Thursday, January 28, 2021

इनसे काहे की हमदर्दी!

    संतरा नगरी नागपुर में रहता है यह भरा-पूरा परिवार। कोरोना संक्रमण काल के मई महीने में इस परिवार की नाबालिग लडकी की तबीयत खराब हुई तो अस्पताल बंद होने के कारण मेडिकल स्टोर से गोली लाकर उसे खिलाते रहे, लेकिन उसकी तबीयत नहीं सुधरी। बिगडती ही चली गयी। उस चिन्ताजनक दौर में अपने ही घर में कैदी बने सभी परिवार के सदस्य परेशान हो गये। ऐसे असहाय और असंमजस भरे वक्त में उनके एक परिचित तंत्र-मंत्र करने वाले बाबा ने उनके कान में मंत्र फूंका कि किशोरी भूत-प्रेत की शिकार हो चुकी है। कोई दवाई काम नहीं आने वाली। इसका इलाज सिर्फ मेरे ही पास है। मात्र इक्कीस दिनों में लडकी को भूतप्रेत के चंगुल से मुक्त कराकर ऐसा भला चंगा कर दूंगा कि फिर से हंसने, खेलने, कूदने, फांदने लगेगी। इतना ही नहीं उनके घर में भी खुशहाली आ जाएगी। चारों तरफ से धन बरसने लगेगा। वे मालामाल हो जाएंगे। भूत-प्रेतों को तो मैं जूते, डंडे और गर्म-गर्म सलाखें दाग-दाग कर ऐसा पस्त कर दूंगा कि बच्ची तो क्या उनके परिवार के किसी भी सदस्य की ओर भी वे ताकने की जुर्रत नहीं कर पायेंगे।
    तांत्रिक का तीर निशाने पर लगा और नाबालिग का इलाज प्रारंभ हो गया। घर की तीन महिलाएं किशोरी को तांत्रिक के पास इलाज के लिए ले जाने लगीं। इस दौरान वह पूजा-पाठ के नाम पर चारों को चंद्रपुर, डोंगरगांव ले गया। जहां पर उसने उन्हें बेहोशी की दवा पिलायी और सभी के साथ बार-बार दुष्कर्म किया। किशोरी का मुंह बंद रखने के लिए पाखंडी उसे डराता रहा कि यदि मुंह खोला तो उसके माता-पिता चल बसेंगे। उसकी मां, चाची और दादी को भी अलग-अलग तरह से भयभीत कर उसने बडी आसानी से उनके जिस्म को भोगा। तीनों इस बात से अनजान थीं कि धूर्त ने किसी को भी नहीं छोडा है। वो तो एक दिन जब अचानक एक महिला ने उसे दूसरी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते देखा तो भांडा फूट गया। उसके बाद चारों ने एक-दूसरे को अपनी-अपनी आपबीती बताई तो माथा पीटने की नौबत आ गईं। इस खबर को पढने के बाद मुझे जितना गुस्सा तांत्रिक पर आया उससे कहीं ज्यादा किशोरी की दादी, मां और चाची पर आया। दादी साठ वर्ष की हैं। इस शर्मनाक घटना को अगर पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व अंजाम दिया गया होता तो निश्चय ही यह कलम मुखौटेधारी बलात्कारी को दुत्कारती, फटकारती। उसे कडी से कडी सजा देने की मांग करते हुए उसकी वासना की शिकार महिलाओं के प्रति सहानुभूति दर्शाती।
    तांत्रिक को अधिकतम कडी से कडी सज़ा तो मिलनी ही चाहिए, लेकिन उसके जाल में बडी आसानी से फंसने वाली महिलाओं को कौन सी सज़ा मिलनी चाहिए, जिन्होंने किशोरी की जिन्दगी तबाह करने में बहुत बडी भूमिका निभायी है। इनके प्रति नर्मी क्यों दिखायी जाए? यह इसी दुनिया में ही तो रहती हैं, जहां रोज़ दुष्कर्म हो रहे हैं। अखबार लगभग प्रतिदिन इनका पर्दाफाश करते रहते हैं। न्यूज चैनल भी इनसे सतर्क रहने को कहते रहते हैं। घर-घर में टीवी हैं। अखबार भी किसी की पहुंच से दूर नहीं। चलो, एकबारगी मान लेते हैं कि यह महिलाएं अखबार नहीं पढती होंगी। टीवी भी इनकी पहुंच से दूर होगा, लेकिन उन झाड-फूंक करने वाले ठगों, लुटेरों, बलात्कारियों के बारे में तो जरूर सुना होगा, जिन्हें जेल भेजा जा चुका है। तब भी उनके दिमागों पर ताले जडे रहे। उन्होंने उस शख्स पर भरोसा कर लिया, जिसकी रोजी-रोटी ही छल-कपट और लूटमारी पर चलती है। तंत्र-मंत्र से अगर मरीज दुरुस्त हो जाते तो फिर अस्पतालों की तो जरूरत ही नहीं होती। यह कलम यह लिखने को विवश है कि कई मामलों में नारियां भी पुरुषों से कम कसूरवार नहीं हैं, लेकिन पूरा दोष पुरुषों पर ही मढ दिया जाता है। देश में बलात्कारों, दुराचारों की झडी लगी रहती है। लोगों को गुस्सा आता है। सोशल मीडिया के इस सतर्क दौर में खबर कहां से कहां पहुंच जाती है। भाषण और बहसें शुरू हो जाती हैं। न्यूज चैनलों पर परिचर्चाएं और अखबारों में लिखना-लिखाना चलने लगता है। राजनेता बलात्कारियों को कडी से कडी सजा देने का वादा करते हैं, लेकिन हकीकत में होता यह चला आ रहा है कि दुराचारों की पुनरावृत्ति होनी कम नहीं हुई है। अधिकांश पीड़िताओं को न्याय नहीं मिला है। यह सच है कि नारी की कमजोरी का फायदा भी उठाया जाता रहा है, लेकिन क्या यह भी सच नहीं कि कई औरतें खुद-ब-खुद कमजोर बन जाती हैं। उनकी महत्वाकांक्षा, स्वार्थ उन्हें बहका देता है और इस कदर भटका देता है कि खुद के मान-सम्मान को भूल जाती हैं। फिसलन कहां नहीं। नारी देह के शिकारी पुरुष भी जहां-तहां हैं। सतर्क रहना क्या नारी का दायित्व नहीं?
