Thursday, April 19, 2012
कौन घंटी बांधेगा?
नागपुर के धंतोली में स्थित कोलंबिया कैंसर अस्पताल के डाक्टरों ने मानवता को शर्मिंदा करने वाला कारनामा कर डाक्टरी पेशे को कलंकित कर दिया है। यह लालच की इंतहा ही है कि मर चुकी मरीज को जिंदा बताया गया। पहले तो इलाज के दौरान पंद्रह लाख पचास हजार रुपये झटक लिये गये। बकाया चार लाख रुपये वसूलने के लिए मौत के मुंह में समा चुकी मरीज को आईसीयू में कैद कर दिया गया। रिश्तेदारों को वेंटीलैटर में रखी महिला के करीब इसलिए नही जाने दिया गया क्योंकि अस्पताल का बिल बकाया था! डाक्टर को लग रहा था कि परिवार वाले अब और बिल भर पाने में अक्षम हैं। वह बेचैन हो उठा। उसने फौरन सौ रुपये के स्टाम्प पेपर पर परिजनों के हस्ताक्षर लिये जिस पर लिखा था कि किसी भी हालत में एक माह के भीतर बकाया बिल का भुगतान कर दिया जायेगा। इस लिखा-पढी के बीस मिनट बाद मरीज की हार्ट अटैक से मौत होने की सूचना दे दी गयी!महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में इस तरह की कुछ घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। इस शहर के अस्पतालों में दूर-दूर से लोग इलाज करवाने के लिए आते हैं। ऐसा नहीं है कि नागपुर का हर अस्पताल ठगी और ठगों का अड्डा है। कुछ अस्पताल हैं जहां के डाक्टरों में नैतिकता, मानवता और ईमानदारी रची बसी हुई है। इन्हीं की साख है, जो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और उडीसा तक के मरीजों के परिजनों को यहां खींच लाती है। पर उनका क्या किया जाए जिनके लिए धन ही सब कुछ है। धन के भूखे डाक्टरों ने अस्पताल के नाम पर ऊंची-ऊंची ईमारतें तो खडी कर ली हैं पर अपने ईमान को ताक पर रख दिया है। यह इलाज से पहले मरीजों के घर-परिवार वालों की हैसियत का आकलन करते हैं। उसके बाद हद दर्जे के लालची व्यापारी बन जाते हैं। जब तक मनचाही फीस मिलती रहती है तब तक मरीज को अस्पताल में भर्ती रखते हैं। मर चुके मरीजों को भी फीस के लालच में जिंदा दर्शाने से बाज नहीं आते। हमारे यहां डाक्टर को भगवान का दर्जा भी दिया जाता है। ऐसे ठगों और लुटेरों को क्या नाम दिया जाए? यकीनन हैवान और शैतान हैं यह लोग जिनकी वजह से अच्छे और सच्चे डाक्टरों को भी संदेह की नजरों से देखा जाने लगा है। धनखोर डाक्टरों की देखा-देखी नागपुर तथा आसपास के ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप डाक्टरों की संख्या में भी अच्छा-खासा इजाफा होता देखा जा रहा है। हर मरीज के परिजनों की जेब में इतना दम नहीं होता कि वे महंगा इलाज करवा सकें। न जाने कितनों को मजबूरन नादान और अनाडी डाक्टरों की शरण लेनी पडती है क्योंकि इन्हें जितना दो रख लेते हैं। यह बात दीगर है कि इनकी उल्टी-सीधी दवाइयों और इंजेक्शनों से कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है। पर इससे झोलाछाप डाक्टरों को कोई फर्क नहीं पडता। उनका एक ही जवाब होता है कि जब बडे-बडे अस्पतालों में लाखों रुपये की फीस देने के बाद भी मरीज ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं तो हम किस खेत की मूली हैं। यानी झोला छाप डाक्टरों को तो और भी सौ खून माफ हैं। यह भी कम चिंता की बात नहीं है कि जब झोलाछाप डाक्टरो का भंडाफोड होता है तो मीडिया उनके पीछे हाथ धोकर पड जाता है। दूसरी तरफ नामी-गिरामी अस्पतालों में चलने वाली लूट और अंधेरगर्दी उजागर होने के बाद भी किसी बडे अखबार और पत्रकार के कान पर जूं नहीं रेंगती। फाईव स्टार अस्पतालो को चलाने वाले धनपति अखबारों और न्यूज चैनलों को विज्ञापन देकर मरीजों की जान के साथ खेलने का जैसे अधिकार पा चुके हैं। यह शर्मनाक धंधा देश के लगभग हर शहर में चल रहा है। इस धंधे से होने वाली अपार कमाई को देखकर उन लोगों ने भी हाई-फाई अस्पताल खोलने शुरू कर दिये हैं, जिनका डाक्टरी पेशे से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। उद्योगपतियों और धनासेठों के अस्पतालों में नौकरी बजाने वाले डाक्टरों को ऊंची तनख्वाहें दी जाती हैं और उनसे मनचाहा काम लिया जाता है। मरीजों की फीस अस्पताल के मालिक तय करते हैं। डाक्टर तो सिर्फ अपनी ड्यूटी बजाते हैं। ऐसे डाक्टर भी कम नहीं जिन्हें मरीजों के परिजनों से मोटी रकम ऐंठने के ऐवज में तगडी कमीशन मिलती है। इसी कमीशन के लालच में अच्छे-खासे डाक्टर हैवान बनने लगे हैं। ऐसे अस्पतालों में मालिक को अधिक से अधिक कमायी करवाने के चक्कर में मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। परिजनों से सीधे मुंह बात नहीं की जाती। जिन डाक्टरों को भगवान कहा जाता है उन्हीं के कुछ संगी-साथियों का सिर्फ यही लक्ष्य होता है कि मालिक प्रसन्न रहेगा तो उनकी नौकरी भी बनी रहेगी और अथाह कमायी भी होती रहेगी। ऐसी खतरनाक स्थिति को सुधारने का है किसी में दम? कई-कई डिग्रियां समेटे हाई-फाई डाक्टरों से तो बडे-बडे खौफ खाते हैं तो फिर कौन बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा?
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