Thursday, July 27, 2023

आत्ममुग्ध

     भारत के कुछ तथाकथित समझदार लोग जो बुद्धिजीवी होने का भी दंभ भरते हैं, सोशल मीडिया पर अपनी खिल्ली उड़वाते नजर आ रहे हैं। बेचारे बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को नीचा दिखाने वाले पोस्ट डालते हैं, लेकिन ‘मित्र’ हैं कि उन्हें घास तक नहीं डालते। कल फेसबुक पर एक नेतानुमा पत्रकार ने भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु की तस्वीर के साथ ‘बेशर्म राष्ट्रपति’ लिख कर चाहा था कि उनके खाते में ‘लाइक’ की झड़ी लग जाएगी। किसी ने उन्हीं पर सवाल दाग दिया, ‘‘तू कौन है बे? एक आदिवासी सुलझी हुई महिला के राष्ट्रपति बनने से तेरी तो खूब जल रही है...।’’ सोशल मीडिया पर देश के माननीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की खिल्ली उड़ाने की कमीनगी दिखाने वालों में कई तो चूके हुए खाली कारतूस हैं। इन आत्ममुग्धों का कल भले ही महान रहा हो,  लेकिन आज बड़ा बुरा बीत रहा है। इन्होंने तलवे चाटने के लिए अपने ‘आका’ तय कर रखे हैं। उन्हीं की तारीफों के पुल बांधते हुए अपना बौनापन खुलकर प्रदर्शित करते चले आ रहे हैं। इनकी हालत बिलकुल शायर मुनव्वर राणा जैसी है, जिन्होंने कभी ऐलान किया था कि यदि उत्तरप्रदेश में योगी फिर सत्ता में लौटे तो वे अपने परिवार सहित यूपी को छोड़-छाड़कर कहीं ऐसी जगह चल देंगे, जहां उनकी कद्र हो। वैसे इज्जत के लिए हाथ नहीं फैलाने पड़ते। धमकियों का भी सहारा नहीं लेना पड़ता। जो लायक होते हैं उन्हें लोग हाथों-हाथ लेते हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि आप ऊल-जलूल बकवासबाजी करते रहो और उसकी प्रतिक्रिया भी न हो। जैसा दोगे, वैसा ही मिलेगा। 

    वक्त और मतलब के हिसाब से चलने-बोलने वालों की पोल खुल चुकी है। मणिपुर में दो महिलाओं को नंगा करके घुमाया गया।  इस हैवानियत के तीन दिन बाद बिहार में एक युवती की निर्वस्त्र कर पिटायी की गई। इतना ही नहीं कुकर्म का वीडियो भी बनाया गया। इस वीडियो में स्पष्ट दिखायी दे रहा था कि युवती के साथ मारपीट करते हुए उसके प्राइवेट पार्ट को टच किया जा रहा है। जब असहाय युवती वीडियो बनता देख अपने हाथों से खुद की इज्जत बचाने की कोशिश करती है, तब उसके हाथों को खींचकर हटाया जाता है। इंसानियत को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाएं नयी नहीं हैं। नया है लोगों का चुप रहना। अंधे, बहरे होने का नाटक करते चले जाना। पहले ऐसी नपुंसकता कम देखने में नहीं आती थी। अकेला आदमी गुंडों से भिड़ जाता था। अब भीड़ शांत खड़ी तमाशा देखती रहती है। इन तमाशबीनों की मां-बहनों की ऐसे इज्जत लुटे तब उन्हें पता चले कि मां-बहन की इज्जत क्या होती है! अधिकांश पत्रकार भी असली मुद्दे से भटक रहे हैं। उन्हें समाज का हिजड़ापन दिखायी ही नहीं देता। या देख कर भी अनदेखा करने का मज़ा ले रहे हैं। अरे भाई, हमारी आपकी भी कोई जिम्मेदारी है या नहीं? 

