Thursday, November 28, 2024

मानो या न मानो

    कई लोग मानते हैं कि यह धनयुग है। हर समस्या के समाधान के लिए इफरात पैसा चाहिए। जिनके पास धन का अभाव  रहता है, उनका जीवन निरर्थक है। दुनियाभर की बीमारियों, पीड़ाओं, चिंताओं और तनावों से उन्हें जूझते रहना पड़ता है। धनवान बड़े से बड़े अस्पताल में किसी भी जानलेवा बीमारी से मुक्ति पा सकते हैं। धनहीन के लिए घुट-घुट कर मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचता। ऐसा सोचने वाले लोगों को जरा इन ताजा खबरों पर भी गौर कर लेना चाहिए...

    भारत की विख्यात शख्सियत हरफनमौला नवजोत सिंह सिद्धू के नाम और काम से अधिकांश लोग वाकिफ हैं। कुछ दिन पूर्व सिद्धू ने अमृतसर स्थित अपने आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया कि, उनकी पत्नी, पूर्व विधायक नवजोत कौर ने स्टेज 4 के कैंसर को किस तरह से मात्र 40 दिन में नींबू पानी, कच्ची हल्दी, तुलसी और नीम के पत्तों आदि से मात देने में सफलता पायी। पूर्व क्रिकेटर और सांसद नवजोत सिंह सिद्धू यह कहते हुए अत्यंत भावुक हो गए कि, तमाम डॉक्टरों ने कह दिया था कि नवजोत कौर चंद दिनों की मेहमान हैं। उनके बचने की उम्मीद करना व्यर्थ है। खुद नवजोत कौर भी अत्यंत चिंतित और घबराई-घबराई रहती थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने मनोबल का दामन थामे रखा और बड़ी बहादुरी के साथ कैंसर से संघर्ष करती रहीं। 

    सिद्धू ने इस बात पर बार-बार जोर दिया कि उन्होंने कैंसर को इसलिए नहीं हराया, क्योंकि वे साधन संपन्न थे। दरअसल, एकमात्र वास्तविक सच यही है कि अनुशासित जीवनशैली को अपनाने से ही यह चमत्कार संभव हो पाया। उनका साथ देने के लिए मैंने भी अपने खान-पान की दिनचर्या को उन्हीं के अनुरूप खुशी-खुशी ढाल लिया था। नींबू पानी, कच्ची हल्दी, नीम के पत्ते, तुलसी व सेब के साथ-साथ कद्दू, अनार, आंवला, चुकंदर तथा अखरोट जैसे खट्टे फल और जूस उनकी डाइट और इलाज का प्रबल हिस्सा रहे। उन्होंने एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटीक कैंसर फूड्स भी खाये, जिसमें खाना पकाने के लिए नारियल तेल या बादाम के तेल का इस्तेमाल किया जाता था। कैंसर से बचाव और सदैव स्वस्थ रहने के लिए अपने खान-पान में बदलाव लाने का संदेश देनेवाले सिद्धू ने बताया कि, उन्होंने जब सुबह की चाय की जगह दालचीनी, लौंग, काली मिर्च, छोटी इलायची उबालकर थोड़ा सा गुड़ मिलाकर पीना शुरू किया, तो उनके जिस्म में पहले की तुलना में काफी अधिक चुस्ती-फुर्ती के साथ-साथ वास्तविक प्रसन्नता और संतुष्टि का संचार होता चला गया। मात्र कुछ हफ्तों में ही पच्चीस किलो वजन कम होने तथा फैटी लीवर को मात देने से वे खुद को पच्चीस-तीस वर्ष का युवा महसूस करने लगे हैं।

    उनके चेहरे पर चमक आ गई है। जिस किसी को भी खुद को चुस्त-दुरूस्त करना है तथा अपना मोटापा खत्म करना है, उसके लिए यह नाममात्र की कीमत वाला नुस्खा अत्यंत उपयोगी है। यह भी ध्यान रहे कि कैंसर एसिडिक चीजों से पनपता है। पैक फूड अत्यंत हानिकारक हैं। बाजार में बिकने वाला अधिकतर पनीर और दूध नकली है।

