Thursday, April 28, 2022

जिद की चमक

    75 साल के होने जा रहे हैं रमन। तपती धूप में बेंगलुरुकी सड़कों पर ऑटो रिक्शा चलाते आप उन्हें देख सकते हैं। पिछले 14 वर्षों में कोई भी ऐसा दिन नहीं आया जब रमन ऑटो रिक्शा चलाते नहीं देखे गये हों। ऑटो रिक्शा पर दिन भर सवारियां ढोने वाले रमन ने एमए और एम.एड की डिग्री हासिल कर रखी है। सवारियों से जब वे सधी हुई अंग्रेजी में बतियाते हैं तो उन्हें भी बेहद हैरत होती है। रमन बचपन में ही बड़े सपने देखने लगे थे। इसी चाहत की उड़ान ने पढ़ाई के बाद मायानगरी मुंबई पहुंचा दिया। तब के जमाने में इतने पढ़े-लिखे लोग कहां थे फिर भी उनका लग्गा नहीं लग पाया। मुंबई के पवई में एक निजी इंस्टिट्यूट में लेक्चरर तो बन गये, लेकिन तनख्वाह मात्र बारह-पंद्रह हजार ही थी। अपने देश में सरकारी नौकरी और प्रायवेट नौकरी में बहुत फर्क होता आया है। सरकारी शिक्षण संस्थानों में अदना-सा शिक्षक लाखों की पगार पाता है और रिटायर होने के बाद अच्छी-खासी पेंशन का भी हकदार होता है, लेकिन निजी शिक्षण संस्थाओं में अपार शोषण का व्याभिचार होता है। उसी बेइंसाफी के वर्षों तक शिकार होते रहे रमन ने कभी कोई शिकायत नहीं की। मस्तमौला बने रहे। नौकरी बजाते रहे। वर्षों तक नौकरी करने के बाद पेंशन नहीं मिली। अपने सपनों के शहर में जवानी बिताने के बाद 62 वर्ष की उम्र में अपने शहर बंगलुरु वापस आये और ऑटो रिक्शा चलाने लगे। रमन खुद को बूढ़ा नहीं मानते। उनकी चुस्ती-दुरुस्ती ही बता देती है कि इस शख्स पर उम्र बढ़ने का कोई खास असर नहीं पड़ा। अभी तो ढेरों ख्वाहिशों को पूरा करने की उनकी तमन्ना है। रमन सिर्फ आज की सोचते हैं। कल की चिंता उन्होंने कभी भी नहीं की। जिंदादिली के साथ जीने का ही उनका एकमात्र मकसद है। नकारात्मक सोच को तो कभी अपने आसपास आने ही नहीं देते। ऑटो रिक्शा चलाकर प्रतिदिन रमन पांच-सात सौ रुपये कमा कर खुश हैं। किसी से कोई गिला नहीं है। उनके बच्चे अलग रहकर अपनी दुनिया में मस्त हैं। तकलीफों में भी खुशियों की तलाश करते रमन अपनी पत्नी को अपनी सबसे अच्छी दोस्त मानते हैं। कलमकार से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी को गर्लफ्रेंड कहकर बुलाते हैं और दोनों अपने संसार में बेहद खुश और संतुष्ट हैं। श्रीमती को वाइफ कहने से उन्हें गुलाम वाली फीलिंग आती है। एक पत्नी ही तो होती है, जो पति के बहुत करीब होती है। उसके सम्मान में कभी कोई कमी करने की भूल नहीं करनी चाहिए। खुशमिजाज रमन ने अपने ऑटोरिक्शा में स्वामी शिवानंद की तस्वीर लगा रखी है। स्वामी शिवानंद वही महान हस्ती हैं, जिन्हें कुछ दिनों पूर्व देश के राष्ट्रपति के हस्ते पद्मश्री अलंकरण अर्पित किया गया था। 126 वर्षीय स्वामी ने युवकों जैसी फुर्ती के साथ चलते हुए जब सम्मान हासिल किया तो सभी दंग रह गये थे। उनका प्रधानमंत्री के समक्ष दण्डवत होना हमेशा याद रखा जाएगा। प्रतिदिन योग और प्राणायम करने वाले शिवानंद को जो भी देखता है, नतमस्तक हो जाता है। हर मौसम में सिर्फ एक धोती में रहने वाले उम्रदराज पद्मश्री स्वामी की तड़के तीन बजे से दिनचर्या शुरू हो जाती है। वे कभी भी बीमार नहीं पड़े। अपने सभी काम खुद करते हैं। बाल ब्रह्मचारी शिवानंद किशोर अवस्था से ही योग करते चले आ रहे हैं। स्कूल का उन्होंने मुंह नहीं देखा, लेकिन हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला अच्छी तरह से बोल लेते हैं। रमन के रिश्तेदार और जानने वाले ऑटो रिक्शा चलाने के कारण उनका मजाक उड़ाते हैं, लेकिन वे उसकी कतई परवाह नहीं करते। ऊपर वाले ने हर इंसान को जीने का एक मौका दिया है। उस मौके को गंवाने से बड़ी चूक और भूल कोई हो ही नहीं सकती। यह सच किताबों में ही नहीं, हमारे सामने भी है। यह जीते-जागते किरदार यदि हमें प्रेरित नहीं कर पाते तो हमारा जीना ही बेकार है।