    एक गायिका ने एक मंत्री पर बलात्कार का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि २००६ में जब उसकी गर्भवती बहन प्रसव के लिए इंदौर गई थी तब वह देखरेख के लिए उसके साथ थी। इसी दौरान मीठी-मीठी बातें कर उसे फंसाया गया। तब वे मंत्री-वंत्री तो नहीं थे, लेकिन राजनीति में तेजी से कदम बढा रहे थे। हालांकि नेताजी से उसका परिचय १९९७ से ही था। १९९८ में उसकी बहन ने उनसे प्रेम विवाह किया था। युवा नेता को पता था कि मैं गायिका बनकर नाम कमाना चाहती हूं। मेरी इस तमन्ना को पूरा करने में भरपूर सहायता देने का प्रलोभन देकर उन्होंने मेरे साथ बलात्कार कर डाला। उसके बाद यह रोजमर्रा की बात हो गई। हर दो-तीन दिन के अंतराल में मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाने के साथ-साथ वीडियो भी बनाये गये। बार-बार फोन कर वासना के जाल में फांसने की ऐसी मोहक चालें चली गईं कि मैं खुद को बचा नहीं पाई। मुझे जहां बुलाया गया वहां मैं पहुंचती रही और अपना सर्वस्व लुटाती रही। इसके बदले बस मेरी यही चाहत थी कि मेरे जिस्म का लुटेरा मुझे चोटी की गायिका बनवा दे। उसने हर बार बिस्तरबाजी करते वक्त यही आश्वासन दिया कि शीघ्र ही वह मुझे नामी-गिरामी फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों से मिलवायेगा और जल्द ही वो दिन आयेगा जब फिल्मों और जहां-तहां मेरे गाये गीत गूंजेंगे। मैं भोली नारी सतत लुटती रही। जहां थी वहीं ही थमी रही और यह कहां से कहां पहुंच गया। यह खबर भी जब अखबारों में छपी और न्यूज चैनलों का तीखा मसाला बनी तो कलमकार चिंतन-मनन करता रहा कि कौन ज्यादा कसूरवार है। मेरे विचार से गायिका भी कहीं कम दोषी नहीं, जिसने अपने सपने को साकार करने के लिए उस नेता बिरादरी के एक कामरोगी चेहरे का साथ चाहा, जहां के कम ही नेता भरोसे तथा मान-सम्मान के अधिकारी हैं। कौन नहीं जानता कि अपने यहां के अधिकांश राजनेताओं ने भले ही खादी के वस्त्र धारण कर लिये हों, लेकिन हैं तो हद दर्जे के झूठे, लुच्चे और टुच्चे, जिनकी किस्म-किस्म की बदमाशियां समय-समय पर उजागर होकर तहलका मचाती रहती हैं।
    जब तक नेता मंत्री नहीं बना था, तब तक वह चुप्पी साधे रही। सोचिए यदि नेता सेलेब्रिटीज से मिलवाकर गायिका की तमन्ना पूरी करवा देता तो फिर भी क्या वह उस पर बलात्कार काआरोप लगाती? जवाब है कदापि नहीं। फिर तो वह अपनी नयी दुनिया में मस्त हो जाती। उसे तो यह याद भी नहीं रहता कि उसने सफल होने के लिए उस शख्स के साथ हंसी-खुशी शारीरिक रिश्ते बनाये जो उसकी बहन से प्रेम विवाह कर चुका था।
    मायानगरी की एक उभरती फिल्म अभिनेत्री अपने प्रेमी के साथ खुशी-खुशी दो वर्ष तक 'लिव इन' में रही। दूसरे-तीसरे रईस के साथ गुलछर्रे भी उडाती रही। जब प्रेमी ने अपना करो‹डों का फ्लैट उसके नाम करने से इनकार कर दिया तो रिश्ते में खटास आ गयी। प्रेम, नफरत में बदल गया। अभिनेत्री ने थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करा दी कि उसके साथ रेप हुआ है। बार-बार, पूरे दो साल! देश की अदालतें भी कहती रहती हैं कि 'लिव इन' में रहने के बाद दुष्कर्म के आरोप लगाना अनुचित है। पर इन युवतियों को कौन समझाए...! कुछ लोग जब गायिका और अभिनेत्री के प्रति सहानुभूति जताते हैं तो कलमकार को तो हैरत ही होती है...। गुस्सा भी आता है।
    हां स्तब्ध कर देने वाली एक बात और... मंत्री पर बलात्कार का आरोप लगाकर सुर्खियां बटोरने वाली गायिका ने दस-बारह दिन बाद अपनी शिकायत वापस लेते हुए कहा कि मैंने मंत्री के खिलाफ बलात्कार का जो आरोप लगाया था उसके लिए मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि मेरी बहन और उनके बीच कुछ समय से दरार आने और कोर्ट में केस शुरू होने के कारण मैं तनाव व दबाव में थी। खबर छपने के बाद विरोधी भी उनके पीछे पड गये। कुछ नेता मेरे कंधे पर बंदूक रखकर उन्हें अपना निशाना बनाने लगे थे। इसलिए परिवार की इज्जत को बचाने के लिए मैंने यह फैसला लिया है... कि अपने कदम वापस खींच लूं और चुप ही रहूं तो बहुत अच्छा है...।

Thursday, January 21, 2021

कैलासा

