Thursday, April 20, 2017

थोथा चना बाजे घना

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में बुरी तरह से पराजित होने के बाद बहन मायावती ने अपनी कमियों पर ध्यान देने की बजाय यह बयान देकर देशवासियों को आश्चर्यचकित कर दिया : बसपा की हार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में की गयी हेराफेरी के कारण हुई है। बसपा जैसी मजबूत पार्टी के हारने का सवाल ही नहीं उठता था। यूपी के अधिकांश वोटर हमारे साथ थे। इसके बाद दूसरे दलों के नेताओं ने भी अपनी हार की वजहों को नजरअंदाज कर ईवीएम पर ही खीज उतारने का अभियान चला दिया। मोदी लहर में भी प्रचंड बहुमत हासिल कर दिल्ली में सरकार बनाने वाले आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब में हुई अपनी हार के लिए ईवीएम को निशाने पर लेकर मायावती की तर्ज पर राग छेड दिया कि बटन किसी का भी दबाएं, वोट कमल को ही जाता है। अरविंद ने सत्ता पर काबिज होने के लिए दिल्ली के मतदाताओं से कई वादे किए थे। मतदाताओं ने उनपर भरोसा कर अभूतपूर्व मतदान किया। लेकिन अरविंद तो हवा में उडने लगे। केजरीवाल अगर दिल्लीवालों की कसौटी पर खरे उतरते तो उन्हें यह दिन नहीं देखने पडते। दिल्ली के मतदाता उन्हें सत्ता सौंपकर बुरी तरह से पछता रहे हैं। यही हाल मायावती का भी है। उन्होंने भी बसपा को अपनी जागीर समझ कर अपना धनबल बढाने के सिवाय और कोई खास जनहितकारी काम नहीं किया। यूपी के मतदाताओं ने उन्हें बार-बार मौका दिया, लेकिन वे मुख्यमंत्री बनने के बाद खुद की ही प्रतिमाएं बना कर हंसी की पात्र बनती रहीं। उन्होंने सत्ता में रहते हुए दलितो, शोषितों, अल्पसंख्यकों को भी विस्मृत कर दिया जिनकी बदौलत वे राजनीति के आकाश में चमकी थीं। आज का मतदाता सजग हो गया है। भरोसा टूटते ही वह तथाकथित बडे-बडे रहनुमाओं को कूडेदान में डालने में देरी नहीं लगाता। कांग्रेस का हश्र आज सबके सामने है। देश की यह सबसे पुरानी पार्टी जल बिन मछली की तरह तडप रही है। इस पार्टी ने सबसे ज्यादा देश पर राज किया है। हर तरफ से मुंह की खाने के बाद उसे भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन भाजपा के इशारों पर काम करती नजर आने लगी है। गौरतलब है कि भारतवर्ष में चुनावों में ईवीएम मशीनों के उपयोग की शुरुआत १९९६ में हुई। तब से सतत इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। अपनी कमियों को छिपाने के लिए ईवीएम का विरोध करने वाले राजनीतिक दल और नेताओं को तब तक ईवीएम मशीनें सही लगती रहीं जब तक वे चुनाव जीतते रहे। चुनाव हारते ही उन्हें गडबड घोटाला नजर आने लगा। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी की अगुवाई में १३ प्रमुख दलों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को स्पष्ट कहा है कि अपने पक्ष में नतीजे लाने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार वोटिंग मशीनों से छेडछाड कर लोकतंत्र के साथ धोखाधडी कर रही है। उनका कहना है कि यूपी में भाजपा की प्रचंड जीत मशीनों में की गई तकनीकी गडबडी की वजह से ही संभव हो पायी है। यहां पर यह सवाल भी किया जा सकता है कि यदि भाजपा को बेईमानी ही करनी होती तो हर प्रदेश में करती। पंजाब और मणिपुर में कांग्रेस कतई नहीं जीत पाती। यहां यह भी काबिलेगौर है कि २०१० में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। लेकिन इस बार जब पंजाब में उनकी पार्टी को सरकार बनाने का बहुमत मिला है तो उनकी सोच में तब्दीली आ गई है। अब वे वोqटग मशीन के बचाव में खडे नेताओं की हां में हां मिला रहे हैं। मतलब साफ है कि जब हार होती है तो मशीन में गडबडी और जब जीत तो सबकुछ ठीकठाक। यह सोच भारत के अधिकांश नेताओं के चरित्र को दर्शाती है। ईवीएम का विरोध करनेवाले नेता अब मतपत्र से चुनाव कराने की मांग करने लगे हैं। उनका यह भी कहना है कि ईवीएम से चुनाव कराना बडा महंगा भी पडता है। देश को बैलगाडी युग में ले जाने की धारणा रखने वाले यह विद्वान नेता ईवीएम पर संदेह जता कर कहीं न कहीं जनता को बरगलाना चाहते हैं। कौन नहीं जानता कि इनकी राजनीति ही इसी तरह से चलती आयी है। कांग्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी जिस तरह से ईवीएम पर अविश्वास जता रही है उससे उनका बचकानापन, कमअक्ली ही जाहिर होती है। उन्हें यह तो नहीं भूलना चाहिए था कि अतीत में जब उन्होंने चुनावी जीत हासिल की थी तब भी ईवीएम का उपयोग हुआ था। ईवीएम को अपनी हार की वजह मानने वाले विपक्षी दलों के नेताओं को चुनाव आयोग ने खुली चुनौती दी है कि वे मशीन में छेडछाड करके दिखाएं। चुनाव आयोग ने कहा है कि मई के पहले हफ्ते से राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और तकनीकविद एक हफ्ते या दस दिन के लिए आकर मशीनों को हैक करने की कोशिश कर सकते हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में इस्तेमाल मशीनें चुनौती के लिए लाई जाएं। आम आदमी पार्टी ने चुनौती स्वीकार कर ली है। गौरतलब है अरविंद केजरीवाल का दावा था कि अगर आयोग अपने अधिकारी की निगरानी में उन्हें ईवीएम दें तो वे साबित कर देंगे की छेडछाड होती है। केजरीवाल मानते हैं कि मशीन तैयार करते वक्त जब प्रोग्रामिंग की जाती है उसी वक्त डाटा में गडबडी की जा सकती है। चुनाव में पटखनी खाने वाले कुछ नेताओं के द्वारा पहले भी मशीन में तकनीकी गडबडी करने का आरोप लगाया जा चुका है। २००९ में भी चुनाव आयोग ने मशीन में छेडछाड करके दिखाने के लिए नेताओं को निमंत्रित किया था। लेकिन कोई भी माई का लाल यह साबित नहीं कर पाया था कि मशीन के साथ कोई कलाकारी की जा सकती है।

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