राजनीति से अलविदा, नैतिक मूल्य तमाम
नंगों के इस देश में, धोबी का क्या काम...
जिस देश की जनता अपने ही चुने जनप्रतिनिधियों की धोखाधडी की शिकार हुई हो और जहां देखते ही देखते अरबों-खरबों के घोटालों और भ्रष्टाचार का इतिहास रच दिया गया हो वहां पर राजनेताओं की साख पर लगे दाग-दर-दाग से आहत होकर यदि कोई कवि उपरोक्त पंक्तियां लिखने को विवश होता है तो उसके अंदर घर कर चुके गुस्से और निराशा को नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। इस देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में जब यह कहते हैं कि अनशनों और धरना प्रदर्शनों से देश का भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता तो लोग अवाक रह जाते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर जंग लडने वाले अन्ना हजारे को जब जेल भेज दिया जाता है तो आम जनता का गुस्सा फूट पडता है और वह सडक पर आ जाती है। हालात यहां तक जा पहुंचते हैं कि सरकार को झुकना पडता है। जो प्रधानमंत्री लाल किले पर अनशन और शांत आंदोलन के प्रति बेपरवाह नजर आते हैं वही अपना माथा पकड कर बैठ जाते हैं। उन्हें अंतत: अपनी गलती का अहसास हो ही जाता है। अन्ना की जीत में आम जनता की जीत शामिल है और यही लोकतंत्र का असली चेहरा है जिसे हुक्मरान नजरअंदाज करते आये हैं। आंकडे चीख-चीख कर बता रहे हैं कि वर्ष १९९२ से लेकर अब तक देश में छत्तीस महाघोटाले हो चुके हैं, जिनकी वजह से देशवासियों के खून पसीने के ८० लाख करोड भ्रष्टाचारियों की तिजोरियों में समा चुके हैं। इस देश का आम आदमी तरह-तरह की समस्याओं से निरंतर जूझ रहा है पर राजनेताओं ने उसकी चिंता करनी ही छोड दी है। देश के लिए नासूर बन चुके भ्रष्टाचार के कारण ही महंगाई बेलगाम हो चुकी है। खाद्यान और दूसरी जरूरी वस्तुओं के मूल्यों में बेहिसाब वृद्धि के चलते पिछले तीन सालों में उपभोक्ताओं की जेब से छह लाख करोड रुपये काला बाजारियों, नेताओं, दलालों और बेईमान व्यापारियों की जेबों में जा चुके हैं। मुल्क में बडे ही सुनियोजित ढंग से लूट-खसोट का कारोबार चल रहा है। राजनेता, अफसर, उद्योगपति, व्यापारी और छोटे-बडे सरकारी कर्मचारी अपने-अपने तौर-तरीकों के साथ भ्रष्टाचार को बेखौफ होकर अंजाम देते चले आ रहे हैं। उन्हें दबोचने के मामले में देश का कानून इतना बौना है कि उसकी कुछ भी चल नहीं पाती। ऐसे में जब अन्ना हजारे जनलोकपाल के लिए अपनी जान तक दांव पर लगाने के लिए सामने आये तो भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता उनके साथ खडी हो गयी। यह बात सरकार को रास नही आयी। पर देशवासी परिवर्तन चाहते हैं। उनकी बर्दाश्त करने की हिम्मत जवाब दे चुकी है। आम आदमी को हर जगह भाई-भतीजावाद और रिश्वतखोरों का सामना करना पडता है। पढाई से लेकर नौकरी तक अपनी जेबें ढीली करनी पडती हैं। कई लोग तो यह भी मान चुके हैं कि हिंदुस्तान से भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो ही नहीं सकता। दरअसल इस तरह के नकारात्मक और निराशावादी विचार लोगों में इसलिए अपनी जगह बना चुके हैं क्योंकि जिन्हें देश को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी उनमें से अधिकांश नेता भ्रष्ट और बेईमान निकले। नेताओं की देखा-देखी अफसरशाही ने भी लोगों को बुरी तरह से निराश और हताश किया है। पिछले दिनों काली कमायी करने वाले कई मंत्रियों और अफसरों को जेल भेजा गया। मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारी