Thursday, April 27, 2023

शोहरत पाने की कैसी ललक?

    फटाफट शोहरत पाने के लिए अपहरण, हफ्ता वसूली, हत्याएं, आतंक, लूटमारी और नशे का सैलाब। अपराधियों की उम्र मात्र पन्द्रह से बीस-बाइस साल। इस उम्र में तो उनके हाथ में कापी और किताबें होनी चाहिए। तो फिर इस अनहोनी के लिए कौन हैं असली कसूरवार? और कड़ी से कड़ी सज़ा के भी हकदार...। एक होटल के मालिक को बीते दिनों एक पर्ची मिली, जिसमें लिखा था कि यदि तुमने शीघ्र एक करोड़ रुपये नहीं पहुंचाए तो तुम्हें गोलियों से भून दिया जाएगा। और हां, पुलिस के पास जाने की चालाकी की तो तुम्हारा वो अंजाम होगा, जिसे तुम्हारी कई पीढ़ियां याद रखेंगी। होटल मालिक ने इस पर्ची को नजरअंदाज करना बेहतर समझा। ऐसी धमकियों-चमकियों का आना उनके लिए रोजमर्रा की बात हो चुकी थी। कुछ दिन बाद उनके मोबाइल की फिर घंटी बजी और धमकी भरे अंदाज में कहा गया कि, ‘मैं लारेंस विश्नोई बोल रहा हूं। लगता है तुम पर कुछ ज्यादा ही चर्बी चढ़ गई है। तुमने हमारे खासमखास रोहित गोदारा को कोई चिल्लर गुंडा बदमाश समझ लिया है। तुम्हें पता तो होगा ही मैं बहुत से लोगों को टपका चुका हूं। पंजाब के नामी गायक सिद्धू मुसेवाला को सरेराह टपकाने की खबर तुम ने भी जरूर सुनी होगी। अगर तुम्हें अपनी जान प्यारी है तो वही करो जो तुम से करने के लिए कहा गया है।’ गैंगस्टर विश्नोई तिहाड़ जेल में कैद है। रोहित गोदारा फिलहाल यूरोप में रहता है। उसी ने होटल मालिक को मोबाइल कर खुद को विश्नोई बता कर दहशत का जाल फेंका था। होटल मालिक के अब तो होश उड़ने ही थे। उनके रात-दिन खौफ में कटने लगे। नींद पूरी तरह से छिन गई। देश में ऐसे कई हत्यारे, माफिया हैं, जो खुद तो पर्दे में रहते हैं, लेकिन उनके गुर्गे रईसों को धमका-चमका कर मनचाही वसूली करते रहते हैं। महाराष्ट्र की आर्थिक नगरी, जिसे मायानगरी भी कहा जाता है, वहां पर बीते दौर में माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली जैसे का ऐसा आतंक था कि बिल्डर, उद्योगपति, फिल्म निर्माता, फिल्म स्टार आदि उनका इशारा पाते ही नोटों की गड्डियां पहुंचा देते थे। बिहार और उत्तर प्रदेश में धन वसूलने के लिए अपहरण तथा हत्याओं का सिलसिला भी सभी ने देखा है। रेतीला प्रदेश राजस्थान इस रोग से दूर था, लेकिन अब इसने वहां पर महामारी की शक्ल अख्तियार कर ली है। यहां पर जबरन धन वसूली और फिरौती वसूलने वाले नये-नये गिरोह सामने आ रहे हैं। कुछ दिन पूर्व पुलिस ने किसी नाइट क्लब में गोलीबारी करने वाले तीन अपराधियों को गिरफ्तार किया। उनके बारे में अखबारों तथा मुंहजुबानी यह धुआंधार प्रचार किया गया था कि यह खूंखार अपराधी हैं, जबकि हकीकत में तीनों नाबालिग हैं। उनमें से एक डीजे चलाता था, जिसकी उम्र मात्र पंद्रह वर्ष है। गलत संगत में छोटी-सी उम्र में ही वह भटक गया। दूसरा सोलह साल का है, जिसने 11वीं तक पढ़ाई करने के बाद सरकारी नौकरी की तलाश में भटकते-भटकते अपराध की राह पकड़ ली। तीसरे के चेहरे-मोहरे में मासूमियत टपकती है, लेकिन उसके कारनामें अत्यंत क्रूर हैं। बहुत ही छोटी उम्र में बड़े-बड़े अपराध कर गुजरने वाला रोहित गोदारा दाऊद को अपना गुरू मानता है। अनेक युवा उसे अपना आदर्श मानते हैं। उसी की तरह खून-खराबा शोहरत कर आसमान को छूना चाहते हैं। रोहित के माता-पिता को अपने अपराधी बेटे के नाम से ही नफरत हो गई है। वे उसे जन्म देने के अपराध में दिन-रात घुटते रहते हैं। रोहित के गरीब किसान पिता को उसकी करनी का फल भुगतना पड़ रहा है। बुढ़ापे में भी थानों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। कभी जो लोग इज्जत करते थे उन्होंने दूरियां बना ली हैं। रोहित जब पैदा हुआ था तब उन्होंने मिठाई बांटी थी। सीधे और सरल पिता ने बेटे के साधु-संत बनने की कामना की थी। इसलिए उसका नाम रावतदास स्वामी रखा था। संतों जैसे नाम वाले बेटे के कुख्यात अपराधी बनने पर पिता की रातों की नींद उड़ चुकी है। खाकी वर्दी वालों ने भी कह दिया है अपने इस बेटे को अब मरा समझ लो। जब भी वह भारत लौटेगा तो गोलियों से भून दिया जाएगा। 

