Thursday, August 19, 2021

पुलिस जिन्दाबाद

    कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने सभी के लिए तकलीफें खड़ी कीं। अपने ही घर में कैदी होना पड़ा। कुछ लोग कभी भी नियम-कायदों का पालन करने में यकीन नहीं रखते। इन्हें लॉकडाउन की बंदिशें बेकार लगीं। यह लोग गली-कूचों, सड़कों-चौराहों पर सैर-सपाटा करने के लिए जब-तब निकलते देखे गये। खाकी वर्दीधारियों ने पहले तो उन्हें प्रेम से समझाया, लेकिन जब वे नहीं माने तो सख्ती भी करनी पड़ी। लोगों की सुरक्षा और शांति बनाये रखना पुलिस का कर्तव्य है। हर नागरिक कानून का पालन करे और अपराधियों के हौसले बुलंद न होने पाएं यह देखना भी पुलिस के जिम्मे है। अधिकांश खाकी वर्दीधारी अपना दायित्व निभाने की भरसक कोशिश करते हैं। अपवाद तो हर जगह होते हैं। कोरोना काल में पुलिस की कर्तव्यपरायणता और उदारता की कई तस्वीरें सामने आयीं, जिन्हें देखकर लोग बरबस नतमस्तक होने को विवश हो गये।
    पुलिसवाले भी आखिर इंसान हैं। उनसे भी लोगों की मजबूरी छिपी नहीं रहती। कोरोना महामारी के चरमकाल में असंख्य लोगों का रोजगार छिन गया था। रोज कमाने-खाने वालों के घरों में चूल्हे नहीं जल रहे थे। झुग्गी बस्तियों में तो हाहाकार मचा था। पुलिस अधिकारियों ने स्वयं कई विपदा के मारों के यहां जाकर खाने के पैकेट्स, दूध, दवाएं बांटीं। फुटपाथ पर अपना जीवन-बसर करने वालों को भी उन्होंने भूखे नहीं सोने दिया। खाकी वर्दी की सेवा भावना, संवेदनशीलता और दरियादिली को देखकर लोग बार-बार ‘पुलिस जिन्दाबाद’ के नारे लगाकर आभार जताते देखे गये।
    भारतीय पुलिस विभाग में एक से एक उदार, कर्मठ जुनूनी वर्दीधारी हैं, जो जाने-अनजाने लोगों की भरपूर मदद कर चौंकाते रहते हैं। देश के विशाल प्रदेश उत्तरप्रदेश में एक पुलिस वाला ‘मोहब्बत का रखवाला’ कहलाता है। मात्र 9 महीने में 18 प्रेमी युगलों के प्यार को शादी के मुकाम तक पहुंचा चुके कोतवाल देवेंद्रकुमार शर्मा के पास वो प्रेमी जोड़े बड़ी उम्मीद के साथ पहुंचते हैं, जिनके परिजन उन्हें परिणय सूत्र में बंधता नहीं देखना चाहते। शर्मा किसी को भी निराश नहीं करते। वे स्वयं प्रेमी-प्रेमिका के माता-पिता को समझा-बुझाकर मनाते हैं। उसके बाद उनकी मंदिर में परिजनों की उपस्थिति में खुशी और उत्साहपूर्ण वातावरण में शादी करवा देते हैं। शर्मा कहते हैं कि मैंने जिद्दी माता-पिता के विरोध के कारण कई प्रेमी-प्रेमिकाओं को मौत का आलिंगन करते देखा है। प्यार करने वालों का दुखद अंत मुझसे नहीं देखा जाता। शुरू-शुरू में तो मैं भी प्रेमी जोड़ों को फटकार और दुत्कार दिया करता था, लेकिन एक बार एक जोड़े ने मुझसे हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया कि प्लीज हमारी शादी करवा दीजिए नहीं तो हम रेल के नीचे आकर कट मरेंगे, तो मैं कांप गया। तभी मैंने सच्चे प्रेमियों की शादी करवाने की ठान ली। तब से चला सिलसिला आज भी जारी है और आगे भी सतत चलता ही रहेगा। मेरी निगाह में प्रेमियों को मिलाने से बड़ा और कोई पुण्य नहीं।
    अपराधियों के हौसले पस्त करने के लिए खाकी वर्दीधारियों के द्वारा की जाने वाली कसरत से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन उनके और भी कई वंदनीय, अभिनंदनीय और प्रेरक चेहरे हैं...। नागपुर पुलिस में डीसीपी के पद पर कार्यरत हैं, लोहित मतानी। कुछ दिन पूर्व उन्हें मीरा नामक एक 45 वर्षीय महिला के घोर संकटग्रस्त होने का पता चला। सड़क दुर्घटना का शिकार होने के पश्चात मीरा को महीनों बिस्तर पर रहना पड़ा था। उसके बाद भी वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पायी। चलने