    कई लोग घुट-घुट कर ऐसे जीते हैं, जैसे किसी जुर्म की सजा काट रहे हों। नारियों पर तो हजारों बंधन सर्वाविदित हैं, लेकिन हमारी इसी दुनिया में महानंदा जैसी बेटियां भी हैं, जो अपने मां-बाप को बेटे की कमी का अहसास ही नहीं होने देतीं। भारत देश के प्रदेश महाराष्ट्र का यवतमाल जिला किसानों की आत्महत्या के लिए बदनाम है। खुदकुशी कायरता की निशानी मानी जाती है। अपनी जान देने को विवश होने वालों की मजबूरियों की कम ही बात की जाती है, लेकिन यह भी सच है कि यदि उन्हें कोई सशक्त साथी और सहारा मिल जाए तो उनकी जान बच भी सकती है। गांव की माटी में जन्मी महानंदा ने जब देखा और जाना कि उसके इलाके में सिंचाई सुविधाओं के अभाव और कर्ज के चलते माटीपुत्रों को आत्महत्या करने की राह चुननी पड़ रही है तो उसने अपने परिवार का मजबूत सहारा बनने की ठान ली। यहां यह बताना भी जरूरी है कि अपने 75 वर्षीय वृद्ध पिता और 70 वर्षीय मां की यह देहातन बेटी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है। दरअसल, मां-बाप की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर होने के कारण वह पढ़-लिख नहीं पायी। शादी भी हुई तो नकारा और शराबी पति मिला, जिससे निभने का सवाल ही नहीं था। सो अपने मायके वापस लौट आयी और खुद को बेटे की भूमिका में ढालते हुए खेती-बाड़ी में व्यस्त कर लिया। परिवार की बारह एकड़ की जमीन से कोई कमायी नहीं थी। उल्टे कर्ज का बोझ मां-बाप की नींद हराम किये रहता था। पिता ने तो खुदकुशी करने का भी मन बना लिया था। महानंदा ने खुद को खेती-बाड़ी में ऐसे रमा दिया, जैसे वह इसी के लिए पैदा हुई हो। गांव के पुरुष महानंदा को तपती गर्मी और कंपाकंपा देने वाली ठंड में जमीन जोतते देख हैरान रह जाते थे। खेत में बुआई, सिंचाई, कीटनाशक छिड़काव, वन्य प्राणियों से खेती की रक्षा के लिए रात-रात भर जागने का दायित्व इस जुनूनी युवती ने इस कर्मठता के साथ निभाया कि प्रतिवर्ष सात से आठ लाख रुपये की कमायी होने लगी। यह तो शुरू-शुरू के शुद्ध मुनाफे का आकड़ा है अब तो इसमें निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। महानंदा से कृषि के नवीनतम गुर सीखने के लिए आसपास के ही नहीं, दूर-दूर तक के किसान आते हैं। महानंदा के नवीनतम कृषि साधनों तथा कर्मठता से प्रेरित होकर हजारों किसानों के जीवन में खुशहाली आ रही है। कभी जो लोग उसका यह कहकर मजाक उड़ाते थे कि जिस खेती को करने में हट्टे-कट्टे पुरुषों के छक्के छूट जाते हैं, दिन-रात पसीना बहाने के बाद भी अक्सर निराशा ही हाथ लगती है वहां एक दुबली-पतली लड़की कौन से झंडे गाड़ पायेगी? कुछ दिन की तमाशेबाजी के बाद चुपचाप घर में बैठ जाएगी। आज वे सभी तंजबाज महानंदा की जुनूनी हिम्मत के किस्से सुनाते नहीं थकते।
    वैसे मजाक तो शीशपाल और निशा लांबा का भी लोग खूब उड़ाया करते थे। निशा और शीश पति-पत्नी हैं। देश के विख्यात पैरा एथलिट। अब तक 23 गरिमामय पदकों से नवाजे जा चुके हैं। शीशपाल तीन फीट दो इंच तो निशा तीन फीट 1 इंच के हैं। इतने छोटे कद के कारण गांव के लोग उन्हें छोटू और ठिग्गू कहकर चिढ़ाते थे। बच्चे तो उनके पीछे पड़ जाते थे। कद से बौने दोनों पति-पत्नी ने बहुत ऊंचा कर दिखाने की सोची, जिसे करने में बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाते हैं और अंदर और बाहर की सारी हिम्मत जवाब दे जाती है। शीश और निशा ने सफल एथलिट बनने के लिए जब गांव में दौड़ लगानी प्रारंभ की तो इंसानों के साथ-साथ कुत्ते भी उनके पीछे पड़ गये। बीती 28 से 30 मार्च, 2022 को भुवनेश्वर में आयोजित पैरा एथलिटिक्स प्रतियोगिता में इस दंपत्ति ने आन, बान और शान के साथ भाग लिया। निशा ने डिस्कस थ्रो में एक गोल्ड व एक कांस्य पदक अपने नाम कर राजस्थान का नाम रोशन किया। 2022 में ही जयपुर में 11वीं पैरालिपिंक स्पर्धा में शॉटपुट व डिस्कस थ्रो में गोल्ड मेडल जीत चुकीं निशा 2018 में नेशनल प्रतियोगिता में डिस्कस थ्रो व शॉट पुल में ब्रांज मैडल जीत चुकी हैं। 2017 में उदयपुर में 8वीं स्टेट पैराओलिंपिक में शीशपाल ने शॉट पुट डिस्कस थ्रो व जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल कर अपना लोहा मनवाया। वहीं निशा ने 100 एवं 200 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त कर उन लोगों की बोलती बंद कर दी, जो दोनों को उपेक्षित भाव से देखते थे और जीभर कर तिरस्कार करते थे।

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