Thursday, March 25, 2021

खाकी शैतान... खादी भगवान?

 वर्षों बाद महाराष्ट्र का एक वजनदार मंत्री अपने ही जाल में फंस चुका है। उसे लपेटे में लेने का दम दिखाने वाला कोई और नहीं वो भारतीय पुलिस सेवा का १९८८ के बैच का उच्च अधिकारी है, जिस पर कल तक गृहमंत्री विश्वास, स्नेह और कर्तव्यनिष्ठ होने के पुरस्कार लुटा रहे थे। सालभर से दोनों की प्यार-मोहब्बत मजबूत जंजीरों से बंधी दिखायी दे रही थी। लग रहा था दोनों में बेहतरीन तालमेल बना हुआ है। इस मुंबई पुलिस कमिश्नर जिसका नाम परमबीर सिंह हैं, ने मंत्री जी के दमदार आशीर्वाद से कितनी माया समेटी यह तो अबूझ पहेली ही बनी रहेगी। ऐसे रहस्य कभी पूरी तरह से नहीं खुल पाते। २०२१ के फरवरी माह में परमबीर सिंह ने अपने परम आका देशमुख पर यह आरोप जडकर तहलका मचा दिया है कि साहब बहादुर उस पर प्रतिमाह १०० करोड की अवैध वसूली कर उनकी झोली में डालने का दबाव डाल रहे थे, जो उसे रास नहीं आया। ५८ साल के इस खाकी अधिकारी को इस बात का भी घोर मलाल था कि उसके नीचे काम करने वाले साथी को भी बेवजह निलंबित कर दिया गया। वो भी पुलिसिया दस्तूर की तमाम वफादारियां निभाता चला आ रहा था। उनकी तरह वह भी सरकार तथा मंत्री के इशारों पर नाचते हुए कानून का रक्षक होने की आड में भक्षक बना हुआ था। फिर भी उसकी कद्र नहीं की गई। यह तो सरासर नादिरशाही है, कर्तव्यपरायणता की बेकद्री है। मंत्री पर अफसर के आरोप लगाये जाते ही सभी 'ईमानदार नेता' उनकी तरफ खडे हो गये। अफसर अकेले पड गये। मंत्री के भक्त नारे उछालते दिखे, नेताजी आप आगे बढो, हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारे साथ थे। डरो नहीं। देशभक्त नेताओं पर तो भारत में भ्रष्टाचार के आरोप तो लगते ही रहते हैं। इन छोटे-मोटे आरोपों से काहे का घबराना। जब काजल की कोठरी में पांव धर ही दिए हैं, तो कालिख भी सफेद खादी को कहां बख्शने वाली है। हर सफेदपोश नेता को ऐसे बुरे दिन देखने ही पडते हैं। फिर आपके साथ तो अपने शरद पवार जी का भी पूरा आशीर्वाद है। उनके होते हुए आपकी राजनीति पर कभी आंच नहीं आ सकती। कुछ ही वर्ष पूर्व जब महाराष्ट्र में कांग्रेस, राष्ट्रवादी गठबंधन की सरकार थी तब तक एक अत्यंत ही सभ्य और ईमानदार पुलिस कमिश्नर ने तब के गृहमंत्री छगन भुजबल पर आरोप लगाया था कि साहब बहादुर मोटी रिश्वतें खाते हैं। नोटों की थैलियां लेकर उनकी वहां नियुक्ति की जाती है, जहां धन की बरसात होती है। अपराधियों को शह देने का पाठ पढाने वाले धनखोर मंत्री इसी कोशिश में रहते हैं कि भले ही चोर, हत्यारे छूट जाएं, लेकिन उनके यहां थैलियां पहुंचती रहें। कई अफसरों को हर माह उनके यहां देन पहुंचाना परिपाटी बन चुका है। उस कर्तव्यपरायण अधिकारी को छगन का चलन इतना चुभा था कि उसने रातों-रात नौकरी को लात मार दी थी। आज भी बीस साल बाद सच्चे कर्मयोद्धा की तरह वे अदालतों से गरीबों, असहायों के लिए लडाई लडते हैं। छगन भुजबल को बाद में अपने काले कारनामों के कारण जेल जाना पडा था। कई महीने जेल में रहे इस राष्ट्रभक्त की पीडा थी कि बुरे वक्त में उसका किसी ने साथ नहीं दिया। आका शरद पवार भी मुंह मोडकर बैठ गये। छगन के शब्द थे कि यहां दलित नेताओं का यही हश्र होता है। वो मालदार बन जाएं तो सही और हम धनवान बनते ही गुन्हेगार हो जाते हैं। यह तो भेदभाव ही है, जो राजनीति में चलाया जा रहा है और दलितों को रुलाया जा रहा है...। कभी सडक किनारे सब्जी का ठेला लगाकर पच्चीस-पचास के लिए तरसने वाला यह दलित नेता आज हजारों करोड का स्वामी है। कहां से आया इतना माल? इसका उत्तर न कभी छगन देंगे, न मायावती, और न ही वो सभी दलित तथा सवर्ण नेता, जिनके भाई, बंधु, अरबपति, खरबपति बन चुके हैं। उन्हीं की चमत्कारिक राजनीति की बदौलत जिसपर ज़रा-सी आंच आने की कल्पना तक उन्हें डराने लगती है। तरह-तरह के कवच ओढने लगते हैं, बहाने बनाने लगते हैं। अपने अनुयायियों के कानों में मंत्र फूंकने में जुट जाते हैं कि हम पर होने वाला अन्याय तुम पर किसी वार से कम नहीं। इसलिए एक हो जाओ। जो हमें भ्रष्टाचारी कहें उन्हें पीट-पीटकर अधमरा कर दो। बाकी हम देख लेंगे। एक सुलगता सच यह भी जनाब कि... छगन भुजबल वर्तमान महाराष्ट्र सरकार में दमदार मंत्री हैं। किस बात के ईनाम स्वरूप मंत्री बने हैं आप ही तय करें...।

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