सच तो यह है कि होशोहवास के साथ अपना कर्तव्य निभाने वालों पर तोहमतें तथा चाटुकारिता करने वालों की वाहवाही कर पुरस्कृत करने की परिपाटी देश की लुटिया डुबो रही है। अपने असली फर्ज़ को विस्मृत कर तरह-तरह के लटके-झटके दिखाने में तल्लीन पत्रकारों को इन दिनों एक भोजपुरी लोकगायिका आईना दिखाने में लगी है। इस गायिका ने किसी भी प्रदेश सरकार को नहीं बख्शा। योगी के बुलडोजर की नाइंसाफी, पुलिस वालों की गुंडागर्दी, कानपुर में मां, बेटी की जलकर हुई मौत और एमपी के पेशाब कांड आदि पर जिस तरह से बोलने-कहने का साहस दिखाया, अभिनंदनीय है:

बाबा का दरबार बा,

ढहत घर बार बा

माई बेटी के आग में

झोंकत यूपी सरकार बा

का बा, यूपी में का बा

अरे बाबा की डीएम त बड़ी

रंगबाज बा...

बुलडोजर से रौंदत दीक्षित

के घरवा आज बा

यही बुलडोजरवा पे

बाबा के नाज बा

का बा, यूपी में का बा...

    नेहा सिंह ने एमपी में का बा गीत के माध्यम से मध्यप्रदेश में आदिवासियों पर हुए अत्याचार, सरकारी नौकरियों में हुए घोटालों तथा सीधी में हुए पेशाब कांड पर व्यंग्यबाण चलाये तो कांग्रेस नेता गद्गद् हो गये। कुछ महीनों बाद होने वाले चुनाव प्रचार के लिए उन्हें चटपटा मसाला मिल गया। यह तो नेताओं की पुरानी आदत है। कलाकारों की मेहनत पर अपना हक जमाने से बाज नहीं आते। लालू, मुलायम और मायावती छाप नेताओं को चाटुकार बहुत पसंद हैं। इनकी आरती गाने वालों को ईनाम में धन और राज्यसभा, विधान परिषद की सदस्यता से नवाजा जाता है। मेरठ के एक सज्जन, जिनका नाम डॉ. के.के. तिवारी है, ने हनुमान चालीसा की तर्ज पर माया चालीसा लिख डाला-

‘‘तुमने मीर मुलायम मारा,

अमर सिंह तुमने संहारा।

राजनाथ, कलराज मिश्र का

छीन लिया तुमने सुख सारा।

दलित-नंदिनी तुम कहलाती,

मनुवाद को दूर भगाती।’’ 

मायावती के राज में इस माया चालीसा के लाखों कैलेंडर छपवाकर बांटे गये थे। जब तिवारी को पुरस्कारों तथा नोटों से लाद दिया गया तब उन्होंने लिखा-

‘‘सदा तेरा नाम लेता हूं

तुझको भारत मां कहता हूं

दलित नंदिनी... मां

तुझे कोटि... कोटि प्रणाम

अपनी माया से मुझको भी 

करती रहना धनवान...।’’

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में भी अजब-गजब विद्वान चाटुकारों का बोलबाला रहा है। एक पुराने कांग्रेसी ने सोनिया गांधी की प्रशंसा में यह लिखा और अपना डंका बजवाया-

‘‘जय श्री माता सोनिया

ममता मन में अपार

अपनी ही बल बुद्धि से

किया नया संचार

दमखम से भी शक्ति का

किया है जग में प्रचार

कांग्रेस पार्टी का हे मां

आप ही कीं उद्धार।’’

इस सच से कौन इनकार कर सकता है कि ऐसे भक्त ही अपने नेताओं तथा पार्टी का बंटाढार करते आये हैं।

Thursday, July 20, 2023

आप ही बताएं, कहां जाएं?

