल्ली की दुर्गति किसी से छिपी नहीं थी। इन दिनों अरविंद केजरीवाल, लालू प्रसाद यादव और चिदम्बरम परिवार के लोग बुरी तरह से भ्रष्टाचारों के आरोपों से घिरे हैं। ऐसे में जनता यह सोचने को विवश हो जाती है कि इन भ्रष्ट बेइमानों से तो अपने मोदी लाख गुना अच्छे हैं। दरअसल, देशवासियों को तथाकथित लुटेरों की भीड में मोदी एक ऐसे नेता के रूप में दिखायी देते हैं जो निष्कलंक हैं। वे अपने वादे पूरे करने के मामले में भले ही कमतर दिखते हैं, लेकिन एक चरित्रवान नेता की उनकी जो छवि बनी है वो सब पर भारी है। लोग अभी भी उम्मीद लगाए हैं कि अपने दो वर्ष के बचे कार्यकाल में वे कोई चमत्कार जरूर कर दिखाएंगे। कौन नहीं जानता कि भारतवासी आशा का दामन कभी भी नहीं छोडते।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहने में जरा भी देरी नहीं लगायी कि चुनाव के समय जुमलों की बरसात करनी ही पडती है। यह १५ लाख का वादा भी दरअसल जुमला ही था, लेकिन लोग हैं कि भूलने को तैयार ही नहीं हैं। विरोधी दलों के नेताओं को भी जब भाजपा और प्रधानमंत्री पर वार करना होता है तो वे इस पंद्रह लाख का तीर छोड ही देते हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने पर विभिन्न राजनीतिक विद्धान अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। वैसे भी तीन वर्ष का कार्यकाल कम नहीं होता। लोगों को आकलन करने का पूरा अधिकार है। तीन वर्ष पूर्व मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तब देश में गजब की निराशा का वातावरण था। सोनिया-मनमोहन के दस वर्ष के शासन काल में भ्रष्टाचार और घोटालों की खबरों के सिवाय और कुछ सुनने और प‹ढने में नहीं आता था। देशवासी बदलाव चाहते थे। इसी के परिणामस्वरूप २०१४ के आम चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को ऐसा अभूतपूर्व जनादेश मिला जिसकी कल्पना नहीं की गई थी। मोदी ने सत्ता संभालते ही कहा था कि वे एक जनसेवक के रूप में 'सबका साथ, सबका विकास' की नीति पर चलते हुए शीघ्र ही देश की तस्वीर बदल देंगे। देशवासियों को तो उनपर भरोसा था ही, लेकिन क्या उनका कहा सार्थक हो पाया? क्या देशवासियों के अच्छे दिन आ गए हैं? क्या यह सरकार पहले वाली सरकारों से अलग है?
सबसे पहले तो इस सरकार की इस बात को लेकर तारीफ करनी होगी कि अभी तक कोई भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया। हालांकि विरोधी पार्टियों और नेताओं ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए मोदी सरकार को नकारा साबित करने का अभियान चला रखा है। महागठबंधन बनाकर मोदी को घेरने के तरीके खोजे जा रहे हैं। सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेता विपक्ष को खिसियानी बिल्ली करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार का तीन साल का कार्यकाल अत्यंत प्रभावी रहा है। नरेंद्र मोदी की गरीबों के मसीहा की जो छवि बनी है उसे विपक्षी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। देशभर में बजते मोदी के नाम के डंके ने उनकी नींद उडा दी है। मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता संभालते ही बुनियादी बदलाव पर अपना ध्यान केंद्रित किया। मेक इन इंडिया, स्मार्ट इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छता अभियान और नोट बंदी का ऐतिहासिक फैसला लेकर यह संदेश दे दिया है कि वे नये भारत का निर्माण की दिशा में कदम ब‹ढाया जा चुका है। 'बेटी पढाओ, बेटी बचाओ' उनके लिए महज नारा नहीं है। सरकार समाज के हर वर्ग के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। तीन तलाक के मसले पर मोदी सरकार की लडाई को मुस्लिम महिलाओं ने भी बेहद सराहा है और अपना भरपूर समर्थन दिया है। बिजली की बचत के लिए एलईडी बल्ब के प्रयोग को प्रोत्साहन देना, गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस की उज्ज्वला योजना, फसल बीमा योजना, जन धन योजना से करोडों लोगों के लाभान्वित होने का दावा किया जा रहा है। जीएसटी के लागू होने से भी सकारात्मक नतीजों की उम्मीद की जा रही है। नोटबंदी के बाद आयकर दाताओं की संख्या करीब ९० लाख बढी है। फिर भी यह तो कतई नहीं कहा जा सकता कि मोदी सरकार पूरी तरह से जन कल्याणकारी सफल सरकार है और देश का जन-जन उसके क्रियाकलापों से प्रसन्न है। देशभर में सडकों का जाल बिछाने के साथ-साथ मेट्रो आदि का काम भी तेजी से चल रहा है, लेकिन इस देश की आधे से ज्यादा जनता रोटी, कपडा और मकान की समस्या से जूझ रही है। बेरोजगार आज भी रोजगार के लिए तरस रहे हैं। अशिक्षा और अपराध उफान पर हैं। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वही पुराना दस्तूर निभाया जा रहा है। महिलाएं अपराधियों के खौफ से डरी-सहमी रहती हैं। दलितों, शोषितों, वंचितों और गरीबों के चेहरे के रंग वैसे ही उडे नजर आते हैं जैसे सोनिया-मनमोहन काल में थे। यह भी सच है कि अधिकांश मीडिया भी मोदी के गुणगान में खुद को समर्पित कर चुका है। भाजपा भाग्यवान है। मोदी खुशनसीब हैं। थके-हारे निराश लोगों के समक्ष और कोई राजनीतिक विकल्प भी नहीं है। इसलिए तो दिल्ली के एमसीडी चुनाव में दस साल बाद भी भाजपा हैट्रिक लगाने में सफल हो गई। जबकि एमसीडी के भ्रष्टाचारी रवैय्ये और नालायकी के चलते दिल्ली की दुर्गति किसी से छिपी नहीं थी। इन दिनों अरविंद केजरीवाल, लालू प्रसाद यादव और चिदम्बरम परिवार के लोग बुरी तरह से भ्रष्टाचारों के आरोपों से घिरे हैं। ऐसे में जनता यह सोचने को विवश हो जाती है कि इन भ्रष्ट बेइमानों से तो अपने मोदी लाख गुना अच्छे हैं। दरअसल, देशवासियों को तथाकथित लुटेरों की भीड में मोदी एक ऐसे नेता के रूप में दिखायी देते हैं जो निष्कलंक हैं। वे अपने वादे पूरे करने के मामले में भले ही कमतर दिखते हैं, लेकिन एक चरित्रवान नेता की उनकी जो छवि बनी है वो सब पर भारी है। लोग अभी भी उम्मीद लगाए हैं कि अपने दो वर्ष के बचे कार्यकाल में वे कोई चमत्कार जरूर कर दिखाएंगे। कौन नहीं जानता कि भारतवासी आशा का दामन कभी भी नहीं छोडते।