Thursday, April 17, 2025

रघु का सपना

चित्र - 1 : नेताजी दूसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी हुए। इस बार जीत का हार पहनने के लिए उन्हें ऐसे-ऐसे पापड़ बेलने पड़े, जिसकी उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी। उन्हें धूल चटाने के लिए सभी विरोधी दल एकजुट हो गये थे। उनका एक ही मकसद था कि नेताजी किसी भी हालत में सांसद न बन पाएं, लेकिन पिछले चुनाव की तरह इस बार भी धनबल ने अंतत: अपना चमत्कार दिखा ही दिया। उनके हजारों कार्यकर्ताओं की भीड़ ने भी कम दम नहीं लगाया। नेताजी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को उनकी हैसियत के अनुसार थैलियां थमाने में भरपूर दरियादिली दिखायी। इन कार्यकर्ताओं में विधायक और पार्षद भी शामिल थे, जिन्हें आगामी महानगर पालिका और विधानसभा के चुनाव में टिकट देने का आश्वासन देकर अपने खूंटे से ऐसे बांधा गया था, जैसे बैल और बकरी के सामने चारा डालकर उन्हें इधर-उधर न ताकने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। नेताजी की चुनावी जीत का जश्न चार दिन पहले मनाया जा चुका था। आज उनके केंद्रीय मंत्री बनने पर गुलदस्तों और मिठाई के डिब्बों के साथ कार्यकर्ताओं और तरह-तरह के लोगों का हुजूम कोठी को खचाखच कर चुका था। कुछ अतिउत्साही कार्यकर्ता कोठी की बाउंड्रीवॉल पर चढ़कर नेताजी के नाम का जयकारा लगा रहे थे। नेताजी के सुरक्षाकर्मी भीड़ को नियंत्रित और संयमित होने का अनुरोध कर रहे थे, लेकिन जीत का जोश उन्हें बेकाबू और बेचैन किये था। भीड़ को बार-बार यह भी बताया जा रहा था कि नेता जी आज सुबह ही मंत्री पद की शपथ लेकर दिल्ली से लौटे हैं। उन्हें तैयार होकर आने में कम अज़ कम दो घण्टे लग सकते हैं। जोश में मस्तायी भीड़ के लिए दो घण्टे दो मिनट समान थे। उसे इन्तजार करने और नारे लगाने की जन्मजात आदत थी। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, भीड़ को संभालना मुश्किल होता चला जा रहा था। शहर के जाने-माने-उद्योगपति, व्यापारी, ठेकेदार और अखबारों और न्यूज चैनलों के वो संपादक और मालिक, जिन्होंने नेता जी के आरती गान की सभी सीमाओं को लांघ कर पत्रकारिता और चापलूसी के अंतर की निर्ममता से हत्या कर दी थी, गुलदस्तों और हारों के साथ पहुंच चुके थे। कुछ तो पांच सौ और दो हजार के नोटों के हार भी लाये थे। उन्हें नेताजी के निजी कमरे में शोभायमान कर दिया गया था। उनके लिए किशमिश, काजू-बादाम के साथ-साथ तरह-तरह के पेय पदार्थों की भी व्यवस्था थी। 

