Thursday, May 4, 2017

'राष्ट्र पत्रिका' की वर्षगांठ और आज का सच

राष्ट्रीय साप्ताहिक 'राष्ट्र पत्रिका' की ९वीं वर्षगांठ के इस विशेषांक की सम्पादकीय लिखते वक्त मन में कई विचार आ रहे हैं। वैसे भी जन्म दिवस आत्मविश्लेषण और चिन्तन-मनन का एक बेहतरीन अवसर होता है। यह अवसर तब और अनमोल हो जाता है जब यात्रा रोमांचक संघर्षों और अवरोधों से भरी हो। अपनी पत्रकारिता के लगभग ३९ वर्ष के कार्यकाल में इस कलमकार ने प्रिंट मीडिया के सफरनामे को बहुत करीब से देखा है। देश के विभिन्न अखबारों में नौकरी करने के बाद महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर से २१ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय साप्ताहिक 'विज्ञापन की दुनिया' के प्रकाशन ने पत्रकारिता के क्षेत्र के और नये-नये अनुभवों से रूबरू कराया। सच के मार्ग पर चलने में कैसी-कैसी तकलीफें आती हैं इसका भी पता चल गया। सजग पत्रकारिता की निष्पक्ष और निर्भीक राह पर चलने की जिद ने ही कालांतर में 'विज्ञापन की दुनिया' के साथ-साथ 'राष्ट्र पत्रिका' के प्रकाशन की प्रेरणा दी। आज दोनों साप्ताहिक आप सबके सामने हैं। पत्रकारिता के इतने वर्षों के खट्टे-मीठे अनुभवों ने हमें यकीनन और मजबूत बनाया है। जिस तरह से नदी अपने प्रवाह के मार्ग में मौजूद पत्थरों से टकराकर उनसे आक्सीजन ग्रहण करती है उसी तरह से हमने भ्रष्ट राजनेताओं, भूमाफियाओं, सरकारी ठेकेदारों, सत्ता के दलालों और तमाम काले कारनामों के सरगनाओं से टकराकर विभिन्न चुनौतियां का डटकर सामना करना सीखा है। इससे निश्चय ही हमारा मनोबल बढा है। संघर्ष करने की इच्छाशक्ति में भी अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। सर्वधर्म समभाव... हमारी पत्रकारिता का मुख्य लक्ष्य है। देशहित हमारे लिए सर्वोपरि है।  साम्प्रदायिक ताकतों से निरंतर लोहा लेकर भी हमने नई ऊर्जा और शक्ति जुटायी है। वैसे यह भी सच है कि हमारी वास्तविक ताकत का स्त्रोत देशभर में फैले हमारे लाखों पाठक, शुभचिन्तक और विज्ञापनदाता हैं जिनकी बदौलत इस यात्रा में कभी व्यवधान नहीं आया। हमारी यात्रा निरंतर जारी है।
कई अखबारीलाल अक्सर प्रलाप करते रहते हैं कि पत्रकारिता और अखबार-प्रकाशन की राह में संकट ही संकट हैं। उनके आर्थिक संकट कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेते। दरअसल, यह वो कागजी प्रकाशक, संपादक, पत्रकार हैं जिनका आम पाठकों से कोई जुडाव ही नहीं होता। उनके अखबार में प्रकाशित होने वाले खबरें आमजन से कोई वास्ता नहीं रखतीं। उन्हें अपने आकाओं की चमचागिरी से ही फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में उनके अखबार सिर्फ उनके घर और कार्यालय की शोभा बढाते रह जाते हैं। सजग पाठक उन्हें छूना भी पसंद नहीं करते।
किसी भी समाचार पत्र को टिकाए रखने के लिए बुनियादी जमीनी सरोकार, निष्पक्ष खबरें, निर्भीक कलम और नैतिकता की पूंजी का होना बहुत जरूरी है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, गुजरात, उडीसा और आंध्रप्रदेश में सफलता और लोकप्रियता के कीर्तिमान रचता चला आ रहा 'राष्ट्र पत्रिका' आज देश के जन-जन की आवाज़ बन चुका है। दलितों, शोषितों, वंचितों के साथ-साथ भूख, भुखमरी, कर्ज में डूबे किसानों के सवाल उठाने में अग्रणी इस साप्ताहिक पर हमने कभी किसी भी धन्नासेठ, भूमाफिया और राजनीतिक दल का ठप्पा नहीं लगने दिया। शासकों, राजनेताओं, नौकरशाहों और पूंजीपतियों की चाकरी करना हमारे उसूलों के खिलाफ है। हमारी कलम हमेशा उन जनसेवकों व जनप्रतिनिधियों के भी खिलाफ चलती आई है जो सत्ता और पद के अहंकार में चूर होकर अपने असली फर्ज से विमुख हो जाते हैं। यही वजह है कि 'राष्ट्र पत्रिका' ऐसे तत्वों की आंखों में खटकता रहता है। हां, हमने अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाने वाले नेताओं, मंत्रियों, नौकरशाहों, उद्योगपतियों आदि की तारीफ में लिखने में कभी कोई कंजूसी नहीं बरती।
वर्तमान में अधिकांश मीडिया की भूमिका समझ से परे है। खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया सिर्फ भक्तिराग के रंग में रंगा नजर आता है। ऐसे में मुझे आपातकाल की याद हो आती है जिसे १९७५ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश पर जबरन थोपा था। कई विरोधी नेताओं, समाजसेवकों और बुद्धिजीवियों को पकड-पकड कर जेल में कैद कर दिया गया था। तब वतन के अधिकांश संपादकों, पत्रकारों और अखबारों के मालिकों ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और मुंह सिल लिए थे। नामी-गिरामी संपादकों ने भी लोकतंत्र को रोंदने वाली अहंकारी प्रधानमंत्री की आरती गानी शुरू कर दी थी। उनकी प्रशंसा में कविताएं और लेख लिखने की झडी लगा दी गई थी। नाम मात्र के ही संपादक, पत्रकार निष्पक्षता और निर्भीकता का दामन थामे नज़र आए थे। मीडिया के आचरण से हैरान-परेशान लालकृष्ण आडवाणी ने पत्रकारों को कोसते हुए कहा था-
"उन्हें झुकने को कहा गया था,
पर वे तो रेंगने लगे!"
