Thursday, December 11, 2025

अंतिम निर्णय

मैं तो चिंतित हो जाता हूं। घबराहट होने लगती है। कई बार माथा पकड़ भी बैठ जाता हूं। आप भी बताएं कि ऐसी खबरों को पढ़कर आप पर क्या बीतती है? क्या ऐसा नहीं लगता कि नारी की आजादी, बदलाव, विकास और तरक्की के जो दावे किये जा रहे हैं, उनमें आधी-अधूरी सच्चाई है। सच तो कुछ और ही है..., जो कभी सामने आता है, कभी छुप जाता है तो कभी दबा दिया जाता है। कितने लोगों ने यह खबर पढ़ी?

छत्तीसगढ़ में स्थित बस्तर के एक छोटे से गांव बकावंड में एक डरपोक निर्दयी बाप ने अपनी बेटी को पूरे बीस साल तक अपने घर के अंधेरे दमघोटू कमरे में बंदी बनाकर रखा। बच्ची जब मात्र आठ साल की थी, तभी कायर बाप को लगा कि गांव के एक बदमाश युवक की गंदी निगाहें बच्ची पर हैं। उसने पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज कराने या युवक को फटकारने की हिम्मत करने की बजाय अपनी ही पुत्री की सुरक्षा के लिए यह खौफनाक रास्ता चुना। बच्ची की मां की बहुत पहले मौत हो गई थी। यह बाप मजदूरी कर किसी तरह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता था। जिस बिना खिड़की वाले मिट्टी के कच्चे कमरे में लड़की बीस वर्षों तक कैद रही वहां पिता रोज दरवाजा खोलकर खाना रखता और फिर दरवाजा ऐसे बंद कर देता था कि लाख कोशिश के बाद बेटी के लिए बाहर निकलना तो दूर झांकना भी मुश्किल था। उसने बीस साल तक किसी बाहरी इंसान का चेहरा नहीं देखा। घोर आश्चर्य की बात है कि उसका नहाना, जागना, सोना और खाना-पीना बंद कमरे में इतने वर्षों तक होता रहा। पड़ोसियों को भी खबर नहीं लगी कि निकट के घर की दिवारों के पीछे एक मासूम बेटी कैद होकर खून के आंसू बहा रही है। लड़की के भाई-भाभी भी ज्यादा दूर नहीं रहते थे, लेकिन उन्होंने भी कभी उसकी सुध लेना जरूरी नहीं समझा। सतत अंधेरे में रहते-रहते लड़की की आंखों की रोशनी जाती रही। वह पूरी तरह से अंधी हो गई। सन्नाटे और अकेलेपन ने उसकी आवाज भी छीन ली। बच्ची से जवान हो चुकी यह बिटिया तो घुट-घुटकर अंतत: दम ही तोड़ देती यदि उसके दादा ने समाज कल्याण विभाग को इस जुल्म के बारे में जानकारी नहीं दी होती। लड़की का नाम लिसा है। लिसा को मेडिकल जांच के बाद आश्रय स्थल ‘घरौंदा’ में रखा गया है। यहां के साफ-सुथरे हवादार माहौल में पौष्टिक भोजन और नियमित स्वास्थ्य सेवाओं के साथ उसकी देखरेख की जा रही है। लिसा धीरे-धीरे मानसिक रूप से सामान्य तो हो रही है, लेकिन किसी भी अनजान इंसान को देखकर कांपने और डरने लगती है। उसकी देखरेख में जी-जान से लगी सिस्टर टेसी फ्लावर चाहती हैं कि लिसा न सिर्फ सेहतमंद हो, बल्कि जीवन को फिर से समझे और बेखौफ होकर खुशी-खुशी जीना प्रारंभ करे। लिसा का बाप अपनी बेवकूफी पर शर्मिंदा है। उसने अस्पताल के डॉक्टरों से निवेदन किया है कि अब मैं वृद्ध हो गया हूं। आप ही इसकी देखरेख करें।