    महानगरों और शहरों के होटलों में कुछ मुसाफिर सिर्फ ठहरते ही नहीं और भी बहुत कुछ करते हैं। देह की भूख मिटाने वालों के लिए होटल और लॉज बेहद सुरक्षित ठिकाने हैं। जो देह सुख खुलकर घर में नहीं भोगा जा सकता वो लॉज और होटलों के बंद कमरों में खोजा और भोगा जाता है। अब तो छोटे-छोटे गांव और सुनसान इलाकों में भी ऐसे होटल और विश्रामगृह खुल गये हैं, जहां प्रेमी युगल कुछ घण्टे के लिए जाते हैं और नये-नये तरीकों से 'मिलन समारोह' मनाते हैं। ऐसे ही एक होटल में नागपुर के उस युवक-युवती ने दिन-दहाडे कमरा बुक कराया और उसमें बंद हो गये। युवक इंजीनियर होने के बावजूद बेरोजगार था और युवती नागपुर की किसी निजी कंपनी में नौकरी बजाती है। सुनसान इलाके में स्थित महाराजा लॉज के कमरे में पहले तो दोनों ने मोबाइल पर जी-भरकर पोर्न क्लिप देखीं फिर उसी की तर्ज पर सेक्स करने की ठानी। युवक कुर्सी पर बैठ गया। युवती ने उसके दोनों हाथ व पैर बांध दिये। चरम आनंद और रोमांच के लिए गले में रस्सी का फंदा भी डाल दिया। फिर दोनों पोर्न क्लिप के नायक-नायिका की तरह मदमस्त होकर 'जिस्म क्रीडा' में लीन हो गये। परम संतुष्टि के पश्चात युवती युवक को बंधन मुक्त करने की बजाय बाथरूम चली गई। इधर रस्सी की जकडन से आजाद होने को बेचैन युवक का संतुलन कुछ ऐसा बिग‹डा कि वह नीचे गिर गया और गले में फांसी लगने से उसकी मौत हो गई। अप्राकृतिक सेक्स की शौकीन वासना की गुड़िया के बाथरूम से बाहर आते-आते तक उसके हमख्याल साथी गुड्डे के प्राण पखेरू उड चुके थे।
हिन्दुस्तान से हजारों मील दूर है कजाखिस्तान। यहां पर यूरी तोलोखो का घर है। यूरी एक जाना-माना बॉडी बिल्डर है। बलशाली यूरी को एक रबड की गुड़िया ने अपने वश में कर रखा है। यूरी ने उससे शादी भी रचा ली है। यूरी को चौबीस घण्टे सेक्स की भूख सताती रहती है। कोई भी जीती-जागती स्त्री उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं कर सकती। इसलिए उसने सेक्स डॉल को अपनी जीवनसाथी बना लिया है। रब‹ड की यह बेजुबान गुड़िया यूरी की हर सेक्स इच्छा की पूर्ति करती है। विदेशों में ऐसी सेक्स डॉल काफी पसंद की जा रही हैं। यहां तक कि उनके वेश्यालय भी खुल रहे हैं।
    सूरत के साडी तथा हीरा कारोबारी अमृत भाई ने जवानी की दहलीज पर पूरी तरह से कदम रखा भी नहीं था कि उन्होंने लाल और पीली पन्नियों में लिपटी वो पतली किताबें पढनी प्रारंभ कर दी थीं, जिनमें अश्लील कहानियों की भरमार होती है। अमृत भाई की उम्र के और भी बहुत से लडके घरवालों से बच-बचाकर 'कामसूत्र' का पाठ पढाने वाली इन उत्तेजक किताबों को बडे चाव से पढते थे। नितांत एकांत में पढी जाने वाली घटिया कागज वाली यह किताबें वासना की आंधी में भटकती लडकियों और औरतों को भी आकर्षित करती थीं। उन्हें इन किताबों को दुकानों पर खरीदने के लिए नहीं जाना पडता था। उनके चाहनेवाले उन्हें ऐसी 'ज्ञानवर्धक' किताबें भेंट स्वरूप देते रहते थे। अमृत भाई की जब शादी हो गई तब भी उनके बिस्तर के तकिये के नीचे मस्तराम की कोई न कोई किताब जरूर रखी रहती थी। पत्नी अपने पति के पागलपन पर तब अचंभित होती जब पति उसे भी 'कामसूत्र', 'अंगडाई', 'खुला तमाशा' जैसी अश्लील पत्रिकाओं को पढने के लिए उकसाता। भद्दे शब्दों की भरमार वाली इन किताबों ने पढने वालों को अपना गुलाम बना लेने की अद्भुत ताकत थी। पढने वाला पढते-पढते उत्तेजित हो जाता। अमृत भाई का इनसे नाता तब टूटा जब फिल्मों में अश्लीलता की भरमार हो गई। ब्ल्यू फिल्मों का अनंत दौर चल पडा। अमृत भाई की पत्नी ने उसे कई बार समझाया कि बाल-बच्चों वाले हो गये हो, अब तो सुधर जाओ। इधर-उधर मुंह मारने से बाज आओ। अब तो 'मस्तराम' से मुक्ति पाओ।
    लेकिन, अमृत भाई के जीवन का आज भी एक ही मूल मंत्र है भोग, भोग और सिर्फ भोग। पत्नी तो घर की मुर्गी है। उसे तो कभी भी हलाल किया जा सकता है। असली मज़ा तो बाहर के चटपटे स्वादों में है। इस चक्कर में इज्जत जाती है तो जाए। तिजोरी पर डाका पडने से भी कोई फर्क नहीं पडता। बाहर वाली चाहिए तो चाहिए। आखिर वह है तो उस स्वामी नित्यानंद का ही चेला, जिसका कहना है कि दुनिया में आये हो तो खूब मौजमस्ती कर लो। फिर अब तो पोर्न फिल्मों का ज़माना है। जेब में रहने वाले मोबाइल में ही एक से एक थ्री एक्स, फोर एक्स मूवी भरी पडी हैं। अमृत भाई का जब मन होता है तभी किसी कामुक फिल्म में खो जाते हैं। जब मन चाहता है, तब वाट्सएप और फेसबुक पर जानी-अनजानी युवतियों से गर्मागर्म बातें करने लगते हैं। मोबाइल की स्क्रीन पर एक से बढकर एक कातिल खूबसूरती का दीदार कर बीस साल के जवान की तरह मचलने लगते हैं।