आज देश में आपातकाल नहीं हैं फिर भी पता नहीं ऐसा कौन-सा खौफ (लालच कहें तो ठीक होगा) है कि अधिकांश पत्रकारों ने निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता करनी छोड दी है। जिसे देखो वही 'मोदी गान' और भाजपा की तारीफों के पुल बांधने में लगा है। उन्हें ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वादे किये थे उनकी पूर्ति कर दी गई है। रोटी, कपडा और मकान की समस्या का समाधान हो गया है। देश में अब किसी को खाली पेट नहीं सोना पडता। देश में चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली है। भाजपा के राज में पाकिस्तान के हौसले ठंडे पड गये हैं। नक्सलियों ने अपने हथियार फेंककर शांति के गीत गाने शुरू कर दिए हैं। चारों तरफ अमन-चैन है और हर तरफ विकास की गंगा बहने लगी है।
भाजपा शासित प्रदेशों से निकलने वाले लगभग सभी अखबार सरकारों के पक्ष में खडे नजर आ रहे हैं। उनके निकम्मेपन और भ्रष्टाचार की कहीं कोई चर्चा नहीं होती। पहले और आखिरी पन्ने पर वहां के मुख्यमंत्री की तारीफों के सिवाय और कुछ भी नहीं छपा नजर आता। शासकों की आरती में अपनी सारी ऊर्जा खपाकर पत्रकारिता को कलंकित करने पर तुले सफेदपोश, चापलूस संपादकों की बस यही चाहत दिखायी देती है कि किसी तरह से मुख्यमंत्री, मंत्रियों और बडे-बडे अफसरों की निगाह में आ जाएं और मनचाही मुराद पा जाएं। इस मामले में इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सारी हदें ही पार कर दी हैं। चौबीस घण्टे सत्ताधीशों के महिमामंडन में तल्लीन रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो उनके भगवान हो गये हैं। वे उन्हें खुश रखने के लिए पत्रकारिता की गरिमा को रसातल में ले जाने के लिए कोई कसर नहीं छोड रहे हैं। मीडिया के इस शर्मनाक पतन पर नरेंद्र मोदी भी यकीनन मन ही मन मुस्कारते होंगे। 'राष्ट्र पत्रिका' कभी भी अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हुआ और न ही होगा। स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि बेरोजगारी, अशिक्षा, महिलाओं के साथ दुराचार और तमाम अपराधों में लगातार बढोतरी हो रही है। टुच्चे पडोसी पाकिस्तान के खिलाफ देशवासी बेहद गुस्से में हैं। यह अहसानफरामोश देश अपनी कमीनगी से बाज़ नहीं आ रहा है। जवानों के सिर काटने की पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बरता ने भारतवासियों के खून को खौला कर रख दिया है। देश प्रधानमंत्री से गुहार लगा रहा है कि-"न बात करो, न ललकार, अब तो बदला लो सरकार।" नक्सली समस्या भी विकराल रूप धारण करती जा रही है। कश्मीर के हालात भी जस के तस हैं। वतनवासी अब परिणाम चाहते हैं। नारों को क्रियान्वित होते देखना चाहते हैं। घिसे-पिटे आश्वासनों और खोखली तसल्ली के गीत सुनते-सुनते लोगों के कान पक चुके हैं। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि उनके सब्र का बांध ही फूट जाए। इसलिए पूरी तरह से जागो सरकार, अपने सारे वादे निभाओ और पाकिस्तान और नक्सलियों को ऐसा सबक सिखाओ कि वे फिर कभी सिर उठाने की कल्पना ही न कर सकें। और हां कश्मीर की समस्या का समाधान भी आपको ही करना होगा। इसके लिए कोई फरिश्ता आकाश से नहीं टपकनेवाला। 'राष्ट्र पत्रिका' की वर्षगांठ पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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