तीन महीने पहले दिल्ली में था। एक दूर के रिश्तेदार के यहां ठहरा हुआ था। उनका नाम है अशोक सेठी। सेठी जी की सोनीपत के पास शू फैक्ट्री है। हर तरह के शूज के निर्माता, इन महाशय की विवाहित बेटी कुछ दिनों से अपने मायके में आकर रह रही थी। कविता नाम की इस बिटिया की शादी दो साल पहले ही उत्तम नगर के रईस खानदान में हुई थी। उसका पति अनूप चड्ढा सरकारी ठेकेदारी के साथ-साथ जमीनों की खरीदी-बिक्री का बड़ा खिलाड़ी है। धन-दौलत के मामले में अपने ससुर को टक्कर देने वाले अनूप ने कुछ दिन तो कविता से अच्छा व्यवहार किया, फिर कालांतर में जब वह रोज-रोज शराब के नशे में धुत होकर आधी-आधी रात को घर आने लगा तो कविता का माथा ठनका। कविता को शराब पीने वालों से शुरू से ही नफरत थी। जब रिश्ते की बात चली थी तब उसे आश्वस्त किया गया था कि अनूप में कोई ऐब नहीं है। शराब और लड़की बाजी में लिप्त होने की बीमारी से दूर-दूर तक उसका कोई वास्ता नहीं है। वह तो सिर्फ अपने कारोबार में डूबा रहता है, लेकिन शादी के चंद रोज के बाद ही कविता को पड़ोसियों से पता चल गया कि उसका दो-दो औरतों से चक्कर चल रहा है। वेश्याओं के यहां जाकर रातें बिताने के चर्चे तो उसके तब होने लगे थे जब वह कॉलेज में पढ़ रहा था। शराब के साथ-साथ गांजा और एमडी भी वह तभी लेने लगा था। उसके करोड़पति खानदान में कोई भी शरीफ आदमी अपनी लड़की ब्याहने को तैयार नहीं था। कविता के पिता को अंधेरे में रखकर चट मंगनी-पट ब्याह का बड़ी तेजी से ऐसा चक्कर चलाया गया, जिससे उन्हें लड़के के बारे में ज्यादा खोज-खबर लेने का मौका ही नहीं मिल पाया। जिसने जो बताया उसे ही सच मानकर कविता की अनूप से शादी कर दी गई। इस शादी में कम अज़ कम पांच करोड़ रुपये की आहूति दी गई। लाखों की कार, सोना-चांदी, कपड़े एवं अन्य महंगे-महंगे उपहार देकर सेठी अपनी इकलौती बेटी का गंगा नहाने के अंदाज में कन्यादान कर कुछ हफ्तों के लिए विदेश यात्रा पर निकल लिए। शुरुआत में तो कविता यह सोचकर अपने पति की प्रताड़ना सहती रही कि वह उसे धीरे-धीरे सही राह में लाने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन हफ्ते, महीने गुजर जाने के बाद भी रात को उसका नशे में लड़खड़ाते आना और गालीगलौच करना कायम रहा। कविता की बर्दाश्त करने की ताकत तब खत्म हो गई जब उसे अंधाधुंध मारा-पीटा जाने लगा। बार-बार घर से लाखों रुपये लाने की मांग भी की जाने लगी। दो-तीन बार उसकी मांग की पूर्ति भी की गई, लेकिन लालच का सिलसिला बना रहा। रोती-बिलखती कविता जब भी अपने मायके पहुंची तो मां-बाप ने उसे इस दिलासे के साथ सुसराल वापस जाने को विवश कर दिया कि तुम कुछ तो सब्र करो, जब बच्चा हो जाएगा तो पति खुद-ब-खुद सुधर जाएगा। कविता न चाहते हुए भी लौट तो गई, लेकिन अनूप का नजरिया नहीं बदला। उसने कविता को कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर मारने की भी कोशिश की। उसका मुंह बंद रखने के लिए खौलता हुआ पानी भी फेंका। एक रात तो जब वह अपनी पुरानी प्रेमिका को घर ले आया तो कविता के रहे सहे सब्र का पैमाना चूर-चूर हो गया। उसने फौरन अपना कुछ जरूरी सामान अटैची में भरा और पिता की शरण में चली आई। 

