Thursday, November 13, 2014

बेहयायी का कचरा

यह देश की बदनसीबी है कि आज भी करोडों देशवासी ऐसे हैं जिनके घरों में शौचालय नहीं हैं। उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे इस मूलभूत सुविधा को अपना सकें। यह घोर गरीबी और अशिक्षा ही है जो उन्हें तथा उनके परिवार की महिलाओं को खेतों, खलिहानों, सडक के किनारे तथा रेल पटरियों के आसपास शौच करने को विवश करती है। उन्हें ऐसी स्थिति में देखने वालों को जितना बुरा लगता है उससे कहीं ज्यादा शर्मिन्दगी खुले में शौच करने वालों को झेलनी पडती है। देश में ऐसे नज़ारें आम हैं। गरीब तो विवश होते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो जानबूझकर तरह-तरह की गंदगी फैलाते हैं। पेशाब करने के लिए कहीं भी खडे हो जाते हैं। जहां इच्छा हुई वहां थूक दिया और चलते बने। पान एवं गुटखे की पीक को साफ-सुथरी दिवारों पर पिचकने वालों की बेहयायी देखते बनती है। जलती सिगरेट और बीडी कहीं भी फेंक देना, घर और दुकान का कूडा-कचरा गलियों और सडकों के हवाले कर देने वालों में अनपढ ही नहीं पढे-लिखे भी शामिल होते हैं। किसी भी बाग या नदी-नाले के किनारे पडी शराब की खाली बोतलें बहुत कुछ कहती नजर आती हैं। पालिथिन की थैलियां तो बडी बेदर्दी के साथ जहां-तहां फेंक दी जाती हैं। जहां पूजा-अर्चना की जाती है वहां भी गंदगी फैलाने में संकोच नहीं किया जाता। कौन भारतवासी ऐसा होगा जिसकी गंगा के प्रति आस्था नहीं होगी। गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। लेकिन इस मां की जो दुर्दशा है उसकी चिन्ता कितनों को है? गंगा मैया के पवित्र जल को इस कदर विषैला बनाकर रख दिया है कि अब उसे पीने में ही डर लगता है। देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। स्वच्छ भारत अभियान उफान पर है। लेकिन काम कम और तमाशे ज्यादा हो रहे हैं। व्याभिचार, भ्रष्टाचार, बेईमानी, लूटपाट, आजादी का दुरुपयोग और मनमानी भी इसी कूडे-कचरे के प्रतिरूप हैं। इस कूडे-कचरे के हिमायती भी कम नहीं हैं। अपने देश में भीड जुटने में ज्यादा देर नहीं लगती। यहां तथाकथित बुद्धिजीवी भी भरे पडे हैं जो समर्थन के झंडे उठाकर सडकों पर उतरने में देरी नहीं लगाते।
२४ अक्टूबर को कोच्ची की एक कॉफी शॉप की पार्किंग में एक युवक और युवती को पता नहीं क्या सूझी कि वे खुले आम चुम्मा-चाटी पर उतर आये। अधिकांश लोगों ने उनकी इस बेहयायी को नजरअंदाज कर दिया। पर कुछ लोगों को उनकी यह बेहयायी कतई रास नहीं आयी। ऐसे में उनकी ठुकायी हो गयी। शोर मचा कि यह काम हिन्दू संगठनों का है। यह सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि चुंबनरत जो‹डे की तस्वीरें टीवी के पर्दे पर भी लहराने लगीं। युवक-युवती के पक्षघरों ने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया कि हम आजाद मुल्क के आजाद नागरिक हैं। हम कहीं भी कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। हमारे इस मूलभूत अधिकार को कोई भी नहीं छीन सकता। केरल के कोच्चि से जन्मे इस तमाशे को देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचने में ज़रा भी देरी नहीं लगी। इस खुल्लम-खुला 'चुम्बन कर्म' को नाम दिया गया। 'किस ऑफ लव' की मुहिम। सैकडों युवक-युवतियों और उनके समर्थक ने दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय के समक्ष एकत्रित होकर एक दूसरे के गालों को चूमा और अपनी इस मुहिम का समर्थन करते हुए जमकर शोर-शराबा किया। बिना किसी संगठन, बैनर के सोशल मीडिया पर मिले निमंत्रण पर पहुंचे युवाओं के हुजूम ने 'किस ऑफ लव' के अंध समर्थन में गजब का जोश दिखाया। एक दूसरे को गले लगाते और चूमते छात्र खुल्लम-खुला प्यार करेंगे हम दोनों, इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों, प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की जैसे फिल्मी गीत गाकर उन लोगों के प्रति अपना घोर विरोध प्रकट करते रहे जो उनकी मनमर्जी और मर्यादा की धज्जियां उडाने के आडे आते हैं। खुल्लम-खुला गुत्थम-गुत्था होने की आजादी चाहने वाले युवाओं का कहना था कि परंपरा, संस्कृति के नाम पर किसी को समाज का ठेकेदार बनने की जरूरत नहीं है। उनका कोई हक नहीं कि वे हमारे ऊपर अपने आदेश थोपें। दूसरी तरफ हिंदू सेना की तरफ से चेताया गया कि हम देश की संस्कृति कतई नहीं बिगडने देंगे। जो 'किस ऑफ लव' की बात कर रहे हैं वे असल में कामसूत्र के बारे में ठीक से नहीं जानते। मर्यादा का पालन किया ही जाना चाहिए। वह आजादी किस काम की जो दूसरों को शर्मिन्दगी और पी‹डा दे। ओछी हरकतों को प्यार कहना बेवकूफी है। प्यार, पान और गुटखे की पीक नहीं है जिसे जहां चाहा वहीं उगल दिया। कुछ लोग जिस तरह से अपने घरों का कूडा कहीं भी फेंक देते हैं प्यार के मामले में भी उनका कुछ ऐसा ही रवैय्या रहता है। जहां इच्छा हुई वहां निर्लज्जता का जामा ओड लिया और जब विरोध की आवाजें उठीं तो चीखने-चिल्लाने लगे कि हमारी आजादी छीनी जा रही है और हमें गुलाम बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। प्यार को बेहयायी का जामा पहनाने वालों के कारण वातावरण दुषित होता चला जा रहा है। इन बेशर्म परिंदो ने शहरों के बाग-बगीचों, बाजारों और सडक चौराहों को भी नहीं बख्शा। बसों, रेलगाडियों में भी इनके नग्न तमाशे चलते रहते हैं। देखने वालों का सिर झुक जाता है, लेकिन इनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। इस देश में तो ऐसे बेहूदा तमाशों का विरोध होगा ही। इसे रोका नहीं जा सकता। हां तथाकथित प्यार के नाम पर खुल्लम-खुला चुम्मा-चाटी करने वालों को प्यार से सिखाने की जरूरत है न कि मारने और पीटने की। कचरा, कचरे की सफाई नहीं कर सकता।

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