Thursday, November 6, 2014

इनसे बचकर रहना मुख्यमंत्री जी

विधायक जी के मुख्यमंत्री बनने पर शहरवासियों में अभूतपूर्व खुशी की तरंग दौड गयी। हर किसी ने माना कि काफी लम्बी प्रतीक्षा के पश्चात महाराष्ट्र को एक कर्मठ, मिलनसार, परिश्रमी और ईमानदार नेता मिला है। अब शहर के साथ-साथ संपूर्ण प्रदेश का चहूंमुखी विकास तय है। मुख्यमंत्री बनने के बाद तेजस्वी देवेंद्र फडणवीस का जब उपराजधानी नागपुर में प्रथम आगमन हुआ तो उनको करीब से देखने, हाथ मिलाने, हार पहनाने और गुलदस्ते देने वालों का जो हुजूम उमडा, वो कई मायने में ऐतिहासिक था। उनको शुभकामनाएं देने वालों के हुजूम में हर वर्ग और उम्र के लोग शामिल थे। उत्सवी माहौल ने उनकी अपार लोकप्रियता का डंका पीट दिया। ऐसी ऐतिहासिक विजय रैली पहले कभी नहीं देखी गयी। अभी तक नेताओं के स्वागत के लिए कार्यकर्ताओं और समर्थकों को ही जुटते और भीड बनते देखा गया है, लेकिन इस बार आम जनता भी इस खुशी में शामिल थी। मुख्यमंत्री के विजयरथ पर फूलों की बरसात हुई। बडे-बुजुर्गों के आशीर्वाद की झडी लग गयी। फटाखे इतने फूटे कि असली दीपावली की चमक फीकी पड गयी। महिलाओं और युवतियों ने अपने घरों के सामने रंगोली उकेरकर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री का तहेदिल से स्वागत किया। हर चौराहे पर ढोल ताशे बजते रहे। शहर का ऐसा कोई चौक-चौराहा नहीं बचा था जहां इस जनप्रिय नेता के शुभचिंतकों ने अपनी अपार खुशी का इजहार करने के लिए पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स न लगाए हों।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के तंबू के नीचे राजनीति का पाठ पढने वाले देवेंद्र फडणवीस की लोकप्रियता की चकाचौंध ने खुद गडकरी को भी हतप्रभ कर दिया। फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने से कुछ चेहरों को कष्ट भी हुआ है, लेकिन फिर भी उनके चाहने वालों की तादाद इतनी है कि उनकी अभूतपूर्व उपलब्धि (जिसके वे वास्तव में हकदार थे) के समक्ष चंद नाखुश लोगों की रत्ती भर भी अहमियत नहीं है। फिर भी फडणवीस के रास्ते में कई तकलीफें आने वाली हैं। उन्हें अवरोधों का भी सामना करना पडेगा। बेदाग छवि के धनी देवेंद्र से राज्य की जनता को ढेर सारी उम्मीदें हैं। प्रदेश का हर जन उनके इस वायदे से आश्वस्त है कि वे स्वच्छ निष्पक्ष और पारदर्शी सरकार देंगे और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। उन्होंने ऐसे महाराष्ट्र की कमान संभाली है जो आर्थिक रूप से जर्जर हो चुका है। कांग्रेस-राकां गठबंधन की सरकार ने बेइमानी, भ्रष्टाचार और लूटपाट का ऐसा तांडव मचाया कि कभी खुशहाल राज्यों में गिना जाने वाला महाराष्ट्र साढे तीन लाख करोड के कर्ज के तले डूबा है। जिस धन को आम जनता के विकास के लिए खर्च किया जाना था, उसका भ्रष्टों की जेब में चले जाना इस प्रदेश की बर्बादी का मुख्य कारण बना। विदर्भ को जानबूझकर विकास से दूर रखा गया। गरीबी, बेरोजगारी और पिछडेपन के मारे विदर्भ में किसान आत्महत्या करते रहे और पूर्व की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। विदर्भ के गडचिरोली में नक्सलवाद ऐसा पनपा कि अब उसकी जडे काफी गहरे तक अपनी पहुंच बना चुकी हैं। अध्ययनशील देवेंद्र हर समस्या से वाकिफ हैं। उन्हें भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की शिनाख्त के मामले में बेहद सजग रहना होगा। अकेले उनके ईमानदार होने से सबकुछ ठीक-ठाक चलेगा ऐसा मान लेना नादानी होगी। इतिहास गवाह है कि इर्द-गिर्द के लोग ही धोखा और तकलीफें देते हैं और अंतत: गर्त में डूबो देते हैं।
देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने पर शहर की दिवारों पर चस्पा किये गये पोस्टरों और अखबारों में धडाधड छपे शुभकामनाओं के विज्ञापनों के विज्ञापनदाताओं में कुछ नाम ऐसे नजर आए जिन्होंने सजग शहरवासियों को चौंका कर रख दिया। यह वो मतलब परस्त हैं जिनकी हमेशा सत्ता से यारी रही है। इनका एक ही उसूल रहा है- जिधर दम, उधर हम। यह चाटूकार सत्ता और राजनीति को अपने स्वार्थों को साधने का एकमात्र माध्यम मानते हैं। एक धन्नासेठ जो कभी भाजपा का नगरसेवक भी रह चुका है, उसने शहर के सभी अखबारों में पूर्ण पृष्ठ के शुभकामना और अभिनंदन के विज्ञापन छपवाकर यह दर्शाने की कोशिश की, कि देवेंद्र फडणवीस का उनसे बढकर कोई और शुभचिंतक है ही नहीं। और भी कुछ चाटूकारों ने शहर में होर्डिंग और पोस्टरों की झडी लगायी। कुछ भूमाफिया और सरकारी ठेकेदार भी भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री के अभिनंदन और स्वागत के मामले में पीछे छोड गये। लगभग पंद्रह वर्ष पूर्व जब महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार थी तब नागपुर के दलबदलू, मुखौटेबाज दालमिल वाले ने 'चावल कांड' को अंजाम देकर करोडों की कमायी कर ली थी और भाजपा के हिस्से में जबर्दस्त बदनामी आयी थी। ऐसे लोग फिर सक्रिय हो गये हैं। देवेंद्र फडणवीस को ऐसे शातिरों से भी चौकन्ना रहना होगा। यह वो लोग हैं जिनकी घेराबंदी के चलते आमजनों, पीडितों, समस्याग्रस्त किसानों, दलितों शोषितों, गरीबों, बेरोजगारों और तमाम जरूरतमंदों का शासकों की चौखट तक पहुंच पाना टेढी खीर हो जाता है। इनके फरेबी जयघोष में न जाने कितनी ईमानदार आवाजें दबकर रह जाती हैं। यह मतलबपरस्त पता नहीं कितने ईमानदार राजनेताओं का भविष्य चौपट कर चुके हैं। यह इतने घाघ हैं कि अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अच्छे खासे इंसान को शैतान तो कभी भगवान बना देना इनके बायें हाथ का खेल है। देश के चर्चित कवि और व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने ऐसे मायावी चेहरों से सतत सावधान रहने के लिए यह पंक्तियां लिखी हैं :
'हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम
बहुत संभव है बना दे भीड तुमको देवता
किंतु मन में इक अदद इंसान रखना तुम'

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