    अपनी अर्धांगिनी को कैंसर के  घातक जबड़ों से बाहर  खींचकर लाने वाले सच्चे पत्नी प्रेमी नवजोत सिंह सिद्धू के बताए इलाज के प्रति अधिकांश डॉक्टरों ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि, कैंसर जैसी भयावह बीमारी पर कीमोथेरेपी, सर्जरी या रेडिएशन  के अलावा और कोई जादुई  फार्मूला काम नहीं कर सकता। कैंसर के विशेषज्ञों ने तो उन पर सनसनी फैलाने तथा लोगों को गुमराह करने के आरोप जड़ने में भी देरी नहीं की। इलाज की कौन सी विधि सही है, कौन सी गलत इस चक्कर में न पड़ते हुए इस कलमकार का तो यही मानना है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने अनुभवों को उजागर कर कोई  अपराध नहीं किया है। जिन्हें उनके आजमाए नुस्खे का अनुसरण करना है, वे जरूर  करें, जिन्हें नहीं करना उनके लिए आलीशान अस्पतालों और लाखों रुपयों की फीस लेने वाले डॉक्टरों की कहीं कोई कमी नहीं है। सहज, सरल उपलब्ध इन नुस्खों  से न तो किसी की जेब कटने वाली है और ना ही किसी तरह का शारीरिक नुकसान होने वाला है। 

    आज के समय में असंख्य लोग तनाव, उत्तेजना, उदासी, हताशा और निराशा की गिरफ्त में हैं। इन लक्षणों को भी रोग ही माना जाता है, जिसके इलाज के लिए ‘फाइव स्टार’ तथा ‘सेवन स्टार’ हॉस्पिटल तथा डॉक्टर हैं, जिनकी मुंह मांगी फीस को चुकाने में अच्छे-अच्छों का पसीना छूट जाता है। कुछ दिन पूर्व अखबारों में खबर पढ़ने में आयी कि ब्रिटेन में उदासी, अकेलापन, हताशा, निराशा जैसी बीमारियों का  इलाज दवाओं से नहीं, कविताओं से हो रहा है। इसके लिए  बाकायदा पोएम फार्मेसी खुल चुकी हैं। जहां पर अकेलापन और तनाव जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोग आकर कविताओं की किताबें पढ़ते हैं, एक-दूसरे को सुनाते हैं। कई युवा कविताएं लिखते और एक-दूसरे को सुनाकर रिश्ते बनाते हैं। अपनी तकलीफों और परेशानियों को कविताओं के जरिए एक-दूसरे को साझा करने से उनके चेहरे खिल जाते हैं और तनाव, अकेलापन धीरे-धीरे फुर्र होने लगता है। पोएम फार्मेसी के संस्थापकों का कहना है, कविता एक ऐसी कला है, जो मन की सर्वोच्च अवस्था में विकसित होती है, फिर चाहे वह अवस्था खुशी की हो या दुख-उदासी-दर्द की। कविताएं ट्रामा से बाहर निकाल सकती हैं। पोएम फार्मेसी में कविताओं के अलावा दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान की पुस्तकें भी रखी रहती हैं। वहां टेबलों पर रखी बोतलों पर भी ऐसी कविताएं  अंकित हैं, जो सोये...खोये मनोबल को तेजी से जगाती हैं। यह भी गौरतलब है कि, समय-समय पर वहां अनुभवी, जिंदादिल बुजुर्ग कवि, लेखक आते हैं, जो निराशा और तनाव से छुटकारा पाने के विभिन्न मार्ग सुझाने वाली कविताओं का पाठ करते हैं। उन्हें सुनने वालों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है...।