    कुख्यात हत्यारे, लुटेरे, माफिया और नेता अतीक अहमद के जिस बेटे असद को पुलिस ने गोलियों से भून कर मौत की नींद सुलाया उसकी पैदाइश 2003 की थी। जब उसे ढेर किया गया तब वह मात्र 19 साल का था। अपने बेटे असद को अपने पदचिन्हों पर चलाने के लिए अतीक अहमद ने उसके बचपन से तरह-तरह कोशिशें प्रारंभ कर दी थीं। जिस उम्र में बच्चे खिलौने से खेलते हैं असद हथियारों से खेलने लगा था। अपराधी पिता को शादी-ब्याह में अपने नादान मासूम बेटे से हवाई फायरिंग करवाने में बड़ी खुशी तथा तसल्ली मिलती थी। उसका भरोसा मजबूत होता था कि यह बेटा उसकी विरासत को दमखम के साथ आगे ले जाएगा। असद की स्कूली पढ़ाई लखनऊ के एक स्कूल में पूरी हुई। उसकी वकील बनने की प्रबल चाहत थी। इसके लिए उसे विदेश जाना था। यह भी सच है कि बड़ा वकील बनकर उसे न्याय के पथ पर नहीं चलना था। उसे अपने बाप के फिरौती, लूटमार, हेराफेरी, राजनीतिक डकैती से खड़े किये गए खरबों के साम्राज्य को बचाना और बढ़ाना था। पुलिस सत्यापन में निगेटिव रिपोर्ट आने के कारण पासपोर्ट नहीं बना। बेटे के काला कोट नहीं पहन पाने के सपने के धराशायी होने पर अतीक को बड़ा झटका लगा था। फरवरी के अंत में राजू पाल मर्डर केस के गवाह और दो पुलिस कर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस हत्याकांड में अतीक और उसके बेटे असद के साथ-साथ अशरफ और सात अन्य लोग आरोपी थे। घटना के तुरंत बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़े तीखे अंदाज में माफिया को मिट्टी में मिला देने की घोषणा की थी। अप्रैल का तीसरा हफ्ता आते-आते छह लोग मिट्टी में मिला दिये गए। उमेश पाल पर गोली चलाने वालों में सात की पहचान हुई थी, जिसमें से असद अहमद सहित चार लोगों को पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया। अतीक व अशरफ को तीन शूटरों ने तब मार गिराया, जब वे पुलिस हिरासत में थे। आत्म समर्पण करने के बाद तीनों हत्यारों ने कहा कि, अपराध जगत में विख्यात होने के लिए उन्होंने इन दुर्दांत अपराधियों को कुत्ते की नींद सुलाया है। कई छोटे-मोटे अपराधों में हाथ आजमा चुके इन हत्यारों की उम्र भी ज्यादा नहीं है। अतीक अहमद और उसके भाई की तो एक न एक दिन कुत्ते की मौत होनी ही थी। अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन भी कानून से भाग रही है। बेटे, पति और देवर के मरने के बाद भी उसने सामने आने की हिम्मत नहीं दिखाई। अपराधियों का जीवन ऐसे ही गुजरता है। उन्हें कब पछतावा होता होगा, कौन जानें, लेकिन ऐसा जीना, जीना तो नहीं। कम-अज़-कम उन्हें जरूर सबक लेना चाहिए, जिन्हें लगता है कि अपराध की राह पकड़ कर सुख-शांति से रह लेंगे...।

