नारों पर नारे। बातें भी कितनी बडी-बडी।
मेरा देश महान। यहां सब हैं एक समान।
अनेकता में एकता हमारी असली पहचान।
सर्वत्र सद्भाव और भाई चारा।
पर सच तो है कुछ और। अपने ही देश में अपनों का अपमान। अपनों का खून। अपनों की ही लाशें। कुछ जख्म कभी भरते नहीं। भयावह सच्चाइयां भी हमेशा याद रहती हैं। नौकरी की तलाश में आर्थिक नगरी मुंबई में खुशी-खुशी जाने और अपनों के ही हाथों लहुलूहान होकर लौट आने वाले कई उत्तर भारतीय युवकों के जख्म आज भी ताजा हैं। मायानगरी मुंबई उन्हें डराती है। इस महानगर का नाम सुनते ही उनकी कंपकंपी छूट जाती है।
इस कलमकार को दिल्ली पर बडा नाज़ था। यह भी यकीन था कि दिल्ली सबको अपना मानती है। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। मुंबई की आक्रामक, भडकाऊ और तोड-फोड वाली राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह सबको एक सूत्र में बांध कर सतत आगे बढने वाली राजधानी है। जिस पर हर भारतवासी को गर्व है। पर इस गर्व की धज्जियां उड गयी हैं। दिल्ली वालों ने यह क्या कर डाला! सपने में भी कभी यह ख्याल नहीं आया था कि दिलवालों की दिल्ली इतनी बेदर्द हो जाएगी। अपने ही अपनों का खून बहाने लगेंगे। वो भी बिना किसी वजह। मेरी निगाह में हर वो अपना है जो इस देश और किसी भी प्रदेश का वासी है। अपने देश के लोगों से नफरत करना, उनका कत्ल करना, उन्हें अपमानित करना और प्रताडित करना भी राष्ट्रद्रोह है। हद दर्जे की गद्दारी है। अरुणाचल भी हिंदुस्तान का ही एक प्रदेश है। इस प्रदेश के कांग्रेस विधायक नीडो पवित्रा के बेटे को दिल्ली वालों ने जंगली जानवरों की तरह पीट-पीट कर मार डाला। वो कोई नेता या डकैत नहीं था जो दिल्ली को लूटने आया था। वह तो अपने देश की राजधानी में पढने और संवरने आया था। उसके माता-पिता ने उसके लिए कई सपने संजोये थे। उसके लिए सब कुछ नया था। नये रास्तों और नयी सडकों की भूल भुलैया में वह अपने गंतव्य स्थल को भूल गया। महानगरों में भटक जाना आम बात है। उसने कुछ दुकानदारों से अपनी समस्या का हल पाने के लिए पूछताछ की। दुकानदारों ने उसे रास्ता बताने की बजाय उस पर नस्लीय टिप्पणियों की बौछार शुरू कर दी। उसके बालों का मज़ाक उडाया गया। देखते ही देखते सामान्य सी बात आक्रामक बहस में तब्दील हो गयी। नीडो को कुछ भी समझ में नहीं आया। नयी भाषा नये लोग। पर देश तो अपना था। लेकिन उन अभद्र, अराजक और हिंसक सोच वाले दुकानदारों का तो कोई और ही इरादा था। तभी तो उन्होंने नीडो की थप्पडों, जूतों और घूसों से ऐसी निर्मम पिटायी की, कि अगले दिन उसकी मौत हो गयी। दिल्ली की पुलिस भी तमाशबीन बनी रही। पुलिस की यही आदत अपराधियों, आतंकियों, बलात्कारियों और हत्यारों के हौसले बढाती है और निर्दोषो को मौत के घाट पहुंचाती है। समृद्ध और पढे-लिखों की राजधानी में पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ दुरव्यहार की घटनाएं इतनी आम हैं कि कुछ कहते नहीं बनता। जनवरी में निडो को मार डाला गया तो फरवरी में मणिपुर की रहने वाली एक १४ वर्षीय किशोरी की अस्मत लूट ली गयी। किशोरी को रात में अकेले जाते देख दुष्कर्मी