Thursday, October 13, 2022

राहुल गांधी की यात्रा

    मेरा राजनेताओं पर लिखने का बहुत कम मन होता है। जब किसी नेता की दक्षता, कार्यप्रणाली, जिद्द, जुनून और आम जनता से जुड़ने की ललक बहुत अधिक प्रभावित करती है तो यह कलम खुद-ब-खुद चल भी जाती है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी और सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी वर्षों से राजनीति में झंडे गाड़ने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं, लेकिन दाल नहीं गल रही। भारतीय राजनीति के लिए उन्हें नाकाबिल मानने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। वे उनकी बहन प्रियंका गांधी को उनसे बेहतर मानते हैं। उन्हें प्रियंका गांधी में उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चेहरा नज़र आता है, जिन्होंने कई वर्षों तक भारत की सत्ता संभालते हुए अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी। गांधी परिवार ने देश की जो सतत सेवा की है और अपना सबकुछ कुर्बान करते हुए राष्ट्रप्रेम के पवित्र जज़्बे को बरकरार रखा है, उसे देशवासी कभी भी नहीं भूल सकते। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाये रखने में भी गांधी परिवार का अभूतपूर्व योगदान रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि गांधी परिवार ही कांग्रेस के शरीर की रीढ़ की हड्डी है, लेकिन आज यह हड्डी कमजोरी की गिरफ्त में है। पार्टी लगातार पतन की ओर जा रही है। कभी देश के हर प्रदेश में इसका शासन हुआ करता था, लेकिन आज उसकी जो हालत है वह किसी से छिपी नहीं है।
    कांग्रेस की दशा को सुधारने के लिए गांधी परिवार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। फिलहाल हम बात राहुल गांधी की करना चाहते हैं, जो कांग्रेस को फिर से पटरी पर लाने के लिए कमर कसे हुए हैं। नेताओं की खिल्ली उड़ाना, मीम बनाना, व्यंग्य बाण चलाना और चुटकलेबाजी करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि, पिछले कई वर्षों से राहुल गांधी को उपहास का पात्र बना कर रख दिया गया है। उनकी पप्पू की जो छवि बनायी गई है, उससे हर कोई वाकिफ है। आलू से सोना बनाने, बाइस रुपये लीटर में आटा लाने जैसे पचासों जोक हैं, जो सोशल मीडिया में भरे पड़े हैं। मनोरंजन प्रेमी इन्हें सुन-सुन कर मनोरंजित होते हैं। अपना दिल बहलाते हैं और उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। जिनकी गंभीरता से देखने-सोचने की आदत है उन्हें बड़ी चिंता और पीड़ा होती है। राहुल उन्हें इतने अज्ञानी तो नहीं लगते, जितने प्रचारित होते चले आ रहे है। सबसे ज्यादा तकलीफ, पीड़ा और शर्मिंदगी तो उन कांग्रेसियों को होती है, जिनकी दाल-रोटी ही पार्टी के दम पर चलती है। कुछ को छोड़ दें तो अधिकांश कांग्रेसी ऐसे है, जिनकी अपनी कोई कभी दमदार छवि नहीं रही। येन-केन-प्रकारेण कांग्रेस की टिकट पाना और गांधी परिवार के गीत गाते हुए चुनाव जीत जाना उनका मुकद्दर रहा है। वे तो बस यही चाहते हैं कि कांग्रेस की कमान हमेशा गांधी परिवार के हाथों में ही रहे। कोई दूसरा इस पार्टी का अध्यक्ष बनने की सोचे भी नहीं। किसी नेता के बोले तथा कहे गये शब्दों के अर्थ का अनर्थ करना राजनीतिक विरोधियों की आदत है, लेकिन क्या मीडिया ने भी बिना विचारे यही राह पकड़ ली है? बड़े से बड़े भाषा के धुरंधर अक्सर बोलते-बोलते नियंत्रण छूट जाने से बहक जाते हैं। फिर राहुल कोई हिंदी के पारंगत विद्वान भी नहीं हैं। राहुल को भी अपनी कमियों, भूलों और त्रुटियों का भान तो होगा ही...। देश और दुनिया में उनकी कैसी बौनी छवि बना दी गई है, इसकी भी उन्हें खबर न हो ऐसा तो हर्गिज नहीं हो सकता।