Thursday, April 20, 2023

सोशल मीडिया के सबल पक्ष की एक झलक

    इंटरनेट की विशालतम दुनिया में सोशल मीडिया एक ऐसा मंच बन चुका है, जिसने हर उम्र के लोगों को अपने मोहपाश में जकड़ लिया है। आज की आपाधापी में अधिकांश लोगों के पास इतना वक्त नहीं कि वे मोटी-मोटी किताबें पढ़ सकें। अखबार और पत्रिकाएं भी हर जगह सुलभ नहीं। सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखने की भी लोगों में पहले-सी अभिरूचि या फिर वक्त नहीं। लगभग हर हाथ में स्मार्टफोन है, जो अच्छी-बुरी खबरों से फटाफट मिलवा रहा है। किस्म-किस्म की शेर-ओ शायरी के साथ-साथ स्तब्ध, जागृत और भावुक कर देने वाले शब्द-संसार से अवगत करा रहा है। नये-नये लेखक और विचारक सामने आ रहे हैं। यहां पर एक से एक विद्वानों के अनुभवों, विचारों, सुझावों, लेखांशों, कविताओं, गजलों का भी अद्भुत खजाना भरा पड़ा है, जिन्हें पढ़े-समझे बिना मन नहीं मानता। गंदी राजनीति तथा भाई-चारे के दुश्मनों ने भले ही सोशल मीडिया को अपना औजार बना लिया हो, लेकिन यह कहना और मानना कहीं भी गलत या अतिश्योक्ति नहीं कि सोशल मीडिया सकारात्मक विचार-सोच को बलवति बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। अपने नाम-काम की चाह से मुक्त दिन-रात एक से एक अद्भुत रोचक जानकारियों और सुलगते विचारों को फैलाते मानवता के हितैषियों को इस कलम का सलाम...।

* एक कुम्हार जब घड़ा बनाता है तो घड़े के 

बाहरी भाग को तेजी से थपथपाता है, लेकिन 

भीतरी भाग को प्यार से सहलाता है। 

आप भी सुंदर और मजबूत 

इंसान बनेंगे, अपने कुम्हार

पर भरोसा रखिए, वह हमें 

टूटने नहीं देगा। 

अगर आपका कुछ जलाने का मन करे 

तो अपना क्रोध जला देना।

* क्यों न खुशी से जीने के बहाने ढूंढे,

गम तो किसी भी बहाने मिल जाता है...

* मनुष्य जन्म लेता है, बिना मुहुर्त के और बगैर 

मुहुर्त के देह त्याग देता है! 

लेकिन, सारी उम्र शुभ मुहुर्त के पीछे 

भागता रहता है!

* सबसे बड़ा मूर्ख तो वो है, 

जो एक पत्थर से 

दोबारा चोट खाये।

* जूते-चप्पल भले पहने रहें, पर

जात-पात 

धार्मिक भेदभाव 

ऊंच-नीच 

छुआ-छूत 

लिंग भेद 

जैसी मानसिकताएं कृपया यहीं उतार दें, 

स्वागत है...। 

(हर घर के दरवाजे पर 

यह पोस्टर होना चाहिए।)

* जब जेब में हैं पैसे 

लोग पूछते हैं, 

आप हैं कैसे? 

जब हो जाओगे आप 

कंगाल 

तो कोई नहीं पूछने आएगा 

क्या है आपका हाल?

* याद रखें... 

सारा ज्ञान किताबों से 

नहीं मिलता। 

कुछ ज्ञान 

मतलबी लोगों 

से भी 

मिलता है...।

* जमाने में आये हो तो जीने का भी हुनर रखना...

दुश्मनों से कोई खतरा नहीं, बस अपनों पर नज़र रखना। 

* अपने काम और कर्तव्य के प्रति 

अगर आपको लगाव नहीं है 

तो आप कभी भी 

सफल नहीं हो सकते।

* ज़रा-सा ऊपर उठने को 

न जाने कितना गिर जाते हैं लोग 

पर नजरों से गिरकर कोई 

कहां उठ पाया है 

यह अक्सर भूल जाते हैं लोग।

* अदाकारी नहीं करते, 

मक्कारी नहीं करते। 

जिन्हें मेहनत से है मतलब, 

वो मक्कारी नहीं करते।

* जब पढ़े-लिखे लोग भी 

गलत बातों का समर्थन 

करने लगें तो यह समाज 

की सबसे बड़ी समस्या है। 

(डॉ. भीमराव आंबेडकर)

* तुम्हारा खुद का मन ही तुम्हारी 

नहीं सुनता और तुम निकल 

पड़ते हो दूसरों को नसीहत देने के लिए। 

(ओशो) 

* बात 

करने से ही 

बात बनती है, 

बात न करने से 

अक्सर 

बातें बनती हैं।

* खुशी का पहला... 

