Thursday, October 7, 2010

इंसान की औलाद...

जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ। देश के सजग सपूतों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे भाईचारा आहत होता। हर किसी ने भारतमाता के सम्मान को बरकरार रख अयोध्या के फैसले का स्वागत किया। कुछ मुलायमनुमा सियार जरूर कूदते-फांदते नजर आये पर जनता से मिले घोर तिरस्कार ने उनकी भी बोलती बंद कर दी। यह देश अब अमन और शांति के साथ जीना चाहता है। अतीत में मंदिर-मस्जिद और धर्म के नाम पर हुए खूनी खेल और भयावह तमाशों ने बहुत बडा सबक दिया है। लोग नेताओं की असलियत से वाकिफ हो चुके हैं। उनमें संयम और परिपक्वता आ गयी है, पर बडे दु:ख की बात है कि कुछ नेता वहीं के वहीं हैं। हिं‍दुओं और मुसलमानों को लडाने की साजिशी मंशा आज भी उनमें यथावत बनी हुई है। अयोध्या विवाद पर आये उच्च न्यायालय के फैसले को जिस तरह से मुलायम सिं‍ह ने कटघरे में खडा करने की कोशिश की उससे यह तथ्य तो अब एकदम पुख्ता हो गया है कि मुलायम सिं‍ह के लिए मुसलमान महज वोटर भर हैं और वोटरों में लिये यह सियार देश को जोडने नहीं, तोडने की चाहत पाले हुए है। यह अच्छा ही हुआ कि मुलायम सिं‍ह की असलियत मुसलमानों की भी समझ में आ गयी है। इस बार मुलायम का दांव उल्टा पडा है। जो उन्होंने सोचा था वह हो नहीं पाया। बदनीयत मुलायम कट्टर हिं‍दू - मुसलमान नेताओं को भडकाने की चाल में नाकामयाब होकर अपना माथा पीटने को विवश हैं। मुलायम की साजिश पर पानी फेरते हुए जिस तरह से दोनों समुदायों के धार्मिक नेताओं ने संयम और परिपक्वता का परिचय दिया उससे यकीनन भारतमाता का सिर और ऊंचा हुआ है। दलितों की राजनीति कर अपना स्वार्थ साधने वाले रामविलास पासवान जिन्होंने फैसले को निराशाजनक बता कर मुसलमानों का हितैषी बनने का ढोंग किया वे भी अमन पसंद मुसलमानों के समक्ष बेहद बौने साबित होकर रह गये। इतिहास गवाह है कि मुलायम, लालू और पासवान जैसे हद दर्जे के मतलबपरस्त नेताओं की राजनीति धर्मांध मुसलमान नेताओं के भरोसे चलती आयी है। यह लोग इस हकीकत से रू-ब-रू हो ही नहीं पाये कि आज की युवा पीढी, चाहे वो मुसलमानों की हो या हिं‍दुओं की, धर्मांधता पर यकीन नहीं रखती। धर्म के असली मायने आज की सजग युवा पीढी ने जान और समझ लिये हैं। २१ वीं सदी के भारत में अलगाववाद और मजहबी उन्माद के लिए कोई जगह बाकी नहीं बची है। युवाओं को मालूम है कि देश के विकास और जन-जन की बेहतरी के लिए शांति, अमन और भाईचारे का होना बेहद जरूरी है। यह ६ दिसंबर १९९२ का नहीं २०१० का वो हिं‍दुस्तान है जहां हिं‍दू और मुसलमानों से पहले इंसान बसते हैं। इंसानों का हैवानियत से कोई लेना-देना नहीं हो सकता। वैसे भी सारी दुनिया जानती है कि यह भारत देश ही है जिसने हमेशा इंसानियत का पैगाम दिया है। जिन हैवानों ने इंसानियत के जिस्म को छलनी करने का पाप किया उन्हें इतिहास काफी माफ नहीं करेगा। हम यह भी जानते और मानते हैं कि अयोध्या पर आये फैसले से कुछ भारतवासी नाखुश हैं पर इस नाखुशी के मौके पर भी उन्होंने जिस संयम और परिपक्वता का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया, वही इस देश की मूलभूत पहचान है। इसी पहचान की देन हैं वर्षों पहले लिखी गयी किसी कवि की यह पंक्तियां-तू हिं‍दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा...।

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