Thursday, September 26, 2024

संस्कार

    खुश और सेहतमंद रहना तो सभी चाहते है। मिलने-मिलाने वाले इज्जत से पेश आएं, कहीं अनादर न हो, अपने नाम, काम और पहचान का डंका बजता रहे यह भी हर कोई चाहता है। सब को खबर है कि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। यदि शरीर रोगमुक्त, चुस्त-दुरुस्त है तो ही दुनियाभर की सुख-सुविधाएं अपनी हैं। सार्थक हैं। तनाव मुक्त होकर जीना भी तभी संभव है जब बुरी संगत और बुरे कर्मों से दूरी बना ली जाए। कोई अगर हितकारी सुझाव देता है तो उसकी अवहेलना, तिरस्कार, अपमान न किया जाए। यूं तो देश में तमाशबीनों की भरमार है, लेकिन कुछ लोग अपने आसपास गलत होता नहीं देख सकते। पहले अखबार में छपी इस खबर पर गौर करें...।

    ‘‘शहर के एक मोहल्ले में शाम होते ही तीन युवकों का शराब पी कर आती-जाती महिलाओं से बदतमीजी करना रोजमर्रा की बात थी। उनके बेलगाम अश्लील इशारों की वजह सभी आहत और परेशान रहते। खासकर युवतियां, जिन्हें घर में दुबक कर रह जाना पड़ता था। अधिकांश लोग व्यापारी थे, जिन्हें नोट छापने से फुर्सत नहीं थी। अपने काम से ही मतलब रखते थे। एक अंधेरी रात शराबियों की अति बेहयायी वहां रहने वाले स्कूल के शिक्षक से देखी नहीं गई। वे गुस्से से तमतमा गए। उन्होंने तीनों को जोरदार फटकार लगाते हुए वहां से तुरंत चले जाने को कहा। उस वक्त तो वे बड़बड़ाते हुए वहां से निकल लिए, लेकिन आधी रात को आठ-दस गुंडों के झुंड ने उम्रदराज शिक्षक और उनकी पत्नी को निर्वस्त्र कर बड़ी बेरहमी से पटक-पटक कर पीटा। जाते-जाते पेट्रोल छिड़क कर घर भी फूंक दिया। पड़ोसियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बड़ी मुश्क़िल से उन्हें आग से बाहर निकालने में सफलता पाई, लेकिन एक दुःखद, चिंतित करने वाला शर्मनाक सच यह भी है की जब शराबी एक साथ असहाय शिक्षक और उनकी पत्नी का खून बहा रहे थे और वे संघर्षरत रहकर जोर-जोर से चीख-चिला कर बचाने की गुहार लगा रहे तब सुनने के बाद भी किसी ने सामने आने की हिम्मत नहीं की। वहां पर कब्रिस्तान-सा सन्नाटा बना रहा।

    अखबार में छपी उपरोक्त खबर के नीचे यह खबर भी छपी थी... 

    ‘‘थाईलैंड के बैकांक में एक महिला को किचन में बर्तन धोने के दौरान अजगर ने जकड़ लिया। 64 वर्षीय महिला लगभग दो घंटे तक 16 फीट के अजगर से बचने के लिए जूझती रही। उसका जोर-शोर से संघर्ष जारी था तभी उसी दौरान घर के सामने से गुजर रहे एक शख्स ने महिला की चीख़-पुकार की आवाज़ सुनी। उस जागरूक इंसान के द्वारा पुलिस को तुरंत सूचित करने से महिला को बचा लिया गया।’’ 