Thursday, November 21, 2024

रिश्वत...सौगात...सत्ता

    सन 2024 के नवंबर माह में संपन्न हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों को अनेक कारणों से याद रखा जाएगा। मतदाताओं को असंमजस में डालने वाला ऐसा जटिल चुनाव पहले कभी देखने में नहीं आया। वैसे तो हर चुनाव प्रत्याशियों की धड़कन बढ़ाने वाला होता है, लेकिन इस बार के चुनाव ने उनकी रातों की नींद ही उड़ा दी। लगातार चुनाव जीतते चले आ रहे नेताओं के विश्वास को भी डगमगाने वाले इस बार के विधानसभा चुनाव में भाषा, मर्यादा, शिष्टाचार और उसूलों को पूरी तरह से ताक पर रख दिया गया। महंगाई और बेरोजगारी का खात्मा करने की गारंटी देने की बजाय मतदाताओं को खरीदने के लिए ऊंची से ऊंची कीमत, सौगात और प्रलोभनों की झड़ी लगा दी गई। छाती तानकर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणाएं करते सभी राजनीतिक दलों तथा नेताओं ने अपनी अक्ल को तो जैसे किसी घने जंगल में चरने के लिए भेज दिया। किसी ने बटेंगे तो कटेंगे का भय दिखाया तो किसी ने कुत्ता बनाने के शर्मनाक बोलवचन उगलकर अपनी भड़ास निकाली। जिन्हें अमन-शांति का पैगाम देना चाहिए था, वो झूम-झूम कर नफरती ढोल बजाते नजर आए, मोहब्बत की दुकान वालों ने भी खूब विष उगला और एकतरफा सोच के साथ सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण का राग अलापा।

    प्रदेश की महिलाओं के वोटों के लिए  पहले भारतीय जनता पार्टी ने लाडली बहन योजना का जाल फेंकते हुए हर महीने 1500 रुपए देने की घोषणा कर उसे अमली जामा भी पहनाया। मध्यप्रदेश में लाडली बहनों की बदौलत भाजपा ने विधानसभा चुनाव में विजय का सेहरा पहना था। इसी सफलता ने भाजपा को महाराष्ट्र में भी लाडली योजना को लाने के लिए प्रेरित किया। उत्साही तथा आशान्वित भाजपा ने चुनाव जीतने के पश्चात दिसम्बर माह से महाराष्ट्र की बहनों को 2100 रुपए प्रतिमाह देने का ऐलान  कर दिया है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने पर महिलाओं को 3000 रुपए हर माह देने का वादा कर जीत की उम्मीद पाल ली। महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों तथा युवकों को तरह-तरह की सौगातें देने के वादे किये गए। वोट खरीदने की यह अंधी दौड़ पता नहीं कहां जाकर थमेगी? कितनी हैरानी की बात है कि कुछ वर्ष पहले तक विपक्षी दल मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का पुरजोर विरोध किया करते थे, लेकिन अब वे भी प्रतिस्पर्धा पर उतर आए हैं। उन्हें यह फायदे का सौदा दिख रहा है। वोटों के लिए  गिरगिट की तरह रंग बदलने का जो खेल चल रहा है, उसे मतदाता भलीभांति जान समझ रहे हैं। कल तक जिन दलों में छत्तीस का आंकड़ा था, अब वे एक होने का दावा कर रहे हैं। इनकी एकता में कितना दम है, वक्त आने पर उसका भी पता चल जाएगा। सच कहें तो जागरूक जनता का दिमाग ही काम नहीं कर रहा है। मेहनतकश भारतीयों द्वारा विभिन्न प्रकार के टैक्स के रूप में दी जाने वाली रकम को अंधाधुंध लुटाने की जिद पाले नेतागणों ने भविष्य की चिंता करनी छोड़ दी है! 

