Thursday, February 14, 2019

कितनी जानें लेगी शराब!

उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में जहरीली शराब और धन के लालच ने फिर सौ से अधिक लोगों की जान ले ली। मौत की शराब पीकर मरने वालों के परिवारों को दो-दो लाख का मुआवजा देकर सरकार ने अपना कर्तव्य निभा दिया और परिजन विलाप करते हुए शासन और प्रशासन को कोसते रहे, जिसकी अनदेखी या यूं कहें कि मूक सहमति से शराब का गोरखधंधा फलता-फूलता रहा है। कुछ माह पूर्व इसी तरह से कानपुर में भी जहरीली शराब से एक दर्जन मौतें हुर्इं थीं। सच तो यह है कि देश में किसी न किसी हिस्से से जहरीली शराब से मौतों की खबरें आती रहती हैं। जिन्हें पढ-सुनकर बडी सहजता से भुला दिया जाता है। जहरीली शराब पीकर मरने वाले ज्यादातर लोग उत्तराखंड में स्थित धार्मिक नगरी हरीद्वार में आयोजित एक तेरहवीं कार्यक्रम में शरीक होने गए थे, जहां पर उन्हें यह जानलेवा शराब परोसी गयी। श्राद्ध में शराब पिलाने की यह बडी पुरानी सामाजिक कुरीति है, जिसका खात्मा करने की पता नहीं कोई कोशिश क्यों नहीं की गयी! इस शराब को पीने से जिन और लोगों की मौत हुई वे श्राद्धकर्म में शामिल तो नहीं थे, लेकिन यह जरूर प्रतीत होता है कि उन्हें मौत की शराब आसानी से उपलब्ध थी। इसी से वे अपना शौक पूरा करते थे। इनमें से कुछ इसके लती भी होंगे। तो कुछ ने हो सकता है कि इसे पहली बार चखा हो और हमेशा-हमेशा के लिए मौत के मुंह में समा गए हों। मरने वालों में सभी गरीब थे। मेहनत-मजदूरी कर अपना तथा परिवार का भरण-पोषण करते थे। यह प्रश्न भी बहुत परेशानी में डालने वाला है कि गुजरात, बिहार, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर जैसे प्रदेशों की तरह उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में शराबबंदी नहीं होने के बावजूद लोग अवैध शराब क्यों पीते हैं। वैसे तो जिन राज्यों में शराब बंदी है वहां पर भी शराबियों को बडी सहजता से शराब मिल जाती है। दुस्साहसी शराब माफियाओं ने वहां पर अपना ऐसा साम्राज्य स्थापित कर रखा है जिस पर कभी भी आंच नहीं आती। मृतकों ने जो शराब पी थी उसे और नशीला बनाने के लिए मरे हुए सांप और छिपकलियां मिलाई गई थीं। अमीर तो महंगी शराब पीकर मौज मना लेते हैं, लेकिन नगरों और महानगरों में अवैध रूप से बसी झुग्गी-झोपडियों में रहने वाला मेहनतकश गरीब तबका अपनी थकान मिटाने के लिए सस्ती शराब पीने को मजबूर होता है। उसे यह पता नहीं होता कि इससे उसकी जान भी जा सकती है। वह तो बस विष पीता चला जाता है और एक दिन ऐसा मौत का तांडव सामने आता है, जो अकल्पनीय होता है। यह सच भी बेहद चौंकाने वाला है कि लोगों को शराब का आदी बनाने के लिए कई शराब माफिया उधार में शराब पिलाते हैं। एक माह में उधार नहीं चुकाने पर दस फीसद ब्याज वसूला जाता है।  ताज्जुब है कि इतना भयावह साजिश भरा खेल चलता रहता है और शासन-प्रशासन अनभिज्ञ रहता है! जहरीली शराब के कहर के बाद की गई छापेमारी में हजारों लीटर अवैध शराब और उनमें प्रयोग की जाने वाली हानिकारक सामग्रियां पकडने वाली पुलिस और आबकारी विभाग में यदि इंसानियत होती तो मौत के सौदागर बेखौफ होकर इतने व्यापक पैमाने पर अवैध भट्टियां नहीं चला पाते। ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस मौत के काले धंधे की खबर आम जनता को थी, लेकिन खाकी वर्दीधारी और आबकारी विभाग अनभिज्ञ था! प्रशासन की मिलीभगत के बगैर इतने बडे पैमाने पर मौत का कारोबार संभव ही नहीं। यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि जब भी अवैध शराब से होने वाली मौतों की खबर आती है तो राजनेता मृतकों के प्रति संवेदना प्रकट करने का नाटक करने लगते हैं। सवाल यह है कि क्या इन्हें भी जानलेवा काले कारोबार का तभी पता चलता है जब लाशें बिछ जाती हैं? सच तो यह है कि राजनीतिक संरक्षण के बिना शराब माफिया पनप ही नहीं सकते। देश की राजनीति के मैदान में सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाले भरे पडे हैं। ऐसी मौतें यकीनन शासन और प्रशासन के निकम्मेपन की देन हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण लगभग पूरे देश में अवैध शराब का धंधा चल रहा है। वहीं हम और आप भी कम दोषी नहीं, जो यह सोचकर आंखें मूंदे रहते हैं कि यह काम तो सरकार और प्रशासन का है। हमें इससे क्या लेना-देना। सरकार और प्रशासन को जगाने की जिम्मेदारी समाज की भी तो है। ऐसी मौतों के बाद कई लोग उपदेश देने की मुद्रा में आ जाते हैं। उनका कहना होता है कि गरीब लोग शराब पीना छोड क्यों नहीं देते। अगर पीनी भी है तो महंगी शराब पिएं, जिससे जान जाने का कोई खतरा तो नहीं होता। दरअसल जरूरत तो इस बात की है कि गरीबों को कम कीमत पर सुरक्षित और मुहरबंद शराब उपलब्ध कराई जाए, जिससे वे विषैली शराब का शिकार न हों। उन्हें भी तो अपनी इच्छा और शौक पूरे करने का मौलिक अधिकार है। यहां हमारा शराब की वकालत करने का इरादा कतई नहीं है। शराब अंतत: हानिकारक है, लेकिन अमीरों की तरह गरीबों की भी पीने की इच्छा होती है। उनकी इस चाहत पर तभी अंकुश लग सकता है, जब वे खुद चाहें और समझें। पीडा तो इस सच को लेकर होती है कि हमेशा मौत की शराब उन्हीं के हिस्से में आती है। इस कातिल बेइंसाफी के कर्ताधर्ता भी वही धनवान होते हैं जिनका सत्ता और समाज में मान-सम्मान होता है। शराब के खिलाफ देश की महिलाओं द्वारा समय-समय पर विरोध और आंदोलन होते रहते हैं। सरकार को भी झुकना पडता है और शराबबंदी करनी पडती है। इसके बाजवूद भी हमारे समाज में शराब पीने का चलन बढता ही चला जा रहा है। यह भी कह सकते हैं कि शराब पीना इतना आम हो गया है कि कई महिलाएं भी शराब के नशे में डूबने लगी हैं।

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