Thursday, June 27, 2024

अक्षम्य अपराध

   मायानगर मुंबई में एक महिला का खाना खाने के बाद ठंडी-ठंडी आइसक्रीम का मज़ा लेने का मन हुआ। तपती गर्मी में बाहर कौन निकले यह सोचकर उन्होंने तुरंत तीन आइसक्रीम का ऑनलाइन आर्डर दे दिया। थोड़ी ही देर के बाद उनकी मनपसंद यम्मो ब्रांड की आइसक्रीम हाजिर हो गई। बड़े मज़े से लजीज आइसक्रीम का स्वाद लेते-लेते महिला को मुंह में किसी ठोस चीज़ के होने का अहसास हुआ। पहले तो उन्हें लगा कि अखरोट या चाकलेट होगी, लेकिन उसकी गंध और कड़ेपन से उन्हें चिंता में डाल दिया। तब तक वह आधी आइसक्रीम खा चुकी थीं। उन्होंने जैसे ही कोन को चेक किया तो उसमें से इंसानी अंग निकला। 

    दरअसल यह किसी इंसान की उंगली का कटा हुआ हिस्सा था। इसकी लंबाई थी लगभग दो सेंटीमीटर। इसे देखते ही महिला का सिर चकराने लगा। उसे धड़ाधड़ उल्टियां होने लगीं।  चीखने-चिल्लाने की आवाज को सुनकर घर के अन्य सदस्य दौड़े-दौड़े चले आए। बात पुलिस तक पहुंची। उसने महिला के घर पहुंच कर कटे अंग को अपने कब्जे में लेने के बाद फॉरेंसिक क जांच के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया। जांच के दौरान पुलिस को जो अहम सुराग हाथ  लगा, उसमें पता चला कि पुणे की आइसक्रीम फैक्टरी में काम करने वाले शख्स की मिडल फिंगर कटकर आइसक्रीम में जा गिरी थी। इस दुर्घटना के तुरंत बाद वह तुरंत डॉक्टर के यहां इलाज के लिए भाग खड़ा हुआ। उंगली वहीं की वहीं रह गई, लेकिन सवाल यह है कि प्रबंधन क्या कर रहा था? 

    अभी यह खबर ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि नोएडा में ऑनलाइन शापिंग प्लेटफार्म पर आर्डर कर एक और महिला ने ब्रांडेड आइसक्रीम मंगायी। डिब्बा खोलते ही उसके अंदर कनखजूरा के दर्शन होने से वह हतप्रभ रह गई। महिला ने तुरंत फूड विभाग तक अपनी शिकायत पहुंचायी। ऑनलाइन शापिंग प्लेटफार्म के स्टोर पर जांच टीम ने मुआयना कर पाया कि वहां पर गंदगी ही गंदगी थी। किस्म-किस्म के विषैले कीड़े-मकोड़ों ने वहां पर अपना डेरा जमा रखा था। 

    भारतीय रेलों की दुर्दशा से सभी वाकिफ हैं। यात्रा के दौरान यात्रियों को कैसी-कैसी असुविधाएं झेलनी पड़ती हैं, यह भुक्तभोगी अच्छी तरह से जानते हैं। अधिकांश ट्रेनों में यात्रियों को ताजा भोजन के नाम पर बासी, अधपका भोजन और नाश्ता परोसा जाता है। अधिकांश यात्री शिकायत करने के पचड़े में नहीं पड़ते। सरकार ने बीते वर्ष जब वंदेभारत एक्सप्रेस ट्रेन की सेवा प्रारंभ की थी तब यात्रियों को बेहतरीन भोजन, चाय-नाश्ता उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया था। शुरू-शुरू में तो यात्रियों को अच्छा व टेस्टी खाना मिला, लेकिन फिर धीरे-धीरे गुणवता में कमी आने लगी। तेजी से दौड़ने वाली इस ट्रेन में घटिया भोजन और नाश्ते की शिकायतों का अंबार लगने लगा। अभी हाल ही में वंदेभारत एक्सप्रेस में भोपाल से आगरा जा रहे दंपत्ति को भोजन के दौरान कॉकरोच दिखा तो उनकी समझ में आ गया कि यात्रियों को स्वच्छ और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने की सरकारी घोषणाएं कितनी झूठी और खोखली हैं। संबंधित विक्रेता फर्म पर जब कार्रवाई का डंडा चलाया गया तो उसने अपनी गलती की माफी मांग ली। पच्चीस-पचास हजार का जुर्माना भी भर दिया। इतना भर कर देने से सुधार और बदलाव होना होता तो कब का हो चुका होता। भारतीय रेलवे की सतत दुदर्शा नहीं बनी रहती। 