    मेरे मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न भी अभी तक कब्जा जमाये है कि शराबी, बदमाश, मदहोश युवकों को सुधरने की सीख देकर शिक्षक ने कोई बहुत बड़ी भूल कर दी? उन्हे भी मोहल्ले के अन्य लोगों की तरह चुपचाप रहने का दस्तूर निभाते हुए इस सोच से बंधे रहना चाहिए था कि, जो हो रहा है, होता रहे। मेरे घर में कौन सी बहू-बेटियां हैं। ऐसे में दूसरों की बहन-बेटियों की चिंता मैं क्यों करूं? यह गली भी कौन सी मेरे बाप-दादा की है, जो इस पर अपना अधिकार जताते हुए गुंडों को गुण्डागर्दी करने से रोकूं। शिक्षक महोदय की यदि यही संकुचित, स्वार्थी और विकृत सोच होती तो वे अपने में मस्त रहते। अपने रास्ते आते और निकल जाते, लेकिन उनसे यही तो नहीं हो पाया। कई वर्षों तक हाईस्कूल में अध्यापन कर चुके गुरूजी को लगा था कि लड़के उनके साथ अदब से पेश आते हुए चुपचाप गिलास, बोतल, चखना समेट कर गली से चले जाएंगे। जो हुआ उसकी तो उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। 

    कितना अच्छा होता यदि वे पुलिस स्टेशन जाकर बदमाशों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाते। वहां पर ढिलाई बेपरवाही दिखने पर सभी मोहल्लेवासी एकजुट होकर उन्हें वहां से खदेड़ने का एक सूत्रीय अभियान चलाते तो अंततः वे चले जाने को मजबूर हो जाते, लेकिन एक-दूसरे से कटे रहने की शहरी संस्कृति ने ऐसी कोई पहल होने ही नहीं दी। मेल-मिलाप, एकता और अटूट संकल्प में कितनी ताकत होती है, इसकी वास्तविक तस्वीर पिछले दिनों हमने उत्तरप्रदेश के एक गांव में देखी। मिरगपुर नामक इस गांव को भारत देश का सबसे पवित्र और अनुशासित गांव का दर्जा मिला हुआ है। दस हजार की आबादी वाले इस आदर्श गांव में पांच सौ साल से किसी ने कोई नशा नहीं किया। कई लोगों ने शराब और बीयर का नाम तक नहीं सुना। न ही कभी दुष्कर्म और छेड़छाड़ की कोई घटना घटी। गांववासी कई पीढ़ियों से शुद्ध शाकाहारी हैं। खाने में प्याज-लहसून तक का इस्तेमाल नहीं करते। तनाव मुक्त रहने वाले यहां के नागरिकों को डॉक्टरों की बहुत कम शरण लेनी पड़ती है। सभी एक-दूसरे का मान-सम्मान करते हैं। युवा, बड़ों की बातों को बड़े ध्यान से सुनकर अनुसरण करते है। गांव की बेटियां जब शादी करके किसी अन्य स्थान यानी ससुराल जाती हैं तो वे मिरगपुर गांव की प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाती हैं, लेकिन फिर भी अपने जन्मस्थल के संस्कार उनके दिल दिमाग में इतनी मजबूत जड़ें जमा चुके होते हैं, जिससे वे ससुराल के सदस्यों को नशे-पानी से दूर रखने के भरपूर प्रयास में लगी रहती हैं। और हां, मिरगपुर में ब्याह कर आने वाली बहुएं इस प्रतिज्ञा से सदा-सदा के लिए बंध जाती हैं। मिरगपुर का नाम इंडिया बुक के बाद एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका है। जिला प्रशासन ने भी इसे बड़े गर्व के साथ नशा मुक्त गांव घोषित कर रखा है। इस सात्विक गांव में जो भी जाता है आश्चर्य में पड़ जाता है। उसका वहीं बस जाने का मन करता है। दो वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर की यात्रा के दौरान किसी पर्यटन प्रेमी ने हमें मिरगपुर को करीब से देखने की सलाह दी थी। उत्तरप्रदेश के भ्रमण पर निकले हमारे दल में चार पत्रकार और तीन कॉलेज के प्रोफेसर थे। दो उम्रदराज पत्रकारों और एक प्रोफेसर महोदय को तो मिरगपुर इस कदर भाया कि उन्होंने कुछ महीने बाद अपने शहर को छोड़-छाड़ कर मिरगपुर में हमेशा-हमेशा के लिए बसने की घोषणा को साकार भी कर दिया।

