Thursday, April 11, 2013

मदहोश मंत्री के विषैले बोलवचन

''वह कौन देशमुख ५५ दिनों से आजाद मैदान पर आमरण अनशन पर बैठा है! ...कहता है बांध से पानी छोडा जाए। अरे भाई जब बांध में पानी ही नहीं है तो छोडा कहां से जाए? क्या मूत कर बांध को लबालब कर दूं?''
यह शब्द किसी शराबी, गुंडे मवाली के नहीं, प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और राज्य के सिं‍चाई मंत्री के हैं। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त किसानों की बदहाली का मजाक उडाने वाले इस नेता का नाम है अजीत पवार। अजीत पवार की असली पहचान यही है कि वे उस शरद पवार के लाडले भतीजे हैं जो मर्द मराठा कहलाते हैं। जिन्होंने चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का सुख भोगा है। देश के रक्षामंत्री भी रह चुके हैं। वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री हैं। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने रहस्योद्घाटन किया था कि भारतवासी ज्यादा खाते हैं इसलिए देश को अनाज की कमी झेलनी पडती है। कहावत है कि 'खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है।' फिर अजीत तो शरद पवार के भतीजे हैं।
बीते सप्ताह मंत्री महोदय पुणे की इंद्रापुर तहसील में एक रैली को संबोधित कर रहे थे। वैसे भी अपने इलाके में पैर रखते ही नेताओं पर उत्तेजना और जोश हावी हो जाता है और सीना भी चौडा हो जाता है। अजीत तो जन्मजात जोशीले हैं। गुस्सा तो उनकी रग-रग में भरा है। गुस्से और जोश में वे अक्सर होश खो देते हैं। जब उन्होंने अनशनरत किसान की खिल्ली उडाते हुए मूतने...मातने की बातें कीं तो कई श्रोताओं ने खूब तालियां पीटीं। तालियों के शोर के साथ-साथ मंत्रीजी भी नैतिकता और मर्यादा को ताक पर रखते चले गये। शालीनता को तो उन्होंने थूक कर फेंक दिया। पानी तो पानी, बिजली की कमी और कटौती पर भी उन्होंने कटाक्ष भरी भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि बिजली नहीं होती तो रात में उस काम (मौजमस्ती और बिस्तरबाजी) के अलावा और काम नहीं बचता। जिस तरह से धडाधड आबादी बढ रही है उसे देखकर तो यही लगता है...।
सत्ताधीशों की नाइंसाफी और प्रकृति की मार झेलते लाचार किसानों की खिल्ली उडाने वाले इस मदहोश और मगरूर मंत्री के अमर्यादित भाषण को सुनकर उनके चम्मचों ने भले ही जमकर तालियां बजायीं पर बेचारे किसान खुद को ठगा-सा महसूस करते रह गए। उन्हें अपने नसीब पर रोना आ गया। पछतावा भी हुआ कि उन्होंने कितने गैर जिम्मेदार इंसान को अपना कीमती वोट देने की भूल कर दी!
सत्ता के मद में चूर अजीत पवार को यह भी याद नहीं रहा कि किसानों की फरियाद सुनना उनका फर्ज है। जनता की समस्याओं के निवारण के लिए ही उन्हें इतने बडे पद पर सुशोभित किया गया है। सूखे की मार झेल रहे किसान को तसल्ली देने की बजाय उन्होंने जिस बेहयायी के साथ यह कहा कि बांधों में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करें? उससे देश के बुद्धिजीवी स्तब्ध रह गये। कई लोग इस चिं‍ता में पड गये कि अगर ऐसा अविवेकी और दंभी शख्स राकां सुप्रीमो शरद पवार की विरासत संभालेगा तो पार्टी का क्या होगा! अजीत पवार के बोलवचनों की गूंज दूर-दूर तक गयी है। अभी तक तो चाचाश्री भतीजे को बचाते आये हैं पर इस बार भतीजे के बाण से छूटे विषैले तीर ने प्रदेश ही नहीं देश के करोडो किसानों को वो जख्म दिये हैं जिनका भर पाना बहुत मुश्किल है।
क्या शासकों को ऐसी अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए? क्या उन्हें सिं‍चाई मंत्री इसलिए बनाया गया है कि वे पानी और बिजली की मांग करने वाले निरीह किसानों के जख्मों पर नमक छिडकें? उन पर अश्लील शब्दों की बौछार करें? क्या प्रदेश की प्यासी जनता को मंत्री महोदय पेशाब पिलाना चाहते हैं? अजीत पवार में अगर थोडी भी इंसानियत होती तो वे अपना दायित्व निभाते हुए तुरंत उस किसान तक जा पहुंचते और उसके पैर पकड कर माफी मांगते। पर आत्ममुग्ध और अहंकारी अजीत पवार ने बेबस किसान का अपमान कर स्पष्ट कर दिया है कि वे किस मिट्टी के बने हैं। आम आदमी के प्रति उनमें कोई सम्मान नहीं है। किसानों को दुत्कारना और फटकारना उनकी फितरत है। विचारशीलता और मानवीय संवेदनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं है। महाराष्ट्र के भोले-भाले किसानों ने सत्ता के नशे में मदहोश नेता तो कई देखे होंगे पर ऐसा बेशर्म और मुंहफट मंत्री नहीं देखा होगा। अजीत पवार ने तो कोई भी कसर बाकी नहीं रखी। अजीत पवार के अभद्र और अशोभनीय व्यवहार से महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश के लोग क्षुब्ध, आहत और आक्रोशित हैं। डॉ. कुमार विश्वास ने अपने अंदाज में शब्दबाण छोडे हैं और कहा है कि अजीत पवार साहब आप बहुत बडे आदमी हैं। आप मूतने का कष्ट क्यों करते हैं, चुनाव आने दिजिए आपके नाम पर हम सब मूत देंगे। यानी मतदाता फैसला कर ही देंगे। किसी के कपडे फाड देने के बाद माफी मांगने का नाटक कोई मायने नहीं रखता। देश के चर्चित व्यंग्यकार, कवि, उपन्यासकार गिरीश पंकज की कविता की यह पंक्तियां भी बता रही हैं कि बुद्धिजीवियों के साथ-साथ मुल्क के आम लोग कितने आक्रोश में हैं:
''अंट-शंट इतना ज्यादा मत बोल जमूरे
घटियापन अपने तू मत खोल जमूरे
तुम कुर्सी पर बैठे हो तो खुदा नहीं हो
भ्रम में इतना इधर-उधर मत डोल जमूरे
अब तो तय है तुमको 'जाना' ही होगा
विष तुमने ही दिया आज यूं घोल जमूरे
लाख छिपाओ कभी नहीं छिप सकती
खुल ही जाती है अक्सर पोल जमूरे...।''

2 comments:

  1. महाराष्ट्र में रहते हए इतनी बेबाकी के साथ साथ सम्पादकीय लिखने वाले कितने लोग होंगे, यह मैं नही जानता , शायद नहीं के बराबर। बिकी हुयी पत्रकारिता से उम्मीद भी नहीं की जा सकती लेकिन आपने -हमेशा की तरह- हिम्मत दिखाई और नीचता से भरा बयान देने वाले अजीत पवार को आईना दिखाया है. डूब मरे वो शर्म से. लेकिन इसकी उममीद नहीं है. खैर, आपने अपना फ़र्ज़ निभाया है. मैं इस हिम्मत को नमन करता हूँ . इसीलिये यह कलम यहा-वहाँ सम्मानित होती रहती है. और हां, इस बार मेरी कविता भी सम्मानित हो गयी .

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