    गुजरात के महानगर अहमदाबाद में स्थित ‘देवी डोसा पैलेस’ में बड़े चाव से डोसा खाने गये दंपत्ति का भी तब सिर चकरा गया, जब उन्होंने सांभर में चूहे के मरे हुए बच्चे देखे। अहमदाबाद नगर निगम ने शिकायत मिलने पर रेस्टारेंट को सील कर दिया। खाने-पीने के शौकीनों की यही चाहत होती है कि उन्हें बेहतर खाना मिले। उनके स्वास्थ्य पर कहीं भी आंच न आए, लेकिन आजकल देखा यह जा रहा है कि कीमत तो पूरी वसूल की जाती है, लेकिन ग्राहकों को हलके और नकली खाद्य पदार्थ खिलाकर उनकी सेहत की ऐसी-तैसी की जा रही है। पिछले कुछ वर्षां से पनीर का चलन काफी बढ़ा है। अपने यहां जिस चीज़ की मांग बढ़ती है उसमें धोखाधड़ी भी शुरू हो जाती है। मिलावट खोर तेजी से सक्रिय हो जाते हैं। पनीर के साथ भी ऐसा हो रहा है। शहरों तथा ग्रामों में एनलॉग पनीर को धड़ल्ले से खपाया जाने लगा है। पाम तेल, दूध पाउडर तथा एसिड से बनने वाले यह हानिकारक पनीर मिलावटखोरों की मोटी कमायी का जरिया बन गया है। दूध से बने पनीर की कीमत जहां 400 रपये किलो है, वहीं एनालॉग पनीर 200 रुपये किलो में मिल जाता है। कई होटल, रेस्टारेंट वाले एनालॉग पनीर की सब्जी, पकौड़े आदि खिलाकर मनमानी कीमत वसूलने के साथ-साथ उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस पनीर के सेवन से जी मचलाना, चक्कर आना तथा कई बार फूड पॉइजनिंग का होना आम बात है...।

    देश के प्रदेश तमिलनाडु के शहर कल्लाकुरिची में जहरीली शराब पीने की वजह से लगभग 55 लोग चल बसे और 140 से ज्यादा लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। विषैली शराब के शिकार होने वालों में अधिकतर दिहाड़ी मजदूर थे। शराब पीने के कुछ घण्टों के बाद ही उन्हें दस्त, उल्टी, पेट दर्द  और आंखों में जलन होने लगी। मृतकों में तीन महिलाएं और एक ट्रांसजेडर भी शामिल है। पिछले दिनों देश के विभिन्न होटलों, रेस्टारेंट और रेलगाड़ियों में लगातार ऐसी जो भी घटनाएं सामने आईं उनमें संचालकों की लापरवाही देखी गयी। जब ग्राहक सामान की पूरी कीमत चुकाते हैं तो उनसे धोखाधड़ी कहां तक जायज है? मेरे कुछ पाठक मित्र सोच रहे होंगे कि मैं जीवन के लिए अति उपयोगी खाद्य पदार्थों पर बात करते-करते उस शराब को बीच में क्यों ले आया जो सेहत के लिए हानिकारक है। शराब, वैध हो या अवैध, लेकिनतो देनी ही पड़ती है। तो फिर उन्हें जहरीली शराब थमा कर उनकी जान लेने और सेहत से खिलवाड़ करने के गुनाह क्यों? 

