Thursday, January 25, 2024

कलंक

चित्र-1 : 2024 के जनवरी माह ने अपनी आंखें अभी पूरी तरह से खोली भी नहीं थीं कि मन-तन को कंपकंपाने और सोच पर हथौड़े बरसाने वाली खबरें आने लगीं। रक्षकों के भीतर कैद भक्षक बाहर निकलकर तांडव मचाने लगे। फिर अंधश्रद्धा भारी पड़ी और भरोसे के परखच्चे उड़ गये। बेटे की चाहत में बेटियों की हत्या की खबरें तो हम सबने बहुतों बार पढ़ी-सुनीं, लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल शहर के एक पिता ने बेटी की चाह में बेटे को गला दबाकर मार डाला। इस क्रूर बाप के दो बेटे हैं। बड़ा सात साल तो छोटा पांच साल का। उसकी पत्नी तीसरी बार गर्भवती हुई थी। निर्दयी पति को यकीन था कि इस बार जरूर बेटी होगी, लेकिन जैसे ही बेटे का जन्म हुआ तो उसका खून खौल उठा। वह पत्नी को डांटने-फटकारने लगा। तुमने बेटी पैदा क्यों नहीं की? पत्नी क्या जवाब देती! उसकी चुप्पी बेवकूफ पति को शूल-सी चुभी। अंधाधुंध शराब पीकर उसने पत्नी को जीभरकर पीटा। पत्नी यह सोचकर घर से बाहर निकल गई कि थोड़ी देर में उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा। लगभग पौन घंटे के बाद वह वापस लौटी तो उसने अपने बारह दिन के नवजात को मृत पाया। 

चित्र-2 : मां तो ममत्व से परिपूर्ण होती है। अपनी संतान उसे जान से भी प्यारी होती है। उसके लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने से कभी पीछे नहीं हटती। शास्त्रों में कहा भी गया है कि माता कुमाता नहीं होती। बच्चे भले ही कैसे हों। पढ़ी-लिखी खूबसूरत नज़र आने वाली लगभग चालीस वर्षीय हावर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च फेलो रह चुकी नामी कंपनी की सीईओ सूचना सेठ ने गोवा के एक होटल में अपने चार साल के मासूम बेटे को तड़पा-तड़पा कर मार डाला। बैंगलुरू की रहने वाली सूचना की पति से बिलकुल नहीं निभती थी। दोनों के बीच तलाक का केस चल रहा था। अदालत ने आदेश दिया था कि वह हर रविवार को बेटे को पिता से मिलवाएगी, लेकिन सूचना नहीं चाहती थी उसका पति बच्चे से मिले। वह उसे अपने पिता से दूर रखना चाहती थी। अहंकारी और क्रोधी पत्नी की सोच थी कि बच्चे के कारण ही उसे अपने पति का चेहरा देखना पड़ता है। उसके मन में इस सच को लेकर भी गुस्सा भरा था कि बेटे का चेहरा उसके पिता से मिलता है। जिसे वह देखना नहीं चाहती। बेटे को उसके पिता से हमेशा-हमेशा के लिए अलग करने के लिए ईर्ष्यालु सूचना बेंगलुरु से गोवा चली गई। वहां पर उसने अपने ही हाथों अपनी कोख उजाड़ दी। उसे भ्रम था कि उसका अपराधी चेहरा कभी भी दुनिया के सामने उजागर नहीं होगा। हर शातिर अपराधी की यही सोच होती है। ममता के रिश्ते को तार-तार करने वाली इस हत्यारिन मां की सारी जिंदगी अब जेल की सलाखों में ही कटेगी। कोई भी दांवपेच उसे बचा नहीं सकता। 