कविता ने जब अपना दुखड़ा मुझे सुनाया तो मैंने अशोक से कहा कि जब बेटी सुसराल में रहना ही नहीं चाहती तो बार-बार वापस जाने का फरमान सुनाकर उसे किस अपराध की सजा दे रहे हो? उसका तो कोई दोष नहीं। अब जब गलत लोगों से पाला पड़ गया है तो बेटी के हित में कोई रास्ता तो निकालना तुम्हारा फर्ज है। प्रत्युत्तर में अशोक ने यह कहकर मुझे आहत कर दिया, ‘‘तुम्हें मालूम तो है कि मैंने शादी में अपने खून-पसीने से कमाये करोड़ों रुपए खर्च किए थे। यह लड़की एडजस्ट करना ही नहीं जानती। बार-बार जिस तरह से मुंह उठाये चली आती है, उससे मेरे मान-सम्मान को ठेस लगती है। आसपास रहने वाले कई तरह की बातें करते हैं। उन्हें इसमें ही कुछ न कुछ खोट और कमी लगती हैं। मैं तो तलाक के पक्ष में भी नहीं हूं।’’

‘‘मैं तुम्हारी सोच से बिल्कुल सहमत नहीं। तुम्हें पता है कि बाप अपनी बेटी के लिए क्या-क्या नहीं करते? कुछ महीने ही हुए हैं। एक विवेकशील पिता को जब उसकी बेटी ने अश्रुपूरित आंखों से बताया कि उसका पति राक्षस से भी गया बीता है। वह ससुराल के अपमानजनक वातावरण से मुक्ति चाहती है। मुझे डर है कि, कहीं वह मेरी हत्या न कर दे या फिर मैं ही खुदकुशी करने पर विवश हो जाऊं। पिता ने बिना कोई उपदेश दिये बेटी को नर्क से वापस लाने का फैसला कर लिया। उसने अपने कुछ शुभचिंतकों को एकत्रित किया और बैंड-बाजे के साथ अपनी लाडली बिटियां को लेने जा पहुंचा। ससुराल वाले स्तब्ध रह गए। उन्हें बताया गया कि हम अपनी बेटी को लेने आये हैं। हमे उनसे कोई रिश्ता नहीं रखना है। लड़केवालों ने बिना कोई नाटक किए दहेज में मिले तमाम सामान को वापस देते हुए शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लिया। बेटी आज अपने पिता के घर में नई शुरुआत करते हुए खुश और संतुष्ट है। मैं चाहता हूं कि अपनी बेटी के लिए तुम भी दस-बीस लोगों को बारात की शक्ल में लड़के वालों के यहां धड़धड़ाते हुए जा पहुंचो और बेटी को सम्मान के साथ वापस ले आओ, बिल्कुल वैसे ही जैसे वे नाचते-कूदते हुए वे बेटी को ब्याह कर ले गए थे। ऐसे लोगों को ऐसे ही तमाचा जड़ा जाना जरूरी है।’’

मैं सोच रहा था अशोक सेठी मेरे सुझाव को सिर आंखों पर लेते हुए सकारात्मक फैसला लेने में देरी नहीं करेगा, लेकिन उसने तो मेरी ही ऐसी-तैसी करके रख दी और मुझे अपमानित कर अपने घर से बाहर कर दिया। सेठी की पत्नी और बेटे ने भी मुझे तीखे शब्दों के वार से अपमानित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। दिल्ली से नागपुर आने के बाद मैं अपने कामकाज में व्यस्त हो गया। कुछ दिनों के बाद किसी मित्र ने मोबाइल कर अत्यंत दुखद खबर दी, ‘‘कविता ने ज़हर खाकर अपने पिता के घर में आत्महत्या कर ली है। वह किसी भी हालत में ससुराल नहीं जाना चाहती थी, लेकिन माता-पिता और भाई उस पर दबाव डाल रहे थे कि उसे पिता के घर से जाना ही होगा। अपने मायके में रहकर कब तक हमारी बदनामी का कारण बनी रहोगी?’’