    ड्राइ डे या अन्य कारणों से  ही पीने वाले अकसर अवैध यानी कच्ची शराब के विक्रेताओं की शरण में जाने को मजबूर होते हैं, लेकिन उनसे भरपूर कीमत वसूलने के बाद उनसे धोखाधड़ी होती है। अधिक से अधिक ग्राहकों को अपने ठिकानों तक लाने के अवैध शराब माफिया जो खेल खेलता चला आ रहा है उसकी पूरी खबर प्रशासन को भी रहती है। शराब को ज्यादा से ज्यादा नशीली बनाने के लिए नौसादर और यूरिया मिलाने वाले अपनी कमायी में कमी नहीं आने देना चाहते। भले ही लोगों की जानें जाती रहें।

Thursday, June 20, 2024

कसूर-दस्तूर

    गर्मी के मौसम में धूप की तपन अच्छे-भले इंसान को हिला कर रख देती है। बदन पसीने से तर बतर हो जाता है। ठंडा वातावरण सभी को राहत देता है। सक्षम लोग तो गर्मी में घर से बाहर निकलते ही नहीं। कूलर, पंखे और एसी की हवा सभी को नसीब नहीं। अधिकांश कर्मचारियों, श्रमिकों को गर्मी में भी खून-पसीना बहाना पड़ता है। कुदरत की गर्मी और बेतहाशा तपन को बर्दाश्त करने की मेहनतकशों को आदत हो जाती है, लेकिन वो आग जो लोहे को भी गला देती है, जब इंसानों को अपनी चपेट में ले लेती है तो उन पर क्या बीतती है, इसकी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता। जिन पर बीतती है, वहीं जान-समझ सकते हैं। नागपुर जिले के बाजारगांव में स्थित एक बारूद फैक्ट्री में 16 दिसंबर, 2023 को हुए तूफानी विस्फोट के बाद लगी आग ने 9 लोगों की जान ले ली थी। मृतकों के शरीर के परखच्चे उड़ गये थे। अंग-प्रत्यंग गायब हो गये थे। कुछ ही के जले-कटे शरीर के हिस्सों को बड़ी मुश्किल से बरामद किया जा सका था। सोलार एक्सप्लोसीव नामक इस बारूद फैक्टरी में पहले भी कई बार हुए विस्फोटों में अनेकों कर्मचारी मौत के हवाले होते रहे हैं, लेकिन मालिकों ने इसे आम घटना मानते हुए भुला दिया। देश की यह विख्यात बारूद फैक्टरी रक्षा क्षेत्र में उपयोग में आने वाले गोला-बारूद का वर्षों से निर्माण करती चली आ रही है। इसके सर्वेसर्वा की बहुत ऊपर तक पहुंच है। पिछले वर्ष विश्व विख्यात पत्रिका ‘टाइम’ में देश के जिन शीर्ष के उद्योगपतियों की सूची छपी थी उनमें उनका भी नाम था। लगभग दस हजार करोड़ की पूंजी के मालिक की संघर्ष गाथा का भी विवरण दिया गया था। हर पार्टी में पैठ रखने वाले यह महाशय चंदा देने में कोई कंजूसी नहीं करते। 6 जून, 2024 की दोपहर सोलार की ही तूफानी तर्ज पर नागपुर में ही स्थित चामुंडी एक्सप्लोसीव में विस्फोट से लगी आग से छह हंसती-खेलती जिन्दगियां तुरंत सदा-सदा के लिए चल बसीं। उसके बाद एक-एक कर तीन और श्रमिकों की दर्दनाक मौत होने की खबर आयी। इंसानियत को शर्मसार करने वाला यह सच भी सामने आया...। 