उपाय... 

पुरानी बातों को

ज्यादा न सोचा जाए। 

* सच कड़वा नहीं

होता है, बल्कि

हमारी जीभ को

मीठे झूठ की

लत लग गई है...

* किसी ने पूछा 

कि प्यार क्या है

हमने कहा

प्यार तो वो है

जो हद में रहकर

बेहद हो जाए...।

* आपकी अच्छाइयां,

भले ही अदृश्य

हो सकती हैं,

लेकिन

इसकी छाप हमेशा

दूसरों के हृदय में

विराजमान रहती है

* रिश्तों के बाजार में थोड़ा 

सोच समझकर रहना जनाब

यहां लोग वफादार कम,

अदाकार ज्यादा हो गए हैं।

* बुरे साथी के साथ बैठकर 

आप बुरे नहीं हो सकते, लेकिन

आप दागी जरूर

हो जाएंगे। इससे

साफ पता चलता है कि

संगत का भी प्रभाव पड़ता है।

* हाथों ने पैरों से पूछा

सब तुम्हें ही प्रणाम

करते हैं,

मुझे क्यों नहीं,

पैर बोला, उसके लिए

जमीन पर रहना

पड़ता है,

हवा में नहीं।

* अगर नशा करना है तो

मेहनत का करें

यकीन मानें,

बीमारी भी

सफलता वाली ही आएगी।

* मुकम्मल कहां हुई

जिन्दगी किसी की

आदमी कुछ खोता ही रहा

कुछ पाने के लिए।

* बुरे वक्त में कंधे पर रखा

गया हाथ कामयाबी पर बजायी

तालियों से ज्यादा

कीमती होता है।

* कामयाबी का बीज

हर किसी के अंदर

मौजूद है, बस

मेहनत और ज्ञान

से उसे

सीचना पड़ता है।

* इंसान कितना ही अमीर क्यों

न बन जाए...

तकलीफ बेच नहीं सकता

और सुकून खरीद नहीं सकता...

* फितूर होता है, हर उम्र में जुदा...

खिलौने, माशूका, रूतबा...

फिर खुदा...

* मेरे पास वक्त नहीं है, 

नफरत करने का उन लोगों से

जो मुझसे नफरत करते हैं...

क्योंकि मैं व्यस्त हूं

उन लोगों में 

जो मुझसे प्यार करते हैं।

* हमारी आखिरी उम्मीद

हम खुद हैं...

और जब तक हम हैं,

उम्मीद कायम है।

* आया था कोई 

पत्थरों के पास 

उन्हें देखा, 

और बोला 

मनुष्य बनो। 

पत्थरों ने भी देखा उसे 

और उसे दिया उत्तर 

हम नहीं हो पाये 

उतने अभी कठोर। 

(जर्मन कवि एरिक फ्रायड की लघु कविता)

मेरे दोस्त...

तुम कहा करते थे -

कि दुनिया इसलिए बची है

क्योंकि दुनिया में आज भी कुछ ईमानदार

बचे हुए है...

तो बुरा मत मानना मेरे दोस्त 

यह तुम्हारा भ्रम नहीं

अंधविश्वास था।

मेरे दोस्त...

ईमानदार तो आज खुद को भी नहीं

बचा सकते

बेचारे दुनिया को 

क्या बचाएंगे?

(चंद्र विद की छोटी कविता)

अंत में...

* थोड़े ठंडे दिमाग से सोचियेगा-गलती सबकी है। जिस फूलपुर सीट से कभी जवाहरलाल नेहरू चुनाव जीतते थे, वहां से जनता ने अतीक अहमद को चुना।

