Thursday, May 12, 2022

जिनका कोई एतबार नहीं

    कोई महंगाई का रोना नहीं।  रोजगार के लिए भी शोर नहीं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग भी भूले। बस याद है तो भेदभाव, हिंसा और मनमुटाव। महिलाओं पर हो रहे बेलगाम अत्याचारों को भी अनदेखा किया जा रहा है। वर्षों से चली आ रही सात्विक परंपराओं की खुलेआम हत्याएं हो रही हैं। इस बार तो हिंदू-मुस्लिम समुदाय के पवित्र त्योहारों में भी खलल डालने वालों ने अपना आतंकी चेहरा दिखाया। तलवारें चमकीं व पत्थर बरसे और चिंताग्रस्त कर देने वाला खौफ देखने में आया। शासन और प्रशासन को कई जगहों पर बुलडोजर चलाना पड़ा। खाकी वर्दी वाले भी कहीं असहाय तो कहीं मूकदर्शक बने रहे। अन्याय, अत्याचार और अपराधों के खिलाफ गूंजने वाली आवाजें धीमी पड़ चुकी हैं। अगल-बगल में बहू-बेटी की अस्मत लुटती है तो लुटती रहे, लेकिन सभी को अपना घर बचाने की पड़ी है। इस सच को तो बिसरा ही दिया गया है कि कल हम पर भी गाज गिर सकती है। मानवता के शत्रु बहुत सोच-समझकर आपसी फूट डालने के षडयंत्रों के बीज बो रहे हैं, जिन्हें विषैले पेड़ बनने में देरी नहीं लगेगी। देश के सबसे सुरक्षित और मजहबी एकता के प्रतीक, अमन पसंद शहर नागपुर के रेलवे स्टेशन पर विस्फोटो का मिलना और पंजाब के खुफिया मुख्यालय में धमाके का होना बहुत कुछ कह रहा है कि देश के शत्रु, आतंकी सिर उठाने को आतुर हैं।
नेताओं को तो बस सत्ता की पड़ी है। सत्ताधीश भी मदहोश हैं। अधिकांश न्यूज चैनलों पर समाचारों की जगह अनर्गल बहसबाजी सिरदर्द बढ़ा रही है। अब तो कई जागरूक नागरिक न्यूज चैनल के करीब भी नहीं जाना चाहते। लगभग सभी चैनल वाले ऊटपटांग एकपक्षीय तर्कों का पिटारा खोलने वालों को अपने कार्यक्रमों में ला बिठाते हैं और ऊल-जलूल तमाशा दिखाते हैं। अखबारों के प्रति भी लोगों का पहले जैसा भरोसा और रुझान नहीं रहा। विज्ञापनों के लिए लोकतंत्र के सशक्त प्रहरी को निर्वस्त्र बाज़ार बना दिया गया है। पैसा फेंको, तमाशा देखो। विभिन्न धर्मों के सच्चे प्रेमियों की हत्याएं की जा रही हैं। दुकानें और घर फूंके जा रहे हैं। तथाकथित सेक्युलरों ने चुप्पी ओढ़ ली है। अपने जीवनकाल में मैंने ऐसे बुरे मंज़र पहले कभी नहीं देखे।
    अपने इस भारत देश में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य फैलाने वालों की जमात के साथ-साथ कई ऐसे और भी नफरती लोग पनप रहे हैं, जिन्हें सिख, सिंधी, पंजाबी, मारवाड़ी, जैन, ब्राह्मण, बनिया, सिख, ईसाई और बौद्धों में भी खतरे, कमियां और बुराइयां दिखती हैं। वे इन्हें भी आपस में लड़ाना और खून-खराबा करवाना चाहते हैं। खाली दिमाग के शैतानों के तो अब बस यही मंसूबे हैं कि सभी भारतीय एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहें। सतत खून की नदियां बहती रहें। आपसी सद्भाव और एकता की सोच फांसी के फंदे पर चढ़ती रहे।
    ऐसा कतई नहीं है कि हम और आप बाहर और अंदर के गद्दारों से अंजान हैं। यह कितनी हैरत की बात है कि अब कुछ लोगों को मस्जिद, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजास्थलों में होने वाली मधुर प्रेरक आराधनाएं और प्रार्थनाएं अप्रिय लगने लगी हैं। जिस तरह से मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के विरोध में मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा है उस पर अपनी-अपनी राय है, लेकिन यह लेखक मानता है कि यह मसला उतना बड़ा नहीं, जितना बना दिया गया है। हां, ध्वनि प्रदूषण फैलाना कतई उचित नहीं। एक-दूसरे की इच्छा और भावनाओं की अनदेखी अक्षम्य है। देश के आपसी सद्भाव और पवित्र भाईचारे के हत्यारों को तो मैं सर्वनाशी मानता हूं, जो खुद के भी मित्र नहीं हैं। अभी भी वक्त है... सोचिए... यदि इनकी साजिशें कामयाब हो जाती हैं तो भारत देश का कौन-सा चेहरा विश्व के सामने होगा? इस धरती के तमाम समाज सुधारकों, विचारकों ने अमन शांति का पैगाम फैलाने में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया और ये हैं कि उनके दिखाये और सुझाये मार्ग पर बम-बारूद बिछा रहे हैं। अभी भी वक्त है, संभल जाएं। कोई भी मजहब धर्मांध बनाने के मार्ग पर जाने की सीख नहीं देता। इक्कीसवीं सदी में भी हिंदू-मुसलमान युवक-युवती आपस में प्यार नहीं कर सकते! उनके एक होने पर इतना गुस्सा कि उन्हें दिया जा रहा है मौत का उपहार! इस नये दौर में ऐसी गुंडागर्दी! प्यार और शादी सिर्फ अपने ही धर्म के साथी के साथ करो। नहीं तो मरने को तैयार रहो। यह समय बहुत सोचने का है। यदि ज़रा भी चूक हो गई तो इतिहास हमें मुर्दा मानते हुए हमीं पर थू-थू करेगा। हमने देश के बंटवारे के अथाह दर्द को झेला है। भारत माता ने अपने सपूतों की लाशें गिरती देखी हैं। भारत माता अब और हिंसा, पीड़ा और खून-खराबा बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस सच को भी जान लें कि जब तक हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी एकजुट होकर नहीं रहेंगे तब तक बरबादी के खूनी मंजर सामने आते रहेंगे और भारत माता कराहती रहेगी। सच्चा सुख-चैन देशवासियों के हिस्से में भी नहीं आ पायेगा। जब तक यह मंज़र रहेगा तब तक इंसानियत महज आत्माहीन शब्द बना रहेगा। हिंदुस्तान के और टुकड़े करने के सपने देख रही जो सांप्रदायिक एवं दंगाई साजिशें ज़हर घोलने पर आमादा हैं उनका कतई भरोसा नहीं। कोई एतबार नहीं। यदि भारत की सभी कौमें ठान लें कि भाईचारे के अटूट बंधन के धागों को कमजोर नहीं होने देना है तो कोई भी माई के लाल भारत धरा पर बम-बारूद बिछाने की जुर्रत नहीं कर सकता...।

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