Thursday, May 19, 2022

...और आदमी मर जाता है

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। यह कैसा न्याय है? कानून की किताबों में भी पढ़ने में नहीं आया कि प्रेमियों को इस तरह से डराओ कि उनकी रूह कांप जाए। उनके घरवालों को भी कहीं का नहीं छोड़ो। करे कोई और भरे कोई की कहावत को चरितार्थ करने वालें इतने संवेदनहीन और अंधे कैसे हो सकते हैं? प्रेम... प्यार कोई धर्म, जाति और योजना बनाकर नहीं किया जाता। यह तो बस हो जाता है। आसिफ और साक्षी भी इसी मोहब्बत के कैदी थे, जिसकी अनंत दस्तानों के किस्से दुनिया जहान की किताबों में भरे पड़े हैं। मध्यप्रदेश के डिडौरी जिले के छोटे से गांव के रहने वाले इस प्रेमी जोड़े को बार-बार कुछ लोगों ने याद दिलाया कि अलग-अलग धर्म के होने के कारण उन्हें समय रहते दूरियां बना लेनी चाहिए। नहीं तो धर्म की तलवार से गर्दन काटने वाले तैयार बैठे हैं, लेकिन सच्चा प्यार कहां मानता है!
    आसिफ और साक्षी के घरवालों को भी खबर लग गई थी कि कुछ हिंदूवादी संगठन उनके पवित्र रिश्ते के खिलाफ हैं। दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वर्षों पहले उनमें प्यार हो गया था। जब साक्षी के घरवालों ने उसकी शादी की बात कहीं और चलायी तो उसने साफ-साफ कह दिया कि वह आसिफ के सिवा किसी और से ब्याह करने की सोच भी नहीं सकती। मां और भाई ने फिर पुराना राग अलापा। हम हिंदू हैं, आसिफ, मुसलमान। क्यों हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाने पर तुली हो? जिद्दी साक्षी नहीं मानी तो उसके घरवालों ने उसके बाहर निकलने पर कड़ी बंदिशें लगा दीं। पढ़ना भी बंद करवा दिया गया। साक्षी ने आसिफ तक अपना संदेश भी भिजवाने में देरी नहीं की, कि यदि हम दोनों एक नहीं हो पाए तो मैं अपनी जान ही दे दूंगी। मेरे लिए तुम्हारे बिना जीना मुमकिन नहीं। साक्षी को मनाने के लिए उसके घरवालों ने इलाके के तांत्रिक से झाड़-फूंक करवायी, लेकिन यह इलाज भी प्यार के तीव्र बुखार पर बेअसर रहा। अंतत: दोनों ने भागकर अपने गांव से लगभग पांच सौ किलोमीटर दूर मंदिर में जाकर सात फेरे ले लिए।
    उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन हमले का खतरा नहीं टला। भागमभाग के बीच किसी दिन साक्षी ने वीडियो जारी कर बताया कि मैं अपनी मर्जी से आसिफ के साथ परिणय सूत्र में बंधी हूं। हम दोनों सच्चे प्रेमी हैं, इसलिए हमें अपने अंदाज में जीने दिया जाए, लेकिन साक्षी के परिजनों ने आसिफ पर बेटी को बरगला कर भगा ले जाने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी और पुलिस तो बस अब दोनों के पीछे ही पड़ गई। कई मोहब्बत के दुश्मन भी पुलिस पर गिरफ्तारी का दबाव बनाने लगे। आपसी खिंचाव और तनाव बढ़ता देख प्रशासन ने आसिफ के परिवार की दुकान और घर को बुलडोजर चलाकर जमींदोज कर दिया। कारण बताया कि अवैध निर्माण था, इसलिए धराशायी करने की वीरता दिखायी। इस खबर को पढ़ने-सुनने के बाद मेरे मन में बार-बार विचार आया कि यदि ये दोनों प्रेमी सच्चे प्यार के अटूट सूत्र में नहीं बंधे होते तो यह अवैध निर्माण ध्वस्त ही नहीं होता। यानी असली गुनहगार तो गैर धर्म में पनपा जुड़ाव है। ऐसे और भी न जाने कितने अनाधिकृत कच्चे-पक्के घर होंगे, जो सीना ताने खड़े हैं, लेकिन जिनकी तरफ कभी किसी कि निगाह नहीं जाती। जाएगी भी नहीं। रसूखदारों के असंख्य अवैध निर्माण भी अनदेखे कर दिये गये हैं। उन्हें कसूरवार नहीं माना जाता। गरीबों और असहायो पर ही किसी न किसी वजह से गाज गिरती रहती है। उन्हीं की इज्जत का बार-बार चीरहरण किया जाता है। उन्हें खुलेआम पीटा जाता है। प्यार करने के जुर्म में जिंदा तक जला दिया जाता है।