    मध्यप्रदेश और बाकी राज्यों में जहां ऐसी योजनाएं चल रही हैं वहां की सरकारों को इसके लिए बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। जो धन विभिन्न विकास कार्योें में खर्च होना चाहिए वो इन खैरातों की भेंट चढ़ रहा है। महाराष्ट्र के नेता भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आने वाले दिनों में सभी वादों को निभाने में नानी याद आ सकती है। राजनीति और राजनेताओं के गर्त में समाते चले जाने की कोई सीमा है भी या नहीं? महाराष्ट्र से भाजपा के राज्यसभा सांसद धनंजय महाडिक ने एक चुनावी सभा में दहाड़ते और ललकारते हुए कहा कि, जो महिलाएं वर्तमान सरकार से 1500 रुपए ले रही हैं, वे यदि कांग्रेस की रैलियों में भाग लेंगी तो यह ठीक नहीं होगा। यानी सभी लाडली बहनों को एक स्वर में भारतीय जनता पार्टी की ही जय-जयकार करनी चाहिए। किसी दूसरी पार्टी को वोट देना तो दूर उनकी परछाई से भी दूर रहना चाहिए। नागपुर के निकट स्थित सावनेर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के बदनाम, बदजुबान नेता सुनील केदार ने मतदाताओं को भरे मंच पर धमकाया और चमकाया कि यदि किसी ने भी भारतीय जनता पार्टी  का झंडा लहराया तो उसे गांव से बाहर खदेड़ दिया जाएगा। वर्षों पूर्व सुनील केदार जिस सहकारी बैंक के अध्यक्ष यानी सर्वेसर्वा थे, उसी बैंक के सैकड़ों करोड़ रुपए इधर-उधर करने के अपराधी हैं। अदालत ने उनके चुनाव लड़ने पर बंदिश लगा रखी है। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी को कांग्रेस का टिकट दिलवा कर चुनाव लड़वाया है। दागी की पत्नी को चुनावी टिकट देने वाली कांग्रेस ने भी विवेक से निर्णय लेना जरूरी नहीं समझा। भारत के राजनीतिक दलों के मुखियाओं  की इसी शर्मनाक नीति की वजह से राजनीति अपराधियों की सुरक्षित शरणस्थली बन चुकी है। हैरत और अफसोस यह भी कि अधिकांश गुंडे बदमाश येन-केन प्रकारेण चुनाव जीत भी जाते हैं। इसके लिए यकीनन वो मतदाता भी कम दोषी नहीं जो ईमानदार और जमीन से जुड़े प्रत्याशी को नजरअंदाज कर कुख्यात और निकम्मे चेहरों का साथ देकर अपने कीमती वोट का अवमूल्यन तथा अपमान करते हैं। हम मतदाता जब तक नहीं सुधरेंगे तब तक वोटों के खरीदार नोट, शराब और तमाम प्रलोभनों की बरसात के दम पर विजयी होते रहेेंगे। विधानसभा चुनाव से ऐन  एक दिन पूर्व विभिन्न अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर यह खबर छायी रही कि, महाराष्ट्र के 74 वर्षीय पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख रात को जब अपने पुत्र सलील देशमुख का चुनाव प्रचार कर लौट रहे थे, तब अचानक चार युवकों ने उन पर हमला कर लहूलुहान कर दिया। अनिल देशमुख वही महापुरुष हैं, जिन पर मुंबई के शराब  कारोबारियों तथा बियर बार  मालिकों से 100 करोड़ लेने के संगीन आरोप लगे थे और उन्होंने कई महीनों तक जेल की कोठरी में रहकर रोटी-दाल-चावल का मन मारकर स्वाद चखा था...।

Thursday, November 14, 2024

राजनीति की रिश्तेदारी

    अपनी संतानों के भविष्य को लेकर माता-पिता का चिंतित, परेशान और प्रयत्नशील रहना स्वाभाविक है। दूसरे क्षेत्रों की तरह राजनीति के चतुर खिलाड़ी भी अपने बेटा-बेटी को येन-केन प्रकारेण अपनी विरासत सौंपने की जोड़-तोड़ में लगे देखे जाते हैं। हमने ये भी खूब देखा है कि वंशवाद... परिवारवाद के खिलाफ ढोल-नगाड़े पीटने वाले बड़े-बड़े राजनीति के सूरमा भी वक्त आने पर अपनी औलादों के लिए मोह-जाल में फंस जाते हैं। इस खेले में गैरों के साथ-साथ अपने एकदम करीबियों को नाराज तथा दुश्मन  बनाने से भी नहीं सकुचाते। बालासाहब ठाकरे तथा शरद पवार भारत की राजनीति के ऐसे अद्भुत सितारे हैं, जिनकी चमक-धमक कल भी थी, आज भी है और आनेवाले समय में भी बरकरार रहेगी। अपने जीवनकाल में हमेशा किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहने वाले बालासाहब ठाकरे ऐसी शख्सियत थे, जिन्हें सभी देशवासी पढ़ने-सुनने को उत्सुक रहते थे। उनके मित्र भी बहुत थे, दुश्मन भी कम नहीं थे, लेकिन वे भी बालासाहब का सम्मान करते थे। शिवसेना की संस्थापक इस आक्रामक हस्ती के मुंह से निकले आदेश या ऐलान को कानून बनने में देरी नहीं लगती थी। अधिकांश मुंबई के लोग डर से या आदर से उस मुखर कानून का पालन करते देखे जाते थे। 