Friday, September 20, 2024

सत्ता की लाठी

    धनपतियों की अंकुशहीन, बिगड़ैल  औलादों की अंधाधुंध शराब गटक कर राहगीरों को रौंदनें की खबरें अब बिल्कुल नहीं चौंकातीं। देश का प्रदेश महाराष्ट्र तो इन दिनों बिल्डर्स राजनेताओं, भू-माफियाओं, शराब माफियाओं, शिक्षा माफियाओं और तथाकथित महान समाज सेवकों की नशेड़ी संतानों के नशीले तांडव से लगातार आहत और बदनाम होने को विवश है। कई लोग तो यह भी कहने और मानने लगे हैं कि महाराष्ट्र और शराब का जो चोली दामन का साथ बन चुका है, उसका पूरा श्रेय यहां की कुटिल राजनीति तथा घाघ राजनेताओं को जाता है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की तर्ज पर अब महाराष्ट्र भी चरस, अफीम, गांजा, एमडी के नशे में बुरी तरह से लड़खड़ाता और डगमगाता नज़र आ रहा है। उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, साहित्य की हर विधा में पारंगत लेखकों, पत्रकारों, संपादकों, कलाकारों तथा देश-विदेश में विख्यात राजनीतिक हस्तियों, उद्योगपतियों के प्रतिष्ठित शहर पुणे तथा नागपुर में तो ऐसे-ऐसे अपराधों का तांता लगा है, जिनकी कभी कल्पना नहीं की गई थी। स्कूल, कॉलेज के लड़के-लड़कियां एमडी तथा शराब के नशे के शौक को पूरा करने के लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल की चोरी-चक्कारी के साथ-साथ चेन स्नैचिंग करने लगे हैं। होटलों, फार्महाउसों, ब्यूटी पार्लरों तथा विभिन्न अय्याशी के ठिकानों पर कम उम्र की कॉलेज कन्याओं का रोज-रोज जिस्मफरोशी करते पकड़े  जाना आखिर क्या दर्शाता है? 

    2024 के मई महीने की 19 तारीख को पुणे में तड़के शराब के नशे में मदहोश एक नाबालिग ने अंधाधुंध रफ्तार से करोड़ों की लग्जरी कार दौड़ाते हुए युवक और युवती की जान ले ली। दोनों मृतक होनहार इंजीनियर थे और मध्यप्रदेश के मूल निवासी थे। इनकी हत्या करने वाले नाबालिग के पास कार चलाने का लाइसेंस नहीं था। फिर भी उसके बिल्डर पिता ने करोड़ों रुपए की कार की चाबी अपने नशेड़ी बेटे को थमा दी थी। साथ ही दोस्तों के साथ शानो-शौकत के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए क्रेडिट कार्ड भी दे दिया था। बिगड़ैल नाबालिग रोज की तरह उस रात भी मां-बाप तथा दादा के आशीर्वाद से अपने अय्याश यारों के संग नई-नई पोर्श कार में सवार होकर शहर के आलीशान शराबखाने गया। वहां पर सबने लगभग अस्सी हजार रुपए की मनपसंद शराब गटकी। कबाब भी खूब चखा। तृप्त होने के बाद रात का शहजादा और उसके साथी लगभग एक घंटे तक यहां-वहां कार को हवाई रफ्तार से अंधाधुंध दौड़ाते रहे। इस बीच पियक्कड़ों की फिर और पीने की तलब जागी तो किसी दूसरे रंगारंग मयखाने में बैठकर शराब पीते रहे। यहां भी नशे में टुन्न नाबालिग ने अपने बाप की काली कमायी के तीस हजार रुपये की खुशी-खुशी आहूति दे दी। दो हत्याएं करने के बाद भी धनपशु की औलाद के चेहरे पर किंचित भी मलाल, चिंता, खौफ का नामोनिशान नहीं था। जल्लाद को पूरा-पूरा यकीन था कि देश का कानून उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। हुआ भी वही। उसके बाप, दादा तथा मां ने  लाड-प्यार में पले बेटे को कानून के फंदे से बचाने के लिए पुलिस, विधायक, मंत्री, संत्री सबको खरीदने के लिए एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। नृशंस हत्यारे को बचाने के लिए अस्पताल के डॉक्टर बिकने से नहीं सकुचाये। जांच में बेटा शराबी साबित न हो इसके लिए मां ने अपने ब्लड सैंपल को बेटे के ब्लड सैंपल में बदलकर कानून की आंखों में धूल झोंकने की चाल चली, लेकिन अंतत: पर्दाफाश हो ही गया। इसी चालबाजी में उनके काले अतीत के पन्ने भी खुलते गए। बाप तो बाप, दादा भी दस नंबरी निकला और उसके अंडर वर्ल्ड से पुराने जुड़ाव का भी पर्दाफाश हो गया।