की नीयत डोल गयी। उसने उसे जबर्दस्ती दबोचा और अपने घर के भूतल पर स्थित कमरे में ले जाकर बलात्कार कर डाला। विरोध करने पर नाबालिग लडकी की उसने पिटायी भी कर डाली। पीडित युवती काफी देर तक इधर-उधर भटकती रही! अपनी फरियाद सुनाने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे। वह हिंदी नहीं जानती थी। उसके परिजन उसे तलाशने के लिए हलाकान होते रहे। जैसे-तैसे मामला पुलिस तक पहुंचा। बलात्कारी युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। यह भी खुलासा हुआ है कि वह पहले भी बलात्कार कर चुका है। यानी वह आदतन अपराधी है। तय है ऐसे अपराधियों को पुलिस का भय नहीं होता। तभी तो उत्तर-पूर्व के लोगों पर दरिंदगी और दादागिरी का कहर ढाने का सिलसिला बढता ही चला जा रहा है।
दिल्ली में स्थित कोटला मुवारकपुर में मणिपुर की दो युवतियां पांच बदमाशों की छेडछाड का शिकार बनीं तो देशबंधु गुप्ता रोड इलाके में असम की युवती से जबरन वेश्यावृत्ति कराने के मामले ने भी कम सुर्खियां नहीं पायीं। दूसरे प्रदेशों से आने वाले नागरिकों के साथ अभद्र और अपमानजनक व्यवहार करने वाले दिल्लीवासी शायद इस तथ्य को भूल गये हैं कि राजधानी दिल्ली सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि भारत के हर नागरिक की है। दिल्ली वालों को किसी भी इंसान की इज्जत की धज्जियां उडाने और उसकी जान लेने का कोई हक नहीं है। फिर मेहमान तो मेहमान होता है। चाहे देशी हो या विदेशी। उसका तो आदर सत्कार किया जाना चाहिए। यही भारतीय संस्कृति है।
मेरा देश महान। यहां सब हैं एक समान।
अनेकता में एकता हमारी असली पहचान।
सर्वत्र सद्भाव और भाई चारा।
पर सच तो है कुछ और। अपने ही देश में अपनों का अपमान। अपनों का खून। अपनों की ही लाशें। कुछ जख्म कभी भरते नहीं। भयावह सच्चाइयां भी हमेशा याद रहती हैं। नौकरी की तलाश में आर्थिक नगरी मुंबई में खुशी-खुशी जाने और अपनों के ही हाथों लहुलूहान होकर लौट आने वाले कई उत्तर भारतीय युवकों के जख्म आज भी ताजा हैं। मायानगरी मुंबई उन्हें डराती है। इस महानगर का नाम सुनते ही उनकी कंपकंपी छूट जाती है।
इस कलमकार को दिल्ली पर बडा नाज़ था। यह भी यकीन था कि दिल्ली सबको अपना मानती है। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। मुंबई की आक्रामक, भडकाऊ और तोड-फोड वाली राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह सबको एक सूत्र में बांध कर सतत आगे बढने वाली राजधानी है। जिस पर हर भारतवासी को गर्व है। पर इस गर्व की धज्जियां उड गयी हैं। दिल्ली वालों ने यह क्या कर डाला! सपने में भी कभी यह ख्याल नहीं आया था कि दिलवालों की दिल्ली इतनी बेदर्द हो जाएगी। अपने ही अपनों का खून बहाने लगेंगे। वो भी बिना किसी वजह। मेरी निगाह में हर वो अपना है जो इस देश और किसी भी प्रदेश का वासी है। अपने देश के लोगों से नफरत करना, उनका कत्ल करना, उन्हें अपमानित करना और प्रताडित करना भी राष्ट्रद्रोह है। हद दर्जे की गद्दारी है। अरुणाचल भी हिंदुस्तान का ही एक प्रदेश है। इस प्रदेश के कांग्रेस विधायक नीडो पवित्रा के बेटे को दिल्ली वालों ने