आपने कभी सोचा, गौर किया कि तरह-तरह के नशों की आदत इंसान को किस दलदल में फंसाती है? उसकी प्रतिष्ठा, पूछ परख और जिस्म की हस्ती मिटती चली जाती है? किसी भी नशेड़ी के नशे की शुरुआत सिगरेट, बीड़ी से होती है और फिर उसके कदम पतन की राह में आगे और आगे बढ़ते चले जाते हैं। अखंड शराबी को यदि शराब न मिले तो उसका तन-मन तड़पने लगता है। वह नशे के नये-नये साधन तलाशने लगता है। नशे के ज़हर से भरे मीठे दंश से होनेवाली असंख्य तबाहियां इन आंखों ने देखी हैं। खेतों-खलिहानों वाले पंजाब को ‘उड़ते पंजाब’ के नाम से दागदार होते देखा है। जहां शराबबंदी है, वहां चोरी-छिपे ही नहीं खुलेआम मैंने शराब बिकती-मिलती देखी है। सरकारें भी जानती-समझती हैं फिर भी क्यों अंधी, बहरी बनी हैं, इसका जवाब मुझे तो अभी तक नहीं मिला। सबसे बड़ा उदाहरण बिहार का है, जहां कहने को तो करीब दस साल से शराबबंदी है, लेकिन पीने वाले कभी बिना पिये नहीं सोते। चाहे कुछ भी हो जाए नशा तो करना ही है। इसके लिए बिहार के युवाओं ने शराब का विकल्प तलाशते हुए गांजा, स्मैक, चरस और ब्राउनशुगर से दोस्ती करनी प्रारंभ कर दी है। इतना ही नहीं इस प्रदेश में कफ सिरप की मांग बहुत बढ़ गई है, जिन्हें शराब नहीं मिलती वे सिरप पी रहे हैं।
अवैध शराब के जाने-पहचाने खिलाड़ियों की तरह सिरप के निर्माता, विक्रेता और तस्कर खूब मालामाल हो रहे हैं। जिनकी औलादें नशे के चंगुल में फंस रही हैं और फंसी हैं उन मां-बाप की नींदे हराम हो रही हैं। शहर ही नहीं गांवों के नौजवान ड्रग्स के दिवाने हो रहे हैं। गरीब, अमीर पालक सभी चिंतित और परेशान हैं। डॉक्टर, प्रोफेसर, अधिकारी, व्यापारी अपनी संतानों को घातक नशों के दलदल से बाहर निकालने के लिए नशा मुक्ति केंद्रों के चक्कर काट रहे हैं। एक नशा मुक्ति केंद्र संचालक का कहना है कि, मुक्ति केंद्र में लाये जाने वाले अधिकांश बीस से पच्चीस वर्ष के युवा हैं। इनमें कई स्मैक के आदी हो गये हैं। वैसे अकेले बिहार को नशे के ऐसे दुर्दिन नहीं देखने पढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र के युवा भी बड़ी तेजी से ड्रग्स की संगत में अपने भविष्य का सत्यानाश कर रहे हैं। इस प्रदेश की उपराजधानी नागपुर को संस्कारों का शहर कहा जाता है, लेकिन नशा युवाओं के पतन का कारण बन रहा है। यहां बच्चों की बर्बादी के कितने-कितने इंतजाम हो चुके हैं और हो रहे हैं। अब तो गिनना और बताना भी मुश्किल होता जा रहा है। संतरों की नगरी में नशे की पुड़िया ने किताब-कापियों की जगह ले ली है। कुछ नकाबपोश दवा दुकानदार ड्रग माफिया बन चुके हैं। शहर के कई इलाकों में सूखा नशा यानी गांजा और एमडी की लत लगाकर युवाओं के भविष्य के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है, उससे सजग नागरिक भी चिंतित हैं। खबरें चीख-चीख कर दावा कर रही हैं कि नागपुर में रोजाना चार से पांच किलो एमडी ड्रग और 200 किलो से ज्यादा गांजा सहजता से बिक रहा है।
महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर वो शहर है, जहां बाहर से आनेवाले नशेड़ियों को शराब की दुकानों तथा बीयर बारों की तलाश में बिल्कुल माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ती। लगभग हर चौक-चौराहे और गली कूचे में भी नशे में डूबने के लिए मयखाने आबाद हैं। कई देशी शराब की दुकानों के तो जैसे दरवाजे ही कभी बंद नहीं होते। गगनचुंबी इमारतों का निर्माण करने वाले मजदूर, रिक्शा चालक, ठेलेवाले कभी भी यहां दारू पीते देखे जा सकते हैं। इन सदाबहार पियक्कड़ों के लिए बहुत से नशे के सरकारी ठिकानों पर उबला अंडा, आमलेट, नमकीन तथा नमक जैसे चखनों का भरपूर इंतजाम है। मैंने खास तौर पर यह भी गौर किया है कि, पिछले पांच-सात सालों में शहर में दवाई की दुकानों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। पहले मेडिकल स्टोर्स की तलाश करनी पड़ती थी, लेकिन अब तो जहां नजर डालो वहां किसी भव्य शोरुम की तरह मेडिकल स्टोर्स खुले नज़र आते हैं और अपने यहां लोगों का तांता लगवाने के लिए अधिक से अधिक छूट का प्रलोभन भी देने लगे हैं। युवाओं की जिन्दगी को तबाही के कगार पर पहुंचा रहे ड्रग माफियाओं को कुछ पुलिस वालों का संरक्षण मिलता चला आ रहा है, तो दूसरी तरफ नशे के सौदागरों को नेस्तनाबूत करने के पुलिसिया अभियान की खबरें भी पढ़ने में आ रही हैं। शहर में नशे के काले कारोबार का समूल खात्मा करने के लिए नागपुर पुलिस ने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी है। ‘ऑपरेशन थंडर’ के तहत सीपी रवींद्रकुमार सिंगल ड्रग तस्करी और बिक्री करने वाले नेटवर्क का भंडाफोड़ कर कमर तोड़ने में लगे हैं। ‘ऑपरेशन थंडर’ केवल एक अपराध विरोधी अभियान नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक मुहिम है, जिसके तहत पुलिस शहर के स्कूलों, कॉलेजों, झुग्गी बस्तियों और शहरी इलाकों में जागरुकता अभियान चला रही है। आम लोगों को भी सतर्क किया जा रहा है। लोगों में जागृति लाने और नशे के सौदागरों की पकड़ा-धकड़ी के ऐसे अभियान पहले भी देखे गये हैं लेकिन पुलिस के उच्च अधिकारी के स्थानांतरण होते ही दम तोड़ देते हैं।
बीते हफ्ते कुछ उन युवकों से मिलना हुआ, जो एमडी की दलदल में बुरी तरह से फंस चुके हैं। उन्होंने बताया कि, पुराने एमडी के नशेड़ी दोस्तों ने उन्हें शुरू-शुरू में कहा कि, एक बार ट्राय करके देखो। ऐसा आनंद आयेगा जो जीवनभर याद रहेगा। दुनिया किसी जन्नत जैसी लगेगी। तब की शुरुआत धीरे-धीरे लत में बदलती चली गई। तीन साल हो गये हैं। एमडी की पुड़िया और गांजा के कश ने जिन्दगी को तबाह करके रख दिया है। वापसी का कोई रास्ता नज़र ही नहीं आता। परिवार का भरोसा, पढ़ाई और मान-सम्मान लुट गया है। कई बार आत्महत्या करने का भी मन होता है। सबसे ज्यादा बुरा तो उन लड़कियों के साथ हो रहा है, जो पढ़ाई के लिए बाहरगांव से नागपुर आई हैं। ड्रग माफिया का जाल स्कूल और कॉलेजों की दहलीज तक फैल चुका है। स्कूली और कॉलेज की लड़कियों को पहले तो एमडी के तस्कर दोस्त और हितैषी बन मुफ्त में नशे की पुड़ियां थमाते हैं, फिर जब धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग जाती है तो उनसे पैसों की मांग की जाती है। एमडी और सूखे नशे के लपेटे में गिरफ्तार लड़कियों की जेब जब खाली हो जाती है तो शिकारी उनकी देह के साथ मौजमस्ती करने के लिए तरह-तरह के जाल फेंकने लगते हैं। अपनी अस्मत लुटाने के बाद भी अधिकांश लड़कियां खामोश रहती हैं। इस घातक खतरनाक कुचक्र में फंसी लड़कियों की शर्मगाथा सुनकर किसी भी संवेदनशील इंसान का माथा घूम सकता है। रजनी (काल्पनिक नाम) की आपबीती उसी के शब्दों में,
