Thursday, April 1, 2021

समयांतर

    बात इंसान की। हर किसी की जान की। बाकी सब कुछ चलता-चलाता रहता है। हम और आप स्वस्थ हैं, चलायमान हैं, खुश और प्रसन्न हैं, तो ही इस दुनिया के होने की सार्थकता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनकी सोच और प्राथमिकता निजी स्वार्थ पर टिकी है। उनमें अथाह निर्ममता और लालच भरा पडा है। वे धन के लिए हत्यारे बनने से नहीं घबराते। कोरोना की दूसरी अंधी लहर में कुछ अस्पतालों तथा डॉक्टरों की शर्मनाक कारस्तानी सामने आ रही है। वह यही दर्शा रही है कि मौका पाते ही लूटपाट में लग जाना धनपशुओं के जीवन का असली मकसद है। नागपुर के एक अस्पताल में डॉक्टरों की घोर लापरवाही के कारण दो लोगों की मौत हो गई। मृत मरीज का इलाज कर मानवता को शर्मिन्दा करने वाले इस अस्पताल के डॉक्टरों की दरिन्दगी की हकीकत ही भयभीत कर देती है। आखिर हमें किन लोगों के भरोसे कोरोना से लडना पड रहा है! इन हत्यारों को अपने पावन पेशे को कलंकित करने में लज्जा क्यों नहीं आती? यह सवाल तभी से जवाब मांग रहा है, जब से कोविड-१९ की महामारी ने चारों तरफ अपने पैर फैलाकर इंसानों को बताया कि कुदरत के समक्ष वे कितने असहाय और बौने हैं।
कोरोना का इलाज करवाना हर किसी के बस की बात नहीं। यही वजह है कि अस्पताल में फांसी के फंदे पर झूल जाने की खबरें पढने-सुनने में आ रही हैं। नागपुर के मेडिकल अस्पताल व कॉलेज में कोविड वार्ड, ट्रामा सेंटर में भर्ती ८१ वर्षीय वृद्ध की आत्महत्या की खबर वाकई चौंकाने वाली है। सामान्य सर्दी खासी की शिकायत के बाद उन्हें अस्पताल में लाया गया था। परिवार के सदस्यों को जैसे ही पता चला कि बुुजुर्ग कोरोना पाजिटिव हो गये हैं, तो वे बिना कोई बातचीत के उन्हें मेडिकल अस्पताल में छोडकर चलते बने। वृद्ध अकेलेपन और असुरक्षा की भावना से टूट गए और चुपचाप बाथरूम में खुदकुशी कर ली। अपनों के एकाएक दूरी बनाने से कई स्वस्थ इंसान भी मौत के मुंह में समा रहे हैं। दरअसल सभी इतने सक्षम नहीं कि कोरोना की बीमारी के चपेट में आये अपने करीबियों के लिए धन की व्यवस्था कर सकें। ऐसा मान लेने वाले भी बहुतेरे हैं कि कोरोना हुआ है तो मौत भी तय है, जबकि यह सच नहीं है। कोरोनाग्रस्तों को हौसले तथा सुरक्षा के अहसास से इतना बलवान तो बनाया ही जा सकता है कि वे अंतिम सांस तक लडते रहें। वैसे तो पूरे देश में कोरोना की आंधी लोगों को अपने लपेटे में ले रही है, लेकिन महाराष्ट्र में कोरोना का आतंक कुछ ज्यादा ही देखने में आ रहा है। लगभग सभी जानते हैं कि कोरोना से बचने के लिए खुद का सतर्क होना जरूरी है, लेकिन ज्यादातर लोग उन नियमों का पालन करने में कंजूसी बरतते हैं, जो अति आवश्यक हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय का ताजा सर्वे बताता है कि पचास फीसदी लोग भीड-भाड में मास्क लगाने की चुस्ती नहीं दिखाते। उन्हें दूसरों का मास्क लगाना जितना जरूरी लगता है, उतना स्वयं का नहीं। विदर्भ के ग्रामीण और शहरी इलाकों में कोरोना ने जिस तादाद में मौत बांटनी प्रारंभ कर दी है, उससे यह भी माना जा रहा है कि शासन और प्रशासन खुद को असहाय पा रहा है। अस्पतालों में आईसीयू बेड की भारी कमी स्पष्ट दिखायी दे रही है। संतरानगरी नागपुर में कोरोना पॉजिटिव मरीज खुलेआम घूम रहे हैं। कोई भी पाबंदी उनपर असरकारी नहीं हो रही है। कोरोना संक्रमण के मामले में देशभर में नागपुर तीसरे स्थान पर है। नागपुर में हो रही मौतें देशभर में चिन्ता का विषय बन कर रह गई हैं। कोरोना का संकट आज नहीं तो कल खत्म हो जायेगा, लेकिन इस शर्मनाक सच को कभी भुलाया नहीं जायेगा कि जब लोग धडाधड मर रहे थे तब भी प्रदेश के कुछ शासक और प्रशासक जनता की सुरक्षा की चिन्ता की बजाय धन के प्रबंध में तल्लीन थे। उनके लिए इंसानी जानों से कहीं ज्यादा अपना धन-दौलत से भरपूर सुरक्षित भविष्य मूल्यवान था। इसके लिए उन्होंने इंसानियत को भी बेच खाया था...।

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