    पुणे के इस हत्याकांड के कुछ दिन बाद मुंबई के वरली में सत्ता पक्ष के एक नेता के दुलारे की बीएमडब्ल्यू कार ने एक स्कूटर को जोरदार टक्कर मारी, जिससे किसी गरीब मां-बाप की इकलौती लाड़ली बिटिया की वहीं मौत हो गई। यह हत्यारा नेता-पुत्र भी शराब के नशे में टुन्न था। पुलिस उसके पीछे-पीछे भागती रही और वह हत्याकांड को अंजाम देने के बाद बेफिक्र होकर अपनी प्रेमिका की गोद में जाकर सो गया। इसी सितंबर के महीने में ही नागपुर में भाजपा के मालदार प्रदेश अध्यक्ष के बेटे ने मित्रों के साथ जाम पर जाम टकराने के बाद आधी रात को आसमान छूती अपनी ऑडी कार से चार मोपेड सहित एक कार को जोरदार टक्कर मारी। दो लोग बुरी तरह से घायल हो गये। शराबी मंडली ने वहां रुकने की बजाय भाग जाना बेहतर समझा। इसी  भागमभाग में उनकी कार का टायर भी फट गया, जिससे ऑडी पोलो कार से जा टकरायी। इस नशीले अपराध की वजह से भीड़ ने नेता पुत्र और उसके साथी की जमकर मरम्मत की और नुकसान की भरपाई के बाद बड़ी मुश्क़िल से तब जाने दिया जब उन्हें पता चला कि इस कांड का हीरो प्रदेश के दमदार नेता की बिगड़ैल औलाद है। ऑडी कार को पुलिस ने जब अपने कब्जे में लिया तब उसकी नंबर प्लेट नदारद थी। सुबह के सभी अखबारों की यही प्रमुख खबर थी। बड़े अनमने मन से पुलिस ने तब शिकायत दर्ज की जब उस पर चारों और से दबाव पड़ने लगा। पुत्र मोह के कैदी पिताश्री यानी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का बयान आया कि घटना अत्यंत दुःखद है। कार उनके पुत्र के नाम पर रजिस्टर्ड है। वे चाहते हैं कि पूरी तरह से निष्पक्ष जांच  हो। उन्होंने पुलिस को कोई फोन नहीं किया है और न ही किसी भी तरह से जांच को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे। मामले को लेकर राजनीति करना उचित नहीं। यह नेताओं की कौम आखिर किसको बेवकूफ बनाने पर तुली रहती है? सत्ताधीशों को बोलना ही कहां पड़ता है। सत्ता की लाठी बिना चले अपना काम कर गुजरती है। प्रशासन के चाटूकार लाठी के इशारे पर नाचना अच्छी तरह से जानते हैं। वैसे भी खाकी वर्दी को सत्ता की खामोश जुबान बहुत जल्दी समझ में आ जाती है। उनकी पार्टी की केंद्र तथा प्रदेश में सरकार है। पूरा तंत्र उनकी मुट्ठी में है। उनका बाल भी बांका करने का किसमें दम है? पुलिस तो हिम्मत कर ही नहीं सकती। उसका नेताओं से हमेशा वास्ता पड़ता रहता है। कभी यदि काला-पीला करने के बाद फंस गए तो बचने-बचाने के लिए उन्हें सत्ता के दरवाजे पर जाकर नाक रगड़नी होती है। आधुनिक शिष्टाचार और आदान-प्रदान कर यह मायावी दस्तूर वर्षों से चला आ रहा है। खुशी-खुशी या मजबूरी में इसे निभाना ही पड़ता है। हां यह भी न भूलें कि, नाम मात्र के ही बाप ही ऐसे होते हैं जो अपनी संतान के हिमायती न हों। सत्ताधीशों के संतान मोह का तो इतिहास साक्षी है, जो अपने खोटे सिक्कों तक को राजनीति के बाजार में बखूबी खपाने और चलाने की हर कला में सिद्धहस्त हैं। महाराष्ट्र  में तो ऐसे नेताओं की भरमार है जो कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद एक तरफ मेडिकल तथा इंजीनियरिंग कॉलेज उद्योग धंधों को चला रहे हैं, दूसरी तरफ बीयर बार, पब, शराब की फैक्ट्रियां तथा दूकानें खोल कर अरबों-खरबों की माया जुटा रहे हैं। पब्लिक अंधी नहीं है। उसे अच्छी तरह से दिखायी दे रहा है कि शहरों के साथ-साथ ग्रामों में भी मंत्रियों, नेताओं की प्रबल भागीदारी में नशे के विभिन्न कारोबार फलफूल रहे हैं...।