    जिन घरों की दीवारों पर गांधी, नेहरू, लोहिया, जयप्रकाश मौलाना, बाबा साहब जैसों की तस्वीरें सजती थीं, उन घरों में अब क्या है, सब जानते हैं। जिन फिल्मों में ‘न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा’ जैसे गाने बजते थे, वहां भेजे में गोली मारी गई। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट यानी हत्यारे को हीरो बनाया गया। सबने देखा, तालियां बजाईं। सवाल करने वालों को पुरातनपंथी कहा जाता है। पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ फिर अपराध का राजनीतिकरण। अपने धर्म जाति के गुंडे हीरो बने। किसने बनाये? सोचियेगा। सोचियेगा... कुछ मुझे सूझ रहा है। कुछ आपको सूझेगा। शायद कहीं बात पहुंचे।... वरना एक गुंडा मरेगा दूसरा पैदा होगा... होता रहेगा।

Thursday, April 13, 2023

पुरस्कार-तिरस्कार

    अन्न, पानी और हवा के बिना जीवन नहीं चलता। स्वास्थ्य, शिक्षा और धन का होना भी नितांत जरूरी है। इन सभी जरूरतों के पूरा होने के पश्चात भी इंसान का मन नहीं भरता। उसका बस चले तो वह क्या न कर दे। प्रशंसा, मान-सम्मान और नाम की भूख सदैव उसे बेचैन किए रहती है। उसे यह भी पता है कि प्रतिभावान अपने आप इज्जत पाते हैं। उन्हें कोई जोड़-जुगाड़ नहीं करना पड़ता, लेकिन पुरस्कार की भूख में पगलाये कुछ चेहरे खुद को महान मानते हुए दूसरों की आंख में धूल झोंकने में लगे रहते हैं। खूब हवा में उड़ते रहते हैं। जब कुछ हाथ नहीं लगता तो ईर्ष्या की भट्टी बन सुलगने लगते हैं। कहावत यह भी है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। सच पर डाला गया पर्दा एक न एक दिन हटता या फटता ही है। नकली नोट ज्यादा दिन तक बाजार में नहीं चल पाते। असली नोट ही तिजोरियों में जगह पाते हैं और मेहनतकशों की इज्जत को बढ़ाते हैं। यही सच इंसानों पर भी चरितार्थ होता है। वास्तविक, विद्धानों, चरित्रवानों, मेहनतकशों और परोपकारियों का हर जगह सम्मान होता है। सच्चे समाजसेवक, नेता, अभिनेता, साहित्यकार, चित्रकार, पत्रकार, संपादक, उद्योगपति आदि को मान-सम्मान तथा प्रशंसा के लिए भटकना नहीं पड़ता। उनके कद्रदान उनकी शिनाख्त कर उन तक पहुंच ही जाते हैं। 

    विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली शख्सियतों की मानवंदना करने वाली देशभर में ढेरों संस्थाएं हैं। समाज, शहर, प्रदेश और देश के दूरदर्शी पारखियों के द्वारा पुरस्कृत, सम्मानित करने की परिपाटी की नींव रखने का यकीनन यही ध्येय रहा होगा कि अंधेरे से लड़कर रोशनी फैलाने वाली हस्तियों के बारे में दूसरों को भी पता चले। वे उनसे प्रेरित हों। हर पुरस्कार और सम्मान में प्राप्तकर्ता के प्रति श्रद्धा और आस्था के साथ यह संदेश भी होता है कि उसे और कर्मठ होना है। उन सभी आशाओं और उम्मीदों पर पूरी तरह से सतत खरा उतरते रहना है, जो उससे लगाई गई हैं। अब तो न्यूज चैनल तथा नामी-गिरामी धनवान अखबार मालिकों ने भी विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को पुरस्कृत करना प्रारंभ कर दिया है, लेकिन यह सच भी अपनी जगह विराजमान है कि इनके पुरस्कृत करने का अपना-अपना स्वार्थ और तरीका है। अधिकांश चैनलों तथा अखबार मालिकों के कर्ताधर्ता अपने मनपसंद चेहरों को ढोल-नगाड़े बजाते हुए मंचों पर बिठाने के साथ-साथ पुरस्कृत करने का शानदार अभिनय करते हैं। इनके प्रायोजित भव्य कार्यक्रमों में शामिल होते हैं बड़े-बड़े उद्योगपति, नेता, चलते-फिरते समाज सेवक, अभिनेता और मंत्री-संत्री। यहां तक की केंद्रीय मंत्रियों तथा मुख्यमंत्रियों को भी सम्मानित करने परंपरा चला दी गई है। बड़े-बड़े मीडियावाले संबंध बनाने और मोटे विज्ञापन पाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने पर उतर आये हैं। 