‘‘मैं अभी बाइस वर्ष की हूं। छत्तीसगढ़ के शहर कोरबा में मेरे माता-पिता रहते हैं। मां गृहिणी हैं, पिता कपड़े के व्यापारी हैं। उन्होंने अत्यंत उत्साह के साथ एयर होस्टेस की ट्रेनिंग के लिए चार वर्ष पूर्व मुझे नागपुर भेजा था। मैं भी शुरू से पढ़ाई में खासी होशियार थी। एयर होस्टेस बनना मेरा बचपन का सपना था। नागपुर में मैं अपनी सहेली के साथ फ्लैट किराये पर लेकर रह रही थी। नागपुर में आने के बाद ही मेरी उससे जान-पहचान हुई थी। पिता खर्चे के लिए हर महीने बीस हजार रुपए भेजा करते थे। शुरू-शुरू में तो इतने रुपयों से मेरा ठीक-ठाक गुजारा हो जाता था, लेकिन गड़बड़ तब होनी शुरू हुई, जब मैं सहेली की देखा-देखी पहले बीयर फिर शराब पीने लगी। इसी दौरान उसने किसी दिन मुझे गांजे का कश लगाने को उकसाया तो मेरा मन भी ललचाया। यह मेरे सूखे नशे की पहली सीढ़ी थी, जिस पर पैर धरते ही मैं अपनी जमीन भूलकर आकाश में उड़ने लगी। एक रात मेरी सहेली, उसका ब्वॉयफ्रेंड, एक अनजान युवक और मैं कार से वर्धा रोड पर स्थित एक क्लब में जा पहुंचे। मकसद तो पीना-पिलाना और गांजा के कश लगाना था। वहां हम चारों ने नशे में झूमते हुए खूब डांस किया। वहीं पर मैंने एमडी ड्रग भी आजमा ली। शराब के साथ इन तमाम नशों के ओवर डोज ने मेरी हालत बिगाड़ दी और धड़ाधड़ उल्टियां होने लगीं। रात के दो-ढाई बजे हम लड़खड़ाते हुए क्लब से निकलकर कार पर सवार हो गए। उल्टियों के कारण मैं लस्त-पस्त हो चुकी थी। मेरा मस्तिष्क घूम रहा था। कार ने अभी कुछ पल का सफर तय किया ही था कि मेरी सहेली और उसका दोस्त जो कार चला रहा था, कुछ खाने के लिए कार से नीचे उतर गए। उनके जाते ही अजनबी युवक ने मेरे साथ बलात्कार करना प्रारंभ कर दिया और मैं बेबस सी पड़ी रही। दूसरे दिन मैंने सहेली को बताया तो वह मुस्कुरा कर रह गई। मुझे उसकी मिलीभगत भी समझ में आ गई। शाम को युवक का फोन आया, मिलने आ रहा हूं। आनाकानी करोगी, तो कहीं की नहीं रहोगी। सेक्स के दौरान खींची गई तस्वीरें और वीडियो देखना चाहोगी तो दिखा दूंगा। पुलिस स्टेशन जाना चाहती थी, लेकिन सहेली ने भारी बदनामी का भय दिखाकर रोक दिया। सात-आठ महीने तक वह मेरे ज़िस्म से खेलता रहा।
एयर होस्टेस बनने की चाहत ने दम तोड़ दिया। माता-पिता को भी मेरी बदचलनी की खबर मिल गई। उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया है। अब तो रात-बेरात कोई भी मोबाइल कर पूछता है, तुम्हारा रेट क्या है जानम? जब कभी किसी सड़क चौराहे से गुजर रही होती हूं तो पुरुषों की घूरती निगाहों को देखकर सोचती रहती हूं कि सबको मेरे बारे में पता चल गया है। सभी मेरी एक रात या कुछ घंटों की कीमत जानने को आतुर हैं। शहर के उन तमाम होटलों, स्पा, ब्यूटी पार्लर, फार्म हाउस, फ्लैटों के चप्पे-चप्पे को नाप चुकी हूं, जहां देह का व्यापार होता है। इन अय्याशी के ठिकानों की सभी को खबर है। पुलिस की छापामारी का शिकार होकर कुछ रातें थानों की जेल में भी काट चुकी हूं। जब भी आंख बंद कर सोचती हूं तो खुद से नफरत होने लगती है। ज़हर खाने की प्रबल इच्छा पर किसी तरह नियंत्रण रख जी रही हूं। मैं हर लड़की को यही कहना चाहती हूं कि मेरी तबाही से सबक लें। मायावी शहर में बहुत संभलकर रहें। गलत संगत और नशे के आसपास भी न जाएं। इनकी दोस्ती जिस तरह से भटकाती है और अंतत: नर्क दिखाती है, उसे मैं रोज मर-मर कर देख और भोग रही हूं, लेकिन मैं नहीं चाहती कि किसी और लड़की का इससे सामना हो।

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