    हम सबके प्यारे भारत देश ने चांद की ओर कदम बढ़ा दिये हैं, लेकिन इधर धरती के हाल कोई ज्यादा अच्छे नहीं हैं। चंद अमीरों की चांदी है। गरीबों के बड़े बुरे हाल हैं। जीवन की मूलभूत जरूरतों के लिए उन्हें तरसना पड़ रहा है। अमीरों के पास बड़ी-बड़ी कोठियां और कारे हैं। करोड़ों भारतीयों के लिए आज भी रोटी, कपड़ा और मकान चंद्रमा हैं, जो उनके सपनों में आते हैं। हकीकत में कोसों-कोसों दूर हैं। गरीब परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चों को न तो पौष्टिक आहार मिल पाता है और न ही शिक्षा-दीक्षा। आजादी के इतने वर्षों बाद भी करोड़ो माता-पिताओं के साथ-साथ उनके बेटे-बेटियों को भी खाली पेट रहना-सोना पड़ रहा है। शिक्षा से भी वंचित रहना पड़ रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के घोर अभाव से जूझना और टूटना पड़ रहा है। देश में इस कदर असमानता, अराजकता और अव्यवस्था का आलम है कि एक तरफ लोगों को भूखमरी का शिकार होना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ अन्न की बर्बादी हो रही है। यह कहना सही नहीं है कि देश में अनाज की कमी है, इसलिए करोड़ों देशवासियों को भोजन नसीब नहीं हो पा रहा है। 

    हमारे मेहनतकश किसान हर तरह की फसलों की भरपूर पैदावार कर रहे हैं। यह सच अपनी जगह है कि उन्हें भी अपने परिश्रम का उचित प्रतिफल नहीं मिल पा रहा है। खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है। अमीरों की शादियों, राजनेताओं, मंत्रियों के यहां होने वाले विभिन्न आयोजनों तथा बड़े-बड़े होटलों की टेबलों पर जो खाना बिना खाये छोड़ दिया जाता है उसका कोई हिसाब नहीं। भोजन के अपमान और उसकी बर्बादी की शर्मनाक तस्वीर उस बेरहमी, मतलबपरस्ती और लापरवाही की तरफ इशारा करती है, जिसकी वजह से करोड़ों भारतीयों के साथ बेइंसाफी और भेदभाव हो रहा है। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। उनके कदम अपराध मार्ग की तरफ बरबस खिंचे चले जा रहे हैं। अभी हाल ही में गूंज फाउंडेशन के संस्थापक और रमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता अंश गुप्ता ने 1999 अपनी आखों देखी हकीकत का जिक्र किया। जिस्म को बर्फ कर देने वाली रात थी। सर्दी में दिल्ली वैसे भी बहुत ठंडी होती है। अच्छे-खासे गर्म कपड़ों के बिना मोटे-ताजे बलवान इंसानों लोगों की जान निकलने लगती है। घर में कंबल और रजाई में दुबक कर रहने का सुख लेना हर सक्षम दिल्लीवासी को अच्छा लगता है। ऐसे कंपकंपा देने वाले बर्फीले मौसम में अंशु गुप्ता जब बेघर लोगों को ठंड से बचाने की मुहिम में लगे थे तभी अचानक उनकी नज़र एक ऐसी युवती पर जा टिकी, जो एक लावारिस मृत शरीर से इसलिए चिपक कर सोई थी, क्योंकि उसके पास कोई गर्म कपड़ा नहीं था। तूफानी सर्दी में उसे मृत शरीर से गर्माहट मिल रही थी। राजधानी दिल्ली ही अकेली ऐसी महानगरी नहीं, जहां गरीबों और असहायों को भरी ठंड में पता नहीं कैसे-कैसे रातें काटनी पड़ती है। उन्हें मौसम के साथ-साथ पापी पेट से भी लड़ना पड़ता है, जो भोजन नहीं मिलने पर बगावत कर देता है। उसी रात अंशु गुप्ता ने असहायों, गरीबों और शोषितों की सहायता और सेवा करने के अपने इरादे को और मजबूती देने का दृढ़ संकल्प कर लिया। 

