Thursday, April 13, 2017

कुछ भी नहीं मुश्किल

ऐसा लग रहा है कि अब भारतवासी नशों से मुक्ति चाहते हैं। देश के कोने-कोने से उठती शराबबंदी की मांग तो यही दर्शा रही है कि सजगजन शराब के दुष्परिणामों से अच्छी तरह से अवगत हो गये हैं। सरकारों को भी राजस्व की चिन्ता छोड जागने को विवश किया जा रहा है। शराबबंदी को लेकर महिलाओं की जागरूकता और आक्रामकता देखते बन रही है। यह स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि पुरुषों से ज्यादा महिलाएं शराब बंदी के लिए एकजुट हो रही हैं। शराब की सहज उपलब्धता ने जहां पुरुषों को नशेडी बनाया वहीं असंख्य हंसते-खेलते परिवार तबाह हो गए। परिवार की बर्बादी की सबसे ज्यादा पीडा तो महिलाओं को ही झेलनी पडती है। शराबी पति, पुत्र घरों के अंदर परिवारों पर अत्याचार करते हैं। कुछ तो इतने नशाखोर हो जाते हैं कि महिलाओं की मेहनत की कमाई पर भी डाका डालने से नहीं चूकते। नशे की लत को पूरा करने के लिए उन्हें अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय करने में भी लज्जा नहीं आती। शराब का नशा अक्सर सामाजिक और आपसी रिश्तों के लिए भी घातक साबित होता है। न जाने कितनी हत्याएं नशे के अतिरेक में कर दी जाती हैं। २०१७ के अप्रैल महीने की आठ तारीख को लुधियाना में एक नशे में धुत दोस्त ने दूसरे की नाक ही काट दी। बासठ साल का जंग सिंह मजदूरी करता है। रात को घर वापस लौट रहा था कि श्मशान घाट के निकट उसका दोस्त बलदेव शराब पी रहा था। इस दौरान बलदेव ने उसे शराब पीने के लिए जबरन बिठा लिया। दोनों पैग पर पैग चढाते चले गए। देखते ही देखते शराब की पूरी बोतल खाली हो गई। बलदेव ने उसे एक अन्य बोतल खरीद कर लाने को कहा। लेकिन जंग सिंह की तो जेब ही खाली थी। उसने अपनी मजबूरी बतायी तो बलवंत आग-बबूला हो उठा। विरोध करने पर पिटाई के साथ-साथ जंग सिंह की तेजधार हथियार से नाक भी काट दी। जंग सिंह बेहोश हो गया और शराबी दोस्त बलदेव वहां से भाग खडा हुआ। शराब के नशे में नाक कटने और काटने का बडा पुराना चलन है। अखंड शराबियों को वैसे भी समाज में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता। हर काम को करने का एक सलीका होता है। अपने देश में कई लोग अंधाधुंध पीकर ऐसे-ऐसे उत्पात मचाते हैं कि बेचारी शराब ही बदनाम हो जाती है। राष्ट्रीय और राज्य महामार्गों पर शराब बिक्री व सेवन पर लगी रोक से भले ही हजारों लोगों का धंधा चौपट हुआ हो, लाखों लोगों का रोजगार छिन गया हो, लेकिन यह तय है कि अब शराबी वाहन चालकों के कारण राजमार्गों पर होने वाली भीषण दुर्घटना में काफी कमी आएगी। इंसान की जान से बढकर और कुछ नहीं हो सकता। वैसे भी धन से इंसान की जान की कीमत कतई नहीं आंकी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के अभूतपूर्व फैसले से ही यह संभव हो पाया हैं, सरकारें तो राजस्व के लालच में नागरिकों की सुरक्षा को ही नजरअंदाज करने से नहीं कतरातीं। कई राजनेता और बुद्धिजीवी यह मानते हैं कि भारतवर्ष में शराबबंदी पूरी तरह से सफल नहीं हो सकती। हमारा तो यही मानना है कि यदि शासकों की नीयत में खोट न हो और कानून का कडाई से पालन करने की इच्छाशक्ति हो तो पूर्णत: शराबबंदी को लागू किया जा सकता है। बिहार में पूर्ण शराबबंदी का एक साल पूरा हो चुका है। इसी एक वर्ष में शराब पीने के मामले में ४४ हजार लोगों को जेल की हवा खिलायी गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब बिहार में शराब बंदी का ऐलान किया था तो उन्हें जबर्दस्त विरोध का भी सामना करना पडा, लेकिन वे अडिग रहे। आज बिहार में पूरी तरह से शराब बंदी हो चुकी है। अवैध शराब की बिक्री करने की खबरें भी आती रहती हैं। उनपर कडी कार्रवाई की तलवार चलाने में देरी नहीं की जाती। काबिलेगौर सच्चाई यह भी है कि जो लोग शराब के लती थे, उनमें से अधिकांश ने इससे तौबा कर ली है। पहले जो धन शराब पर खर्च किया जाता था आज घर-परिवार पर खर्च होने से बदहाली के बदले खुशहाली के नजारे हैं। दरअसल किसी भी बुराई से मुक्ति पाना कतई मुश्किल नहीं होता। निश्चय और आत्मबल से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। दरअसल लोग पहला कदम आगे बढाने से ही घबराने लगते हैं। उन्हें लगता है कि वर्षों की आदत से छुटकारा पाना मुश्किल होगा। लेकिन बिहार में इस सच पर मुहर लग गई है कि यदि शराब सहजता से मिलनी बंद हो जाए तो इससे सदा-सदा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है।
देश के कई शहरों में बीयर शॉपी खोली गई हैं। नारंगी नगर नागपुर में भी कई गली-कूचों में खुली बीयर शॉपी देखते ही देखते लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गर्इं। बीयर शॉपी के संचालकों को सिर्फ बीयर बेचने की अनुमति दी गयी है, लेकिन यहां तो दिन भर नशेडियों का जमावडा लगा रहता है। ग्राहकों के लिए आराम से बैठकर पीने-पिलाने के पुख्ता इंतजाम कर दिए गये हैं। कुछ बीयर शॉपी के मालिकों ने बीयर पीने के लिए विशेष कमरों की भी व्यवस्था उपलब्ध करायी है। ताज्जुब की बात तो यह भी है कि कई बीयर शॉपी फ्लैट स्कीम व अपार्टमेंट्स में हैं जहां बच्चों और महिलाओं का आना-जाना लगा रहता है। ज्यादा बीयर चढा लेने के बाद कई नशेडी हर मर्यादा को ताक में रखकर युवतियों के साथ अभद्र व्यवहार करने से भी बाज नहीं आते। कम उम्र के बच्चे भी इस नशे की तरफ आकर्षित होते देखे जा रहे हैं। राजमार्गों पर शराब दुकानों पर ताले जडे जाने के बाद तो इन बीयर शॉपी पर जैसे मेला-सा लगने लगा है और लोगों की परेशानी बढती चली जा रही है। राजमार्गों की शराब दुकानों और बीयर बारों पर तालाबंदी के बाद रिहाइशी इलाकों में दुकानें और बार खुलने के खतरे भी मंडराने लगे हैं। महिलाएं तो जागृत हैं ही... शासन और प्रशासन का भी चौकन्ना रहना जरूरी है।

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