    भारत सरकार के द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय नागरिकों को उनकी विशेष उपलब्धियों और उल्लेखनीय कार्यों के लिए प्रदत्त किये जाने वाले पद्म पुरस्कारों को लेकर भी कई तरह की बातें और शंकाएं व्यक्त की जाती रही हैं। अभी हाल ही में भारत वर्ष की माननीय राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने जिन हस्तियों को पद्म सम्मानों से विभुषित किया उन्हीं में कर्नाटक के बिदरी शिल्प के कलाकार शाह रशीद अहमद कादरी का भी समावेश है। पद्मश्री सम्मान समारोह के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सभी सम्मानितो से मिले और बधाई तथा शुभकामनाएं दीं। मंजे हुए खिलाड़ी, सिद्धहस्त कलाकार कादरी ने प्रधानमंत्री के समक्ष नतमस्तक होकर अपने दिल की बात कहने में देरी नहीं लगाई, ‘मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार मुझे इस गौरवशाली सम्मान के लायक समझेगी। मैंने इस पद्म अवार्ड के लिए निरंतर दस साल हाथ पैर मारे। हर साल अपनी प्रोफाइल बनाने में 12 हजार रुपये की आहूति दी, लेकिन अंतत: निराशा ही हाथ लगी। केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद तो यह सोचकर मैंने प्रोफाइल बनानी ही छोड़ दी कि, जब मुसलमानों की हितैषी कही जाने वाली कांग्रेस सरकार ने मेरी कद्र नहीं की तो उस भाजपा से क्यों उम्मीद रखना, जिसे मुसलमानों का कट्टर शत्रु माना जाता है, लेकिन घोर आश्चर्य... मेरी पूर्वाग्रह से ओतप्रोत सोच को मोदी सरकार ने पूरी तरह से गलत साबित कर दिया है। पद्मश्री कादरी इतने गदगद हुए कि उन्होंने तमाम न्यूज चैनलों पर यह कहने में जरा भी देरी नहीं लगायी अब तो कांग्रेस से मेरा हमेशा-हमेशा के लिए मोहभंग हो गया है। भाजपा ही मेरी माई-बाप है। मेरे साथ-साथ मेरे स्वजनों के वोट भाजपा के लिए पक्के हो गए हैं। अब मेरी दिली तमन्ना है कि पूरे देश और दुनिया में सिर्फ नरेंद्र मोदी की ही जय-जयकार हो।  

    सरकारें भी साहित्यकारों तथा पत्रकारों को भी समय-समय पर पुरस्कृत करती रहती हैं। बात जब साहित्य की होती है तो यह जान लेना भी अत्यंत आवश्यक है कि अच्छे अनुभवी, संस्कारित लेखकों के अभाव के चलते पाठकों ने भी पढ़ने-पढ़ाने से दूरी बनानी प्रारंभ कर दी है। फिर भी अपने यहां हर वर्ष असंख्य नई-नई पुस्तकों का प्रकाशन होता है। अधिकांश कविता संग्रह, गीत संग्रह, गजल संग्रह, निबंध संग्रह, कहानी संग्रह छपवाने के लिए रचनाकारों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती हैं। आत्ममुग्ध लेखक-लेखिकाएं अपनी कृतियों को मित्रों, रिश्तेदारों को भेंट स्वरूप देकर गदगद होते रहते हैं यह भी सच है कि- मुफ्त में मिली किताबों को कोई नहीं पढ़ता। अंतत: रद्दी की टोकरी के हवाले हो जाती हैं। कुछ सुलझे हुए कवि, कहानीकार, उपन्यासकार हैं, जिनको प्रकाशक खुशी-खुशी छापते हैं। कुछ न कुछ रायल्टी भी देते रहते हैं। प्रशंसा पाने को लालायित कुछेक रचनाकार पुरस्कार के लिए पगलाये रहते हैं। देशभर में जहां-तहां फैली कई संस्थाएं हैं, जो उन्हें पुरस्कार देकर खुश करती रहती हैं। इनमें से कुछ ईमानदारी से नवाजती हैं तो कुछ लेन-देन से बाज नहीं आतीं। अब तो देश के प्रकाशक गुलशन नंदा, वेदप्रकाश शर्मा, प्रेम वाजपेयी, परशुराम शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, केशव पंडित आदि की पुरानी किताबों को धड़ाधड़ छापने और बेचने की तैयारी में हैं। यह वो कलमकार हैं, जिनपर लुगदी साहित्य रचने और प्रकाशित करवाने के आरोप लगा करते थे। फिर भी इनके पाठकों की संख्या लाखों में थी। ऐसे में अब उन लेखकों का क्या होगा, जिनसे धन लेकर मुश्किल से दो-तीन सौ पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं, जो पाठकों तक पहुंच ही नहीं पातीं हैं। ऐसा भी नहीं कि सभी लेखक बदकिस्मत हैं। अच्छी रचनाओं को पढ़ने वाले पाठक आज भी हैं। भले ही यह राग अलापा जाता रहे कि छपे शब्दों की कोई कीमत नहीं रही। सोशल मीडिया ने सब कबाड़ा कर दिया है। कुछ लेखक अपनी ऐसी-वैसी पुस्तकें धड़ाधड़ छपवाते ही इसलिए हैं कि उन्हें कोई न कोई सरकारी पुरस्कार मिल जाए। लेकिन, जब उनकी मंशा पूरी नहीं होती तो पुरस्कृत होने वाली हस्तियों के बारे में ऊल-जलूल बकवास करते हुए ईर्ष्या की आग की भट्टी में जलने लगते हैं। विद्वान चयनकर्ताओं पर भेदभाव और पक्षपात के आरोपों की झड़ी लगाने वालों को इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि अपनी बेहूदा अमर्यादित भड़ास की वजह से वे हंसी का पात्र बनते हुए खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं।