    दूसरे प्रदेशों से नौकरी और रोजगार के लिए धड़ाधड़ मुंबई आनेवाले लोगों का विरोध करने की वजह से आलोचना तथा विरोध झेलने वाले बालासाहब को कई बार हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी का भी शिकार होना पड़ता था। ठाकरे कहते, चाहते और मानते थे कि, मैं उत्तर भारतीयों का विरोधी नहीं। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि प्रांतीय, रचना भाषा के आधार पर हुई है। संसाधनों का विकेंद्रित उपयोग होना चाहिए। कोई एक प्रदेश दूसरे सभी प्रदेशों के लोगों का बोझ वहन नहीं कर सकता। संसाधनों का विकेंद्रित होना अत्यंत जरूरी है, ताकि सभी राज्य के लोगों को उनके ही राज्य में रोजगार के अवसर  मिल सकें। बाघ की विभिन्न छवियों युक्त सिंहासन पर विराजने वाले ठाकरे ने 19 जून, 1966 को शिवसेना की स्थापना की थी। मराठियों की विभिन्न समस्याओं का हल करना उनका प्रमुख लक्ष्य था। उन्हें स्वयं को हिटलर का अनुयायी तथा प्रशंसक कहलाने में कोई संकोच नहीं था। उन्होंने अपने जीवन काल में कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन शिवसेना को एक प्रभावी राजनीतिक दल के रूप में स्थापित कर दिखाया और अपना लोहा मनवाया। 1995 के चुनाव के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। ठाकरे ने इस दौरान (1995-1999) जिस तरह से सरकार पर अपना पूर्ण नियंत्रण रखा, उससे यह आरोप लगे कि वही सर्वेसर्वा हैं, बाकी सब तो नाम के हैं, उन्हीं के सशक्त रिमोट  कंट्रोल से सरकार चल रही है। ठाकरे ने भी छाती तानकर हर आरोप को स्वीकारा। बिल्कुल वैसे ही जैसे बाबरी मस्जिद को ढहाने की जिम्मेदारी ली। उनकी दिलेरी और स्पष्टवादिता ने उन्हें जिस शीर्ष स्थान पर पहुंचाया, उसने उनके राजनीतिक विरोधियों को बार-बार चौंकाया।

    मुंबई के गॉडफादर बाल ठाकरे यदि चाहते तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन वे तो अपने समर्पित शिवसैनिक को ही सत्ता सौंपने के प्रबल हिमायती रहे। उनके संघर्ष और प्रगतिकाल में लोगों को उनके पुत्र उद्धव ठाकरे से ज्यादा भतीजे राज ठाकरे में उनकी छवि दिखाई देती थी। राज ठाकरे के सोचने और बोलने का आक्रामक अंदाज शिवसैनिकों को प्रेरित और आकर्षित करता था। अधिकांश शिवसैनिकों को यही लगता था कि राज ही बाला साहब ठाकरे के उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन हिंदू ह्रदय सम्राट ने बेटे उद्धव ठाकरे को प्राथमिकता देकर भतीजे के साथ-साथ अनेकों समर्पित शिवसैनिकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बुरी तरह से आहत और नाराज राज ठाकरे ने 2006 में अपनी राजनीतिक पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाकर अपने चाचा को जो झटका दिया, उसकी कल्पना कम अज़ कम उन्होंने तो नहीं की थी। हालांकि वे इस सच से खूब वाकिफ थे कि, राजनीति और निष्ठुरता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इससे पहले भी वे छगन भुजबल और नारायण राणे जैसे उन शिवसैनिकों के पार्टी छोड़कर चल देने के तीव्र झटके को झेल चुके थे, जिन्हें उन्होंने सत्ता,धन और प्रतिष्ठा की आकाशी ऊंचाइयों का भरपूर स्वाद चखाया था, लेकिन यह दोनों गैर थे, राज ठाकरे तो अपने थे, जिसने उन्हीं से उठने, बैठने, चलने, बोलने के साथ-साथ राजनीति के सभी  दांव-पेंच सीखे थे। बालासाहब ने तो यही सोचा और माना हुआ था कि राजनीति के सफर में उद्धव की राह में आनेवाले संकटों और अवरोधों का खात्मा करने में उनका प्रिय भतीजा पूरा साथ देते हुए अपनी जान तक लगा देगा, लेकिन इसने तो सभी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए शिवसेना को टक्कर देने के लिए अपनी अलग पार्टी ही खड़ी कर ली। 