चित्र-3 : अपने करीबी रिश्तेदार की मौत किसे गमगीन नहीं करती? मां-बाप-भाई-बहन के जुदा होने की कल्पना ही चिंताग्रस्त कर देती है। मन उदास हो जाता है। परमपिता परमेश्वर से बस यही प्रार्थना की जाती है कि खून के रिश्तों की डोर हमेशा सलामत रहे। उनमें ज़रा-सी भी आंच न आए, लेकिन...! उत्तरप्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा में धन संपत्ति को पाने के लालच में तीन बेटियों ने श्मशान घाट पर जो तमाशा किया उसे देख सभी स्तब्ध रह गये। यह बात किसी से छिपी नहीं कि महिलाएं श्मशान घाट पर नहीं के बराबर जाती हैं। मथुरा में एक उम्रदराज मां की मौत के बाद श्मशान घाट पर उसकी चिता को जलाने की तैयारी चल रही थी तभी भागते-भागते उसकी दो बेटियां वहां आ पहुंचीं। तीसरी पहले से ही वहां उपस्थित थी। पहले तो तीनों बहनों ने मां की जमीन-जायदाद को लेकर आपस में बातचीत की। फिर देखते ही देखते लड़ने-झगड़ने लगीं। अंतिम संस्कार कराने के लिए पहुंचे पंडित ने उनसे झगड़े की वजह पूछी तो पता चला कि मृतका का कोई बेटा नहीं है। सिर्फ तीन बेटियां हैं। बड़ी बेटी मां के कुछ ज्यादा ही करीब थी। बीमार मां की उसने भरपूर देखभाल और सेवा भी की थी। इसी वजह से मां ने अपनी जायदाद का बड़ा हिस्सा उसके नाम कर दिया था। अस्पताल में इलाज के दौरान मां चल बसी। बड़ी बेटी ने मां के शव को रिश्तेदारों के सहयोग से मोक्षधाम पहुंचाया। दोनों छोटी बहनों को जैसे ही मां के चल बसने की खबर मिली तो वे भी भागती-दौड़तीं मोक्षधाम पहुंचकर तमाशा करने लगीं। रिश्तेदारों ने उन्हें शांत रहने को कहा तो वे और भड़क उठीं। दोनों ने जिद पकड़ ली कि जब तक संपत्ति उनके नाम नहीं होगी, तब तक वे अंतिम संस्कार नहीं होने देंगी। चाहे कुछ भी हो जाए। किसी ने पुलिस को खबर पहुंचा दी, लेकिन पुलिस की भी लालची बेटियों ने एक नहीं सुनी! अपनी जिद पर अड़ी रहीं। शव आठ से नौ घंटे तक श्मशान घाट पर पड़ा रहा। तमाशा देखने के लिए बाहर से भी लोग अंदर आकर जमा हो गये। कई लोगों ने उन्हें मनाने-समझाने की कोशिशें कीं, लेकिन वे अंतत: तब जाकर मानीं जब स्टाम्प पेपर पर लिखित समझौता हुआ, जिसमें लिखा गया कि, मां की बची हुई जमीन-जायदाद पर इन दोनों बहनों का ही हक होगा। बड़ी की कोई भी दखलअंदाजी नहीं चलेगी। उसने पहले ही मां को बहला-फुसलाकर अपना हिस्सा ले लिया है...।

चित्र-4 : नागपुर में स्थित पोस्टमार्टम गृह में बीते सोलह वर्षों से मृत शरीरों की चीरफाड़ करते चले आ रहे अरविंद पाटिल का कहना है कि उन्हें मुर्दों से नहीं, जीवित इंसानों से ही डर लगता है। अरविंद अभी तक पैंतीस हजार से अधिक मुर्दों का पोस्टमार्टम कर चुके हैं। पोस्टमार्टम गृह में जाने से अधिकांश लोग कतराते और घबराते हैं। यह भी कहा जाता है कि अस्पतालों में पोस्टमार्टम करने वाले कर्मचारी बिना शराब पिये निर्जीव जिस्म को हाथ तक नहीं लगाते, लेकिन अरविंद इसके अपवाद हैं, जिन्हें पोस्टमार्टम करने से पहले कोई नशा-वशा नहीं करना पड़ता। जब पहली बार अरविंद ने डॉक्टर के निर्देश पर मृत देह का पोस्टमार्टम किया था तब उन्हें जरूर परेशानी हुई थी। पूरी रात आंखों के सामने वही दृष्य आता रहा था। अब तो मृतक शरीर के अंगों को अलग करने, चीर-फाड़ करने, जिस्म को फिर से सिलने की आदत हो गई है। किसी की क्षत-विक्षत लाश देखने के बाद जब उसकी मौत की वजह का पता चलता है तो जरूर रातों की नींद गायब हो जाती है। ट्रेन के सामने कूदकर, गले में फांसी का फंदा लगाकर, जहर खाकर खुदकुशी करने वाले काश! ऐसा घातक कदम उठाने से पहले अपने माता-पिता, पत्नी, पति, भाई, बहनों आदि के बारे में सोचते-विचारते, धैर्य का दामन थामे रहते, किसी करीबी को अपने गम से अवगत करा देते तो यह नौबत टल जाती। अपनों की हत्या करने वालों पर तो रह-रहकर गुस्सा आता है। अभिभावक यह क्यों भूल जाते हैं कि औलाद तो पालन-पोषण के लिए होती है। मां-बाप का तो दायित्व ही है, अपने बच्चों के भविष्य को संवारना। उनकी हत्या करना दुनिया का सबसे घृणित पाप है। अक्षम्य अपराध है...।

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