Thursday, October 30, 2014

मत करो भरोसे का कत्ल

एक बार फिर वही चिन्ता। वही ठगे जाने का डर और पीडा। लोग निराश और हताश। फिर वही पुराने सवाल। कब थमेगी छल कपट की राजनीति! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीखे सवालों के कटघरे में हैं। आपने ही वायदे किए थे। आश्वासन बांटे थे। फिर अब पीछे हटने की नौबत क्यों? आपने भी यही मान लिया है कि देशवासी बेवकूफ और भुलक्कड हैं। कुछ दिन शोर मचाएंगे फिर अपने काम में लग जाएंगे? पर अब ऐसा नहीं होने वाला जनाब। जागी जनता चुप रहने वाली नहीं। इसका शोर शासकों के कान के पर्दे फाडने में सक्षम है। अब इसे नजरअंदाज मत कीजिये। जो कहा था उसे करके दिखाइए। यह मत भूलिए कि भरोसे के कत्ल से बडा और कोई अपराध नहीं होता। अगर भरोसा टूट गया तो कुछ भी नहीं बचने वाला। लोग हैरान हैं कि क्या यही वो नरेंद्र मोदी थे जिन्होंने सत्ता पर काबिज होने के १०० दिन के भीतर विदेशी बैंकों में काला धन रखने वाले देशी कुबेरों के नामों का खुलासा करने का पुख्ता आश्वासन दिया था। यह भी कहा था कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन किसी भी हालत में देश में लाया जाएगा और देश तथा देशवासियों को खुशहाल बनाया जाएगा। बाबा रामदेव भी विदेश में प‹डे काले धन को भारत में लाने के लिए नरेंद्र मोदी को एकमात्र सक्षम नेता बताते नहीं थकते थे। उन्होंने पूरे देश में काले धन और मनमोहन सरकार के खिलाफ ऐसा ढोल पीटा था कि जिसकी गूंज सात समंदर पार तक सुनायी दी थी। लेकिन आज वे भी खामोशी की चादर ओढे हैं। वैसे मोदी के सत्तासीन होने से रामदेव को उन खतरों से तो मुक्ति मिल गयी है जो मनमोहन सरकार के कार्यकाल में उन पर नंगी तलवार की तरह लटक रहे थे। जब मोदी का उन्होंने इतना साथ दिया है तो मोदी भी 'दोस्ती' तो निभाएंगे ही। इसलिए बाबा बेफिक्र हैं। बेखौफ होकर अपने धंधे को बढाने में जुट गये हैं। आम जनता को यह आभास भी हो रहा है कि इस बार भी वह ठगी गयी है। नरेंद्र मोदी की चुप्पी चोट देने वाली है। वे भी उन घाघ नेताओं से अलग नहीं हैं जो यह मानते हैं कि चुनावी मौसम में किये गये वायदों के कोई खास मायने नहीं होते। चुनावी मंचों पर आसमानी वायदे करने की जो पुरातन परिपाटी है वह उन्होंने भी निभा दी। लेकिन वे भूल गये कि देश की जनता ने उन्हें हवा-हवाई नेता समझ इतना भारी समर्थन नहीं दिया है। विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के लिए मोदी सरकार ने जो ठंडापन दिखाया उससे यकीनन नरेंद्र मोदी की छवि को आघात लगा है। बडी मुश्किल से केन्द्र सरकार ने विदेशों में काला धन रखने वाले जिन तीन लोगों के नाम सुप्रीम कोर्ट को बताए उनमें दो ने फौरन रहस्योद्घाटन कर डाला कि वे भाजपा और कांग्रेस को चंदा देते रहे हैं।
खनन कारोबारी राधा ने भाजपा को एक करो‹ड १८ लाख रुपये तो उद्योगपति चमन भाई लोढिया ने भाजपा को ५१ हजार का चुनावी चंदा देने की सचाई उजागर कर बहुत कुछ कह दिया है। कोई भी उद्योगपति बिना वजह चुनावी चंदा नहीं देता। वह कहीं न कहीं आश्वस्त होता है कि सत्ता उनका बाल भी बांका नहीं कर पायेगी। अब यह मानने में संकोच कैसा कि यही वजह है कि मोदी सरकार भी मनमोहन सरकार की तरह काले धनपतियों के नामों को उजागर करने से बचती रही। उसे अंदर ही अंदर यह भय खाये जा रहा था कि कांग्रेस तो नंगी होगी ही उसके भी कपडे उतर जाएंगे। बदनामी तो दोनों चंदाखोर पार्टियों के हिस्से में आने ही वाली है। विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम खुलकर बताने में मोदी सरकार ने इतनी मजबूरियां दर्शायीं कि मोदी के अंधभक्त भी अपनी नजरें झुकाने को विवश हो गए। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकारा। उन तमाम नामों को कोर्ट के सामने पेश करने का आदेश दिया जिनके बारे में उसे विदेश से जानकारी तो मिल चुकी थी, लेकिन बताने में आनाकानी कर रही थी। सरकार ने बडे बुझे मन से स्विस बैंक के खाताधारी ६२७ भारतीयों के नाम सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे। फिर भी कोहरा छंटा नहीं। इन नामों में आधे एनआरआई हैं। उन पर तो देश का आयकर कानून लागू ही नहीं होता! यानी खोदा पहाड निकली चुहिया वाली स्थिति बनी हुई है। लोकसभा चुनाव के दौरान वायदों और आश्वासनों की बरसात करने वाले नरेंद्र मोदी की साख दांव पर है। नुकसान भी सिर्फ और सिर्फ उन्हीं का होना है। जनता ने अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसों को देखकर वोटों की बरसात नहीं की। उसने तो नरेंद्र मोदी को ही सर्वप्रभावी और जुनूनी नेता और अपना एकमात्र भाग्य विधाता माना। इसलिए हर सवाल का जवाब भी मोदी को ही देना होगा। उनकी चुप्पी और सुस्ती यह थका और टूटा हुआ देश झेल नहीं पायेगा।
विदेशी बैंकों में जमा काला धन देश में जब आएगा तब आयेगा। ऐसे में देशवासी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री महोदय उन काले धनपतियों को सडक पर लाएं जिन्होंने अरबो-खरबों की काली दौलत का साम्राज्य खडा कर शोषण, भ्रष्टाचार और लूटमारी को बढावा दिया है। इस खेल में कई राजनेता भी शामिल हैं। वर्षों से सत्ता का सुख भोगते चले आ रहे कई नेताओं के यहां अपार काला धन भरा पडा है। यह मोदी पर निर्भर है कि भ्रष्ट  उद्योगपतियों, राजनेताओं, मंत्रियों, संत्रियों, खनिज माफियाओं, सत्ता के दलालों, जमीनों और इमारतों के सौदागरों की तिजोरियों में कराहते काले धन को कैसे बाहर निकाल पाते हैं। मोदी ने अगर इसमें सफलता पा ली तो देशवासी उन्हें असली नायक का ताज पहनाने में देरी नहीं लगाएंगे। अन्यथा उन्हें भी इतिहास के कूडेदान में समाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

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