    ओडिशा के मयूरगंज जिले में गरीबी से त्रस्त एक महिला ने अपनी आठ महीने की मासूम बच्ची को आठ सौ रुपये में बेच दिया। इस गरीब मां की पहले भी एक बेटी है। दूसरी बेटी के जन्म लेते ही उसे बच्ची के पालन-पोषण की चिन्ता सताने लगी। वह पहली बेटी के खान-पान की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही थी। ऐसे में उसने जो रास्ता निकाला यकीनन वो किसी भी जननी को शोभा नहीं देता, लेकिन गरीबी सब करवा लेती है। बीते हफ्ते बाजार से जब वह अकेली वापस लौटी तो गांव वालों ने उससे बच्ची के बारे में पूछा तो उसने कहा कि बच्ची की तो मौत हो गई है। कोई भी उसके जवाब से संतुष्ट नहीं था। तामिलनाडू में मजदूरी करने वाला उसका पति जब घर लौटा तो उसे भी पत्नी की बात पर यकीन नहीं हुआ। उसने फौरन थाने में शिकायत दर्ज करवाई तो यह हैरतअंगेज, घोर पीड़ादायी हकीकत सामने आयी। 

    महात्मा गांधी की कर्मभूमि वर्धा में एक परिवार ने पैसों के अभाव के कारण अपनी 37 वर्षीय पुत्री प्रवीणा के शव को घर में ही दफना दिया। 9 दिन बाद पुलिस को जब खबर लगी तो खुदाई कर शव को बाहर निकाला गया। प्रवीणा मानसिक रूप से बीमार थी। दो साल पहले बड़ी बहन की मौत के बाद लगे सदमे से उसकी हालत और बिगड़ गई थी। पहले भी उसका किसी से मिलना-जुलना बहुत कम होता था, लेकिन अब तो उसने घर से बाहर झांकना भी बंद कर दिया था। अचानक जब उसने प्राण त्यागे तो गरीब माता-पिता के समक्ष संकट खड़ा हो गया कि मृतक बेटी के अंतिम संस्कार के लिए पैसे कहां से लाएं? उन्होंने चुपचाप घर में ही बिना किसी को बताये कमरे में गड्ढा खोदा और शव को दफना दिया। देश के जन-जन तक स्वास्थ्य सेवाओं तथा आवागमन की सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा करने वाली देश और प्रदेश की सरकारों के लिए यह खबर किसी तमाचे से कम नहीं : पालघर जिले के आदिवासी बहुल विक्रमगढ़ तालुका के एक गांव की दो महीने की बीमार बच्ची की अस्पताल में देरी के पहुचने के कारण रास्ते में ही मौत हो गई। 150 लोगों की आबादी वाले इस गांव में कोई संपर्क सड़क नहीं। गरीब माता-पिता ने बच्ची को गोद में लेकर जैसे-तैसे लकड़ी के तख्तों का इस्तेमाल कर नदी तो पार कर ली, लेकिन डॉक्टरों तक पहुंचने से पहले अपनी लाड़ली को खो बैठे। यह बदनसीब गांव दो नदियों गर्गई और पिंजल के पास स्थित है। मानसून के दौरान महीनों इसका जिले की बाकी हिस्सों से संपर्क टूट जाता है। गांववासी पिछले कई वर्षों से नदी पर पुल बनाए जाने की गुहार लगाते चले आ रहे हैं, लेकिन शासन और प्रशासन बड़ी गहरी नींद में हैं...। ऐसे में आप ही बताएं, ये लोग कहां जाएं?

