Thursday, February 6, 2014

जूते-चप्पल और थप्पड

जूते और थप्पड। इनका चलन ज्यादा पुराना नहीं है। इन दिनों इनके चलने और बजने की आवाजें बडी तेजी के साथ सुनायी देने लगी हैं। एक जमाना था जब अंडे और टमाटर बरसा करते थे। महंगाई की मार के चलते वक्त ने ऐसा पलटा खाया और दूभर हालातों ने ऐसा असर दिखाया कि अपनी मांगें मनवाने, सत्ताधीशों को जगाने, अपने बेकाबू गुस्से को दिखाने के तौर-तरीके ही बदल गये!
आज के अखबार में छपी इस खबर ने स्तब्ध करके रख दिया। शीर्षक ही कुछ ऐसा था: 'राष्ट्रपति से नहीं मिलने दिया तो हो गये नंगे'। दरअसल, हुआ यूं कि एक युवक और युवती देश के राष्ट्रपति से मिलने और उन्हें अपनी फरियाद सुनाने के इरादे से राष्ट्रपति भवन के मुख्य गेट पर पहुंचे। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। अपनी मंशा पूरी नहीं होने पर दोनों ने फौरन अपने कपडे उतार फेंके और नंग-धडंग हालत में चहलकदमी करने लगे। यह अजीबो-गरीब नज़ारा देख सुरक्षा कर्मी भौचक्के रह गये। बिलकुल वैसे ही जैसे मैं और देश और दुनिया के तमाम सजग पाठक जिन्होंने इस खबर को पढा, सुना और जाना। मुझे तो बरबस दुष्यंत कुमार की लिखी यह पंक्तियां याद हो आयीं:
 'कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कंवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।'
इन दिनों मेरे मन और मस्तिष्क में अक्सर यह सवाल गूंजता रहता है कि इस देश के राजनेता मुल्क की तस्वीर को बदलना क्यों नहीं चाहते? सभी साधनों के होने के बावजूद भी यह बदहाली का आलम क्यों है? चंद लोग खुश हैं। सत्ता और व्यवस्था से नाखुश करोडों देशवासियों में निराशा और हताशा घर कर चुकी है। इन हताश और उदास लोगों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मरने-मारने पर उतारू होने के करतब दिखाने में कोई संकोच नहीं करते। बीते हफ्ते हरियाना के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गाल पर एक बेरोजगार युवक ने भरे चौराहे पर तमाचा जड दिया। युवक चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि पैसे देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली। यानी युवक ने सरकारी नौकरी पाने के लिए अच्छी-खासी रिश्वत दी थी। फिर भी उसे अंगूठा दिखा दिया गया। गुस्साया युवक मुख्यमंत्री हुड्डा को ही इसका असली जिम्मेदार ठहरा रहा था। हुड्डा पर अगस्त २०१० में भी एक २१ वर्षीय युवक ने जूता फेंका था। निशाना सही नहीं होने के कारण वे बच गये थे। भूपेंद्र सिंह प्रदेश के विकास के बडे-बडे दावे करते हैं। उनका दावा है कि उनका प्रदेश विकास के युग में प्रवेश कर चुका है। वे अपनी सरकार की उपलब्धियों के बखान करने वाले लुभावने विज्ञापनों पर करोडों रुपये लुटाने के कीर्तिमान रचते चले आ रहे हैं। अपने प्रचार के लिए सरकारी खजाने को अंधाधुंध लुटाने वाले इस महारथी के विज्ञापन प्रदेश में दो लाख करोड रुपये की पूंजी के निवेश का दावा करते हैं, जबकि इसका असली आंकडा मात्र ३१८९ करोड रुपये ही है। प्रदेश में २० लाख बेरोजगार युवकों को रोजगार देने का ढोल पीटने वाले झूठे और फरेबी मुख्यमंत्री बडी मुश्किल से ३६ हजार लोगों को ही रोजगार दे पाये हैं। हुड्डा के झूठे वायदों और दावों की पोल खुल गयी है। लोकायुक्त ने भी उनसे जवाब मांगा है। जिन्हें जनता के जूते-चप्पल और थप्पड विचलित नहीं करते उनके लिए लोकायुक्त का डंडा भी कोई मायने नहीं रखता। वैसे भी नेताओं की अस्सी फीसदी कौम लज्जाहीन हो चुकी है। धन की बरसात कर चुनाव जीतना, सत्ता पाना और फिर लूट मचाना इनका पेशा है। नाराज़ नौजवानों के हाथों पिटने, जूते-वूते खाने और थप्पडों के वार हंसते-हंसते झेल जाने के इनके अनेकों सच्चे किस्से हैं। इन किस्सों में तथाकथित योगी और हद दर्जे के भोगी किस्म के साधु-संतो के नाम भी शामिल हो चुके हैं। इस सदी के सबसे बडे धूर्त प्रवचनकार आसाराम को भी जब एक पत्रकार का सवाल शूल की तरह चुभ गया था तो उसने भी उसे थप्पड मार कर अपनी 'शिष्टता' और 'विद्वता' दिखायी थी। खोखली संतई के मद में चूर आसाराम ने तो टीवी पत्रकार का कैमरा ही चूर-चूर कर डाला था। धर्म और राजनीति के मैदान में उछलकूद मचाते-फिरते बाबा रामदेव पर स्याही फेंकने का मामला ज्यादा पुराना नहीं है। नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन पर चमकदार जूता भी चल चुका है। फिर भी उनकी शान में कोई कमी नहीं आयी है। वे ठाठ से धर्म, योग और राजनीति का धंधा कर रहे हैं।
द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती देश और दुनिया के जाने-माने संत हैं। हर संत को शांति, सहृदयता और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है। मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक नगरी जबलपुर में स्वरूपानंद सरस्वती ने एक पत्रकार के गाल पर ऐसा धारदार तमाचा मारा, जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनी और सुनायी गयी। इस झन्नाटेदार थप्पड की जो वजह सामने आयी वो भी कम विस्मयकारी नहीं। पत्रकार ने उनसे पूछा था कि क्या नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं? जवाब में बेचारे पत्रकार ने गाल को लाल कर देने वाला चांटा पाया। स्वरूपानंद को यह प्रश्न ही रास नहीं आया। वे कांग्रेस प्रेमी हैं। नेहरू और गांधी परिवार से उन्हें खास लगाव है। भाजपा उन्हें नहीं भाती। मोदी से भी किसी बात को लेकर खफा हैं। ऐसे में उनके मुख्यमंत्री बनने के सवाल को वे कैसे बर्दाश्त कर लेते! उन्होंने भी वही किया जो अभी तक होता आया है। मुख्यमंत्री हुड्डा को निराश बेरोजगार नौजवान ने थप्पड मारी। पत्रकार को उस स्वामी जी ने थप्पड रसीद कर दिया जो पूरी दुनिया को संयम, शांति और अहिंसा का पाठ पढाते हैं!

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