Thursday, September 12, 2024

अगर-मगर के बीच

     पूरे विश्व में उम्रदराज स्त्री-पुरुषों का सुख-चैन से जीना दूभर होता चला जा रहा है। बड़े ही जोर-शोर से कहा जा रहा है कि अधिकांश औलादें मतलबी हो गई हैं। उन्हें अपने जन्मदाताओं की खास चिन्ता नहीं रहती। वे तो बस अपने में मग्न हैं। यह किसी एक देश का संकट होता तो नजरअंदाज किया जा सकता था। जहां-तहां बुजुर्गों में निराशा और हताशा है। जीने की उमंग छिन सी गई है। जिन पर भरोसा किया, वही विश्वासघाती निकले। ऐसी एक से बढ़कर एक दिल दहला देने वाली खबरेें पढ़ और सुन-सुन कर माथा चकराने लगता है। अच्छे भले इंसान को भविष्य की चिंता और घबराहट कस कर जकड़ लेती है। पहले इस हकीकत से रूबरू होते हैं, जिससे हिन्दुस्तान भी पूरी तरह से अछूता नहीं है...। 

    जापान में लाखों लोग अकेलेपन से जूझ रहे हैं। उनका जीवन नर्क बन चुका है। जिन औलादों को पाल-पोस कर उन्होंने हर तरह से काबिल बनाया, वही गद्दार साबित हुईं। बुजुर्गों के साथ कुछ पल बैठने, उनका हाल-चाल जानने का उनके पास वक्त ही नहीं। जन्मदाताओं को उनके हाल  पर छोड़ दिया गया है। मृत्यु के वक्त भी कोई परिजन, रिश्तेदार, केयरटेकर या मित्र उनके आसपास नहीं होता। अंतिम काल में अपनों का साथ और चेहरा देखने के लिए वे तड़पते, तरसते रह जाते हैं। तेजी से तरक्की करते जापान में बीते छह महीनों में 37,227 बुजुर्ग अपने घरों के एकांत में मृत पाये गए। उनके पड़ोसी तथा रिश्तेदार कई दिनों तक उनकी मौत से अनभिज्ञ रहे। लगभग चार हजार शवों को मृत्यु के  एक-डेढ़ माह बाद तो 130 शवों को  असहनीय बदबू आने पर एक वर्ष बाद घरों से बाहर निकाला जा सका। मृतकों में जहां 85 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के बुजुर्ग थे, वहीं 65-70 आयु के लोग भी शामिल थे, जो चल फिर सकते थे, लेकिन निराशा और अकेलेपन ने उनकी जान ले ली।’’ 