    प्रेम करने के अपराधी आसिफ के घर और धंधे का मटियामेट करने वाला प्रशासन इस सच को क्यों नजरअंदाज कर गया कि वर्षों की खून-पसीने की कमायी पर बने घर-दुकान पर उनके पूरे परिवार का हक था। यह संपत्ति अकेले तथाकथित अपराधी आसिफ की तो नहीं थी। ऐसी ही कई दुकानों और घरों को नेस्तनाबूत करने का जो निर्दयी सिलसिला बुलडोजर से चलाया जा रहा है उस पर चिंतन-मनन की जरूरत है। अंधे बुलडोजरों से जिनके घरों, घरौंदो को उजाड़ा जा रहा है, बेरोजगार कर उनके सपनों को मिट्टी में मिलाया जा रहा है, सभी वही वोटर हैं, जिन्होंने किसी न किसी पार्टी को अपना वोट दिया होगा। अवैध निर्माण खड़ा करने के लिए नेताओं और सरकारी नौकरों ने भी शह दी होगी, लेकिन आज उनकी फरियाद को सुनने वाला कोई भी नहीं। अवैध कब्जे को हटाने से पहले कम अज़ कम नोटिस... चेतावनी तो दे देते। तब भी धोखा, अब भी धोखा। पहले बनाने की छूट दी। अब तोड़ने में नादिरशाही। एक ही झटके में बेघर और बेरोजगारी की ज़हरीली सौगात!
    इंसानियत, दया, धर्म की दहाड लगाने वाले भी कहीं दुबक गये हैं। देश के समक्ष एक से एक विकराल समस्याएं सीना ताने खड़ी हैं, लेकिन सत्ताधीश और प्रशासन उन्हें दूर करने अक्षम और बौना साबित हो रहा है। आस्था के नाम पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने की आंधी चल रही है। लाउडस्पीकर, हनुमान चालीसा के साथ-साथ मंदिर, मस्जिद, मजारों के मुद्दों के शोर में असली जरूरतों के लिए कराहते देशवासियों की खबर लेने वाला कोई नजर नहीं आ रहा। जहां-तहां ताजमहल और ज्ञानवापी छाये हैं। कुतुबमीनार के अंदर के रहस्यों को उजागर करने की होड़ है। हाड़-मांस के आदमी के अंदर कैसी आंधी चल रही है उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं। इंसानों की कम, मंदिर, मस्जिद, भगवानों की चिंता का जबरदस्त सैलाब उमड़ रहा है। सैकड़ों वर्ष पूर्व की गयी किन्हीं मुस्लिम शासकों की तथाकथित मनमानी का दंड वर्तमान को झेलना पड़ रहा है। मुसलमानों को लग रहा है धार्मिक स्थानों को निशाना बनाकर उन्हें ऐसे कसूर की सज़ा दी जा रही है, जो उन्होंने किया ही नहीं। देश की बिगड़ती आर्थिक हालत पर कोई बात नहीं हो रही। रुपया रेत की तरह फिसल रहा है। पेट्रोल ने सौ का आंकड़ा पार कर लिया है। डीजल भी दिल तोड़ चुका है। घरेलू ईंधन हजार तक तो दालें आसमान पर हैं। खाने का तेल भी महंगा हो चुका है। बेरोजगारी भूख और अपराध पैदा कर रही है। न्यूज चैनल वालों ने आम आदमी की चिंता करनी छोड़ दी है। उसके लिए भी धर्म पहले और इंसान बाद का विषय है। देश में आतंकी फिर सिर उठाने की फिराक में हैं। देशवासियों को खौफ और अलगाव के साये में जीना पड़ रहा है।
    हाल ही में कश्मीर में आतंकियों ने कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। सरकारी स्तर पर सुरक्षा की कमी के चलते कश्मीरी पंडितों को फिर से 1990 की याद आने लगी है। देश की सीमा पर डटे जवान भी तनाव में जीने को विवश हैं। इस सच को महज खबर मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि विगत तीन वर्षों में लगभग 350 जवानों ने तनाव और असंतोष की वजह से खुदकुशी कर ली और 47 हजार से अधिक जवानों ने नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया है। हताशा और निराशा की यह पराकाष्टा ही है कि सैनिक अपने ही साथियों को गोलियों से छलनी करने से नहीं सकुचा रहे हैं। अब ऐसे में प्रश्न यह है कि हम और आप आखिर कब जागेंगे और सीना तान कर अन्याय और मनमानी के खिलाफ बोलेंगे? देश के जागरूक कवि उदय प्रकाश ने अपनी कविता भी यही चिंता व्यक्त की है...,
‘‘आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता
आदमी मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी
मर जाता है...।’’

No comments:

Post a Comment