    एक तरफ धधकती आग में पुरुष और स्त्रियों के जिस्म जल कर राख हो रहे थे, वहीं प्रबंधन के जिम्मेदार चेहरे उन्हें बचाने की बजाय भागते नज़र आ रहे थे। करीब आधे घण्टे तक मौत का तांडव चलता रहा। करोड़ों रुपयों का वारा-न्यारा करने वाली कंपनी में बचाव और सुरक्षा के इंतजाम नदारद थे। मृतकों तथा घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेस तक नहीं थी। यहां तक कि अग्निरोधक यंत्रों का भी कोई अता-पता नहीं था। कंपनी ने गांव के स्थानीय लोगों को नौकरी में प्राथमिकता दी थी। पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा कार्यरत थीं। इस हादसे में जिन छह युवतियां ने जान गंवाई, उनके कई सपने थे। अपनी-अपनी इच्छाएं थीं। आग ने सब कुछ राख कर डाला। अपने पैरों पर खड़े होते-होते चल बसने वाली शीतल विवाहित थी। पति शराबी था। अपनी छह साल की बच्ची के जीवन को संवारने के लिए वह दो वर्ष से बारूद फैक्टरी में काम कर रही थी। प्रांजली की शादी होने वाली थी। कुछ ही दिनों के बाद लड़के वाले उसे देखने के लिए आने वाले थे। मां-बाप के साथ-साथ प्रांजली भी काफी खुश थी। प्राची के मां-बाप को जब पता चला कि फैक्टरी में धमाका हुआ है तो वे ईश्वर से प्राची के सकुशल होने की कामना कर रहे थे। जैसे ही उन्हें अपनी लाड़ली के नहीं रहने की जानकारी मिली तो रो-रोकर उनका बुरा हाल हो गया। मोनाली ने काम पर जाते-जाते कहा था कि आज मैं जल्दी घर आऊंगी। दोनों बहनें और माता-पिता अभी भी इस भ्रम में हैं कि मोनाली जरूर लौटेगी...। वैशाली के पिता दिव्यांग हैं। उसका एक छोटा भाई है। बहन की मौत की खबर सुनकर वह फूट-फूटकर घण्टों रोता और कहता रहा अब मुझे राखी कौन बांधेगा। एक साथ पांच युवतियों तथा एक युवक को सदा-सदा के लिए खोने वाले गांव धामना में एक ही समय छह आर्थियां उठीं। सभी ने उन्हें नम आंखों से विदायी दी। शाम को गांव के श्मशानघाट पर जब मृतकों का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब अचानक बादल गरजने लगे। देखते ही देखते ऐसे पानी बरसने लगा जैसे आसमान भी बिलख-बिलख कर रो रहा हो। उस दिन पूरे गांव में किसी के घर चूल्हा नहीं जला। गांव के चप्पे-चप्पे पर बस सन्नाटा ही सन्नाटा था...। रोजी-रोटी की तलाश जरूरतमंदों को शहर प्रदेश के साथ-साथ विदेशों तक खींच ले जाती है। अपने देश में नौकरी और रोजगार की कमी के चलते अनेकों भारतीयों को लगता है कि दूसरे देश उनके सपनों में रंग भर सकते हैं, लेकिन इच्छाएं और सपने हमेशा साकार नहीं होते। ऐसा ही हुआ उन भारतीयों के साथ, जो हजारों मील दूर कुवैत में धन कमाने गये थे, लेकिन नियति ने उनका जो हश्र कर डाला, उसे उनके परिजन तो इस जीवन में नहीं भूल पायेंगे। कुवैत के अल-मंगफ इलाके में प्रवासी मेहनतकशों के आवास वाली इमारत में भीषण आग लगने से 49 लोगों की जानें चली गईं। जिनमें से 45 भारतीय थे। अधिकांश लोगों की मौत झुलसने और दम घुटने से हुई। यहां भी लालच और लापरवाही का आलम यह था कि जिस कमरे में वे रहते थे वहां पर सुरक्षा का नितांत अभाव था। हर तरफ कागज और प्लास्टिक का अंबार लगा था। छोटे से कमरे में अधिक से अधिक कामगारों को रखा जा सके, इसके लिए प्लास्टिक जैसे ज्वलनशील पदार्थ से पार्टीशन किया गया था। इमारत के भूतल पर दो दर्जन से ज्यादा गैस सिलेंडर रखे हुए थे। जब शार्ट सर्किट के कारण एकाएक आग की लपटें उठने लगीं तो कर्मचारी बेबस थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। छत पर ताला लगा था। इस आग ने बेहतर भविष्य के लिए परदेस गये इंजीनियर, सुपरवाइजर, ड्राइवर तथा अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले परिश्रमी भारतीयों को एकाएक लील कर कई घरों में अंधेरा कर दिया। जिनके चिराग वापस नहीं लौटे उनका रो-रो कर बुरा हाल है। किसी के रिश्ते की बात चल रही थी, किसी को घर बनाना था, कोई यह ठान कर गया था कि भरपूर धन जमा कर जब लौटेगा तो बहन की धूमधाम से शादी करेगा। यह लोग जब अपने सपनों में रंग भरने के लिए देश छोड़ कुवैत जा रहे थे तब उनके परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों ने मिठाइयां बांटी थी। उन्हें क्या पता था कि कुछ भी नहीं बचेगा। इस अग्निकांड ने उन्हें जो दर्द और मलाल दिया है, वह तो उम्र भर साथ रहने वाला है। गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम्स जोन में हंसते-खेलते 12 बच्चों समेत 8 लोेग अग्निकांड का शिकार होकर मौत का निवाला बन गए। छोटे-छोटे बच्चे वीडियो गेम के साथ अन्य खेलों का आनंद ले रहे थे तभी अचानक शार्ट सर्किट से जो आग लगी वह देखते ही देखते भयंकर हो गई। आग से फाइबर का अस्थायी ढांचा गिर गया। गेमिंग जोन के अंदर बहुत सारे टायर भरे पड़े थे। बाहर निकलने का मात्र एक ही रास्ता था। भीषण आग का धुंआ कई किलोमीटर तक दिखाई दे रहा था। अपने देश में तो ऐसे अग्निकांडों को हादसा कह कर आया-गया करने की साजिशें की जाती हैं। जिन पर देख-रेख और व्यवस्था का जिम्मा है वे अंधे-बहरे बने रहते हैं। जब भी कोई मौत-कांड होता है तब उनकी दिखावे की संवेदनाएं जोर मारती हैं। मंत्री, नेता, अधिकारी मुआवजे के चेक के साथ बिलखते परिवारों को तसल्ली देते नज़र आते हैं। यह दस्तूर वर्षों से चला आ रहा है...।

