Thursday, October 21, 2010

कालिख में लिपटी कांग्रेस

अपने यहां के राजनेताओं को लाजवाब भाषण देने और ऊंची-ऊंची हांकने में गजब की महारत हासिल है। मुखौटे लगाने की कला में भी लगभग सबके सब पारंगत हैं। बिहार में विधानसभा चुनावों का श्री गणेश हो चुका है। खबरों पर खबरें आ रही हैं कि फलां-फलां पार्टी ने इस बार भी गुंडे, बदमाशों, बाहुबलियों को अपना-अपना प्रत्याशी बनाने में कोई कमी नहीं की है। लोग भी यह मान चुके हैं कि बिहार को अपनी जागीर समझने वाले लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार इतने बेबस हैं कि वे चाह कर भी अराजक तत्वों से मुक्ति नहीं पा सकते। पर लोगों को तो हैरत राहुल गांधी को लेकर हो रही है। वे पिछले कुछ महीनों से लगातार देश भर में यह कहते घूम रहे हैं कि उनकी एक ही मंशा है कि राजनीति में साफ सुथरे चेहरों का प्रवेश हो। देश और प्रदेश की कमान ऐसे युवाओं के हाथ में हो जिनमें राष्ट्रहित की भावना कूट-कूट कर भरी हो। भाई-भतीजावाद और चम्मचगिरी को पूरी तरह से हेय दृष्टि से देखने का दावा करने वाले युवा राहुल को बिहार में प्रत्याशी खडे करने के मामले में जिस तरह से सांप सूंघ गया उससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि वे भी हवा में तीर छोडने वाले खिलाडी हैं। जमीनी बदलाव लाना उनके बस की बात नहीं है। तभी तो बिहार में कांग्रेस की टिकट पर कई अपराधी और घोर विवादास्पद सफेदपोश भी चुनाव ल‹ड रहे हैं। राहुल चाहते तो संदिग्ध प्रत्याशियों को टिकट दिये जाने का खुलकर विरोध करते हुए उनका पत्ता साफ करवा सकते थे पर ऐसा नहीं हुआ...। इसे राजनीतिक विवशता कहें या कुछ और...? जवाब तलाशना कतई मुश्किल नहीं है। सवाल नीयत और उस दृढ इच्छाशक्ति का है जो गधे के सींग की तरह गायब हो चुकी है। आज की लगभग तमाम राजनीति और राजनेता धनबल के सियासी रास्ते पर चल रहे हैं। राहुल से कुछ अलग उम्मीद थी पर बिहार के चुनाव ने हकीकत बयां कर दी है कि राहुल बोलवचनों के जितने वीर हैं, करनी और कथनी में एक रूपता लाने के मामले में फकीर के फकीर हैं। कोई अगर यह कहे कि बिहार में प्रत्याशियों का चयन करते समय राहुल की राय नहीं ली गयी होगी, इस बात पर भला कौन विश्वास कर सकता है?कांग्रेस सोनिया गांधी और राहुल गांधी के इशारों पर नाचने वाली पार्टी है और उसी पार्टी ने जब दागियों को मैदान में उतारने में परहेज नहीं किया तो लालू-पासवान जैसों को दोष देना बेकार है। यह भी जाना-माना सच है कि आज की तारीख में पेशेवर नेताओं और अराजक तत्वों के पास धन की भरमार है। यही योग्यता उन्हें किसी भी पार्टी की टिकट दिलवाती है और वे बडी आसानी से चुनावी मैदान में कूदते हैं और धनबल और बाहुबल से जीत भी हासिल कर लेते हैं। ईमानदार और समर्पित लोगों के लिए राजनीति में अब तो कोई जगह ही नहीं बची है। राजनीति के अखंड सौदागरों ने देश को खरीद-फरोख्त का ऐसा बाजार बना कर रख दिया है जहां दिग्गज राजनेताओं की कीमत का भी सरेआम भंडाफोड हो रहा है। देश का आम आदमी जान गया है राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं। इसलिए चोर-चोर मौसेरे भाई वाले रिश्तों में प्रगाढता गहराती चली जा रही है। पिछले दिनों महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे और पूर्व मंत्री सतीश चतुर्वेदी खुद ही कबूल कर चुके हैं कि पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए येन-केन-प्रकारेण धन जुटाया जाता है। मंत्री लाखों रुपयों की थैलियां देते हैं। मुख्यमंत्री को भी करोडों की व्यवस्था करनी पडती है। ऊपर तक 'देन' पहुंचायी जाती है। यह तो सबको खबर थी कि राजनीतिक पार्टियां अपने नेताओं की सभाओं के लिए तरह-तरह से धन वसूलती हैं पर इतना बडा खेल होता होगा इसकी कल्पना नहीं थी। देशवासियों ने पहली बार जाना कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी को निमंत्रित करने और सभाएं आयोजित करने के लिए करोडों की दक्षिणा चढानी पडती है।घुटे हुए कांग्रेसी भले ही इस सच्चाई को झुठलाने के लिए शब्द जाल फेंकते रहें पर कांग्रेस में पैसे के लेन-देन का खुलासा तो खुद उन कांग्रेसियों ने ही किया है जिनका अपना अच्छा-खासा वजूद है। इतना बडा रहस्योद्घाटन होने के बाद भी मैडम और राहुल गांधी का कुछ न बोलना बहुत कुछ कह गया है...। जब देश की सबसे पुरातन पार्टी के ऐसे हाल हैं तो भाजपा, शिवसेना, समाजवादी, बसपा आदि...आदि के कमाल और धमाल पर लिखने और बताने की जरूरत ही कहां बचती है...!

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