और खड़े रहने तक में तकलीफ होने लगी। जहां पर काम करती थी, वहां से भी हमेशा-हमेशा के लिए उसकी छुट्टी कर दी गयी। डीएसपी मतानी ने मीरा की सहायता करने में देरी न करते हुए शहर के भीम चौक पर फूड स्टॉल लगवा दिया। उसकी तो जिन्दगी ही बदल गई। उसने तहे दिल से कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए स्टॉल के पोस्टर पर अधिकारी और उनके परिवार की तस्वीरें लगा रखी हैं। उसके लिए मतानी परिवार भगवान से कम नहीं। दरअसल, उसकी बहन पुलिस अधिकारी मतानी के यहां काम करती है। उसी ने मतानी की पत्नी को अपनी बहन के कष्ट में होने के बारे में बताया था। श्रीमती मतानी ने पति से मीरा की सहायता करने की पुरजोर सिफारिश की थी...। मीरा के स्टॉल पर पहुंचने वाले ग्राहक भी नतमस्तक हो जाते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि मीरा की खुशहाली में पुलिस अधिकारी का अभूतपूर्व योगदान है। मतानी इससे पहले भी आठ बेसहारा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवा चुके हैं। इनमें से दो पर तो अपराध के मामले दर्ज हैं। ये सभी महिलाएं अपने रोजगार को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए रात-दिन परिश्रम कर रही हैं।
    रवि खडसे नागपुर में किराए का ऑटो चलाकर अपने भरे-पूरे परिवार का भरण पोषण करता है। बीते हफ्ते किसी गलती के कारण वह यातायात पुलिस की पकड़ में आ गया, जिसकी वजह से उस पर दो हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया गया। उसके पास इतने पैसे नहीं थे। इसलिए उसका ऑटो जब्त कर लिया गया। रवि गहन चिंता में पड़ गया। एकाएक इतने रुपये की व्यवस्था करना उसके लिए संभव नहीं था। घर पहुंचने के बाद वह और उसकी पत्नी इसी आफत से उबरने को लेकर बातचीत कर रहे थे। उनकी बातचीत को उनके दस वर्षीय बेटे ने सुना तो वह तुरंत अपनी गुल्लक उठा लाया, जिसमें उसकी वर्षों की बचत जमा थी। मासूम ने तुरंत अपनी गुल्लक फोड़ी और सारे सिक्के पिता को सौंप दिए। माता-पिता की आंखें नम हो गईं। रवि ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ यातायात कार्यालय पहुंचकर एक, दो, पांच, दस रुपये के सिक्कों से भरी प्लास्टिक की थैली पुलिस अधिकारी को सौंपते हुए ऑटो वापस देने का निवेदन किया। चिल्लर पैसों ने अधिकारी अजय मालवीय को हैरानी में डाल दिया। रवि ने जब उन्हें बताया कि यह सारे पैसे बेटे ने अपनी गुल्लक में जमा करके रखे थे, तो मालवीय का दिल भर आया और उन्होंने थैली बच्चे के हाथ में थमाते हुए उसकी पीठ थपथपायी और खुद की जेब से दो हजार रुपये का जुर्माना भरकर ऑटो रवि के हवाले कर दिया। पांचवीं की पढ़ाई कर रहा बच्चा खाकी वर्दीधारी की सहृदयता देख दंग होकर सोचता रह गया। उसने तो पुलिस वालों के बारे में कितनी डरावनी और बात-बात पर गाली-गलौच करने, धमकाने, डंडे बरसाने की बातें सुनी थीं, लेकिन ये अधिकारी तो वैसा बिलकुल नहीं! घर लौटते समय सभी के चेहरे चमक रहे थे। तेजी से ऑटो दौड़ाते पिता से बच्चे ने धीरे से कहा, ‘पापा मैं भी खूब पढ़-लिखकर अंकल जैसा पुलिस वाला बनूंगा।’
    पत्नी और बेटे को घर में छोड़कर रवि फौरन ऑटो चलाने के लिए निकल गया। रात को लौटते समय उसके हाथ में एक मजबूत लोहे की गुल्लक थी। रवि ने बेटे को कुछ सिक्कों के साथ गुल्लक देते हुए कहा, ‘‘प्लास्टिक की थैली में रखे चिल्लर के साथ इन्हें भी नयी गुल्लक में डाल दो। अब तुम्हें गुल्लक खोलने और तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी यह बहुत मजबूत है। बिलकुल तुम्हारी सोच, सपनों और इरादों की तरह...।’’

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