 बदनामी और मान-सम्मान दोनों ही कहीं न कहीं उस अभिमान से जुड़े हैं, जिसकी वजह से अभी तक न जाने कितनी बहन, बेटियों और बहुओं की जान जा चुकी है। ऊंच-नीच, अमीर गरीब की स्वार्थी और घटिया सोच का कभी अंत होगा भी या नहीं? इक्कीस साल की आंचल और बीस साल के सक्षम ने एक दूसरे से सच्चा प्रेम ही तो किया था। दोनों निश्छल प्रेमी अलग-अलग जाती के थे। सदियों से चला आ रहा यही अंतर, भेदभाव उनका दुश्मन बन गया। लड़की के परिजन हर तरह से बलवान थे। उन्होंने प्रेमी सक्षम को अपने बेटी से मिलने से बहुत रोका-टोका, लेकिन न तो वो माना और प्रेमिका भी अडिग बनी रही। दोनों लगभग तीन वर्ष से प्रेम के पवित्र रिश्ते की मजबूत डोर से बंधे हुए थे। नांदेड़ शहर में जन्मा और पला बढ़ा सक्षम ताटे बौद्ध समाज का युवक था तो आंचल का पदमशाली (बुनकर) समाज से नाता था। यह कम्यूनिटी स्पेशल बैकवर्ड क्लास में आती है। अहंकारी आंचल के परिवार को दोनों का एक होना कतई मंजूर नहीं था। उन्होंने सक्षम की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। सक्षम की गोली मार कर हत्या की गई थी। कविता को जैसे ही अपनेे प्रेमी की नृशंस हत्या के बारे में पता चला तो वह रात को ही अपने पिता का घर छोड़ सक्षम के घर जा पहुंची और उसने हमेशा-हमेशा के लिए वहीं रहने का ऐलान कर दिया। जब सक्षम के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी तब आंचल ने जो फैसला किया उससे हर कोई स्तब्ध रह गया। समर्पित प्रेमिका ने अपने प्रेमी को अंतिम विदाई देने से पहले दुल्हे की तरह सजा कर शादी की रस्में निभाते हुए उसके शरीर पर हल्दी-कुमकुम लगाई और उसके हाथ से वही हल्दी-कुमकुम अपने शरीर पर लगाया तथा शव के हाथ में सिंदूर देकर उसे अपने माथे पर लगा दिया और मांग में भी भर दिया। जब अंतिम संस्कार की पूर्ण तैयारी हो गई और परिजन अर्थी को कंधा देने के लिए उठाने लगे तो आंचल ने सबको रोक कर अर्थी के साथ रोते-बिलखते हुए सात फेरे लेते हुए  कहा यह उसका सच्चा विवाह है। मरते दम तक मैं किसी और के बारे में नहीं सोचूंगी। मेरा परिवार चाहता था कि हम अलग हो जाएं, लेकिन मैंने तो सक्षम से शादी कर ली। अंतिम यात्रा से पहले उसके नारियल फोड़ते ही आसपास मौजूद पड़ोसी और सभी परिवार वाले फूट-फूटकर रो पड़े। कविता ने अपने हत्यारे पिता और भाइयों को फांसी के फंदे पर लटकाने की मांग की है।

Thursday, December 4, 2025

ज़िस्म की कीमत

आपने कभी सोचा, गौर किया कि तरह-तरह के नशों की आदत इंसान को किस दलदल में फंसाती है? उसकी प्रतिष्ठा, पूछ परख और जिस्म की हस्ती मिटती चली जाती है? किसी भी नशेड़ी के नशे की शुरुआत सिगरेट, बीड़ी से होती है और फिर उसके कदम पतन की राह में आगे और आगे बढ़ते चले जाते हैं। अखंड शराबी को यदि शराब न मिले तो उसका तन-मन तड़पने लगता है। वह नशे के नये-नये साधन तलाशने लगता है। नशे के ज़हर से भरे मीठे दंश से होनेवाली असंख्य तबाहियां इन आंखों ने देखी हैं। खेतों-खलिहानों वाले पंजाब को ‘उड़ते पंजाब’ के नाम से दागदार होते देखा है। जहां शराबबंदी है, वहां चोरी-छिपे ही नहीं खुलेआम मैंने शराब बिकती-मिलती देखी है। सरकारें भी जानती-समझती हैं फिर भी क्यों अंधी, बहरी बनी हैं, इसका जवाब मुझे तो अभी तक नहीं मिला। सबसे बड़ा उदाहरण बिहार का है, जहां कहने को तो करीब दस साल से शराबबंदी है, लेकिन पीने वाले कभी बिना पिये नहीं सोते। चाहे कुछ भी हो जाए नशा तो करना ही है। इसके लिए बिहार के युवाओं ने शराब का विकल्प तलाशते हुए गांजा, स्मैक, चरस और ब्राउनशुगर से दोस्ती करनी प्रारंभ कर दी है। इतना ही नहीं इस प्रदेश में कफ सिरप की मांग बहुत बढ़ गई है, जिन्हें शराब नहीं मिलती वे सिरप पी रहे हैं। 