Thursday, June 13, 2024

खरी-खरी

    इस बार के लोकसभा चुनावों के नतीजे कितना कुछ कह गये। नादान भले ही अनदेखी करें, लेकिन समझदारों की आंखे खुल गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया था। विपक्ष ने भी जी तोड़ पसीना बहाया, लेकिन देश के सजग मतदाताओं ने उन्हें जिस परिणाम से रूबरू करवाया उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सबल साथी इस बार 400 पार के नारे को गुंजायमान करते रहे तो वहीं विपक्ष का इंडिया गठबंधन इसकी हवा निकालने के लिए कमर कसे रहा। लड़ाई वाकई बड़ी जबरदस्त थी। देश के अधिकांश मीडिया ने भी एनडीए के 400 पार और भाजपा के 370 पार के दावों को सही साबित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। उसके ओपिनियन पोल से लेकर एक्जिट पोल तक में इंडिया गठबंधन फिसड्डी और बलहीन था, लेकिन चुनाव परिणामों ने तो जैसे खलबली मचा दी। इस चुनाव को मोदी ने अपने नाम पर लड़ा। उनकी गारंटी उतनी असरकारी नहीं रही, जितनी की उन्हें उम्मीद थी। भारतीय मतदाता के मन को थाह पाना कभी भी आसान नहीं रहा। प्रधानमंत्री अपनी ही बनारस सीट से उतने मतों से नहीं जीत पाए, जितने का धुआंधार प्रचार किया जा रहा था। बनारस में यह नारा भी बड़ी दमदारी के साथ उछाला गया कि अबकी बार दस लाख पार, लेकिन नरेंद्र मोदी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी से लगभग डेढ़ लाख मतों से ही विजयी हो पाए। जिस राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मुद्दे पर भाजपा हवा में उड़ रही थी उसकी भी मतदाताओं ने हवा निकाल दी। पांच सौ साल बाद प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। सभी भारतीयों के लिए यह गर्व की बात है, लेकिन यहीं से भाजपा का हारना पूरी दुनिया को अचंभे में डाल गया। कुछ गुस्साये लोगों ने वहां के मतदाताओं को गद्दार के साथ-साथ अहसान फरामोश करार दे दिया, जिनकी राम मंदिर तथा श्रीराम के प्रति कोई आस्था नहीं। अयोध्या वासियों पर  अपना तेजाबी क्रोध दर्शाने वालों को अब कौन बताये कि रोजी-रोटी के लिए दिन-रात संघर्ष करने वालों के लिए पूजा-पाठ ही सबकुछ नहीं। उनकी और भी कई चिंताएं और तकलीफें हैं। भारतीय वोटर को प्रजातंत्र का भरपूर मान-सम्मान करना आता है। हर पूजा स्थल पर उसका मस्तक झुक जाता है। वह वहीं से शक्ति भी पाता है। फिर राम तो जन-जन के आराध्य हैं...।