    हमारे देश में उम्रदराज स्त्री-पुरुषों की औलादों की अनदेखी की वजह से होने वाली मौतों की तादाद इतनी ज्यादा और भयावह तो नहीं, लेकिन चिंतित करने वाली तो जरूर है। वो मां-बाप यकीनन अत्यंत भाग्यशाली हैं, जिनकी संतानें उनके प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। उनकी देखभाल और मान-सम्मान में कहीं कोई कसर नहीं छोड़तीं। इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि, आपाधापी और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अनेकों बेटे-बेटियों को मजबूरन अपने अभिभावकों से दूर जाने, रहने कमाने को विवश होना पड़ता है। फिर भी अधिकांश जागरूक बेटे-बेटियां अपने जन्मदाताओं से दूरियां नहीं बनाते। भारतीय उत्सव, संस्कार, परंपराएं और बुजुर्गों की सीख उन्हे घर-परिवार से जोड़े रखती हैं।

    हमारे यहां वर्ष भर त्यौहारों का जो सिलसिला बना रहता वह रिश्तों की डोर को कमजोर नहीं होने देता। दिवाली, ईद, दशहरा, होली, गुरुनानक जयंती, क्रिसमस आदि सभी त्यौहार मेलजोल, सकारात्मक ऊर्जा तथा अपार खुशियां प्रदान करते हैं। बहुत ही कम ऐसे घर-परिवार होंगे, जहां रामायण और गीता जैसे ग्रंथ नहीं होते होंगे तथा बच्चों को भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र के बारे में बताया-समझाया नहीं जाता होगा। कितनी संतानें इनसे प्रेरित  होकर इसे आत्मसात करती हैं, यह तथ्य और सच अपनी जगह है।

    यह भी सच है कि, पिछले कुछ वर्षों में भारत में भी रिश्तों की मान-सम्मान करने की परिपाटी में बदलाव और कमी देखी जा रही है। कोरोना काल में मनुष्य के मजबूरन स्वार्थी बनने की हकीकत को याद कर आज भी कंपकंपी सी छूटने लगती है। इस दुष्ट काल में कुछ संतानों ने अपना रंग बदला और अच्छी औलाद का फर्ज नहीं निभा पाए। कैसी भी विपदाएं आई हों, लेकिन भारतीय मां-बाप अपने दायित्व से कभी भी विचलित नहीं हुए। हिंदुस्तानी अभिभावकों का यही गुण उन्हें बार-बार नमन का अधिकारी बनाता है। वे अपने बच्चों के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ते। उन्हें सतत यही उम्मीद रहती है कि उनके बच्चे कभी भी उनकी अनदेखी नहीं करेंगे। कैसा भी वक्त होगा, अपना फर्ज निभाने से नहीं चूकेंगे, लेकिन अपवाद की श्रेणी में आने वाली औलादें जब मां-बाप की आशाओं के तराजू पर खरी नहीं उतरतीं तो वे खुद को लुटा-पिटा मानकर निराशा का कफन ओढ़ लेते हैं। उन्हें बार-बार खुद की गलती का अहसास होता है, लेकिन तब तक चिड़िया खेत चुग कर फुर्र हो चुकी होती है। मैंने अपने आसपास कुछ ऐसे पालकों को देखा है, जो अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उम्र भर खून-पसीना बहाते रहते हैं। उन्हें यह खौफ खाये रहता है कि हमारे बाद बच्चे कैसे रहेंगे। उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी। वे किसी की साजिश का शिकार तो नहीं हो जाएंगे। इस चक्कर में वे अपने साथ न्याय नहीं कर पाते। जबकि होता यह है कि पालकों ने स्वर्गवास के पश्चात कई बच्चों को पहले से बेहतर नई राह मिल जाती है। वे अपने में ही मस्त हो सब कुछ भूल-भाल जाते हैं। उन्हें मां-बाप के त्याग की भी याद नहीं आती। जीने की परिभाषा यदि सीखनी हो तो ओशो से बड़ा और कोई शिक्षक नहीं है। वे मात्र 58 साल तक इस धरा पर रहे, लेकिन आज भी जिन्दा हैं। उन्होंने इतने कम समय में इतना कुछ कर डाला जितना सौ साल में भी संभव नहीं। उनकी हजारों प्रेरक किताबें उनके देव पुरुष होने का जीवंत प्रमाण हैं। उनकी समाधि पर लिखा हुआ है। ‘‘ओशो, जो न कभी पैदा हुए, न कभी मरे।’’ उन्होंने 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी, 1990 के बीच इस धरती की यात्रा की। 