Thursday, July 13, 2023

कृष्ण के सुदामा

    देश के कुछ शहर ऐसे हैं, जिनकी हर किसी के दिल-दिमाग में बड़ी सुखद छवि बनी हुई है। उन्हीं में से एक शहर है, मध्यप्रदेश का इंदौर। यहां एक से एक पत्रकार, संपादक तथा साधु-संत हुए हैं। यहां की विविध खान-पान की वस्तुएं हर भारतीय मन को लुभाती हैं। कोई भी भला मानुस अपने शहर की आन-बान और शान पर बट्टा नहीं लगाना चाहता, लेकिन हर जगह कुछ सनकी, अहंकारी, मंदबुद्धि, क्रूर अपराधी अपना डेरा जमाये हैं, जो बार-बार हैवानियत का नंगा नाच दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। कुत्ते का तो काम ही है सतत भौंकना। यह निरीह वफादार प्राणी भौंकने की वजह से अपने मालिकों के लिए उपयोगी होता है। डाकू, चोर, सेंधमार उसके भौंकने से खुद को खतरे में पाते हैं। कुत्तों की यह वफादारी ही है, जो बहुत-सी वारदातों से बचाती है। किस्म-किस्म के कुत्तों को पालने के शौकीनों की मंशा भी सार्थक हो जाती है। कुत्तों की वफादारी और सजगता की असंख्य मिसालें हैं। उनका जिक्र फिर कभी। फिलहाल बात इंदौर के रहवासी बच्चालाल यादव की, जिसने अपना शैतानी चेहरा दिखाकर हर किसी को स्तब्ध कर दिया। सनकी बच्चालाल किसी भी कुत्ते को अपने सामने पाते ही भड़क जाता था। कई बार तो कुत्ते की गर्दन मरोड़ देने का विचार भी उसके मन में भगदड़ मचाता था। कुछ हफ्ते पहले कोई पशुप्रेमी उसी के मोहल्ले में किराये के मकान में रहने आये थे। उन्होंने एक विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था। बच्चालाल जब भी उस घर के सामने से गुजरता तो पालतू कुत्ता भौंकने लगता। बच्चालाल को लगता कि कुत्ता उसी को देखते ही जोर-जोर से भौं-भौं करने लगता है। वह चाहता तो कुत्ते के भौंकने को नजरअंदाज कर सकता था, लेकिन उसने तो एक दिन बड़ी फुर्ती के साथ कुत्ते को दबोचा और अपने घर ले जाकर फांसी के फंदे पर लटका दिया। कुत्ते के हत्यारे बच्चालाल यादव के खिलाफ पुलिस ने पशु कू्ररता समेत अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जांच पड़ताल शुरू कर दी है। 

    मध्यप्रदेश के ही सीधी जिले में प्रवेश शुक्ला नामक शख्स को आदिवासी दशमत रावत पर कुत्ते के अंदाज में तनकर खड़े होकर पेशाब करने की घटियागिरी और क्रूरता दिखाने में कोई शर्म नहीं आयी। जब वह दशमत पर पेशाब कर रहा था, तब उसके मुंह में जलती सिगरेट थी, जिसका धुंआ उसके अहंकार का साक्षी बना हुआ था। इस पेशाब कांड के जैसे ही वीडियो वायरल हुए तो सरकार के भी कान खड़े हो गये। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अपनी सरकार की नाकामी और बदनामी का डर सताने लगा और यह विचार मन-मस्तिष्क में खलबली मचाने लगा : विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं। विरोधी तो जीना हराम कर देंगे। आदिवासी के अपमान का राग अलापते हुए पता नहीं कितने वोट खा जाएंगे। उन्होंने बिना वक्त गंवाये उन्हीं की पार्टी के धुरंधर राजनेता के प्रतिनिधी के पेशाब से नहाये दशमत को सरकारी आवास पर बुलाकर बड़े आदर के साथ बैठाया। इससे पहले दूरदर्शी मुख्यमंत्री महोदय ने विभिन्न न्यूज चैनलों की कैमरा टीमों को शीघ्र पहुंचने का आमंत्रण भेज दिया। उन्हें तो दौड़े-दौड़े आना ही था। प्रदेश के मुखिया ने आदिवासी दशमत के वैसे ही पैर धोये जैसे कि अपनी योजनाओं का प्रचार करने के लिए अक्सर वे प्रदेश की भांजियों और महिलाओं के धोते रहते हैं। इससे उनका हर मकसद पूरा हो जाता है। प्रदेश के सर्वेसर्वा ने दशमत के माथे पर तिलक लगाकर शॉल भी ओढ़ाई और धड़ाधड फोटुएं खिंचवायीं। इस सारी नाटक-नौटंकी के दौरान मुख्यमंत्री दशमत से बार-बार यही कहते रहे कि दशमत, अब तुम मेरे मित्र हो। मैं कृष्ण, तुम मेरे सुदामा। अपने इस मित्र से उन्होंने और भी कई मुद्दों पर बातचीत करते-करते यह भी जानकारी लेनी चाही कि सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उस तक पहुंच रहा है या नहीं...? अपने मुख्यमंत्री से हुई मुलाकात से दशमत अत्यंत प्रसन्न था। जब किसी पत्रकार ने उससे पेशाबकांड की विस्तृत जानकारी चाही तो उसने बस इतना कहा, ‘मैं क्या बताऊं, कुछ नहीं... जो होना था हो गया।’ जो होना था... वो हो गया के ऐसे शर्मनाक किस्से अनंत हैं। उनकी गिनती करना असंभव है। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि आदिवासियों पर जुल्म और कहर बरपाने में देश का प्रदेश मध्यप्रदेश नंबर वन है। आज भी इस प्रदेश के कई इलाके हैं, जहां दलित घोड़े पर चढ़ने और बारात निकालने से डरते हैं। कोई यदि हिम्मत करता भी है तो सवर्णों का खून खौल जाता है। उन्हें तब तक ठंडक नहीं मिलती, जब तक वे उनको अपमानित तथा पीट-पीट कर अधमरा नहीं कर देते।