    भाजपा को अनुमान से कम वोटों का मिलना यह भी बताता है कि सजग मतदाता हिंदू-मुस्लिम विभाजन की राजनीति से तंग आ चुके हैं। उन्हें धार्मिक भावनाओं से बार-बार खिलवाड़ पसंद नहीं। डराने और चिंतित करने वाली सच्चाई तो ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृत पाल सिंह की चुनावी जीत है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत असम जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृत पाल सिंह का लोकसभा चुनाव जीतना कट्टरपंथियों के उभरने और ताकतवर होने का प्रमाण है। अमृत पाल के विजयी होने के पश्चात उसकी मां ने कहा कि, लोकसभा चुनाव में मेरे बेटे की जीत मारे गये खालिस्तानियों को समर्पित है। बॉलीवुड अभिनेत्री, नवनिर्वाचित सांसद कंगना रानौत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर महिला सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर ने थप्पड़ जड़ दिया। यह थप्पड़ बाज सिरफिरी महिला सांसद कंगना के किसान आंदोलन के समय दिये गये बयान से नाराज और असहमत थी। इस बयान में कहा गया था कि धरने पर बैठने वाली महिलाएं सौ-सौ रुपये के लालच में आंदोलन में शामिल हुई थी। कुलविंदर की मां भी तब किसान आंदोलन के धरने में शामिल होती थी। इसलिए कुलविंदर ने थप्पड़ जड़ कर अपना गुस्सा उतारा। कुछ लोगों ने एयरपोर्ट जैसे संवेदनशील स्थल पर तैनात सुरक्षा कर्मी की इस शैतानी हरकत को सही ठहराने के लिए खुद को हद से नीचे गिरा दिया। इस शर्मनाक थप्पड़ कांड पर जिन बुद्धिजीवियों ने तालियां बजायीं, उन्हीं ने कभी ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार की भी पीठ थपथपायी थी। चुनाव दर चुनाव मात खाते आ रहे कन्हैया कुमार का हश्र आज पूरा देश देख रहा है। जिन्हें लोकतंत्र और जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना नहीं आता वे कभी भी देश के लिए खतरा बन सकते हैं। अतिवादी सोच और आतंकवाद के बीच जो महीनतम रेखा है, उसे मिटने में ज्यादा देरी नहीं लगती। 

    नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार विशाल भारत की कमान संभाल ली है। उनका फिर से प्रधानमंत्री बनना विपक्ष को शूल की तरह चुभा है। यह भी सच है कि देश के विपक्ष में उनकी टक्कर का फिलहाल दूर-दूर तक और कोई चेहरा नहीं। मतदाताओं ने थोड़ा बहुमत से नीचे लाकर भाजपा और नरेंद्र मोदी को सावधान होने का संदेश और सबक दे दिया है। इस देश का आम से आम आदमी भी हिंदू-मुस्लिम के बीच वैमनस्य और झगड़े नहीं चाहता। वह नफरत का नहीं, आपसी भाईचारे का पक्षधर है। इस बार के लोकसभा में मतदान करते वक्त वह भूला नहीं था कि देश के जन-जन के चहुंमुखी विकास के वादे की बदौलत सत्ता पाने वाले हुक्मरान सत्ता पर काबिज होने के बाद बुनियादी मुद्दों को विस्मृत कर विभाजनकारी की राजनीति करते रहे। वोटों के लिए राम मंदिर को भुनाने वालों को बुलडोजर तो याद रहा, लेकिन गरीबों को छत और बेरोजगारों को रोजगार देना भूल गए। धन्नासेठों के तो करोड़ों-अरबों रुपये बार-बार माफ किये, लेकिन किसानों के तीस-चालीस हजार रुपये बैंक कर्जे को माफ करने में आनाकानी करते रहे। मेट्रो, पुल और सड़कों का जाल बिछाने वाले यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई पर भी ध्यान देते, रोजगार और नौकरियों के लिए कारखानों का निर्माण करते तो मतदाता उनकी झोली में वोट डालने में कंजूसी नहीं करते। तमाम अटकलों, अवरोधों के बाद अब जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए सरकार बन चुकी है। विपक्ष भले ही बेकद्री करता रहे, लेकिन नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत ने पूरी दुनिया में उनका कद बढ़ाया है। गठबंधन सरकार के सक्षम नेता से अब सभी भारतीय वास्तविक विकास और बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। नए रोजगार के साथ-साथ गांव, गरीब और किसान की खुशहाली की मांग कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी के लिए यह अंतिम मौका है। इसमें उनकी संपूर्ण प्रतिष्ठा दांव पर लगी है...।