    राहुल की मां सोनिया गांधी का सपना है, बेटा भारत देश का प्रधानमंत्री बने। बेटा भी हर चुनाव पर मेहनत करता है। खून पसीना बहाता है, फिर भी सफलता हाथ नहीं लगती। बहन प्रियंका वाड्रा की भी भाई को पीएम बनते देखने की तीव्र लालसा है। मोदी सरकार ने उनके ‘कमाऊ’ पति राबर्ट वाड्रा का जीना हराम कर रखा है। भाई सत्ता पाये तो सभी को चैन आए। हर कांग्रेसी के सपने को साकार करने तथा अपनी छवि बदलने के लिए राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ बड़े जोरों-शोरों से चल रही है। उनके साथ चल रहे यात्रियों के हाथों में जो तख्तियां हैं उनमें लिखा है, ‘यह यात्रा देश में फैली नफरत के खिलाफ एक आगाज़ है। अब न डरेंगे, न झुकेंगे, न रूकेंगे।’ महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से प्रभावित... प्रेरित भारत को जोड़ने की इस पैदल यात्रा का मज़ाक उड़ाने वालों के अपने-अपने तर्क हैं। उन्हें यात्रा के दौरान राहुल का एक बूढ़ी औरत को अपने हाथों से पानी देना और एक छोटी बच्ची के जूते बांधना मीडिया में छाने का तमाशा लगता है। यात्रा के ही दौरान राहुल गांधी का जमीन पर बैठकर मां सोनिया के ढीले जूते के फीते कसना भी उनके लिए महज नाटक-नौटंकी है।
    राहुल का आम लोगों से मिलना, बोलना-बतियाना, यात्रा में शामिल साथी नेताओं से हंसी ठिठोली करना, रास्ते में मिलने वाले बच्चों को गोद में उठाना, गले लगाना और बेफिक्री के साथ पकोड़े, समोसे खाते और गन्ना चूसते हुए मुस्कराना जन समर्थन में बढ़ोत्तरी कर रहा है। राहुल लोगों को बता रहे हैं कि किस तरह से उनकी छवि को बिगाड़ने के लिए हजारों करोड़ रुपये फूंके जा रहे हैं। भाजपा पर उनके लगातार तीर चल रहे हैं। लोग देख और सुन रहे हैं। वे बार-बार कहते हैं कि उनकी यह पैदल यात्रा भाजपा व आरएसएस द्वारा फैलाई गई हिंसा के खिलाफ है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में नदारद रहे लोग आज नायक बनने का षड़यंत्र रच रहे हैं। उन्हें कामयाबी भी मिल रही है। कांग्रेस और उनके नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू ने देश के लिए अपनी जान दे दी, लेकिन इन्होंने क्या किया? तब आरएसएस अंग्रेजों की सहायता और सावरकर उनसे धनसुख पा रहे थे। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से पहले भी राहुल भाजपा, संघ और वीर सावरकर को अपने तीखे निशानों पर लेते रहे हैं। वे डटकर सामना भी कर रहे हैं। भाजपा के लोगों ने उन पर कई बार माफी मांगने का दबाव डाला, लेकिन उनका बस यही जवाब आया कि मैं कभी भी माफी नहीं मांगूंगा। मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है। नेहरू-इंदिरा की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए संघर्षरत राहुल से देशभर के तमाम कांग्रेसियों को बहुत उम्मीदें है। वे उन्हें हमेशा उग्र तेवरों के साथ सधे हुए अंदाज में अपनी बात रखते हुए देखना चाहते हैं। राहुल को महात्मा गांधी का वारिस मानने वाले इन चेहरों को तब-तब बड़ा अच्छा लगता है, जब वे संघ को गांधी का हत्यारा कहकर चुनावी सभाओं की भीड़ बढ़ाते हैं। भाजपा और नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी राहुल गांधी यह भी कह चुके हैं कि मेरी सत्ता और दलगत राजनीति में किंचित भी दिलचस्पी नहीं। मैं जिस देश भारत से प्यार करता हूं उसे पूरी तरह से जानना और समझना चाहता हूं। देश के लोगों और देश की धरती को करीब से देखने के लिए भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी कहते हैं कि वो इस यात्रा के नेतृत्वकर्ता नहीं, हिस्सा भर हैं। कांग्रेसियों के लाख अनुरोध के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी के प्रति अरूचि दिखाने वाले राहुल गांधी अपने मकसद में कितने कामयाब होते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा, लेकिन राहुल की यात्रा के कुछ वीडियो इस कलमकार ने बड़ी एकाग्रता से देखे हैं। एक वीडियों में अपने सहयात्रियों को बताते नज़र आते हैं कि जब मैं खुद को थका हुआ पाता हूं, तो मेरी निगाह अपने साथियों पर जाती हैं, जो घुटनों के दर्द से परेशान है, पांव में छाले पड़ गये हैं, बीमार हो रहे हैं, फिर भी बेपरवाह चलते चले जा रहे हैं। उनकी लगन और हिम्मत मुझे बहुत प्रेरित करती है। जिस तरह से राहुल उनसे प्रेरणा पाते हैं, वैसे ही साथी पदयात्री भी तो उन्हें देखकर नयी ऊर्जा से सराबोर हो रहे होंगे। राहुल का यह अंदाज और नया चेहरा नयी उम्मीद तो जगाता ही है...।

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