Thursday, June 20, 2024

कसूर-दस्तूर

    गर्मी के मौसम में धूप की तपन अच्छे-भले इंसान को हिला कर रख देती है। बदन पसीने से तर बतर हो जाता है। ठंडा वातावरण सभी को राहत देता है। सक्षम लोग तो गर्मी में घर से बाहर निकलते ही नहीं। कूलर, पंखे और एसी की हवा सभी को नसीब नहीं। अधिकांश कर्मचारियों, श्रमिकों को गर्मी में भी खून-पसीना बहाना पड़ता है। कुदरत की गर्मी और बेतहाशा तपन को बर्दाश्त करने की मेहनतकशों को आदत हो जाती है, लेकिन वो आग जो लोहे को भी गला देती है, जब इंसानों को अपनी चपेट में ले लेती है तो उन पर क्या बीतती है, इसकी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता। जिन पर बीतती है, वहीं जान-समझ सकते हैं। नागपुर जिले के बाजारगांव में स्थित एक बारूद फैक्ट्री में 16 दिसंबर, 2023 को हुए तूफानी विस्फोट के बाद लगी आग ने 9 लोगों की जान ले ली थी। मृतकों के शरीर के परखच्चे उड़ गये थे। अंग-प्रत्यंग गायब हो गये थे। कुछ ही के जले-कटे शरीर के हिस्सों को बड़ी मुश्किल से बरामद किया जा सका था। सोलार एक्सप्लोसीव नामक इस बारूद फैक्टरी में पहले भी कई बार हुए विस्फोटों में अनेकों कर्मचारी मौत के हवाले होते रहे हैं, लेकिन मालिकों ने इसे आम घटना मानते हुए भुला दिया। देश की यह विख्यात बारूद फैक्टरी रक्षा क्षेत्र में उपयोग में आने वाले गोला-बारूद का वर्षों से निर्माण करती चली आ रही है। इसके सर्वेसर्वा की बहुत ऊपर तक पहुंच है। पिछले वर्ष विश्व विख्यात पत्रिका ‘टाइम’ में देश के जिन शीर्ष के उद्योगपतियों की सूची छपी थी उनमें उनका भी नाम था। लगभग दस हजार करोड़ की पूंजी के मालिक की संघर्ष गाथा का भी विवरण दिया गया था। हर पार्टी में पैठ रखने वाले यह महाशय चंदा देने में कोई कंजूसी नहीं करते। 6 जून, 2024 की दोपहर सोलार की ही तूफानी तर्ज पर नागपुर में ही स्थित चामुंडी एक्सप्लोसीव में विस्फोट से लगी आग से छह हंसती-खेलती जिन्दगियां तुरंत सदा-सदा के लिए चल बसीं। उसके बाद एक-एक कर तीन और श्रमिकों की दर्दनाक मौत होने की खबर आयी। इंसानियत को शर्मसार करने वाला यह सच भी सामने आया...। 

