अपार धन-दौलत वालों के बारे में अक्सर तरह-तरह की खबरें और एक से बढ़कर एक अच्छी-बुरी जानकारियां पढ़ने, सुनने में आती रहती हैं। देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने तथा सिर्फ और सिर्फ स्वहित में डूबे रहने वालों का भी पता चलता रहता है। धीरूभाई अंबानी की औलादों की तरह आर्थिक जगत के आकाश में छाने वाले अनेकों नवधनाढ्य हैं, जिन्हें अपने अकूत धन की नुमाईश करने में आनंद आता है। लोग उनके बारे में क्या सोचते, बोलते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इस दुनिया में जहां अच्छे की अच्छाई जगजाहिर हो जाती है, वहीं कपटी और स्वार्थी धनपशु के चेहरे का नकाब भी देर-सबेर उतर ही जाता है।
पिछले दिनों भारत के विख्यात उद्योगपति रतन टाटा का निधन हो गया। अमूमन किसी बड़े उद्योगपति के गुजर जाने पर लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन रतन टाटा के चल बसने की दुखद खबर ने असंख्य भारतवासियों को गमगीन कर दिया। सभी को रह-रह कर एक ईमानदार, शांत सेवाभावी, चरित्रवान, उसूलों के पक्के निश्छल कारोबारी की याद आती रही। जीवनभर दिखावे से कोसों दूर रहकर हमेशा सादगी का दामन थामे रहे इस कर्मवीर में किंचित भी प्रचार की भूख नहीं देखी गई। उनसे जो भी मिला प्रभावित ही हुआ। उनके निधन के बाद सभी ने उनके गुणगान की झड़ी लगा दी। संघर्ष को अपनी ताकत बनाने की सीख देने वाले रतन टाटा के अनेकों किस्सों और संस्मरणों ने देश-विदेश के लोगों को प्रेरित तथा चकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। करीब 10 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक रतन टाटा ने अपनी वसीयत में संपत्ति का जिस तरह से बंटवारा किया, उससे उनके निहायत ही नेकदिल होने का प्रमाण मिला है। करीबियों के साथ-साथ वे अपने सहयोगियों तथा घर में रोजमर्रा के काम करने वालों को भी नहीं भूले। अपने पेट टीटो (जर्मन शेफर्ड कुत्ता) के लिए भी भरपूर धन-राशि छोड़ने तथा उसकी देखभाल की जिम्मेदारी अपने वफादार कुक को सौंप कर गए। उनके जानवरों के प्रति संवेदनशील होने का ही परिणाम था कि उन्होंने अपने मुंबई के अत्यंत प्रतिष्ठित आलीशान ‘ताज होटल’ के दरवाजे हमेशा आवारा कुत्तों तक के लिए खुले रखे। इंसानों के साथ-साथ अपने प्रिय पालतू कुत्ते के प्रति अपार स्नेह और आत्मीयता की रतनटाटा यकीनन अद्वितीय व अनोखी मिसाल थे...। अपने परिश्रम और समर्पण के प्रतिफल स्वरूप पुरस्कार, सम्मान से नवाजा जाना सभी को अत्यंत सुहाता है। इसके लिए लोग अपने सब काम-धाम छोड़कर कहीं भी चले जाते हैं। टाटा को साल 2018 में बकिंघम पैलेस के तत्कालीन प्रिंस चार्ल्स ने उनके परोपकारी सेवा कार्यों के लिए आजीवन उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए विशेष तौर पर आमंत्रित किया था। टाटा ने भी जाने का मन बना लिया था, लेकिन अंतिम समय में उनके दो कुत्ते एकाएक बहुत बीमार पड़ गए, तो उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। प्रिंस चार्ल्स उन्हें फोन करते रहे, लेकिन टाटा ने अपने प्रिय टैंगो तथा टीटो की तीमारदारी में व्यस्त रहने के कारण फोन ही नहीं उठाया। उनके इस व्यवहार से प्रिंस को बहुत बुरा लगा, लेकिन जब उन्हें असलियत का पता चला तो वे उनके समक्ष नतमस्तक होकर उनकी तारीफ पर तारीफ करते रह गए। भारत के इस रत्न को जब लोग खुद कार चलाकर दूर-दूर तक सफर तय करते देखते तो हतप्रभ रह जाते। विश्व का जाना-माना अरबपति-कारोबारी बिना ड्राइवर के भीड़-भाड़ वाले रास्तों पर बड़े इत्मीनान से कार दौड़ाये चले जा रहा है। उन्हें विमान तथा हेलिकॉप्टर भी बहुत कुशलता से उड़ाते देखा जाता था। एक पत्रकार ने बताया कि, जब मैं उनके निवास स्थान पर गया तो मुझे लगा ही नहीं कि यह देश के शीर्ष उद्योगपति का आशियाना है, मात्र दो-तीन निजी सेवकों और तीन-चार कुत्तों के साथ बड़े आराम से उन्हें गुज़र बसर करते देख, मैं तो मंत्रमुग्ध होकर रह गया। मैंने कभी भी किसी साधु-संत के पांव नहीं छुए, लेकिन बरबस मैं उनके चरणों में झुक गया।