    उम्र के 84 वर्ष के करीब पहुंच चुके शरद पवार अभी भी पूरे दमखम के साथ राजनीति के ऊबड़-खाबड मैदान में दंड पेल रहे हैं। देश के प्रमुख नेताओं में गिने जाने वाले शरद पवार महाराष्ट्र के तीन बार मुख्यमंत्री रहने के साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल में रक्षामंत्री  तथा कृषिमंत्री भी रह चुके हैं। हर दर्जे के सत्ता लोलुप माने जानेवाले पवार की लाख हाथ-पांव मारने के बावजूद प्रधानमंत्री बनने की चाह धरी की धरी रह गई। यह मलाल उनके दिल-दिमाग को अभी भी कचोटता रहता है। उनमें ऐसी कई खासियतें हैं, जो उनकी पहचान हैं। सजगता से निर्णय लेनेवाले पवार को पलटी खाने में देरी नहीं लगती। रिश्ते बनाने व उन्हें भुनाने की जो कलाकारी उनमें है, वह भारत के अन्य नेताओं में नहीं के बराबर है। 26 वर्ष की उम्र में विधायक और 32 की उम्र में महाराष्ट्र सरकार में राज्यमंत्री बनने का गौरव पाने वाले पवार के भतीजे अजित पवार ने भी अपने चाचा शरद पवार की छत्रछाया में महाराष्ट्र की राजनीति में खासी पहचान और दबदबा बनाने में कामयाबी हासिल की। दोनों के चोली-दामन  के साथ को देखते हुए यही लगता था की चाचा अपने भतीजे को अपनी विरासत सौंपेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अपनी बेटी सुप्रिया सुले को आगे कर चाचा ने भतीजे को जब आहत किया तो उसने भी ऐसी बगावत की, कि चाचा की पार्टी का नाम, झंडा विधायक, सांसद और चुनाव चिन्ह तक छीन कर दिन में तारे दिखा दिए, परन्तु यह भी सच है कि दिलेर और हिम्मती शरद पवार ने संभलने में देरी नहीं लगाई। यही असली योद्धाओं की वास्तविक पहचान है। अपनों तथा बेगानों के खंजरों के वार पर वार से जख्मी होने के बाद भी सीना तान कर सतत युद्धरत रहते हैं।

Thursday, November 7, 2024

नायक और खलनायक

    अपार धन-दौलत वालों के बारे में अक्सर तरह-तरह की खबरें और एक से बढ़कर एक अच्छी-बुरी जानकारियां पढ़ने, सुनने में आती रहती हैं। देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने तथा सिर्फ और सिर्फ स्वहित में डूबे रहने वालों का भी पता चलता रहता है। धीरूभाई अंबानी की औलादों की तरह आर्थिक जगत के आकाश में छाने वाले अनेकों नवधनाढ्य  हैं, जिन्हें अपने अकूत धन की नुमाईश करने में आनंद आता है। लोग उनके बारे में क्या सोचते, बोलते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इस दुनिया में जहां अच्छे की अच्छाई  जगजाहिर हो जाती है, वहीं कपटी और स्वार्थी धनपशु के चेहरे का नकाब भी देर-सबेर उतर ही जाता है।

