Thursday, May 2, 2024

आंख मूंदकर मतदान!

    नागपुर शहर के धरमपेठ में स्थित है, ट्रैफिक पार्क चौक। भीड़-भाड़ वाले इस चौक पर लोकसभा चुनाव की वोटिंग के चंद दिन बाद लगाया गया होर्डिंग आते-जाते हर शख्स के आकर्षण का केंद्र बना रहा। मतदान से मुंह चुराने वाले मतदाताओं को लताड़ लगाते इस होर्डिंग में ‘शेम ऑन यू’ लिखकर उन पर तीखा वार किया, जिन्होंने लोकतंत्र के महापर्व का अपमान किया। लेकिन क्या उन पर कोई असर हुआ? ध्यान रहे कि नागपुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 22 लाख मतदाता हैं, लेकिन दस लाख पंद्रह हजार मतदाता वोट देने ही नहीं गये। कई घरों में दुबके रहे तो अनेकों छुट्टी मनाने के लिए शहर से दूर चले गये। सर्वधर्म समभाव और एकता के प्रतीक नारंगी नगर के माथे पर यकीनन कलंक जैसी है यह लापरवाही। सजग शहरवासी इस होर्डिंग को लगाने वाले की जहां प्रशंसा करते रहे वहीं प्रशासन को इसकी सजीली और नुकीली शब्दावली इस कदर आहत कर गई कि उसने इसे हटाने में चीते सी फुर्ती दिखायी। वोटर लिस्ट में भारी पैमाने पर हुई गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को मिर्ची लगने की चर्चा गली-कूचों, चौक-चौराहों पर जोर पकड़ती रही। यह भी बेहद चौंकाने वाली हकीकत है कि अकेले नागपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब ढाई लाख मतदाता सूची से नाम कटने, इधर-उधर होने या नाम में गड़बड़ी होने के कारण वोट करने से वंचित रह गए। 

    हिंदुस्तान के निर्वाचन आयोग ने सुनियोजित तरीके से मतदान कराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों पर कर्मचारियों को भेजा, जहां हट्टे-कट्टे लोग जाने से घबराते हैं। जिन स्थानों पर पांच-सात मतदाता हैं वहां पर भी ईवीएम की मशीनों के साथ कर्मचारियों को भिजवाया और काम पर लगाया गया। 

    यह बताने की जरूरत नहीं होने के बावजूद भी लिखना पड़ रहा है कि अपने देश भारत में चुनावों की अपार अहमियत है। अपने मताधिकार का उपयोग कर सरकार चुनी जाती है। हर पांच साल में होने वाले लोकसभा चुनाव का सजग मतदाताओं को बेसब्री से इंतजार रहता है। इन चुनावों की प्रक्रिया में जो अरबों रुपये खर्च होते हैं। उनसे अनेकों विकास कार्य संपन्न किये जा सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र में चुनाव की जरूरत और प्राथमिकता सर्वोच्च स्थान रखती है। 

    गौरतलब है कि 2024 को इस लोकसभा चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि 2024 के चुनावों का खर्च 2019 में हुए लोकसभा चुनावों की अपेक्षा दोगुना होगा। 2019 के चुनाव में कुल खर्च तकरीबन 55 से 60 हजार करोड़ था। कितने आश्चर्य की बात है कि चुनावी खर्च सतत तो बढ़ रहा है, लेकिन मतदान करने वाले भारतीयों की संख्या में बढ़ोतरी की बजाय कमी हो रही है। वो भी तब जब नये वोटरों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हो रहा है। चुनावों में खर्च होने वाला धन अंतत: देशवासियों का ही है, जिसकी कमी की वजह से करोड़ों भारतीय विभिन्न अभावों से जूझ रहे हैं। गरीबों तथा अमीरों के बीच की असमानता दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। मतदान की अवहेलना या मतदान में सजगता नहीं बरतने का खामियाजा भी अंतत: देशवासियों को ही भुगतना पड़ता है। 