देश के कर्मठ नेता, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने उनकी विशाल उदारता का एक उदाहरण कुछ यूं बयां किया, ‘‘टाटा उद्योग समूह की एम्प्रेस मिल यूनियनबाजी के चलते बंद हो चुकी थी। सरकार ने उसे अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन उसके लिए भी इस कपड़े की पुरानी और विख्यात मिल को चलाना संभव नहीं हो पाया। मिल पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले लगने से गरीब मजदूर सड़क पर आ गए थे। दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें तरसना पड़ रहा था। मेहनतकश मजदूरों की दर्दनाक हालत के बारे में जब मैंने रतन टाटा को अवगत कराया, तो उन्होंने तुरंत लगभग पांच सौ श्रमिकों को अत्यंत मान-सम्मान के साथ उनका बकाया भुगतान देकर मानवता का जो धर्म निभाया, उससे मेरे मन में उनके प्रति सम्मान कई गुना और बढ़ गया।’’
इस सच से अधिकांश देशवासी अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि अपने देश में जो भी उद्योगपति, राजनेताओं और सताधीशों के करीब होते हैं उनकी चांदी ही चांदी होती है। रतन टाटा ने आम आदमी के लिए जब नैनो कार बनाने की सोची तो सर्वप्रथम उन्होंने कोलकाता से तीस किलोमीटर दूर सिंगुर का चुनाव किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कारखाने को बनने ही नहीं दिया। रतन टाटा यदि सत्ता के समक्ष झुक जाते और वैसी ही आदान-प्रदान वाली दोस्ती और समझौता कर लेते जैसा दूसरे कारोबारी करते हैं तो उनका काम बन जाता। अपनी तरह-तरह की तिकड़मों की बदौलत खाकपति से खरबपति बने धीरूभाई अंबानी की औलादों ने धूर्त कपटी, बिकाऊ सत्ताधीशों तथा अफसरों को खरीदकर अपार धन-दौलत जुटाई। इसी अथाह धन को उड़ाने की कलाकारी के उनके खेल-तमाशे वर्षों से देशवासी देखते चले आ रहे हैं। धीरूभाई के बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने बीते दिनों अपने बेटे की सगाई और शादी में हजारों करोड़ फूंकने की जो दिलेरी दिखाई उसका तो क्या कहना! हजारों मेहमानों को महंगी-महंगी घड़ियां, सोने के हार तथा अन्य करोड़ों के उपहार देकर खुश किया गया। इस दिखावटी तामझाम से ऐन पहले धन्नासेठ ने हजारों पुराने कर्मचारियों की यह कहते हुए छुट्टी कर दी कि उनकी कंपनी की अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। इसलिए वे उन्हें नौकरी से निकालने को विवश हैं। सोलह हजार करोड़ की 27 मंजिला एंटीलिया नामक बिल्डिंग में राजा-महाराजा की तरह मौजमजे करने वाले एशिया के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी भी किसी महारानी से कम नहीं। देश-दुनिया के तमाम मीडिया की खबरें चीख-चीख कर लानत की बौछार करते हुए अक्सर बताती रहती हैं कि नीता की सुबह की चाय लाखों की होती है। वह हीरे जड़े जिस विदेशी कप में चाय पीती हैं, उसकी कीमत ही डेढ़ करोड़ है। यह शौकीन नारी करीब 3 करोड़ का हैंडबैग लेकर चलती है। उसकी अलमारी में ऐसे आकर्षक, महंगे से महंगे हैंडबैग भरे पड़े हैं। 240 करोड़ के जेट प्लेन पर उड़ान भरने वाली नीता के पास कई सुपर लग्जरी कारों के साथ-साथ महंगे मोबाइल फोन का जखीरा है। करोड़ों का मेकअप का रंगारंग सामान भी उसकी रंगशाला में भरा पड़ा है...।
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