Thursday, June 6, 2024

विडम्बना

    लगता है, कोई फिल्म देख रहे हैं। शराब, कबाब, शबाब, मारधाड़ के साथ-साथ अजब-गजब नाटक-नौटंकी। नायक और खलनायक एक ही रंग में। पुलिस है तो असली, लेकिन नकली का भ्रम होता है। फुर्तीले अपराधियों के समक्ष बेबस और नत-मस्तक। कारण कई हैं। ऐसा भी नहीं कि सारे वर्दीधारी एक जैसे हैं। कुछ कर्मठ भी हैं। किसी भी कीमत पर नहीं बिकते। कर्तव्य उनके लिए सर्वोपरि है। किशोर तथा युवा अपराध करने के कीर्तिमान बना रहे हैं। कानून का सम्मान करना उन्होंने सीखा ही नहीं। औलादों के प्रति अपने फर्ज को निभाने में माता-पिता तथा अन्य परिजन भी कहीं-कहीं फिसड्डी साबित हो रहे हैं। गरीबों के बच्चों को उनकी परिस्थितियां पतन के मार्ग पर ले जा रही हैं, लेकिन अमीरों की अधिकांश संतानें सुख-सुविधाओं का दुरुपयोग कर संगीन अपराधी बन रही हैं। पति-पत्नी मॉडर्न कहलाने के चक्कर में क्लबों, फाईव स्टार होटलों में संग-संग नाचते गाते हैं। स्कॉच, वोदका के कई-कई पैग हलक में धकेल कर मदमस्त हो जाते हैं। उन्हें इसी रंगीनी में खुशी और संतुष्टि मिलती है। उनके माथे पर तब भी कोई शिकन नहीं आती, जब वे अपनी आलीशान कार से किसी की हत्या कर गुजरते हैं। उनके लिए तो यह नशे में हुई भूल है, लेकिन वो तो जीते-जी मर जाते हैं, जिनके बेटे-बेटियां बेकाबू रफ्तार के शिकार होकर सदा-सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। धन्नासेठों की बिगड़ी औलादों का शराब पीकर बहकना कोई नयी बात नहीं। यह सच भी बेपर्दा हो चुका है कि बिगड़े रईसों की बेटे-बेटियां अपने बाप-दादा के पद चिन्हों पर चलने में देरी नहीं लगातीं। बाप-दादा भी उनके शैतानी रंग-ढंग को देखकर कोई चिन्ता-फिक्र नहीं करते। उनके होश तो तब ठिकाने आते हैं, जब उन्हें अपने बिगड़ैल बच्चों के कारण शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। कभी-कभी तो जेल भी जाना पड़ता है।

    सरकारें भी जनहित कम, स्वहित की ज्यादा चिंता रहती है। शहरों, गांवों में शराब की दुकानें खुलवा कर लोगों को नशे का गुलाम बनाने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। देश के अधिकांश महानगर तो नशे के सौदागरों के हाथों का खिलौना बन कर रह गये हैं। पाठकों को यह जानकर हैरानी होगी कि लगभग तीस लाख की जनसंख्या वाले शहर नागपुर में 375 से ज्यादा बार, पब और रंगारंग रेस्टारेंट हैं। कई बार और पब अपराधों के ठिकाने बन चुके हैं। जहां नशे में हत्याएं किए जाने की खबरें अक्सर सुनने में आती हैं। इन खतरनाक ठिकानों पर नाबालिगों को शराब के साथ सभी तरह के मादक पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस शहर में क्लबों की भी भरमार है। जहां रईसों की महफिलें सजती हैं। पुरुषों के संग महिलाएं भी शराब के नशे में डुबकियां लगाती हैं। इन क्लबों की मेंबरशिप के लिए लाखों रुपये देने पड़ते हैं। आम आदमी इनका मेंबर बनने का सपना भी नहीं देख सकता। नशा किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। उसके लिए स्त्री और पुरुष एक बराबर हैं। 