    बीते हफ्ते अधेड अमृत भाई अपने आलीशान बंगले के बेडरूम में अकेले शराब की चुसकियां लेते हुए एक पच्चीस साल की चंचल खूबसूरत युवती से वीडियो कॉल पर कामुक बातचीत करने में तल्लीन थे। युवती भी नशे में धुत थी। उत्तेजक बातें करते-करते युवती ने एकाएक अमृत भाई को अपने कपडे उतारने का आग्रह किया। अमृत भाई के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। वह तो पहले भी कई बार बेलिबास हो चुका था और युवतियों के मादक शरीर के अंग-अंग के दर्शन कर उत्तेजना के शिखर पर पहुंचकर आनंदित हो चुका था। इधर अमृत भाई अपने जिस्म से वस्त्रों को जुदा कर रहा था, उधर युवती आग लगा देने वाले अंदाज से नग्न हो रही थी। यह दृष्य मोबाइल की स्क्रीन को भी जला और तपा रहा था। दोनों एक-दूसरे के अंग-प्रत्यंग की तारीफ में जमीन-आसमान एक करने में लगे थे कि तभी एकाएक कॉल डिसकनेक्ट हो गई। अपने कमरे के सेक्सी अंधेरे में अमृत भाई और कुछ सोच पाते तभी उनके मोबाइल फोन पर एक नोटिफिकेशन चमका। इन बॉक्स में एक वीडियो था और साथ में मैसेज भी, जिसमें वीडियो को ध्यान से देखने के लिए कहा गया था। हडबडाये अमृत भाई ने तेजी से वीडियो को क्लिक किया। जैसे ही वीडियो प्ले हुआ तो अमृत के पैरोंतले की जमीन खिसक गई। वीडियो में वही सब कुछ था जो थोडी देर पहले युवती और उसने किया था। अपनी नग्न तस्वीर का दीदार कर अभी अमृत भाई संभले भी नहीं थे कि मोबाइल पर फिर एक नोटिफिकेशन ने दस्तक दी। मैसेज खोला तो उसमें लिखा था, तुम्हारी नग्न कारस्तानी पर परदा डालने की कीमत है पांच करोड। हमें पता है यह रकम तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखती। इसलिए इसे शुुरूआत समझो। तुरंत नीचे दिए नंबर पर पांच करोड भेजो, नहीं तो कहीं के नहीं रहोगे। अमृत भाई का समाज में मान-सम्मान है। रिश्तेदार और यार-दोस्त भी कदर करते हैं। अमृत भाई ने अपना असली रूप छुपाये रखने के लिए पांच करोड देने में देरी नहीं की। सेक्सटार्शन के खिलाड़ियों का हौसला बढ गया। चंद महीनों में उन्होंने अमृत भाई से पचास करोड और वसूल लिए।
    अमृत भाई को पुलिस की शरण में जाना समय की बर्बादी लगता है। उन्हें तो अब अपना देश ही बेगाना लगने लगा है, जहां हसीनाएं भी विभिन्न तरीकों से ठगी और लूटमारी करने लगी हैं। कोई भी औरत भरोसे के काबिल नहीं रही। इसलिए अब उन्होंने अपने गुरू नित्यानंद की बसायी नयी दुनिया 'कैलासा' में जाकर रहने की ठान ली है।
    धूर्त प्रवचनकार आसाराम, देहभोगी रामरहीम की तरह लाखों लोगों की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड करनेवाला नित्यानंद उर्फ राजशेखरन तब धमाकेदार चर्चा में आया जब सन टीवी पर उसका सेक्स टेप टेलीकास्ट हुआ था। इसमें वह एक दक्षिण भारतीय फिल्म अभिनेत्री के साथ भोग विलास में लीन था। नित्यानंद का कहना था कि वीडियो में छेडछाड की गई है। हालांकि बाद में जांच में स्पष्ट हो गया था कि वीडियो एकदम असली है। तब नित्यानंद ने छाती तान कर कहा था कि वह तो 'नामर्द' है और इस नामर्द ने पांच दिन तक फरार रहने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था। जमानत मिलने के पश्चात जब उसने देखा कि उसका भी दुराचारी आसाराम और रामरहीम जैसा हश्र होना तय है तो वह रातोंरात देश से भाग खडा हुआ। इस भगौडे ने अब दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में कैलासा नाम का अपना ही एक देश बसा लिया है। जहां पर वह अपने भक्तों के साथ बेखौफ होकर रह रहा है। सोशल मीडिया पर धडाधड उसके प्रवचन भाषण चल रहे हैं। अपनी कई अनुयायी महिलाओं की इज्ज़त को तार-तार कर चुके तामिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में जन्मे कपटी, झूठे नित्यानंद का बसाया कैलासा अमृत भाई जैसे वासना के भूखों को बेहद आकर्षित कर रहा है। दरअसल, ये वो लोग हैं, जो धोखों से कभी सबक नहीं लेते। मोहक फांसी के फंदों के कारोबारी इन्हें तरह-तरह से लुभाते हैं और ये तो बस खिंचे चले जाते हैं...।

Thursday, January 14, 2021

खबर

   "यह रोज-रोज की बहस मुझे पसंद नहीं। तुमसे शादी कर मैंने तो जैसे कोई मुसीबत मोल ले ली है। तुम्हारे भाई भी तो पीते हैं, फिर मुझ पर पाबंदी और लांछन की तलवार क्यों?"