    एक तरफ धधकती आग में पुरुष और स्त्रियों के जिस्म जल कर राख हो रहे थे, वहीं प्रबंधन के जिम्मेदार चेहरे उन्हें बचाने की बजाय भागते नज़र आ रहे थे। करीब आधे घण्टे तक मौत का तांडव चलता रहा। करोड़ों रुपयों का वारा-न्यारा करने वाली कंपनी में बचाव और सुरक्षा के इंतजाम नदारद थे। मृतकों तथा घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेस तक नहीं थी। यहां तक कि अग्निरोधक यंत्रों का भी कोई अता-पता नहीं था। कंपनी ने गांव के स्थानीय लोगों को नौकरी में प्राथमिकता दी थी। पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा कार्यरत थीं। इस हादसे में जिन छह युवतियां ने जान गंवाई, उनके कई सपने थे। अपनी-अपनी इच्छाएं थीं। आग ने सब कुछ राख कर डाला। अपने पैरों पर खड़े होते-होते चल बसने वाली शीतल विवाहित थी। पति शराबी था। अपनी छह साल की बच्ची के जीवन को संवारने के लिए वह दो वर्ष से बारूद फैक्टरी में काम कर रही थी। प्रांजली की शादी होने वाली थी। कुछ ही दिनों के बाद लड़के वाले उसे देखने के लिए आने वाले थे। मां-बाप के साथ-साथ प्रांजली भी काफी खुश थी। प्राची के मां-बाप को जब पता चला कि फैक्टरी में धमाका हुआ है तो वे ईश्वर से प्राची के सकुशल होने की कामना कर रहे थे। जैसे ही उन्हें अपनी लाड़ली के नहीं रहने की जानकारी मिली तो रो-रोकर उनका बुरा हाल हो गया। मोनाली ने काम पर जाते-जाते कहा था कि आज मैं जल्दी घर आऊंगी। दोनों बहनें और माता-पिता अभी भी इस भ्रम में हैं कि मोनाली जरूर लौटेगी...। वैशाली के पिता दिव्यांग हैं। उसका एक छोटा भाई है। बहन की मौत की खबर सुनकर वह फूट-फूटकर घण्टों रोता और कहता रहा अब मुझे राखी कौन बांधेगा। एक साथ पांच युवतियों तथा एक युवक को सदा-सदा के लिए खोने वाले गांव धामना में एक ही समय छह आर्थियां उठीं। सभी ने उन्हें नम आंखों से विदायी दी। शाम को गांव के श्मशानघाट पर जब मृतकों का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब अचानक बादल गरजने लगे। देखते ही देखते ऐसे पानी बरसने लगा जैसे आसमान भी बिलख-बिलख कर रो रहा हो। उस दिन पूरे गांव में किसी के घर चूल्हा नहीं जला। गांव के चप्पे-चप्पे पर बस सन्नाटा ही सन्नाटा था...। रोजी-रोटी की तलाश जरूरतमंदों को शहर प्रदेश के साथ-साथ विदेशों तक खींच ले जाती है। अपने देश में नौकरी और रोजगार की कमी के चलते अनेकों भारतीयों को लगता है कि दूसरे देश उनके सपनों में रंग भर सकते हैं, लेकिन इच्छाएं और सपने हमेशा साकार नहीं होते। ऐसा ही हुआ उन भारतीयों के साथ, जो हजारों मील दूर कुवैत में धन कमाने गये थे, लेकिन नियति ने उनका जो हश्र कर डाला, उसे उनके परिजन तो इस जीवन में नहीं भूल पायेंगे। कुवैत के अल-मंगफ इलाके में प्रवासी मेहनतकशों के आवास वाली इमारत में भीषण आग लगने से 49 लोगों की जानें चली गईं। जिनमें से 45 भारतीय थे। अधिकांश लोगों की मौत झुलसने और दम घुटने से हुई। यहां भी लालच और लापरवाही का आलम यह था कि जिस कमरे में वे रहते थे वहां पर सुरक्षा का नितांत अभाव था। हर तरफ कागज और प्लास्टिक का अंबार लगा था। छोटे से कमरे में अधिक से अधिक कामगारों को रखा जा सके, इसके लिए प्लास्टिक जैसे ज्वलनशील पदार्थ से पार्टीशन किया गया था। इमारत के भूतल पर दो दर्जन से ज्यादा गैस सिलेंडर रखे हुए थे। जब शार्ट सर्किट के कारण एकाएक आग की लपटें उठने लगीं तो कर्मचारी बेबस थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। छत पर ताला लगा था। इस आग ने बेहतर भविष्य के लिए परदेस गये इंजीनियर, सुपरवाइजर, ड्राइवर तथा अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले परिश्रमी भारतीयों को एकाएक लील कर कई घरों में अंधेरा कर दिया। जिनके चिराग वापस नहीं लौटे उनका रो-रो कर बुरा हाल है। किसी के रिश्ते की बात चल रही थी, किसी को घर बनाना था, कोई यह ठान कर गया था कि भरपूर धन जमा कर जब लौटेगा तो बहन की धूमधाम से शादी करेगा। यह लोग जब अपने सपनों में रंग भरने के लिए देश छोड़ कुवैत जा रहे थे तब उनके परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों ने मिठाइयां बांटी थी। उन्हें क्या पता था कि कुछ भी नहीं बचेगा। इस अग्निकांड ने उन्हें जो दर्द और मलाल दिया है, वह तो उम्र भर साथ रहने वाला है। गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम्स जोन में हंसते-खेलते 12 बच्चों समेत 8 लोेग अग्निकांड का शिकार होकर मौत का निवाला बन गए। छोटे-छोटे बच्चे वीडियो गेम के साथ अन्य खेलों का आनंद ले रहे थे तभी अचानक शार्ट सर्किट से जो आग लगी वह देखते ही देखते भयंकर हो गई। आग से फाइबर का अस्थायी ढांचा गिर गया। गेमिंग जोन के अंदर बहुत सारे टायर भरे पड़े थे। बाहर निकलने का मात्र एक ही रास्ता था। भीषण आग का धुंआ कई किलोमीटर तक दिखाई दे रहा था। अपने देश में तो ऐसे अग्निकांडों को हादसा कह कर आया-गया करने की साजिशें की जाती हैं। जिन पर देख-रेख और व्यवस्था का जिम्मा है वे अंधे-बहरे बने रहते हैं। जब भी कोई मौत-कांड होता है तब उनकी दिखावे की संवेदनाएं जोर मारती हैं। मंत्री, नेता, अधिकारी मुआवजे के चेक के साथ बिलखते परिवारों को तसल्ली देते नज़र आते हैं। यह दस्तूर वर्षों से चला आ रहा है...।

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