    पिछले दिनों भारत के विख्यात  उद्योगपति रतन टाटा का निधन हो गया। अमूमन किसी बड़े उद्योगपति के गुजर जाने पर लोगों को कोई  फर्क नहीं पड़ता, लेकिन रतन टाटा  के चल बसने की दुखद खबर ने असंख्य भारतवासियों को गमगीन कर दिया। सभी को रह-रह कर एक ईमानदार, शांत सेवाभावी, चरित्रवान, उसूलों के पक्के निश्छल  कारोबारी की याद आती रही। जीवनभर दिखावे से कोसों दूर  रहकर हमेशा सादगी का दामन थामे रहे इस कर्मवीर में किंचित भी प्रचार  की भूख नहीं देखी गई। उनसे जो  भी मिला प्रभावित ही हुआ। उनके निधन के बाद सभी ने उनके गुणगान की झड़ी लगा दी। संघर्ष को अपनी ताकत बनाने की सीख देने वाले रतन टाटा के अनेकों किस्सों और संस्मरणों ने देश-विदेश के लोगों को प्रेरित तथा चकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। करीब  10 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक रतन टाटा ने अपनी वसीयत में संपत्ति का जिस तरह से बंटवारा किया, उससे उनके निहायत ही नेकदिल होने का प्रमाण मिला है। करीबियों के साथ-साथ वे अपने सहयोगियों तथा घर में रोजमर्रा के काम करने वालों को भी नहीं भूले।  अपने पेट टीटो (जर्मन शेफर्ड कुत्ता) के लिए भी भरपूर धन-राशि छोड़ने तथा उसकी देखभाल की जिम्मेदारी अपने वफादार कुक को सौंप कर गए। उनके जानवरों के प्रति संवेदनशील होने का ही परिणाम था कि उन्होंने अपने मुंबई  के अत्यंत  प्रतिष्ठित आलीशान ‘ताज होटल’ के दरवाजे हमेशा आवारा कुत्तों तक के लिए खुले रखे। इंसानों के साथ-साथ अपने प्रिय पालतू कुत्ते के प्रति अपार स्नेह और आत्मीयता की रतनटाटा यकीनन अद्वितीय व अनोखी मिसाल थे...। अपने परिश्रम और समर्पण के प्रतिफल स्वरूप पुरस्कार, सम्मान से नवाजा जाना सभी को अत्यंत सुहाता है। इसके लिए लोग अपने सब काम-धाम छोड़कर कहीं भी चले जाते हैं। टाटा को साल 2018 में बकिंघम पैलेस के तत्कालीन प्रिंस चार्ल्स ने उनके परोपकारी सेवा कार्यों के लिए आजीवन उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए विशेष तौर पर आमंत्रित किया था। टाटा ने भी जाने का मन बना लिया था, लेकिन अंतिम समय  में उनके दो कुत्ते एकाएक बहुत बीमार पड़ गए, तो उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। प्रिंस चार्ल्स उन्हें फोन करते रहे, लेकिन टाटा ने अपने प्रिय टैंगो तथा टीटो की तीमारदारी में व्यस्त रहने के कारण फोन ही नहीं उठाया। उनके इस व्यवहार से प्रिंस को बहुत बुरा लगा, लेकिन जब उन्हें असलियत का पता चला तो वे उनके समक्ष नतमस्तक  होकर उनकी तारीफ पर तारीफ करते रह गए। भारत के इस रत्न को जब लोग खुद कार चलाकर दूर-दूर तक सफर तय करते देखते तो हतप्रभ रह जाते। विश्व का जाना-माना अरबपति-कारोबारी बिना ड्राइवर के भीड़-भाड़ वाले रास्तों पर बड़े इत्मीनान से कार दौड़ाये चले जा रहा है। उन्हें विमान तथा हेलिकॉप्टर भी बहुत कुशलता से उड़ाते देखा जाता था। एक पत्रकार ने बताया कि, जब मैं उनके निवास स्थान पर गया तो मुझे लगा ही नहीं कि यह देश के शीर्ष उद्योगपति का आशियाना है, मात्र दो-तीन निजी सेवकों और तीन-चार कुत्तों के साथ बड़े आराम से उन्हें गुज़र बसर करते देख, मैं तो मंत्रमुग्ध होकर रह गया। मैंने कभी भी किसी साधु-संत के पांव नहीं छुए, लेकिन बरबस मैं उनके चरणों में झुक गया। 