Thursday, April 6, 2023

गुनाह की खौफनाक लकीर

    कई बार पढ़ा और सुना है। खुद देखा और अच्छी तरह से महसूसा भी है। पिता और बेटी के पवित्र रिश्ते को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। इतनी बड़ी सृष्टि में जन्म लेने के बाद बेटियां सिर्फ पिता के ही करीब होती हैं। बचपन में उन्हें अपने जन्मदाता की गोद में ही सुकून मिलता है। पिता की निकटता उनके लिए हर तरह की सुरक्षा का आश्वासन होती है। पिता को भी बेटी को अपनी पलकों में बिठाए रखने में जो खुशी मिलती है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मनोवैज्ञानिक तो यह भी कहते हैं कि पिता ही बेटी का पहला ऐसा नायक और सच्चा मित्र होता है, जो कभी भी नहीं बदलता। बेटियां चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाएं, लेकिन पिता के प्रति उनका यकीन अटल रहता है कि उनका यह ताकतवर आदर्श हीरो उन्हें हर संकट से बचा ले जाएगा। दरअसल, माता-पिता अपने बच्चों की सिर्फ परवरिश ही नहीं करते, उन्हें बेहतर संस्कार देने में भी कोई कमी नहीं करते। उन्हें सतत सही और गलत से अवगत कराते रहते हैं। 

    यह जगजाहिर सच है कि बच्चों को पालने-पोसने में मां की अहम भूमिका होती है। बेटियों का भले ही शुरू से ही पिता के प्रति लगाव और झुकाव रहता है, लेकिन इससे उदार माताओं को कोई आपत्ति नहीं होती। बेटे उनकी इस कमी को पूरा कर ही देते हैं। सच तो यह भी है कि मां और बेटी का रिश्ता भी बड़ा अनमोल तथा प्यारा होता है। मां-बाप को यदि मैं ऐसी रेलगाड़ी कहूं, जो अपनी संतानों को अपनी अंतिम सांस तक सुरक्षित यात्रा करवाते हैं तो गलत नहीं होगा। यह मां-बाप ही हैं, जो बच्चों के लिए कोई भी कुर्बानी देने को हमेशा तत्पर रहते हैं। ऐसे में ऐसा सच...! ऐसी भयावह खबरें? 

    महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में अपनी ही मासूम अबोध बच्ची से दुष्कर्म कर उसको मौत के घाट उतारने वाले हत्यारे पिता को 20 साल की कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई है। विशेष सत्र न्यायालय के न्यायाधीश को भी जन्मदाता के इस निर्दयी, राक्षसी अपराध ने झिंझोड़ कर रख दिया। फैसला सुनाते वक्त उनके पूरे बदन में कंपकपी-सी छूटने लगी। अपनी जन्मदाता की अंधी वासना की शिकार हुई मात्र पांच साल की बच्ची के दादा-दादी एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए शहर से बाहर गये थे। घर में मां, बड़ा भाई और यह नराधम बाप था, जिसने काफी शराब चढ़ा रखी थी। रोज की तरह नशे में उसने पत्नी को अंधाधुुंध मारा-पीटा। बच्चे रोते-गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन शैतान की गंदी जुबान और हाथ चलते रहे। लिहाजा त्रस्त मां को हमेशा की तरह पड़ोसी के घर शरण लेनी पड़ी। उसके बाद रात करीब 12 बजे जब राक्षस का नशा कुछ कम हुआ तो वह पत्नी और बच्चों को मनाने के लिए पड़ोसी के घर जा पहुंचा, लेकिन पत्नी ने वापस आने से इनकार कर दिया। उसे बड़ा गुस्सा आया। गुस्से-गुस्से में उसने बच्ची को उठाया और घर ले आया। पत्नी पहले तो जैसे-तैसे मान जाती थी, लेकिन इस बार उसके नहीं लौटने की जिद ने उसे गहन संशय और अचम्भे में डाल दिया। इसका कहीं न कहीं किसी के साथ जरूर कोई चक्कर चल रहा है। साली मुझे बेवकूफ समझती है। कुछ देर तक उसने उसकी राह देखी, लेकिन जब वह नहीं लौटी तो गुस्से के साथ-साथ उस पर वासना का भूत सवार हो गया। मासूम बच्ची पिता का यह अकल्पनीय शैतानी रूप देखकर चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन बेखौफ जानवर ने उस पर नृशंस बलात्कार कर ही डाला। अगले दिन की सुबह मां ने जब बच्ची को बेसुध हालत में लहूलुहान फर्श पर पड़े देखा तो वह उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर से भी बच्ची की हालत नहीं देखी गई। बलात्कारी पिता के पास कोई जवाब नहीं था। हालांकि उसने भटकाने की बहुतेरी कोशिशें कीं, लेकिन सच तो अपनी जगह पर कायम था...। 

    मेरठ में एक मां ने तंत्र-मंत्र और प्रेम प्रसंग के फेर में अपने दस साल के बेटे और छह साल की बेटी का खात्मा कर डाला। जननी की हवस और अंधविश्वास की बलि चढ़े दोनों मासूम अपनी मां को दिलो जान से चाहते थे। निशा नामक इस दुराचारिनी की छह साल की बेटी अक्सर डायरी में कुछ न कुछ लिखा करती थी। एक पन्ने पर उसने लिखा, माई मदर इज सो...सो... ब्युटीफुल। उसे कहां पता था कि मां के खूबसूरत चेहरे के पीछे एक और चेहरा छिपा है, जो बेहद क्रूर और घिनौना है। यह हत्यारिन जाने-अनजाने लोगों के कष्ट दूर करने के लिए दुआ कर उन्हें पानी देती थी। उसे यकीन था कि उसकी दुआ से लोगों की तकलीफें दूर होती हैं, उनके बिगड़े काम बन जाते हैं। मनचाही मुरादें भी पूरी हो जाती हैं। दूसरों के उपकार में अंधी हुई निशा के मन में किसी ने यह बात बिठा दी थी कि अगर वह अपने बच्चों की बलि दे देगी तो उसकी रूहानी ताकत में और भी जबरदस्त इजाफा हो जाएगा। उसके दुआओं वाले पानी को पाने के लिए दूर-दूर से लोग आएंगे और चारों तरफ उसके नाम का डंका बजने लगेगा। अंधी वासना के दलदल में धंस कर मां के ममत्व को कलंकित करने वाली निशा को अदालत क्या सज़ा देगी यह तो आने वाला वक्त बतायेगा, लेकिन उसके पति ने कब्रिस्तान में ही तीन तलाक बोल कर उसे हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिन्दगी से दूर कर दिया है। पति के इस निर्णय से वहां पर मौजूद सभी लोग सन्न रह गए। कब्रिस्तान में तलाक बोलने का शायद यह पहला मामला हो सकता है। अमूमन देखा और सुना जाता है कि संगीन से संगीन अपराधी को बचाने के लिए परिजन पूरी तरह से अंधे हो जाते हैं। उन्हें उसके अपराध की जानकारी तो होती है, लेकिन वे उसे बचाने के लिए मजबूत कवच बन एकजुट हो जाते हैं। लेकिन कातिल निशा के मायके वालों का गुस्सा तो ऐसा फूटा कि उन्होंने उससे हमेशा-हमेशा के लिए नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। सभी ने एक स्वर में यही कहा कि, हम इसकी कोई मदद नहीं करेंगे। निशा के भाई ने उसके मुंह पर थूकते हुए कहा कि सरकार तुरंत इसे फांसी की सजा सुना दे तो मैं खुद इसे फांसी पर लटकाऊंगा। मुझे जल्लाद बनने में कोई हिचक नहीं होगी।