    "एक तो मेरे भाई तुम्हारी तरह जब देखो तब बोतल खोलकर नहीं बैठ जाते। महीने-दो महीने में जब उन्हें फुर्सत मिलती है तब वे रात को एक-दो पैग लगाकर चुपचाप सो जाते हैं। तुम तो कई बार दिन-दहाडे आधी बोतल खाली कर तांडव मचाने लगते हो। घर को युद्ध का मैदान बनाकर रख देते हो। हमारी शादी हुए नौ साल हो गये हैं। तुम्ही बताओ ऐसी कोई रात बीती है, जब तुमने शराब न पी हो। दु:ख तो मुझे इस बात का भी है कई बार पापा जी भी तुम्हारे साथ शुरू हो जाते हैं। आप दोनों को ज़रा भी चिन्ता-फिक्र नहीं कि बच्चे पर कितना गलत असर पड रहा होगा।"
    "अरे आठ साल का मासूम क्या जाने कि हम शर्बत पीते हैं, या शराब! यह तो तुम्हारी खुराफाती खोपडी है जो न हमें चैन से जीने देती है और न ही तुम्हें चुपचाप रहने देती है। तुम्हें क्या पता हम पुरुषों को किन-किन परेशानियों से गुजरना पडता है। आज के भीषण प्रतिस्पर्धा और टांग खिंचाई के दौर में दिल और दिमाग के परखच्चे उड जाते हैं। हाथ-पैर टूट जाते हैं। यह शराब ही तो है जो राहत और सुकून देती है। दुनियाभर के गमों के पहाड से छुटकारा दिलाती है।"
   "यह जब मन चाहे तब डूबकर पीने का अच्छा बहाना है। तुम कहते हो तो चलो मान लेती हूं कि परेशानियों से मुक्ति पाने और गम मिटाने के लिए शराब का सहारा लेते हो, लेकिन यह तो बताओं कि जब हमारी शादी हुई थी तब तुम प्रसन्न थे या गमगीन थे? विवाह के पवित्र बंधन में तो इंसान एक बार ही बंधता है। तब का हर पल अनमोल होता है। अथाह उमंगों, खुशियों और आशाओं से सराबोर होता है, लेकिन तुम तो सुहागरात की रात भी लडखडाते हुए आए थे और बिना कोई बातचीत किए बेसुध होकर सो गये थे। तब मुझे तुम पर तथा अपने माता-पिता पर बडा गुस्सा आया था। जिन्होंने बिना देखे-समझे एक भयानक शराबी से मेरा नाता जोड दिया था। सुबह होते ही तुम्हारी शक्ल देखे बिना अपने मायके चले जाने का भी मेरा मन हुआ था, लेकिन बदनामी और जगहंसाई के भय ने पैरों में बेड़ियां डाल दी थीं। सोचती हूं तब दिल को पक्का कर, निर्णय ले लेती तो रोज-रोज का यह नर्क तो न भोगना पडता।"
      "तुम्हारी यह गडे मुर्दे उखाडने की बीमारी ही हमारा खून खौला देती है। जब देखो तब शिकवे शिकायतें। क्या तुम पढी-लिखी औरतों को हालातों से समझौता करने में तकलीफ होती है। तुमसे तो वो अनपढ औरतें ही लाख गुना अच्छी हैं, जो अखंड शराबी पतियों से रोज पिटती हैं, फिर भी खुश रहती हैं। उन बेचारियों को तो न ठीक से खाना मिलता है और न ही कपडे। क्या नहीं है तुम्हारे पास? पहनने को एक से बढकर एक परिधान, रहने को आलीशान बंगला, कहीं आने-जाने के लिए कार तथा ड्राईवर। तब भी हमेशा नाखुश रहती हो। ऐसे मुंह लटकाये नज़र आती हो, जैसे किसी कंगाल पति से पाला पड गया हो...।"
   "अपनी राक्षसी प्रवृति को सही ठहराने के लिए तुम्हारे पास उदाहरणों की तो कभी कोई कमी नहीं रहती। नशे में धुत होने के बाद तुम बाप-बेटे का मुझ पर हाथ उठाना अब मुझे बर्दाश्त नहीं होता। तुम तो शराबी-कबाबी होने के साथ हद दर्जे के शक्की भी हो। मुझे बताओ कि तुम्हें क्या जरूरत थी मेरे फेसबुक फ्रेंड अशोक को हॉकी-डंडों से पीटने-पिटवाने की? उसका कुसूर इतना ही था न कि मैंने अपनी जो फोटो फेसबुक पर डाली थी, उसे उसने लाइक कर कमेंट में 'नाइस' लिख दिया था। शंका और जलन की भी कोई हद होती है। तुमने तो मुझे अपनी निजी जायदाद समझ लिया है।"
   "इसमें गलत भी क्या है पत्नी जी। मेरे अलावा और कोई तुम्हें लाइक करे, मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं?"
"तुम्हें अच्छी तरह से पता है कि यह तो महज औपचारिकता होती है। फेसबुक पर सभी ऐसे कमेंट्स लिखते रहते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि उनका वैसा चक्कर चल रहा होता है, जैसा तुम सोचते हो।"
    "यार मुझे तुम्हारा फेसबुक पर एक्टिव ही रहना बिलकुल पसंद नहीं। मेरी तो जान जल जाती है, तब तुम्हारी डाली फोटो पर कोई खूबसूरत, हुस्नपरी, कातिल अदा लिखता है। आखिर तुम मेरी बीवी हो। कोई नुमाइश का सामान नहीं, जिसे गैर देखते और पसंद करते रहें और मेरा दिल जलाते रहें।"
    "वाह... जगजीत वाह! मेरे फेसबुक के दोस्तों की वजह से तुम्हारे तन-बदन में आग लग जाती है। सोचो... मुझ पर क्या बीतती है, जब तुम नशे में धुत होने के बाद घर नहीं आते और अपनी शादी से पहले की प्रेमिका के पल्लू में दुबककर सो जाते हो। तुम इस भूल में मत रहो कि मैं तुम्हारी अय्याशियों से बेखबर हूं।"
   "मुझे पता है कि तुम जासूसी करने में माहिर हो, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडता। मुझे तो दु:ख इस बात का है कि तुम शादी के इतने सालों बाद भी खुद को सुधार नहीं पायी। उसी पिछडेपन के पल्लू से बंधी हो...। तुम यदि मेरे रंग में रंग जाती तो कितना अच्छा होता। तुम्हें बताये देता हूं कि शीला यानी मेरी प्रेमिका का पति भी हम दोनों के मिलने-मिलाने से वाकिफ है। उसने कभी ऐतराज नहीं जताया। दोनों पति-पत्नी एक साथ रंगीन पार्टियों में जाते हैं। पीते-पिलाते और मौज-मनाते हैं। तुम कब बदलोगी?"
    "मुझे पता है कि तुम लोगों की उन रंगारंग पार्टियों में कैसे-कैसे गुल खिलाये जाते हैं। कल ही अखबार में मैंने खबर पढी है कि किस तरह से ड्रिंक में नशीली दवा मिलाकर एक भोली-भाली युवती पर सामूहिक बलात्कार किया गया। तुम्हारी नशीली पार्टियों में पत्नियों की अदला-बदली की भी खासी जानकारी है मुझे। अखबार छाप-छाप कर थक गये हैं कि आधे से ज्यादा यौन हिंसा मामलों में शराब और ड्रग्स की अहम भूमिका रहती है, लेकिन अब तुम जैसे बहके लोगों को कौन समझाये जो जानबूझ कर अंधे बने हुए हैं।"
   "तुमसे तो भगवान भी नहीं जीत सकता तो फिर मेरी क्या औकात! चलो अब चुपचाप सो जाओ। कल मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जाने वाला हूं। वापस आने के बाद कोई स्थायी हल खोजना ही पडेगा। यह हमेशा की चिक-चिक तो मुझे ही पागल बना कर रहेगी।"
       जगजीत के शहर से बाहर जाने के तीसरे दिन की शाम पापा जी खुद तो शराब पी ही रहे थे, अपने पोते को भी पिला रहे थे। रानी ने मासूम बेटे को पीते देखा तो आग-बबूला हो गई।
    "पापा जी मैं पहले भी कितनी बार आपसे कह चुकी हूं कि पोते के प्रति इस तरह से आपका प्यार जताना मुझे पसंद नहीं। आप दोनों तो इसे शराबी बनाने पर तुले हैं। मासूम की जिन्दगी बर्बाद करते हुए आपको ज़रा भी दु:ख नहीं होता। बडी शर्म की बात है यह पापा जी!"