ओशो कहते हैं,

सब पड़ा रह जाएगा, दीये जलते रहेंगे

फूल खिलते रहेंगे, तुम झड़ जाओगे

संसार ऐसे ही चलता रहेगा

शहनाइयां ऐसे ही बजती रहेंगी, 

तुम न होओगे

वसंत भी आएंगे, फूल भी खिलेंगे,

आकाश तारों से भी भरेगा

सुबह भी होगी, सांझ भी होगी

सब ऐसा ही होता रहेगा,

एक तुम न होओगे...।

Friday, September 6, 2024

खबरदार करती खबरें

     प्रतिदिन की तरह पति-पत्नी  सुबह  की सैर पर निकले। रास्ते में पड़ने वाली गहरी नदी में दोनों ने एक साथ छलांग लगा दी। किसी राह चलते साहसी व्यक्ति ने नदी में डुबकी  लगाकर महिला को तो बचा लिया, लेकिन पुरुष पानी के बहाव के साथ बह गया। यह खबर जिसने पड़ी वह हतप्रभ रह गया। दोनों को मार्निंग वॉक का शौक था। अपने स्वस्थ के प्रति सतर्क थे। लंबा जीवन जीने की तमन्ना भी रही होगी, तो फिर ऐसे में दोनों ने यह हैरतअंगेज कदम क्यों उठाया? कई खबरें अपने साथ प्रश्न भी जोड़े रहती हैं। सभी के जवाब नहीं मिल पाते। संतान सुख से वंचित शंकालू पति ने पीट-पीट कर पत्नी की हत्या कर दी। हत्या के बाद वह उस के शव के पास घंटों गुमसुम बैठा रहा। मृतका के सिर के पास नारियल भी रखा था। ...कोलकाता में मेडिकल कॉलेज में हुए बलात्कार-हत्या के संगीन मामले को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी  मुर्मू ने कहा, देश में गुस्से का माहौल है। मैं स्वयं निराश और भयभीत  हूं। महिलाओं  के खिलाफ  होने वाले अपराधों के लिए कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को वस्तु के रूप में देखने की मानसिकता जिम्मेदार  है। अपनी बेटियों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके भय से मुक्ति पाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें। अब समय आ गया है कि न केवल इतिहास का सीधे सामना किया जाए बल्कि अपनी आत्मा के भीतर झांका जाए और महिलाओं के खिलाफ अपराध की इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए।

    महाराष्ट्र के छत्रपति संभाली  नगर में महिला डॉक्टर ने अपने पति के आतंक और जुल्म की इंतिहा से उकता और घबरा कर खुदकुशी कर ली। उसने अपने सुसाइड नोट  में लिखा कि मेरी हार्दिक इच्छा है की मेरे पति मुझे चिता पर रखने से पहले कसकर गले लगाएं। जिस शैतान पति ने कभी चैन से जीने नहीं दिया। अच्छे-खासे जीवन को नर्क बना कर रख दिया उससे यह कैसी मांग? दुर्जन पति के प्रति मरते दम तक सहानुभूति रखने वाली यह नारी मेडिकल अधिकारी थी यानी आर्थिक रूप में सक्षम थी। दिन-रात गाली-गलौच और शंका करने वाले पति को उसके हाल पर छोड़कर नयी स्वतंत्र राह भी तो पकड़ी जा सकती थी। फांसी के फंदे पर झूल कर इसी पढ़ी-लिखी भारतीय नारी ने खुद को किसी सहानुभूति के लायक भी नहीं छोड़ा। 