    देश के कर्मठ नेता, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने उनकी विशाल उदारता का एक उदाहरण कुछ यूं बयां किया, ‘‘टाटा उद्योग समूह की एम्प्रेस मिल यूनियनबाजी के चलते बंद हो चुकी थी। सरकार ने उसे अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन उसके लिए भी इस कपड़े की पुरानी और विख्यात मिल को चलाना संभव नहीं हो पाया। मिल पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले लगने से गरीब मजदूर सड़क पर आ गए थे। दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें तरसना पड़ रहा था। मेहनतकश मजदूरों की दर्दनाक हालत के बारे में जब मैंने रतन टाटा को अवगत कराया, तो उन्होंने तुरंत लगभग पांच सौ श्रमिकों को अत्यंत मान-सम्मान के साथ उनका बकाया भुगतान देकर मानवता का जो धर्म निभाया, उससे मेरे मन में उनके प्रति सम्मान कई गुना और बढ़ गया।’’ 

    इस सच से अधिकांश देशवासी अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि अपने देश में जो भी उद्योगपति, राजनेताओं और सताधीशों के करीब होते हैं उनकी चांदी ही चांदी होती है। रतन टाटा ने आम आदमी के लिए जब नैनो कार बनाने की सोची तो सर्वप्रथम उन्होंने कोलकाता से तीस किलोमीटर दूर सिंगुर का चुनाव किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कारखाने को बनने ही नहीं दिया। रतन टाटा यदि सत्ता के समक्ष झुक जाते और वैसी ही आदान-प्रदान वाली दोस्ती और समझौता कर लेते जैसा दूसरे कारोबारी करते हैं तो उनका काम बन जाता। अपनी तरह-तरह की तिकड़मों की बदौलत खाकपति से खरबपति बने धीरूभाई अंबानी की औलादों ने धूर्त कपटी, बिकाऊ सत्ताधीशों तथा अफसरों को खरीदकर अपार धन-दौलत  जुटाई। इसी अथाह धन को उड़ाने की कलाकारी के उनके खेल-तमाशे वर्षों से देशवासी देखते चले आ रहे हैं। धीरूभाई के बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने बीते दिनों अपने बेटे की सगाई और शादी में हजारों करोड़ फूंकने की जो दिलेरी दिखाई उसका तो क्या कहना! हजारों मेहमानों को महंगी-महंगी घड़ियां, सोने के हार तथा अन्य करोड़ों के उपहार देकर खुश किया गया। इस दिखावटी तामझाम से ऐन पहले धन्नासेठ ने हजारों पुराने कर्मचारियों की यह कहते हुए छुट्टी कर दी कि उनकी कंपनी की अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। इसलिए वे उन्हें नौकरी से निकालने को विवश हैं। सोलह हजार करोड़ की 27 मंजिला एंटीलिया नामक बिल्डिंग में राजा-महाराजा की तरह मौजमजे करने वाले एशिया के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी भी किसी महारानी से कम नहीं। देश-दुनिया के तमाम मीडिया की खबरें चीख-चीख कर लानत की बौछार करते हुए अक्सर बताती रहती हैं कि नीता की सुबह की चाय लाखों की होती है। वह हीरे जड़े जिस विदेशी कप में चाय पीती हैं, उसकी कीमत ही डेढ़ करोड़ है। यह शौकीन नारी करीब 3 करोड़ का हैंडबैग लेकर चलती है। उसकी अलमारी में ऐसे आकर्षक, महंगे से महंगे हैंडबैग भरे पड़े हैं। 240 करोड़ के जेट प्लेन पर उड़ान भरने वाली नीता के पास कई सुपर लग्जरी कारों के साथ-साथ महंगे मोबाइल फोन का जखीरा है। करोड़ों का मेकअप का रंगारंग सामान भी उसकी रंगशाला में भरा पड़ा है...।