    "अपनी हद में रहो रानी। पिछले कई दिनों से तुम्हारी बकबक सुन रहा हूं। तुमने मेरे इकलौते बेटे की जिन्दगी नर्क बनाकर रख दी है। उसे आने दो। इस बार फिर से हड्डी-पसली तुडवा कर तुम्हारे होश ठिकाने नहीं लगवाए तो कहना। आकाश तुम्हारा बेटा होने से पहले मेरा पोता है। उसके लिए अच्छा-बुरा क्या है इसकी समझ मुझे  तुम से ज्यादा है।"
    रानी ने पापाजी से और न उलझते हुए आकाश को गोद में लिया और अपने कमरे में चल दी। आकाश उसके साथ आने में आनाकानी कर रहा था। सोते समय जब उसने आकाश को दूध का गिलास पीने को दिया तो उसने यह कहकर मना कर दिया, "मम्मा दूध नहीं दारू दो। दूध अच्छा नहीं लगता।" रातभर रानी का माथा चकराता रहा। उसकी स्वर्गवासी सासु मां अक्सर बताया करती थी कि जगजीत को शराबी बनाने में उसके दादाजी और पिता का बहुत बडा हाथ है। वह रातभर करवटें बदलती रही। बडी मुश्किल से आंख लगी। सुबह घर में काम करने वाली बाई उसकी उदास शक्ल और लाल आंखों को देखकर समझ गई कि हमेशा की तरह घर में होने वाली महाभारत की वजह से मालकिन कि यह दुर्दशा बनी हुई है। कामवाली बाई का पति भी शराबी है, जिसने बीते माह अपनी दोनों बेटियों पर चाकू से हमला कर जख्मी कर दिया था। बात-बात पर उससे झगडा करने वाले शराबी पति ने जब बेटी के साथ अश्लील हरकत की तो उसका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था। वह तुरंत थाने में जा पहुंची थी। वह अभी भी जेल में है।
    रातभर बेचैन रही रानी अंतिम निर्णय ले चुकी थी। चाहे कुछ भी हो जाए इस घर में नहीं रहना। चाय पीते-पीते एकाएक उसकी निगाहें अखबार के प्रथम पेज पर मोटे शीर्षक के साथ छपी खबर पर अटक गई। पंजाब के फिरोजपुर की इस घोर आतंकी, अमानवीय करतूत के शब्द-शब्द ने उसे हिला और कंपा कर रख दिया,
नशे से रोका, तो पति-ससुर ने कृपाण से काटा
    "घर में पति और ससुर एक साथ शराब पी रहे थे। पत्नी ने कहा कि नशा करना बंद कीजिए। इससे आठ साल के बेटे पर बुरा प्रभाव पडेगा। इतना सुनते ही पति ने गाल पर जोरदार तमाचा जड दिया। वह जमीन पर गिर गई। इसके बाद डंडे से पीटने लगे और खींचकर आंगन में ले आए। मारपीट के बाद वहीं छो‹ड दिया और फिर बैठकर शराब पीने लगे। चोट लगने से वह खडी भी नहीं हो पा रही थी। वहीं पडी रही। कुछ देर के बाद पति व ससुर आए और उठाकर कमरे में ले जाकर चारपाई पर फेंक दिया। बीस-पच्चीस मिनट बाद नशे में टुन्न ससुर ने दरवाजा खोला व पति से बोला कि 'अज्ज इहनूं नहीं छड्डणा, सानूं रोज रोकदी है, कृपाण नाल वड्ड के स्थापा नबेड इहदा' इतना सुनते ही पति ने कृपाण से उस पर वार पर वार करने शुरू कर दिये। पत्नी दर्द से चीखती रही। पति ने उसकी टांगों, जांघ, बाजुओं पर वार जारी रखे। बेहोश होने पर मरी समझ कर दोनों दूसरे कमरे में चले गये।"
    खबर पढने के बाद रानी ने तुरंत एक छोटी सी चिट्ठी लिखकर पापाजी के तकिये के नीचे रखी और बेटे का हाथ पक‹डकर हमेशा-हमेशा के लिए वो विशाल बंगला छोड दिया, जो उसके लिए किसी यातनागृह से कम नहीं था। उसने चिट्ठी में लिखा,
    "मैं कोई डरावनी खबर नहीं बनना चाहती। जो काम मुझे बहुत पहले, पक्के इरादे के साथ करना चाहिए था, उसे आज कर रही हूं। जगजीत, तुम इस बार कतई इस भूल में मत रहना कि तुम्हारे गिडगिडाने, हाथ जोडकर माफी मांगने के झांसे में आकर वापस लौट आऊंगी। मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी है। मैं अपने बेटे के भविष्य के बर्बाद होने की कल्पना नहीं कर सकती। अच्छी खासी पढी-लिखी हूं। एक बडी फायनांस कंपनी के संचालक ने नौकरी देने का आश्वासन भी दे दिया है। जैसे-तैसे हम मां, बेटा छोटे से किराये के कमरे में रह लेंगे, लेकिन तुम्हारे बंगले की तरफ ताकेंगे भी नहीं।"

Thursday, January 7, 2021

खून-पसीना, खेत-खलिहान... किसान

    सरकार ने कानून बनाया। कई किसानों को रास नहीं आया। हाड कंपाने वाली सर्दी में भी वे सडकों पर उतर आये। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन ने देश के अन्नदाता की दुर्दशा की याद दिला दी। उन पन्नों को भी खोल दिया, जिनमें अन्नदाताओं की आत्महत्याओं की दर्दनाक हकीकतें दर्ज हैं। यह हकीकतें चीख-चीखकर कहती हैं कि इस देश के किसान के साथ न्याय नहीं हुआ। उसने धरती का सीना चीरकर सभी की भूख मिटायी, लेकिन वह और उसके बाल-बच्चे भूखे रहे। उसकी झोली कर्ज से भरती रही। उसे कभी ज़हर पीकर तो कभी फांसी के फंदे पर झूलकर इस बेरहम दुनिया को अलविदा कहना पडा। महात्मा गांधी को गुजरे हुए ७० साल से ज्यादा का वक्त गुज़र चुका है। उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने अखबार 'हरिजन' में यह लिखकर सत्ताधीशों को आगाह किया था कि, "अन्नदाता की निराशा और नाखुशी उनकी असफलता की निशानी है। जो सरकार किसान को न्याय नहीं दे सकती, वह सरकार नहीं, कुछ अराजक तत्वों का समूह होती है।" समाजवादी चिन्तक डॉ. राम मनोहर लोहिया का तो यह मानना था कि जिस देश में किसान निराश, हताश और मुसीबतों का मारा रहेगा उस देश की सुरक्षा तो बडी से बडी फौज भी करने में असमर्थ रहेगी। दोनों महान चिन्तक अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जिन खतरों और संकटों को लेकर उनकी नींद उडी रहती थी वे तो आज विकराल रूप धारण कर चुके हैं। किसानों की आत्महत्याओं की खबरों को छापते-छापते अखबार थक गये हैं। न्यूज चैनल वालों ने भी किसानों की फांसी पर झूलने की वजहों पर चर्चाएं-परिचर्चाएं आयोजित करनी बंद कर दी हैं। उन्होंने इसे लाइलाज बीमारी मान लिया है।
देश और प्रदेश सरकारें किसानों को हजारों करोड की सहायता देने की घोषणाएं करती रहती हैं फिर भी किसान जहां के तहां हैं। वही आर्थिक तंगी। निराशा, गरीबी और बदहाली। खेती-किसानी तो बस घाटे का सौदा बनकर रह गयी। किसानों की उपज की बदौलत कितने चतुर व्यापारी मालमाल हो गये। नवधनाढ्यों की कतार लग गयी। उनके अरबों खरबों के बंगले तन गये। आलीशान महंगी से महंगी कारों की कतार लग गयी। देश के अधिकांश उद्योग-व्यापार पर कब्जा हो गया। उनकी बीवियां रानियों जैसी सुख-सुविधाओं का सुख भोगने लगीं। बच्चों ने राजा महाराजाओं को मात दे दी। छोटे किसानों की खेती बिकती चली गयी। बडे किसान और बडे हो गये। नेताओं, व्यापारियों, कारोबारियों, नौकरशाहों ने अपने काले धन से औने-पौने दामों में किसानों की खेती की जमीनें खरीदकर एक से एक फार्महाऊस बनाकर अपनी मौजमस्ती के साधनों में इजाफा कर लिया। खेतों में दिन-रात अपना खून-पसीना बहाने वाले किसान को इस काबिल ही नहीं बनने दिया गया कि वह अपनी फसल के भाव तय कर सके। मेहनत उसकी और कब्जा बिचोलियों, आढतियों और बाजार का। ऐसे में वह कभी उठ ही नहीं पाया। बस कर्ज के बोझ में दबता रहा और खुदकुशी के आंकडों को बढाता रहा।
    यह भारतीय किसान की सच्ची कहानी है। बर्बादी और बदहाली उसकी नियति बनाकर रख दी गई है। उससे उसका जीने और अपनी व्यथा बताने का अधिकार भी छीन लिया गया है। सरकार कहती है कृषि कानून किसानो के ही हित में हैं, लेकिन किसान कई हफ्तों से विरोध में डटे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर कडकती ठंड और बरसात में खुले आसमान के नीचे बैठे किसानों की मांग है कि उनके विकास के नाम पर बनाए गये तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं। इनसे उन्हें नहीं व्यापारियों, कारोबारियों को ही फायदा मिलेगा। वे तो बस कारपोरेट के गुलाम होकर रह जाएंगे। सरकार की निगाह में यह केवल किसानों का आंदोलन नहीं। आंदोलनकारियों में मोदी तथा भाजपा विरोधियों ने भी घुसपैठ कर ली है। यह घुसपैठी किसानों और सरकार के बीच सहमति नहीं बनने दे रहे हैं।
आंदोलन में महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों के साथ खडी हैं। कई महिलाएं शहीद भगत सिंह की याद में पीले वस्त्र धारण कर विरोध प्रदर्शन करने पहुंची। पत्रकार के पूछने पर उन्होंने बताया कि भगत सिंह उनके दिल में बसे हैं इसलिए वे पीले वस्त्र ही पहनती हैं। ट्राली में बैठी ७० साल की तंदुरुस्त भरे चेहरे वाली जसप्रीत कौर २००६ में भी एक आंदोलन में शरीक होने के कारण जेल जा चुकी हैं। आंदोलन में शामिल पुरुषों की तरह उनका उत्साह भी देखते बनता है। वे जोश भरे स्वर में कहती हैं, "हम हार मानने वालों में नहीं। हमने तो लडना ही सीखा है। ठंड हो या बैरिकेड या वाटर कैनन से पडने वाली पानी की ठंडी-ठंडी बौछारें, उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। हम किसान हैं। माटी की संतानें हैं, तो फिर डर काहे का। जसप्रीत के साथ आठ और महिलाएं भी ट्राली पर बैठी मिलीं। उन्हीं के साथ बैठकर अपनी स्कूल की पढाई करते एक दस साल के लडके ने बडे आत्मविश्वास के साथ कहा कि खेत तो हमारी विरासत हैं। अगर उन्होंने हमारे खेत ही ले लिए तो हम खाएंगे क्या, जिन्दा कैसे रहेंगे? पीले रंग की चुन्नी ओडे एमए कर चुकी बीस वर्षीय अमनप्रीत को भी तीनों कानूनों के प्रति नाराजगी है। उसका कहना है कि अगर हमारे पास जमीन ही नहीं होगी तो हम क्या करेंगे। उसके माता-पिता ने ही उसे यहां पर भेजा है। वह छह महीने की पूरी तैयारी के साथ यहां आई है। उसके गांव में बेटियों को भी जमीन में हिस्सा मिलता है। हंसते