    बीते महीने शहर के नामी क्लब में दो रईस महिलाओं ने भरपूर नशा होने तक कई पैग शराब पी। लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ बाहर निकलने के बाद अपनी मर्सीडीज को तूफानी रफ्तार से सड़क पर दौड़ाया, जैसे हवा में उड़ रही हों। उन्हें मोटर साइकिल तथा पैदल चलने वाले लोग कीड़े-मकोड़े से लग रहे थे। इसी नशे की धुन में महिला कार चालक ने दो मोटर साइकिल सवारों को कार के पहियों से रौंद डाला। घटना के छह घण्टे के बाद शराबी महिला की मेडिकल जांच की गई। उस समय भी शराब की गंध आ रही थी। उसके बोलने का अंदाज भी अत्यंत आपत्तिजनक था। दरअसल वह नहीं, उसका पैसा बोल रहा था। दो युवकों की जान लेने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। मसीर्र्डीज की टूटी-फूटी हालत चीख-चीख कर नशेड़ी महिला की अंधी लापरवाही की हकीकत को बयां कर रही थी। मर्सीडिज की नेम प्लेट भी गायब थी। इस हत्यारी महिला को बचाने के लिए उनके परिजनों ने कई तरह के दांव पेंच आजमाये। कोर्ट से जमानत दिलवाने के लिए महंगे वकीलों की फौज तैनात कर लाखों रुपये फूंक दिए। फिर भी उनकी दाल नहीं गल पाई। कोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया। 

    पुणे में नशे में धुत होकर युवक-युवती को अपनी कार से रौंदने वाले नाबालिग को बचाने के लिए अस्पताल के धनलोलुप डॉक्टर ऐसे बिक गए, जैसे यही होना कर्म और धर्म रहा हो। अपने शराबी बेटे को बचाने के लिए पिता और दादा ने पहले अपने ड्राइवर को फांसने की चालें चलीं। वह यह दिखाना चाहता था कि जब कार ने दो जानें लीं, तब कार नाबालिग नहीं, ड्राइवर चला रहा था। जब यहां दाल नहीं गली तब मां की ममता ने जबरदस्त जोर मारा।

    नाबालिग के बाप-दादा की तर्ज पर उसने भी अपने नशेड़ी बेटे को बचाने के लिए कानून की आंखों में धूल झोंकने की ठानी। डॉक्टरी जांच में बेटा शराबी साबित न हो इसके लिए उसने अपने ब्लड सैंपल को बेटे के ब्लड सैंपल में बदल कर शराब पीकर एक्सीडेंट करने वाले हत्यारे बेटे को बचाने का जी-तोड़ प्रयास किया, लेकिन पुलिस को चकमा देने की चाल की दाल नहीं गल पायी। देश का केंद्र बिंदु है, शहर नागपुर। यहां नये-नये प्रयोग होते रहते हैं। नेता, कवि, व्यंग्यकार, पत्रकार, संपादक तरह-तरह के करिश्मों से देश और दुनिया को चौंकाते रहते हैं। यहां की पुलिस भी इस कलाकारी में खासी पारंगत है। प्रदेश और शहर में शराब पीकर वाहन चलाने वालों की बढ़ती संख्या से हैरान-परेशान नागपुर की पुलिस ने शहर के बार, पब, लाउंज और रेस्टारेंट का बारीकी से निरीक्षण करने का मन बनाया। डीएसपी, एसपी ने जब सादे लिबास में विवादित बार, पब, होटल में चुपके-चुपके दस्तक दी तो आधी रात को नाबालिग लड़के, लड़कियों को भी बीयर, शराब तथा नशीले हुक्के के कश लगाते पाया। पुलिस अधिकारियों को यह नज़ारा हतप्रभ (?) कर गया। यह भी पता चला है कि पूरे महाराष्ट्र में नाबालिगों को शराब से दूर रखने के लिए शीघ्र ही पबों तथा बारों पर नजर रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तकनीक के जरिए सभी पबों और बारों में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन को अब सीधे हर जिले के एसपी दफ्तर से जोड़ा जायेगा। किसी पब या बार के देरी तक चलने, नियम का उल्लंघन करने पर उसका अलार्म एसपी, डिविजनल एसपी तथा कमिश्नर के मोबाइल पर बजेगा और इसके तुरंत बाद कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।