जंगली जानवरों की तरह पीट-पीट कर मार डाला। वो कोई नेता या डकैत नहीं था जो दिल्ली को लूटने आया था। वह तो अपने देश की राजधानी में पढने और संवरने आया था। उसके माता-पिता ने उसके लिए कई सपने संजोये थे। उसके लिए सब कुछ नया था। नये रास्तों और नयी सडकों की भूल भुलैया में वह अपने गंतव्य स्थल को भूल गया। महानगरों में भटक जाना आम बात है। उसने कुछ दुकानदारों से अपनी समस्या का हल पाने के लिए पूछताछ की। दुकानदारों ने उसे रास्ता बताने की बजाय उस पर नस्लीय टिप्पणियों की बौछार शुरू कर दी। उसके बालों का मज़ाक उडाया गया। देखते ही देखते सामान्य सी बात आक्रामक बहस में तब्दील हो गयी। नीडो को कुछ भी समझ में नहीं आया। नयी भाषा नये लोग। पर देश तो अपना था। लेकिन उन अभद्र, अराजक और हिंसक सोच वाले दुकानदारों का तो कोई और ही इरादा था। तभी तो उन्होंने नीडो की थप्पडों, जूतों और घूसों से ऐसी निर्मम पिटायी की, कि अगले दिन उसकी मौत हो गयी। दिल्ली की पुलिस भी तमाशबीन बनी रही। पुलिस की यही आदत अपराधियों, आतंकियों, बलात्कारियों और हत्यारों के हौसले बढाती है और निर्दोषो को मौत के घाट पहुंचाती है। समृद्ध और पढे-लिखों की राजधानी में पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ दुरव्यहार की घटनाएं इतनी आम हैं कि कुछ कहते नहीं बनता। जनवरी में निडो को मार डाला गया तो फरवरी में मणिपुर की रहने वाली एक १४ वर्षीय किशोरी की अस्मत लूट ली गयी। किशोरी को रात में अकेले जाते देख दुष्कर्मी की नीयत डोल गयी। उसने उसे जबर्दस्ती दबोचा और अपने घर के भूतल पर स्थित कमरे में ले जाकर बलात्कार कर डाला। विरोध करने पर नाबालिग लडकी की उसने पिटायी भी कर डाली। पीडित युवती काफी देर तक इधर-उधर भटकती रही! अपनी फरियाद सुनाने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे। वह हिंदी नहीं जानती थी। उसके परिजन उसे तलाशने के लिए हलाकान होते रहे। जैसे-तैसे मामला पुलिस तक पहुंचा। बलात्कारी युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। यह भी खुलासा हुआ है कि वह पहले भी बलात्कार कर चुका है। यानी वह आदतन अपराधी है। तय है ऐसे अपराधियों को पुलिस का भय नहीं होता। तभी तो उत्तर-पूर्व के लोगों पर दरिंदगी और दादागिरी का कहर ढाने का सिलसिला बढता ही चला जा रहा है।
दिल्ली में स्थित कोटला मुवारकपुर में मणिपुर की दो युवतियां पांच बदमाशों की छेडछाड का शिकार बनीं तो देशबंधु गुप्ता रोड इलाके में असम की युवती से जबरन वेश्यावृत्ति कराने के मामले ने भी कम सुर्खियां नहीं पायीं। दूसरे प्रदेशों से आने वाले नागरिकों के साथ अभद्र और अपमानजनक व्यवहार करने वाले दिल्लीवासी शायद इस तथ्य को भूल गये हैं कि राजधानी दिल्ली सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि भारत के हर नागरिक की है। दिल्ली वालों को किसी भी इंसान की इज्जत की धज्जियां उडाने और उसकी जान लेने का कोई हक नहीं है। फिर मेहमान तो मेहमान होता है। चाहे देशी हो या विदेशी। उसका तो आदर सत्कार किया जाना चाहिए। यही भारतीय संस्कृति है।
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