Thursday, May 11, 2017

न्याय की ज्योति

जिस निर्भया बलात्कार और हत्याकांड की बर्बरता ने पूरे देश को सिहरा और हिलाकर रख दिया था उसका आखिरकार ५ मई २०१७ को फैसला आ ही गया। देश के सबसे भयावह और चर्चित अपराधों में एक इस बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चारों दरिंदों की फांसी की सजा को बरकरार रखा। निर्भया के पिता ने इस फैसले को पूरे देश की बेटियों के लिए एक अच्छा फैसला बताया। वहीं मां आशादेवी ने कहा कि यह केस का अहम पडाव था जिसमें उनकी जीत हुई है। अब उन्हे रात को चैन की नींद आएगी। दोषियों को फांसी की सजा मिलने के बाद उनकी बेटी की आत्मा को भी शांति मिलेगी। यदि वह जीवित होती तो १० मई को वह २८ साल की होती। सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसके लिए जन्मदिन का उपहार है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि नाबालिग बलात्कारी को उसके किए की सजा नहीं मिली। ज्योति की ९५ वर्षीय दादी परमेश्वरी देवी को जब फैसले के बारे में बताया गया तो उन्होंने डबडबाई आंखों से कहा कि अपनी बहादुर बिटिया की याद उन्हें हर रोज सताती है। वह आज भी १६ दिसंबर २०१२ की वह काली रात नहीं भूल पातीं। अब बिटिया रानी तो वापस नहीं आ सकती पर इस फैसले से उसकी आत्मा को शांति अवश्य मिलेगी। दादा बोले कि कलेजे को ठंडक मिली है। अब मैं चैन से मर पाऊंगा कि मेरी पोती को इंसाफ मिला।
वारदात के वक्त निर्भया के साथ मौजूद उसके मित्र अवनींद्र पाण्डेय ने फैसले को न्याय की जीत बताया। उन्होंने भरी आंखों से कहा कि यह फैसला निर्भया के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। इस तरह के फैसले से पीडित परिवार को न्याय मिलने के साथ-साथ ऐसे दरिंदों में डर भी पैदा होगा। उस घटना के बाद दिल्ली को छोड पुणे को अपना ठिकाना बनाने वाले अवनींद्र को वो अंधेरी डरावनी रात भुलाये नहीं भूलती। बलात्कार की बर्बर वारदात के पांच दिन बाद मौत से जूझ रही २३ वर्षीय फिजियोथेरेपी छात्रा ने २१ दिसंबर २०१२ को एसडीएम के समक्ष अपना बयान दर्ज करवाते हुए कहा था कि बलात्कारियों को फांसी पर लटका दो या जिन्दा जला दो। निर्भया की यह इच्छा कुकर्मियों के प्रति उसके अंदर के अथाह गुस्से को बयां कर गई। उसने जब अपने साथ हुई हैवानियत को शब्दों में व्यक्त किया तो एसडीएम की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। निर्भया का इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना था कि ऐसी हैवानियत उन लोगों ने अपने चिकित्सीय जीवन में पहले कभी नहीं देखी। निर्भया में अंतिम सांस तक जीने का ज़ज्बा था। उसने आखिर तक अपनी हिम्मत बनाये रखी। दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस राक्षसी तरीके से इस अपराध को अंजाम दिया गया उससे हर कोई व्यथित है। ऐसा लगता है कि यह शर्मनाक और डरावनी हकीकत किसी ऐसी दुनिया की है जहां इंसान नहीं, शैतान बसते हैं। दरिंदो ने युवती के साथ न सिर्फ बलात्कार किया, बल्कि क्रुरता की हर हद ही पार कर दी। युवती को बडी निर्दयता के साथ इधर-उधर घसीटा गया। उसके बाल पकड कर खींचे, कपडे फाड डाले। दोषियों ने युवती को मनोरंजन का साधन समझ उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों को दांत से काटा। युवती के सारे शरीर पर दांत के निशान थे। अप्राकृतिक संबंध भी बनाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को बर्बरता की हद करार देते हुए कहा कि दोषियों ने युवती के गुप्तांगों में लोहे की रॉड भी घुसाई और आंत तक को बाहर निकाल दिया। बाद में यही युवती की मौत की वजह बनी। इतने से भी इन दोषियों का मन नहीं भरा तो उन्होंने युवती और उसके दोस्त को नग्न अवस्था में चलती बस से फेंक दिया। वे तो युवती और उसके दोस्त को बस से कुचल कर मार देना चाहते थे, जिससे कि सबूत नष्ट हो जाए।