अरविंद जोशी और टीनू जोशी के यहां से बरामद हुई अपार दौलत ने तो आयकर अधिकारियों को भी हतप्रभ कर दिया। नोट गिनने के लिए मशीने मंगवानी पडीं। इसतरह की भ्रष्ट जमात देश के हर प्रदेश में भरी पडी है। महिलाएं भी भ्रष्टाचार के मामले में पीछे नहीं हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते जब सीबीआई ने पंजाब के शहर मोहाली की प्रथम महिला डीएसपी राका गीरा को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार करने में सफलता पायी। राका गीरा ने लोगों की इस धारणा के परखच्चे उडाकर रख दिये कि महिलाएं काफी हद तक संवेदनशील ईमानदार होती हैं। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से दूर रहती हैं। इस महिला पुलिस अधिकारी के घर मारे गये छापे में करोडों रुपये की नगदी, हीरे जवाहरात तथा हथियार तो मिले ही साथ ही 'बार' में सजी जो विदेशी शराब की पचासों बोतलें मिलीं उनसे यह भी स्पष्ट हो गया महिलाएं भी नशाखोरी में इतिहास रच रही हैं। उन्होंने खुद को किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार कर लिया है। उन्हें भी पुरुषों की तरह मौकों का इंतजार रहता है। फिर भी पूरी तरह से निराश होने की जरूरत नहीं है। अभी भी देश में अन्याय से लडने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। यह बात दीगर है कि उन्हें वो तवज्जो नहीं दी जाती जिसके वे हकदार हैं। यह वो लोग हैं जो लाख तकलीफें सहने के बावजूद अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। बडी से बडी मुसीबत और तूफान के सामने डटे रहते हैं।मदुराई के जिलाधिकारी यू. सागायम का नाम भले ही ज्यादा जाना-पहचाना न हो पर वर्षों से जो लडाई वे लडते चले आ रहे हैं उसे हाशिये में नहीं डाला जा सकता। सागायम एक ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जिन्हें अपने उसूलों पर कायम रहने की वजह से १८ बार तबादलों की सज़ा भुगतनी पडी है पर फिर भी उनका मनोबल नहीं टूटा है। वे न खुद रिश्वत लेते हैं और न ही किसी को लेने देते हैं। उनकी इस परिपाटी के चलते उनके दुश्मनों की संख्या भी कम नहीं है। उनसे न तो उनके उच्चाधिकारी खुश रहते हैं और न ही नीचे वाले। उन्होंने दो वर्ष पूर्व स्वेच्छा से अपनी संपत्ति की घोषणा करते हुए बताया था कि उनके पास सात हजार एक सौ बहत्तर रुपये का बैंक बैलेंस और १९ लाख रुपये का एक मकान है। ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य निभाते चले आ रहे इस अधिकारी की बेटी जब गंभीर रूप से बीमार हुई तो अस्पताल में भरती कराने के लिए उनके पास एक मुश्त पांच हजार रुपये भी नहीं थे। यकीनन बेहद हैरतअंगेज सच्चाई है यह। उस समय यू. सागायम आबकारी विभाग में उपायुक्त थे। इस देश में आबकारी अधिकारी करोडों के वारे-न्यारे करते रहते हैं पर कुछ ऐसे भी हैं जो कहीं भी रहें, अपना ईमान नहीं बेचते। इसी तरह से अपने यहां चंद ऐसे राजनेता भी हैं जिन्होंने अपने माथे पर चरित्रहीन होने का दाग नहीं लगाया है। ऐसे लोग ही आशाएं जगाते हैं कि अगर ठान लिया जाए तो देश में कैंसर की शक्ल अख्तियार कर चुके भ्रष्टाचार के कलंक को मिटाया और धोया जा सकता है:
''अभी खत्म नहीं हुआ है सबकुछ
बचा है औरतों में धीरज
बाकी है बच्चों में भोली मुस्कान
आदमी की आंखों में अभी भी हैं सपने
दुनिया को खूबसूरत व बेहतर बनाने के लिए
बाकी है बहुत कुछ
अभी खत्म नहीं हुआ है सबकुछ''।
Thursday, August 18, 2011
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