अवैध शराब के जाने-पहचाने खिलाड़ियों की तरह सिरप के निर्माता, विक्रेता और तस्कर खूब मालामाल हो रहे हैं। जिनकी औलादें नशे के चंगुल में फंस रही हैं और फंसी हैं उन मां-बाप की नींदे हराम हो रही हैं। शहर ही नहीं गांवों के नौजवान ड्रग्स के दिवाने हो रहे हैं। गरीब, अमीर पालक सभी चिंतित और परेशान हैं। डॉक्टर, प्रोफेसर, अधिकारी, व्यापारी अपनी संतानों को घातक नशों के दलदल से बाहर निकालने के लिए नशा मुक्ति केंद्रों के चक्कर काट रहे हैं। एक नशा मुक्ति केंद्र संचालक का कहना है कि, मुक्ति केंद्र में लाये जाने वाले अधिकांश बीस से पच्चीस वर्ष के युवा हैं। इनमें कई स्मैक के आदी हो गये हैं। वैसे अकेले बिहार को नशे के ऐसे दुर्दिन नहीं देखने पढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र के युवा भी बड़ी तेजी से ड्रग्स की संगत में अपने भविष्य का सत्यानाश कर रहे हैं। इस प्रदेश की उपराजधानी नागपुर को संस्कारों का शहर कहा जाता है, लेकिन नशा युवाओं के पतन का कारण बन रहा है। यहां बच्चों की बर्बादी के कितने-कितने इंतजाम हो चुके हैं और हो रहे हैं। अब तो गिनना और बताना भी मुश्किल होता जा रहा है। संतरों की नगरी में नशे की पुड़िया ने किताब-कापियों की जगह ले ली है। कुछ नकाबपोश दवा दुकानदार ड्रग माफिया बन चुके हैं। शहर के कई इलाकों में सूखा नशा यानी गांजा और एमडी की लत लगाकर युवाओं के भविष्य के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है, उससे सजग नागरिक भी चिंतित हैं। खबरें चीख-चीख कर दावा कर रही हैं कि नागपुर में रोजाना चार से पांच किलो एमडी ड्रग और 200 किलो से ज्यादा गांजा सहजता से बिक रहा है। 

महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर वो शहर है, जहां बाहर से आनेवाले नशेड़ियों को शराब की दुकानों तथा बीयर बारों की तलाश में बिल्कुल माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ती। लगभग हर चौक-चौराहे और गली कूचे में भी नशे में डूबने के लिए मयखाने आबाद हैं। कई देशी शराब की दुकानों के तो जैसे दरवाजे ही कभी बंद नहीं होते। गगनचुंबी इमारतों का निर्माण करने वाले मजदूर, रिक्शा चालक, ठेलेवाले कभी भी यहां दारू पीते देखे जा सकते हैं। इन सदाबहार पियक्कड़ों के लिए बहुत से नशे के सरकारी ठिकानों पर उबला अंडा, आमलेट, नमकीन तथा नमक जैसे चखनों का भरपूर इंतजाम है। मैंने खास तौर पर यह भी गौर किया है कि, पिछले पांच-सात सालों में शहर में दवाई की दुकानों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। पहले मेडिकल स्टोर्स की तलाश करनी पड़ती थी, लेकिन अब तो जहां नजर डालो वहां किसी भव्य शोरुम की तरह मेडिकल स्टोर्स खुले नज़र आते हैं और अपने यहां लोगों का तांता लगवाने के लिए अधिक से अधिक छूट का प्रलोभन भी देने लगे हैं। युवाओं की जिन्दगी को तबाही के कगार पर पहुंचा रहे ड्रग माफियाओं को कुछ पुलिस वालों का संरक्षण मिलता चला आ रहा है, तो दूसरी तरफ नशे के सौदागरों को नेस्तनाबूत करने के पुलिसिया अभियान की खबरें भी पढ़ने में आ रही हैं। शहर में नशे के काले कारोबार का समूल खात्मा करने के लिए नागपुर पुलिस ने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी है। ‘ऑपरेशन थंडर’ के तहत सीपी रवींद्रकुमार सिंगल ड्रग तस्करी और बिक्री करने वाले नेटवर्क का भंडाफोड़ कर कमर तोड़ने में लगे हैं। ‘ऑपरेशन थंडर’ केवल एक अपराध विरोधी अभियान नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक मुहिम है, जिसके तहत पुलिस शहर के स्कूलों, कॉलेजों, झुग्गी बस्तियों और शहरी इलाकों में जागरुकता अभियान चला रही है। आम लोगों को भी सतर्क किया जा रहा है। लोगों में जागृति लाने और नशे के सौदागरों की पकड़ा-धकड़ी के ऐसे अभियान पहले भी देखे गये हैं लेकिन पुलिस के उच्च अधिकारी के स्थानांतरण होते ही दम तोड़ देते हैं।

बीते हफ्ते कुछ उन युवकों से मिलना हुआ, जो एमडी की दलदल में बुरी तरह से फंस चुके हैं। उन्होंने बताया कि, पुराने एमडी के नशेड़ी दोस्तों ने उन्हें शुरू-शुरू में कहा कि, एक बार ट्राय करके देखो। ऐसा आनंद आयेगा जो जीवनभर याद रहेगा। दुनिया किसी जन्नत जैसी लगेगी। तब की शुरुआत धीरे-धीरे लत में बदलती चली गई। तीन साल हो गये हैं। एमडी की पुड़िया और गांजा के कश ने जिन्दगी को तबाह करके रख दिया है। वापसी का कोई रास्ता नज़र ही नहीं आता। परिवार का भरोसा, पढ़ाई और मान-सम्मान लुट गया है। कई बार आत्महत्या करने का भी मन होता है। सबसे ज्यादा बुरा तो उन लड़कियों के साथ हो रहा है, जो पढ़ाई के लिए बाहरगांव से नागपुर आई हैं। ड्रग माफिया का जाल स्कूल और कॉलेजों की दहलीज तक फैल चुका है। स्कूली और कॉलेज की लड़कियों को पहले तो एमडी के तस्कर दोस्त और हितैषी बन मुफ्त में नशे की पुड़ियां थमाते हैं, फिर जब धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग जाती है तो उनसे पैसों की मांग की जाती है। एमडी और सूखे नशे के लपेटे में गिरफ्तार लड़कियों की जेब जब खाली हो जाती है तो  शिकारी उनकी देह के साथ मौजमस्ती करने के लिए तरह-तरह के जाल फेंकने लगते हैं। अपनी अस्मत लुटाने के बाद भी अधिकांश लड़कियां खामोश रहती हैं। इस घातक खतरनाक कुचक्र में फंसी लड़कियों की शर्मगाथा सुनकर किसी भी संवेदनशील इंसान का माथा घूम सकता है।  रजनी (काल्पनिक नाम) की आपबीती उसी के शब्दों में, 