    ‘‘महाराष्ट्र में  चौथी क्लास  की छात्रा से शिक्षक ने, तो सगी  बेटी से बाप ने किया बलात्कार।’’ कल्याण  तहसील  में स्थित  एक गांव  में पुलिस ने 37 वर्षीय दरिंदे को दो साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के संगीन आरोप में गिरफ्तार किया है। मासूम का अस्पताल में इलाज चल रहा है। बच्ची के माता-पिता तीन माह पूर्व मेहनत-मजदूरी करने आए थे। बच्ची घर के पास की दुकान से चाकलेट खरीदने गई थी। शैतान उसे उठाकर ले गया और निर्जन स्थान पर बलात्कार की कोशिश की। पीड़ा से कराहती बच्ची रोते हुए घर पहुंची तो नराधम की हैवानियत का पता चला।

    ‘‘यूपी में छात्रा से बलात्कार के आरोपियों के जेल से बाहर आने पर फूल, गुलदस्ते और हार पहनाकर किया गया स्वागत’’... जी हां, एकदम सही पढ़ा आपने। उत्तरप्रदेश के आईआईटी बीएचयू में बीटेक छात्रा की लगभग आठ माह पूर्व दो बदमाशों ने अस्मत पर डाका डाला था। इन दरिंदों के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतरे थे। अभी हाल में अदालत ने दोनों को सशर्त जमानत दे दी। साथ में यह भी कहा कि इन पेशेवर अपराधियों को जनता के बीच जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन जनता तो जनता है, सब कुछ जानती, समझती है, फिर भी अंधी-बहरी बनी रहना चाहती है। जिन्हें  अपना मानती है, उनके सौ खून माफ करने की हिमायती होने में नहीं सकुचाती। यह हमारे समाज की बेहद  शर्मनाक  हकीकत है।

    कई हृदयहीन भारतीय दूसरों की बहन, बेटियों का आदर करना नहीं जानते। उनका संरक्षण करना तो बहुत दूर की बात  है। पिछले कुछ सालों में हमारे भारत को बलात्कारियों का देश भी कहा जाने लगा है। कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब देश के किसी हिस्से में बहन-बेटी की आबरू लूटने का खबर पढ़ने-सुनने में न आती हो। घर की सुरक्षित चार दिवारी में भी बेटियां, बहुएं और मासूम बच्चियां रौंद दी जाती हैं। उनके विरोध के स्वर और चीखों को बड़ी चालाकी से दबा-छिपा दिया जाता है। शर्मनाक तथ्य यह भी है कि संपूर्ण भारत में व्याभिचार और बलात्कार को लेकर अत्यंत शर्मनाक राजनीति होती देखी जाती है। पीड़िताओं के साथ बड़ी निर्लज्जता से भेदभाव कर आहत करने वाली बयानबाजी रूकने का नाम नहीं लेती। समाज को विषैला और असंवेदनशील बनाने में उन राजनेताओं की बहुत बड़ी भूमिका  है, जो इस मामले में घोर पक्षपाती हैं। जिन प्रदेशों में उनकी सरकार है वहां पर महिलाओं के साथ बर्बरता होने पर खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं और जहां पर उनकी सत्ता नहीं वहां कुत्तों की तरह भौंकने में कोई कमी नहीं करते। देश की बेटियों पर हो रहे दुराचारों के मामले में भेदभाव करने वाले नेताओं की वजह से ही राक्षसी कृत्य करने वाले चुन-चुन कर नारियों की इज्जत पर डाका डालते हैं और बाद में अपने आकाओं की गोद में जाकर बैठ जाते हैं। उनके आका उन्हें बचाने के लिए ओछी से ओछी चालें चलने लगते हैं। देश का कानून भी इनके कुचक्र का शिकार हो जाता है। सबूतों के अभाव में भरे चौराहे पर बलात्कार करने वाले दुराचारी  बाइज्जत बरी हो जाते हैं। उनको अपना आदर्श मानने वाले उनका आन-बान और शान के साथ गुलदस्तों तथा फूलों के हारों से अभिनंदन-स्वागत कर पीड़िता और उनके माता-पिता के सीने में खंजर घोंपकर बार-बार लहुलूहान और करते रहते हैं।