घोर अहंकारी दरिंदे प्रवेश को गिरफ्तार करने के पश्चात उसके घर के अवैध हिस्से को बुलडोजर से तुरंत ढहा दिया गया, ताकि दूसरे हिंसक शोषकों की बंद आंखें खुल जाएं। वे ऐसी किसी भी घिनौनी करतूत को अंजाम देने से बार-बार घबरायें, लेकिन लगता है कि दबंगों की सोच तो कुत्तों जैसी है, जिनकी टेढ़ी पूंछ कभी सीधी नहीं हो सकती। पेशाब कांड के तीसरे दिन ग्वालियर में फिर एक व्यक्ति से चलती गाड़ी में ऐसा ही अमानवीय व्यवहार किया गया। उसे बेतहाशा मारने-पीटने के साथ-साथ उनके तलुओं को चाटने को विवश करने वाले अपराधी बार-बार असहाय इंसान को ‘गोलू गुर्जर तेरा बाप है’ कहने को विवश करते रहे। उन्होंने उसके चेहरे पर जूते भी बरसाये। सदियों से अपमान और शोषण के शिकार होते चले आ रहे दशमत जैसे भारतीय बड़े ही संतोषी किस्म के जीव हैं। उन्हें बड़ी आसानी से भूल जाना और माफ करना आता है। वे इस उम्मीद पर जिन्दा हैं कि आज नहीं तो कल भारत में बदलाव आयेगा। हमें नहीं तो हमारी आने वाली संतानों को भेदभाव मुक्त आबोहवा जरूर नसीब होगी, लेकिन...?

Thursday, July 6, 2023

गुमराह

    बचपन भटक रहा है। बच्चे मोबाइल रोगी बन रहे हैं। छोटी उम्र में बड़े-बड़े अपराध कर रहे हैं। उनसे गलत काम करवाये जा रहे हैं। जिन्हें भविष्य में देश की बागडोर संभालनी थी उनके हाथ में तलवारें, चाकू, छुरियां और कट्टे हैं। उन्हें न तो अपने माता-पिता और न ही कानून का कोई भय है। अब जब मैं लिखने के लिए अपनी कलम थामे हूं तब मेरी नज़रें कुछ खबरों के शीर्षकों पर अटकी है : एक पंद्रह वर्ष के लड़के ने एक लड़की के सीने में चाकू घोंप दिया। वह लड़की का कई दिनों से पीछा कर रहा था। पहले तो लड़की ने नजरअंदाज किया, लेकिन जब उसकी अशोभनीय हरकतें सीमा लांघने लगीं तो उसने उसे भरी भीड़ में चप्पल से धुन दिया। लड़की की यह अकल्पनीय प्रतिक्रिया ने नाबालिग लड़के के खून को खौला दिया। उसने फौरन अपनी जेब में रखा चाकू निकाला और उसके जिस्म में घोंप दिया। भीड़ देखती रही। बड़े आराम से वह हत्या कर चलता बना।

