Thursday, October 14, 2010
आज की राजनीति का सच
वे अपनी पार्टी के सुप्रीमों हैं। पार्टी उनके घर की जागीर है इसलिए हर तरह की मनमानी की उन्हें खुली छूट मिली हुई है। किसी में दम नहीं कि उनके फैसले के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत दिखाए। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी तथा लालू रामविलास मार्का तमाम राजनीतिक पार्टियों में आम कार्यकर्ताओं से दरी-चादरें बिछवाने, झाडू लगवाने और नारे उगलवाने का ही काम लिया जाता है। कुछ ही ऐसे होते हैं जिनकी किस्मत जोर मारती है और वे भीड को चीरते हुए मंचों तक पहुंच पाते हैं। कुछेक ऐसे भी होते हैं जो राजनीतिक खानदान की पैदाइश तो नहीं होते पर उनमें वो चालाकी और चालगिरी कूट-कूट कर भरी होती है, जो जन्मजात शातिर नेताओं की पहली पहचान है। महाराष्ट्र की राजनीति में दबंग नेता की ख्याति पा चुके नारायण राणे का नाम तो आपने जरूर सुना होगा। ये महाशय पहले शिवसेना में थे। बाल ठाकरे की चरण वंदना करते-करते प्रदेश के मुख्यमंत्री तक बनने में सफल होने वाले राणे का एक बयान काबिले गौर है। वे फरमाते हैं कि राजनीति में कभी उनका कोई गॉडफादर नहीं रहा। अपने ही बलबूते पर उन्होंने वो सफलताएं बटोरी हैं जो अक्सर उनके शत्रुओं को खटकती रहती हैं। नारायण को अब कौन समझाये कि जब आप किसी की चमचागिरी और नाक रगडाई से कोई बडा पद पाते हैं तो उसके बाद आपको कोई हक नहीं बनता कि यह कहें कि आपका कोई गॉडफादर नहीं है। यह तो नमक हरामी और अहसान फरामोशी की हद है...। कभी कट्टर शिवसैनिक रहे राणे को जब यह लगा कि शिवसेना का अब सत्ता में आना मुश्किल है तो उन्होंने बिना वक्त गंवाये देश की सबसे पुरातन पार्टी कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने भी उन्हें अपनी गोद में बिठाने में कोई परहेज नहीं किया। कांग्रेस के दिग्गज यह भी भुला बैठे कि यही राणे कभी कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी को अपमानजनक संबोधनों से नवाजा करते थे। राजनीति में राणे जैसों का कभी बाल बांका नहीं होता क्योंकि उनके साथ विशाल वोट बैंक होता है। तिजोरियां भी इनकी लबालब भरी रहती हैं। राणे के एक दुलारे बेटे सांसद भी बन गये हैं। उन पर गुंडागर्दी और तोडफोड के अक्सर आरोप लगते रहते हैं। राणे अपने बेटे के गॉडफादर होने की बखूब भूमिका निभाते हुए महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद का भरपूर सुख भोग रहे हैं। हकीकत यह है कि राजनीति में गॉडफादर का होना बहुत जरूरी है। जिन पर गॉडफादर्स का हाथ नहीं होता वे अधर में लटके रह जाते हैं। कुछ पर जन्मजात गॉडफादर का हाथ रहता है तो कुछ अपने दम पर गॉडफादर बनाते हैं। राजनीति का यही दस्तूर है। भले ही कोई माने या ना माने।कई तथ्य ऐसे होते हैं जिनसे धीरे-धीरे पर्दा हटता है। पर्दा हटने के बाद मुखौटे उतरते हैं पर बेनकाब होने वालों को कोई फर्क नहीं पडता। इसलिए तो कहा गया है कि राजनीति अच्छे भले इंसान को 'बेहया' और मतलबपरस्त बना देती है। जो लोग निरंतर खबरों से वास्ता रखते हैं उन्हें याद होगा कि शिवसेना के शहंशाह अक्सर गांधी परिवार पर परिवारवाद चलाने का आरोप लगाया करते थे। तब उनके पुत्र राजनीति में नहीं आये थे। पर जब पुत्र उद्धव ठाकरे ने कमर कस ली तो बाल ठाकरे ने वही किया जो कांग्रेस और दीगर पार्टियां करती आयी हैं। बाल ठाकरे को तो अपने परिवार में ही विरोध का सामना करना पडा। परिणाम स्वरूप भतीजा राज ठाकरे विद्रोह का बिगुल बजाते हुए अपनी बनायी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की कमान संभाले हुए है। ताजा खबर यह भी है कि बाल ठाकरे के पोते यानि उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को भी राजनीति में उतारा जाना तय कर लिया गया है। आदित्य को युवा सेना की कमान सौंपने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। गॉडफादर बनने और परिवारवाद को पोषित करने का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। इसी परिवारवाद के विद्रोह स्वरूप नारायण राणे शिवसेना से अलग हुए थे पर बाल ठाकरे को इससे कोई फर्क नहीं पडा था। शिवसेना जरूर कमजोर हुई थी। महाराष्ट्र में पार्टी बाद में और परिवार पहले का दस्तूर कोई नयी बात नहीं है। यहां के स्थापित नेता 'घर' को इसलिए प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उन्हें बाहर वालों पर यकीन नहीं होता। बेचारे कई बार विश्वासघात के शिकार जो हो चुके हैं इसलिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। जमीनी कार्यकर्ताओं को मन मार कर राजनेताओं की औलादों के नखरे झेलने पडते हैं और चप्पलें उठानी पडती हैं। महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोकराव चव्हाण अगर दिवंगत कांग्रेसी नेता शंकरराव के सुपुत्र न होते तो शायद ही उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त होता। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख जो वर्तमान में केंद्रीय उद्योगमंत्री हैं, को भी परिवारवाद ही रास आता है। उनके सुपुत्र अमित देशमुख कांग्रेस की राजनीति में अपनी पकड बनाने में लगे हैं। गॉडफादर के रूप में पिता का आशीर्वाद ऐसा बना हुआ है कि महाराष्ट्र युवक कांग्रेस का अध्यक्ष बनने से भी उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा। जबकि काबिलियत के मामले में और भी बहुतेरे हैं। जिन्होंने कांग्रेस के लिए अपना खून-पसीना बहाया है पर यहां त्याग और समर्पण की नहीं, गॉडफादर की तूती बोला करती है। दूसरी कोई आवाज नहीं सुनी जाती। कहने को देश में लोकतंत्र है पर कैसा लोकतंत्र है इसका बेहतर जवाब वही दे सकते हैं जो वर्षों तक किसी राजनीतिक पार्टी की सेवा करते-करते उम्रदराज हो गये हैं पर उन्हें कोई पहचानता तक नहीं है। राजनेताओं के नकारा से नकारा पूतों को भी मीडिया ऐसे हाथों-हाथ लेता है जैसे इनका जन्म ही देश पर राज करने के लिए ही हुआ हो...।
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