‘‘मैं अभी बाइस वर्ष की हूं। छत्तीसगढ़ के शहर कोरबा में मेरे माता-पिता रहते हैं। मां गृहिणी हैं, पिता कपड़े के व्यापारी हैं। उन्होंने अत्यंत उत्साह के साथ एयर होस्टेस की ट्रेनिंग के लिए चार वर्ष पूर्व मुझे नागपुर भेजा था। मैं भी शुरू से पढ़ाई में खासी होशियार थी। एयर होस्टेस बनना मेरा बचपन का सपना था। नागपुर में मैं अपनी सहेली के साथ फ्लैट किराये पर लेकर रह रही थी। नागपुर में आने के बाद ही मेरी उससे जान-पहचान हुई थी। पिता खर्चे के लिए हर महीने बीस हजार रुपए भेजा करते थे। शुरू-शुरू में तो इतने रुपयों से मेरा ठीक-ठाक गुजारा हो जाता था, लेकिन गड़बड़ तब होनी शुरू हुई, जब मैं सहेली की देखा-देखी पहले बीयर फिर शराब पीने लगी। इसी दौरान उसने किसी दिन मुझे गांजे का कश लगाने को उकसाया तो मेरा मन भी ललचाया। यह मेरे सूखे नशे की पहली सीढ़ी थी, जिस पर पैर धरते ही मैं अपनी जमीन भूलकर आकाश में उड़ने लगी। एक रात मेरी सहेली, उसका ब्वॉयफ्रेंड, एक अनजान युवक और मैं कार से वर्धा रोड पर स्थित एक क्लब में जा पहुंचे। मकसद तो पीना-पिलाना और गांजा के कश लगाना था। वहां हम चारों ने नशे में झूमते हुए खूब डांस किया। वहीं पर मैंने एमडी ड्रग भी आजमा ली। शराब के साथ इन तमाम नशों के ओवर डोज ने मेरी हालत बिगाड़ दी और धड़ाधड़ उल्टियां होने लगीं। रात के दो-ढाई बजे हम लड़खड़ाते हुए क्लब से निकलकर कार पर सवार हो गए। उल्टियों के कारण मैं लस्त-पस्त हो चुकी थी। मेरा मस्तिष्क घूम रहा था। कार ने अभी कुछ पल का सफर तय किया ही था कि मेरी सहेली और उसका दोस्त जो कार चला रहा था, कुछ खाने के लिए कार से नीचे उतर गए। उनके जाते ही अजनबी युवक ने मेरे साथ बलात्कार करना प्रारंभ कर दिया और मैं बेबस सी पड़ी रही। दूसरे दिन मैंने सहेली को बताया तो वह मुस्कुरा कर रह गई। मुझे उसकी मिलीभगत भी समझ में आ गई। शाम को युवक का फोन आया, मिलने आ रहा हूं। आनाकानी करोगी, तो कहीं की नहीं रहोगी। सेक्स के दौरान खींची गई तस्वीरें और वीडियो देखना चाहोगी तो दिखा दूंगा। पुलिस स्टेशन जाना चाहती थी, लेकिन सहेली ने भारी बदनामी का भय दिखाकर रोक दिया। सात-आठ महीने तक वह मेरे ज़िस्म से खेलता रहा। 

एयर होस्टेस बनने की चाहत ने दम तोड़ दिया। माता-पिता को भी मेरी बदचलनी की खबर मिल गई। उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया है। अब तो रात-बेरात कोई भी मोबाइल कर पूछता है, तुम्हारा रेट क्या है जानम? जब कभी किसी सड़क चौराहे से गुजर रही होती हूं तो पुरुषों की घूरती निगाहों को देखकर सोचती रहती हूं कि सबको मेरे बारे में पता चल गया है। सभी मेरी एक रात या कुछ घंटों की कीमत जानने को आतुर हैं। शहर के उन तमाम होटलों, स्पा, ब्यूटी पार्लर, फार्म हाउस, फ्लैटों के चप्पे-चप्पे को नाप चुकी हूं, जहां देह का व्यापार होता है। इन अय्याशी के ठिकानों की सभी को खबर है। पुलिस की छापामारी का शिकार होकर कुछ रातें थानों की जेल में भी काट चुकी हूं। जब भी आंख बंद कर सोचती हूं तो खुद से नफरत होने लगती है। ज़हर खाने की प्रबल इच्छा पर किसी तरह नियंत्रण रख जी रही हूं। मैं हर लड़की को यही कहना चाहती हूं कि मेरी तबाही से सबक लें। मायावी शहर में बहुत संभलकर रहें। गलत संगत और नशे के आसपास भी न जाएं। इनकी दोस्ती जिस तरह से भटकाती है और अंतत: नर्क दिखाती है,  उसे मैं रोज मर-मर कर देख और भोग रही हूं, लेकिन मैं नहीं चाहती कि किसी और लड़की का इससे सामना हो।