    नागपुर में एक लड़के का इसलिए खून खौल गया, क्योंकि उसी के एक दोस्त ने उसकी गर्लफ्रेंड को इंस्टाग्राम पर प्रशंसा के मैसेज भेजने की गुस्ताखी कर दी थी। पहले तो उसने उसे इंस्टाग्राम पर मैसेज करके उसकी गर्लफ्रेंड को लाइक और मैसेज नहीं करने की धमकी दी। फिर एक-दूसरे को गाली-गलौच और धमकियों का दौर चला फिर मैसेज करने वाले लड़के के सीने में चाकू उतार कर मौत के घाट उतार दिया गया। हत्यारा शराबी और गंजेड़ी है। इस नृशंस हत्या को अंजाम देने के लिए उसने दो नाबालिग साथियों की मदद लेकर उन्हें भी अपराधी बना दिया। एक पंद्रह वर्षीय छात्र ने अपने पड़ोसी के यहां घुस कर लाखों रुपये की नकदी तथा गहनों पर हाथ साफ कर दिया। उसे पता था कि पड़ोसी कुछ दिन के लिए बाहर गये हैं। स्कूल में अपने धनवान साथियों को बेतहाशा खर्च करते देख उसका मन भटकने लगा था। माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं। अपने सहपाठियों की बराबरी के लिए उसने यह अपराध की राह चुनी! उम्रदराज पिता ने अपनी लड़की की सहेली से दुष्कर्म किया। अपने नाबालिग बेटे से दुष्कर्म का वीडियो भी बनवाया। 

    नरेश महिलांगे। हां, यही नाम है उस अपराधी युवक का, जिस पर चोरी, डकैती के तीस से ज्यादा केस दर्ज हैं। उसने पिछले महीने नागपुर में स्थित साईंबाबा कॉलोनी के एक घर से डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक की नकदी तथा कार चुराई थी। तभी से वह फरार था। पुलिस ने उसके पिता से 77 लाख 50 हजार रुपये जब्त किए थे। यानी जन्मदाता को भी अपने बेटे के चोर, डाकू और लुटेरे होने का पता था। वह उसका साथ देता चला आ रहा था। पुलिस ने काफी भागादौड़ी के बाद नरेश को हथकड़ियां पहनायीं। उसके चेहरे पर भय का कोई नामो-निशान नहीं था। उलटे वह पुलिस को ही चुनौती देने के अंदाज में कहने लगा कि तुम लोग चाहे कितना भी जोर लगा लो, लेकिन मैं कुछ भी नहीं उगलूंगा। यह तुम्हारा ‘बाजीराव’ मेरे लिए असरहीन हो चुका है। ज्ञातव्य है कि बाजीराव एक ऐसा पुलिसिया हथियार है, जिससे खूंखार अपराधियों के जिस्म को बड़ी बेरहमी से तोड़ा जाता है और येन-केन-प्रकारेण उसकी जुबान खुलवायी जाती है। कई संगीन अपराधियों की तो इसका नाम सुनते ही चड्डी गीली हो जाती है। पुलिस हिरासत के दौरान पूछताछ से बचने के लिए नरेश कई बार खुद को जख्मी कर चुका है। अनेकों बार जूते-डंडे, घूसे थप्पड़ झेल चुका नरेश पुलिसिया मार का अभ्यस्त हो गया है। हर माह वह महंगे नशों पर लाखों रुपये फूंक देता है। उसकी प्रेमिका भी शराबी है। अपराधी सोच ने युवाओं को किस कदर निर्मोही, लालची और अंधा बना दिया है, इसका इस खबर से सटीक पता चलता है : राजस्थान के अलवर जिले में स्थित खेड़ा गांव में दो कलयुगी बेटों ने जमीन अपने नाम करवाने के लिए अपने बुजुर्ग माता-पिता के पत्थर तोड़ने के हथौड़े से हाथ-पैर तोड़ डाले। गंभीर रूप से घायल वृद्ध मां को लहुलूहान हालत में तड़पता देखकर अस्पताल के डॉक्टरों के भी होश उड़ गये। आंखें नम हो गईं। मां के तो पैर टूटकर लटके हुए थे। उम्रदराज माता-पिता के मुंह से बार-बार यही शब्द निकल रहे थे, ‘भगवान ऐसी औलाद किसी दुश्मन को भी न दे।’ अपनी ही औलाद के हाथों पिटे पिता का कहना था कि जिस तरह से हथौड़े और लात-घूसों से बच्चों ने उन्हें पीटा उसके बारे में बताने में ही हमें शर्म आ रही है।  