    खामियाजा तो मतदाताओं की और भी कई गलतियों का देश को सतत भुगतना पड़ रहा है। भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, हत्यारे और किस्म-किस्म के माफिया चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं। राजनीतिक दलों के अधिकांश कर्ताधर्ता उन्हीं को चुनाव मैदान में उतारते हें जो येन-केन-प्रकारेण विजयी होने का चमत्कार दिखाने में सक्षम होते हैं। 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला कर बार-बार जेल जाने वाला इस सदी का सबसे भ्रष्ट नेता लालूप्रसाद यादव अपने पूरे खानदान के साथ छाती तानकर वोट मांगने पहुंच जाता है। सजायाफ्ता होने पर अपनी अनपढ़ पत्नी को मुख्यमंत्री बना देता है। उसका कम पढ़ा-लिखा छोटा बेटा बिहार का उपमुख्यमंत्री बन जाता है। बड़ा बेटा जो चपरासी बनने के काबिल नहीं वह मंत्री पद का सुख भोगते हुए करोड़ों शिक्षित युवकों को अपना माथा पीटने को विवश कर देता है। यहां तक कि उसकी बेटियां भी सांसद बनकर करोड़ों-अरबों की दौलत के साथ इठलाती, गाती-नाचती नज़र आती हैं। यह अनोखा नाटक और नज़ारा उन मतदाताओं की देन है जो मतदान करते वक्त जाति और धर्म की सोच की जंजीरों में जकड़े रहते हैं। जिनके लिए लूट-खसोट और भ्रष्टाचार कतई कोई अपराध नहीं। आंख मूंदकर मतदान करने वालों की वजह से ही न जाने कितने खूंखार अपराधी विधायक और सांसद बनते देखे गये हैं। देश के आम आदमी को जब किसी अपराध की वजह से जेल जाना पड़ता है, तब शर्म के मारे उसे अपना मुंह छिपाना पड़ता है। अपने और बेगाने उससे दूरी बना लेते हैं। यहां तक कि उसके बाल-बच्चों को भी अपने निकट नहीं आने देते, लेकिन राजनीति के लुटेरों, हत्यारों, बलात्कारियों के गुनाहों को जनता बहुत जल्दी भूल जाती है। इसलिए राजनीति के चोर-उचक्कों को कभी शर्म नहीं आती। शर्म आती तो छाती तानकर मतदाताओं के यहां वोट लेने के लिए नहीं पहुंच जाते। चुनाव जीतने के बाद भ्रष्ट नेता छाती तान कर यह कहना-बताना और चेताना नहीं भूलते कि यदि हम जनता की निगाह में अपराधी होते तो वह हमें वोट ही क्यों देती। अदालत के द्वारा सजा देने से क्या होता है। लोकतंत्र में तो जनता की अदालत से ऊपर और कोई कोर्ट-कचहरी नहीं। 

    हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की नाक के नीचे पच्चीस हजार शिक्षकों की भर्ती में जबरदस्त घोटाला हो गया। कलकता हाईकोर्ट ने सभी शिक्षकों की भर्ती रद्द कर दी। रिश्वत की मलाई चटाकर नौकरी हथियाने वालों के साथ-साथ उन पर भी आफत आन पड़ी, जिन्होंने कड़ी मेहनत के बाद नौकरी हासिल की थी। बड़े लंबे इंतजार के बाद उनके जीवन में स्थिरता आ पायी थी, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले ने उनके पैरों की जमीन ही छीन ली। अपने परिवार के अकेले कमाने वाले कई लोगों को पड़ोसियों तक को अपना मुंह दिखाने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है। नौकरी के दौरान उन्हें जो वेतन मिला था, वो खर्च हो गया। ऐसे में 12 फीसदी सूद के साथ सरकार को पैसे लौटाने के फैसले का पालन कर पाना उसके बस की बात नहीं है, लेकिन हमारे यहां तो अक्सर गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। जिन्होंने गलत हथकंडे अपना कर नौकरी हथियायी, दरअसल सजा के तो वही हकदार हैं और हां उन नेताओं पर भी कोई आंच नहीं आयी जिन्होंने रिश्वत खाकर नालायक लोगों को शिक्षक बनाने का अक्षम्य संगीन अपराध किया है।

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