Wednesday, August 3, 2011

इज्जत की जंग

पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आई तो प्रिं‍ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छा गयीं। अखबारों और न्यूज चैनलों ने पडौसी देश की इस महिला मंत्री की शिक्षा-दीक्षा और राजनीतिक सूझबूझ के बारे में देशवासियों को अवगत कराना कतई जरूरी नहीं समझा। बस हर तरफ उनके खूबसूरत चेहरे, पहनावे और रहन-सहन का बखान होता रहा। अमेरिका की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से होटल मैनेजमेंट में एमएससी कर चुकीं ३४ वर्षीय हिना एक सुलझी हुई महिला हैं और अपनी योग्यता की बदौलत पाकिस्तान की पहली विदेश मंत्री बनने में सफल हुई हैं। उन्होंने पाकिस्तान में वर्ष २००८ में हुए आम चुनाव में पी पी पी की टिकट पर चुनाव लडा था और हजारों वोटों से जीती थीं। यानी हिना सिर्फ अपनी खूबसूरती की वजह से इस मुकाम तक नहीं पहुंची हैं। हिना को भारत यात्रा के दौरान यही बात खटकती रही कि हिं‍दुस्तानी मीडिया ने उसे महज आकर्षक मॉडल की तरह पेश किया और उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दिया। हिना की कातिल खूबसूरती और पतली कमर का गुणगान तो पाकिस्तान के अखबार भी करते रहे हैं पर हिना को भारत से ऐसी उम्मीद नहीं थी। हिना के मन में यह बात बैठ गयी है कि भारतीय मीडिया ने उनके साथ बेशर्मी भरा रवैया अख्तियार करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। उनके राजनीतिक कद की अनदेखी करते हुए सिर्फ और सिर्फ उनकी फैशनपरस्त कीमती पोशाक, डिजायनर हैंडबैग और कीमती धूप के चश्में पर बार-बार टिप्पणी कर बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं। नारियां चाहे कहीं की भी हों पर उन्हें हमेशा यह शिकायत रहती है कि बेशर्मों की निगाहें उनके पहनावे और देह के भूगोल पर ही टिकी रहती हैं। इसमें सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराने से कुछ नहीं होगा। दोषियों की जमात तो हर तरफ खडी नजर आती है। कहने को दुनिया बदल चुकी है और हम २१ वीं सदी में रह रहे हैं, लेकिन पुरुष की मानसिकता नहीं बदली है। वह खुद को राजा समझता है और स्त्री को अपना गुलाम। आज की पढी-लिखी नारी पुरुषों की दादागिरी सहने को तैयार नहीं है। वह उनकी इस सोच से बेहद खफा है कि नारियां देह मात्र हैं। पुरुषों की वासना को भडकाने के लिए वे जानबूझकर बदन दिखाऊ वस्त्र पहनती हैं। पुरुषों की इसी मानसिकता के खिलाफ दिल्ली में 'बेशर्मी मोर्चा' निकाला गया। दरअसल इस मोर्चे की प्रेरणा उन्हें कनाडा से मिली जहां एक पुलिस अधिकारी ने यह कहा कि हम महिलाओं को तभी सुरक्षा दे पायेंगे जब वे स्लट (बेशर्म) कपडे पहनना छोड देंगी। हिं‍दुस्तान में भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि महिलाओं का पहनावा पुरुषों को उकसाता है और ऐसे में कई बार वे बेकाबू हो जाते हैं। आखिर वे भी तो इंसान हैं...। राजधानी में निकाले गये बेशर्मी मोर्चा को इज्जत की जंग भी कहा गया। इस जंग में भाग लेने वाली लडकियों का कहना था कि हम आजाद देश की आजाद नागरिक हैं। हमें क्या पहनना है और कैसे रहना है यह फैसला करने का अधिकार किसी ओर को कतई नहीं है। हम मॉडर्न कपडे पहनें या छोटे कपडे इस पर पुरुषों को मिर्ची क्यों लगती है? एक सुलझी हुई अभिनेत्री का बयान आया कि दिल्ली देश की राजधानी है फिर भी यहां महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। जिन लोगों की सोच गंदी है वही लोग यह कहते हैं कि लडकियों का कम कपडे पहनना, फैशन करना या देर रात घर से बाहर निकलना छेडछाड को बढावा देता है। अगर ऐसा होता तो भंवरी देवी का बलात्कार नहीं होता।वैसे यह सच है कि उन महिलाओं के साथ भी बलात्कार होते देखे गये हैं जो बनाव श्रृंगार से दूर रहती हैं और बदन उघाडू वस्त्र भी नहीं पहनतीं। छेडछाड और बलात्कार के लिए महिलाओं के पहनावे को दोषी ठहराने वालों के लिए नारियां इंसान न होकर हाट में खरीदे गये पशु के समान हैं जिन्हें मनमाने ढंग से सताने में उन्हें मज़ा आता है। मज़ा लेने में तो मीडिया भी नहीं चूकता। न्यूज चैनल वालों की नजर में पाकिस्तानी हिना रब्बानी हों या हिं‍दुस्तानी लडकियां सब एक समान हैं। ये वही देखते हैं जो इन्हें दिखाना होता है। 'बेशर्मी मोर्चा' के दौरान अधिकांश चैनल वालों ने सारा फोकस महिलाओं के पहनावे पर ही केंद्रित रखा और उन लडकियों को बार-बार दिखाया जो आधे-अधूरे कपडे पहन कर अंग प्रदर्शन कर रही थीं। महिलाओं का शारीरिक शोषण करने वाले जहां-तहां भरे पडे हैं। पुलिस थानों में महिला सिपाहियों पर बलात्कार और दुष्कर्म की खबरें अक्सर पढने में आती रहती हैं। शिक्षण संस्थानों में जहां नैतिकता और शालीनता का पाठ पढाया जाता है वहां भी छात्राओं का शीलहरण हो जाता है। वासनाखोरों के लिए मर्यादा महत्वहीन है। नारी देह ही हमेशा उनके निशाने पर रहती है। मौका मिलते ही वे शैतानियत पर उतर आते हैं। इसे अब आप क्या कहेंगे कि चेन्नई के एक कॉलेज में शिक्षक ने छात्रा को बाथरूम में ले जाकर कपडे उतारने को विवश कर दिया। बताते हैं कि इस कॉलेज में छात्राओं के मोबाइल फोन ले जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। शिक्षक महाशय ने पहले बैग की तलाशी ली फिर तलाशी के नाम पर वो कर्मकांड कर डाला जिससे इस सोच पर मुहर लग गयी कि लडकियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। चेन्नई के इस कॉलेज में तलाशी के बहाने छात्राओं को निर्वस्त्र करने की कुछ घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। सच तो यह है कि महिलाओं के प्रति समाज का जो नजरिया है उसमें नीचे से ऊपर तक खोट ही खोट है। गंवार ही नहीं पढे-लिखे भी स्त्रियों पर बलात्कार का कहर ढाने और हिं‍सा के चाबुक बरसाने में अपनी बहादुरी समझते हैं। कई बार भरी भीड की आंखों के सामने राह चलती महिलाओं की इज्जत तार-तार कर दी जाती है पर लोग तटस्थ बने रहते हैं। समाज की इसी संवेदनहीनता की वजह से अगर महिलाएं बेशर्मी मोर्चा निकालती हैं तो समाज के कई ठेकेदारों को तकलीफ क्यों होती है?

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