    इंटरनेट के इस जमाने में देश, प्रदेश, शहर, गांव और गली मोहल्लों में कई ऐसे बच्चे हैं, जिनसे उनके परिजन ही नहीं, प्रशासन और समाज भी परेशान और दुखी है। नाबालिग लड़के और लड़कियां पान मसाला में एमडी ड्रग ले रहे हैं। स्कूली बच्चे तक ड्रग तस्करों के निशाने पर हैं। छात्र-छात्राओं को पहले तो तस्कर उधारी में ड्रग्स देते हैं और जब उन्हें इसकी लत लग जाती है, तब उनसे रकम वसूलने लगते हैं। वसूली के लिए उन्हें तरह-तरह से परेशान किया जाता है। बीते हफ्ते नागपुर में एक लड़के ने तस्करों के आतंक से मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या कर ली। कुछ लड़कियों को कालगर्ल के पेशे को अपनाने के लिए विवश होना पड़ा है। अपराध करने की सभी हदें पार करते इन अधिकांश नाबालिग अपराधियों की काउंसिलिंग करने पर पता चला कि कम उम्र में ही शराब, हुक्का तथा दूसरी नशीली वस्तुओं के साथ-साथ शारीरिक संबंध बनाने की लालसा उन्हें किसी भी स्तर तक ले जा रही है। लड़कियों को आकर्षित करने और उन पर धन लुटाने के लिए घर में सेंध लगाने, वाहन चुराने तथा चेन स्नैचिंग करने वाले किशोरों की तादाद में इधर के वर्षों में जबरदस्त इजाफा हुआ है। यह कितनी हैरत भरी हकीकत है कि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाने को विवश होना पड़ा है कि रज़ामंदी से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष की बजाय 16 वर्ष कर दी जाए। कोर्ट का यह सुझाव पढ़कर मेरे मन में ढेरों विचार आते रहे। यह उम्र वासना के भंवर में डूब कर अपनी ऊर्जा नष्ट करने की बजाय सकारात्मक दिशा की तरफ कदम बढ़ने की होती है। बच्चों को बेहतर शिक्षा से संस्कारित करने की बजाय उन्हें सेक्स के दलदल में धंसने की सुविधा से नवाजने की मांग इस कलमकार को तो कतई सार्थक समाधान प्रतीत नहीं होती। इंटरनेट तो अब सर्वव्यापी है। इसकी पहुंच की कोई सीमा नहीं। आज सोलह वर्ष के किशोर सेक्स के लिए पगलाये हैं तो कल को तेरह-चौदह साल के बच्चे धड़ाधड़ खुलकर शारीरिक संबंध बनाने पर उतर आए तो क्या कोर्ट इस उम्र के लड़के-लड़कियों के लिए भी गर्त में समाने की सुविधा की मांग करेगा? मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानसिक अस्थिरता, हीनता की भावना तथा मंदबुद्धी भी बाल तथा युवा अपराध का बड़ा कारण है। जिन घरों में निर्धनता तथा पारिवारिक क्लेश बना रहता है या परिजन अपराध कर्म में लिप्त रहते हैं, उनके बच्चे बड़ी आसानी से विभिन्न अपराधों मे लिप्त हो जाते हैं। दरअसल, जब उनकी जरूरतें पूरी नहीं होतीं, तो उन्हें निराशा और कुंठा घेर लेती है, जिसका प्रतिफल हैं ये अपराध। जिनसे आज सारा देश रूबरू है। माता-पिता की लापरवाही, अशिक्षा और बेरोजगारी लड़के-लड़कियों से गुनाह करवा रही है। आसपास का वातावरण भी बचपन को भटकाने तथा बरबाद करने में सहभागी है। यदि पड़ोस में हत्यारे, शराबी, जुआरी, जेबकतरे रहते हैं, तो उनकी नजदीकी और संगत उन्हें दुर्गुणी बनाती है।