हुए तकलीफों का सामना कर रही महिलाओं को छोटी-मोटी दिक्कते हैं, लेकिन आसपास की फैक्टरियों में उन्हें अपने यहां के शौचालयों के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। वे हर दूसरे दिन नहाती हैं। इस जानलेवा ठंड में बाहर रहना आसान नहीं, लेकिन अपने हक की लडाई तो लडनी ही है। किसान आंदोलन का साथ और सहयोग देने वाले दृश्य और अदृश्य लोगों की कमी नहीं है। पुरुषों तथा स्त्रियों की जरूरतों की सभी चीज़े उपलब्ध हैं। साबुन, टूथपेस्ट, ब्रश, टावेल, चादर, कंबल, मौजे, शॉल, जूते, दवाएं तथा और भी बहुत कुछ...। भारत के किसानों के आंदोलन के समर्थन में अब पाकिस्तान के पंजाब के किसानों तथा कलाकारों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है। किसानों की चिन्ता और समस्या पर जज्बाती गीत लिखे जा रहे हैं। उनके गीतों में बंटवारे का भी दर्द है। पाक गीतकार विकार भिंडर के गीत का अर्थ है, "पंजाब के किसानों ने दिल्ली में डेरे डाल दिए हैं। किसान बेकार नहीं रहता। यह बात दिल्ली अच्छी तरह से समझ ले। धरने पर बैठे पंजाबियों ने सडकों के डिवाइडरों पर फसलें बो दी हैं। ये पंजाब की वो कौम है जो न किसी के साथ जबर्दस्ती करती है, न ही अपने साथ होने देती है। यह कौम तो सांप के फन पर पैर रखकर खेती की  सिंचाई करती है। ए आर वाटो ने लिखा है, 'खेती में हल चलाने वाले बैलों के साथ जो लडका जवान हुआ, उसे आज आतंकी कहा जा रहा है। वह अपने ही खेत में गुलाम हो जाने की आशंका में है। इसलिए ये किसान आज जज्बाती हो गया है। चढता पंजाब खुद को अकेला न समझे। किसानों के आंदोलन में कई पिताओं और मांओं ने अपने बेटे सदा-सदा के लिए खो दिये हैं।
    पंजाब के छोटे से गांव तुंगवाल के ३७ वर्षीय जयसिंह की आंदोलन के दौरान मौत हो चुकी है। सभी गमगीन हैं। घर में किसी की भी एक-दूसरे से आंख मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं बची। जय सिंह की ९५ साल की दादी को कृषि कानूनों के बारे में तो कुछ भी नहीं पता, लेकिन यह कहते हुए वह बार-बार रोने लगती है, सरकार के काले कानून ने मेरे पोते को मार दिया है। मेरे बुढापे की सारी खुशियां छीन ली है, लेकिन मेरा जवान हिम्मती पोता किसानी संघर्ष में शहीद हुआ है। वो अमर हो गया। उम्रदराज पिता का दर्द कुछ यूं छलकता है- "पूरे परिवार में अकेला वहीं कमाने वाला था, लेकिन अब सब खत्म हो गया है। उसकी दो छोटी-छोटी बेटियां तथा एक बेटा है। परिवार का भविष्य ही धुंधला गया है।"
    मोगा जिले के भिंडरकलां के किसान मखण खान की कुंडली बार्डर पर १४ दिसंबर को हार्ट अटैक के कारण जान चली गई। वह कई दिनों से किसानों के साथ डटा हुआ था। किसान मखण खान पर अपने और स्वर्गीय बडे भाई के परिवार को पालने की जिम्मेदारी थी। इस संयुक्त परिवार में चार लडके और दो लडकियां हैं। बेटियों की शादी तो मखण खान ने कर दी थी। अब घर में दो विधवाएं और चार मासूम लडके रह गये हैं, जिनकी उम्र सोलह साल से कम है।
    किसान आंदोलन के दौरान ही ६५ वर्षीय सिख प्रचारक राम सिंह सिंघडा ने गोली मार कर खुदकुशी कर ली। अपने लाखों अनुयायिओं के बीच वे संत बाबा सिंह जी के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने आंदोलन के लिए पांच लाख रुपये और सैकडों कंबल वितरित किये थे। उनसे किसी का भी दुख देखा नहीं जाता था। किसान आंदोलन को लेकर वे काफी चिन्तित और दुखी थे। आत्महत्या करने से पहले बाबा जी ने अपनी डायरी में लिखा कि, ''मैंने किसानों का दुख देखा है। अपने हक के लिए उन्हें सडक पर इस तरह से लडते देखकर मैं काफी दुखी हूं। सरकार किसानों को न्याय नहीं दे रही है, जो कि जुल्म है। जो जुल्म करता है वह पापी है और जो सहता है वह भी पाप का भागी है। किसी ने किसानो के हक के लिए तो किसी ने किसानों पर हो रहे जुल्म के लिए कुछ न कुछ किया है। किसी ने पुरस्कार वापस कर सरकार को अपना गुस्सा दिखाया है। सरकार के इस जुल्म के बीच सेवादार आत्मदाह करता है। यह जुल्म के खिलाफ एक आवाज है। यह किसानों के हक के लिए आवाज है। वाहे गुरू जी का खालसा, वाहे गुरूजी की फतेह।
    २ जनवरी, २०२१ को खुदकुशी करने वाले ७५ वर्षीय किसान कश्मीर सिंह ने सुसाइड नोट में अपना अंतिम संस्कार दिल्ली सीमा पर करने की इच्छा जतायी। ठंड में दम तोडते कई किसानों ने चीख-चीखकर कहा कि हम न कांग्रेसी हैं, न भाजपाई, समाजवादी, अकाली और बसपा वाले। हम तो सिर्फ किसान हैं, जिन्होंने इसी देश में जन्म लिया है और यहीं की माटी में दफन हो जाएंगे। हम किसी के सिखाने-पढाने और बरगलाने में नहीं आने वाले...।