गौरतलब है कि १६ सितंबर, रविवार की रात २३ वर्षीय मेडिकल की छात्रा निर्भया अपने दोस्त अवनींद्र के साथ पिक्चर देखकर लौट रही थी। उसे मुनीरका से द्वारका जाना था। दोनों रात ९ बजे ऑटो से मुनीरका पहुंचे थे और बस स्टैंड के पास खडे होकर बस का इंतजार करने लगे। सवा नौ बजे एक सफेद प्रायवेट बस वहां पहुंची। बस में बैठने के लिए यात्रियों को आमंत्रित किया जाने लगा। ज्योति और अवनींद्र उसमें सवार हो गए। उनके बस में सवार होते ही बस का दरवाजा बंद कर दिया गया। बस में चालक सहित छह लोग सवार थे। कुछ दूर आगे जाने पर बस के परिचालक और उसके साथियों ने निर्भया के साथ छेडखानी शुरु कर दी। विरोध करने पर उन्होंने दोनों की रॉड से बुरी तरह से पिटायी की। इसके बाद बेखौफ होकर सामूहिक बलात्कार को अंजाम दे दिया। इस दरिंदगी के बाद दोनों को निर्वस्त्र हालत में चलती बस से नीचे फेंक दिया। दोनों सडक पर बेहोश पडे थे। इस बीच कई लोगों ने दोनों को देखा, लेकिन चुपचाप आगे बढ गए। कुछ समय बीतने के बाद कुछ लोगों की मानवता जागी और उन्होंने पुलिस को वारदात की सूचना दी। इस घटना के उजागर होने के बाद पूरा देश आंदोलित हो उठा। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र और कई देशों ने इस कांड की तीखी निंदा की थी।
वतन को कलंकित करने वाले इस मामले के सभी दोषियों को १४ सितंबर २०१३ को निचली अदालत में बनी फास्ट ट्रेक कोर्ट ने सजा-ए-मौत सुनाई थी। गौरतलब है कि छह दोषियों में से एक नाबालिग था। हालांकि वह कुछ ही महीनों बाद १८ साल का होने वाला था। उसे जुबेनाइल कोर्ट भेजा गया जहां उसे तीन साल की अधिकतम सजा के साथ बालगृह सुधार केंद्र भेजा गया था। फिलहाल वहां से सजा काटने के बाद उसे खुली हवा में सांस लेने की पूरी आजादी मिल गयी है। इस नाबालिग को लेकर देश में लंबी बहस छिड गई थी। जिसके बाद कानून में संशोधन किया गया और जघन्य अपराध में आरोपी १६ से १८ वर्ष के बीच के किशोरों पर सामान्य अदालत में मुकदमा चलाने के दरवाजे खोले गए। इस मामले में एक अभियुक्त रामसिंह ने अपराधबोध के चलते जांच के दौरान जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। यह मामला जब हाई कोर्ट गया तो वहां भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा गया था। हाई कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ दोषियों ने अपील दायर की थी जिसपर ५ मई २०१७ को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस सामूहिक बलात्कार के दोषियों की मानसिकता कितनी गंदी थी इसका पता बलात्कारी मुकेश सिंह के उस इंटरव्यू से चलता है जो उसने बी.बी.सी. की एक डाक्युमेंट्री में दिया था। उसने बडी गुंडई, नंगई और बेहयायी के साथ कहा था कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। किसी रेप में एक लडके से ज्यादा लडकी जिम्मेदार होती है। कोई चरित्रवान लडकी रात के ९ बजे के बाद बाहर नहीं घूमती। लडका और लडकी बराबर नहीं हो सकते। लडकियां घर का काम करने के लिए बनी होती हैं न कि गलत कपडे पहन कर इधर-उधर घूमने के लिए। सिर्फ बीस प्रतिशत लडकियां अच्छी होती हैं। हम जब बलात्कार कर रहे थे तब उसे हमें रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी। उसे चुपचाप जो हो रहा था, होने देना था। तब हम अपना काम करने के बाद उसे छोड देते। उसे खरोंच तक नहीं लगने देते। ऐसा लगता है कि इस वहशी के दिल और दिमाग पर उस आसाराम बापू ने अपना पूरा कब्जा जमा लिया था जिसका मत था कि यदि बलात्कृता बलात्कारियों के पैर पकड कर गिडगिडाती और कोई विरोध नहीं करती तो उसकी जान बच जाती। आसाराम ने भी यह कहा था कि ताली दोनों हाथ से बजती है। यह अत्यंत ही दुखद है कि निर्भया के केस में फॉस्ट ट्रेक कोर्ट ने भी फैसला सुनाने में काफी समय लगा दिया। ऐसी वारदातों का फैसला शीघ्र से शीघ्र आना जरूरी है। निर्भया कांड के सामने आने के बाद लोगों में सरकार के खिलाफ भी भयानक रोष था। राजधानी दिल्ली और देश के विभिन्न शहरों में निकाले गये कैंडल मार्च के दौरान हजारों लोगों की आंखों में आंसू और गुस्सा देखा गया था। लोगों ने ऐसा आंदोलन चलाया कि अंतत: सरकार भी हिल गई। देश के कोने-कोने से बस यही आवाज उठ रही थी कि निर्भया के दोषियों को भरे चौराहे पर फांसी पर लटकाया जाए। दुराचारियों को नपुंसक बनाने की मांग भी जोर-शोर से उठी थी! देश के हजारों लोगों को यही लगा था कि उसके घर-परिवार की ही बेटी के साथ यह वहशियत की गई है। हजारों सजग पुरूषों और महिलाओं की रातों की नींद उड गई थी। ऐसी ही दिल्ली की एक अनाम महिला हैं जो महीनों तक सो नहीं पार्इं। सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की फांसी बरकरार रहने पर जितनी खुशी निर्भया यानी ज्योति के माता-पिता को मिली उतनी ही खुशी उस महिला को मिली जो निरंतर सार्थक न्याय का इंतजार कर रही थी। इस महिला ने जंतर-मंतर पर निर्भया को लेकर प्रतीकात्मक जगह पर बनाये गए 'दामिनी चौक' पर १५९४ दिन तक लौ जलाए रखी। वह प्रतिदिन यहां आती थी और प्रभु से न्याय की प्रार्थना करती थी।

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