नेताजी की एक झलक पाने को लालायित भीड़ का साम्राज्य कोठी के सामने की मुख्य सड़क पर भी अपना कब्जा जमाने लगा था। इस भीड़ में पसीने से तरबतर रघु भी खड़ा था। उसके हाथ में एक बड़ा गुलदस्ता था। चार दिन पहले नेताजी के जीतने की खुशी में मनाये गये जश्न की भीड़ में भी रघु शमिल हुआ था, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी उसका नेताजी के निकट जाना संभव नहीं हो पाया था। रिक्शा चालक रघु उस दिन तो खुशी से फूला नहीं समाया था, जब उसकी जर्जर झोपड़ी में नेताजी के चरण पड़े थे। उनके साथ क्षेत्र के पार्षद तथा कई और पार्टी कार्यकर्ता थे, जिन्हें रघु अच्छी तरह से पहचानता था। पार्षद ने रघु की तारीफ करते हुए नेताजी को बताया था कि यह बंदा बड़े काम का है। झोपड़पट्टी के सभी लोग इसी के इशारे पर चलते हैं। यह जिसे वोट देने को कहेगा उसी को उनके वोट मिलेंगे। नेताजी के चेहरे पर चमक आ गई थी। उन्होंने झट से रघु से हाथ मिलाया था। पीठ भी थपथपायी थी। उनके साथ आये एक कार्यकर्ता ने चुपके से पांच-पांच सौ के दस नोट उसकी तरफ बढ़ाये थे, जिन्हें रघु ने यह कहते हुए लेने से इन्कार कर दिया था कि मैंने कभी भी अपना वोट नहीं बेचा। वोट बेचने वालों से मैं नफरत करता हूं। नेताजी उसका चेहरा देखते रह गये थे। उन्होंने जाते-जाते कहा था कि तुम्हारे जैसे ईमानदार वोटरों की बदौलत ही मैंने पिछला चुनाव जीता था। इस बार भी कोई माई का लाल मुझे हरा नहीं सकता। पिछली बार की तरह इस बार भी मेरा मंत्री बनना तय है। चुनाव का परिणाम आने के पश्चात तुम मुझसे जरूर मिलना। तुम सभी झोपड़पट्टी के निवासियों के लिए शीघ्र ही पक्के घरों की व्यवस्था करवा दूंगा।

गर्मी की तपन बढ़ती जा रही थी। रघु का दम घुटने लगा था। उसके कपड़े पसीने से गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे। एकाएक रघु पर उसी की झोपड़पट्टी में रहने वाले विद्रोही नामक पत्रकार की नजर पड़ी तो उसने रघु पर सवाल दागा कि क्या तुम भी नेताजी को उनका वादा याद दिलाने आये हो? रघु हैरान होकर पत्रकार को देखता रह गया। फिर पत्रकार ने बताया कि वोट हथियाने के लिए मतदाताओं से तरह-तरह के वादे करना और मनमोहक प्रलोभनों के जाल फेंकना तो नेताजी का पुराना पेशा है। वोटरों को बेवकूफ बनाने की इसी कला की बदौलत ही तो आज वे सत्ता की बुलंदियों पर हैं। इस भीड़ में तुम जैसे हजारों लोग शामिल हैं, जो नेताजी से मिलने की आस में पहुंचे हैं। चुनाव जीतने के बाद नेताजी को अपने खास लोगों के काम करवाने और उन्हें मालामाल करने से कभी फुर्सत नहीं मिलती। ऐसे में वे तुम जैसे आम लोगों से क्या खाक मिलेंगे! रघु पत्रकार का चेहरा देख रहा था और पत्रकार खिलखिला रहा था। उनकी बातचीत चल ही रही थी कि वहां पर पुलिस वाले भीड़ को खदेड़ने लगे। नेताजी अपने खास लोगों से मेल-मुलाकात करने के बाद सुरक्षाकर्मियों के घेरे में कोठी से निकले और अपनी चमचमाती कार में बैठकर फुर्र हो गये। रघु को बड़ा गुस्सा आया। उसने गुलदस्ते को तोड़ा-मरोड़ा और वहीं सड़क पर फेंक दिया। यह देश के नब्बे प्रतिशत से अधिक नगरों, महानगरों और वहां के जनप्रतिनिधियों की कड़वी हकीकत है इसलिए किसी एक शहर और नेता का नाम लिखना बेमानी है।

चित्र - 2 : अपने देश में विधायक और सांसद का चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। अथाह धन लुटाने के बाद भी जीत हासिल हो, ऐसा कोई दावा नहीं किया जा सकता। रघु ने कई जमीनी नेताओं को विधायक और सांसद बनते देखा है। चुनाव जीतने के पश्चात जमीन की बजाय आकाश में उड़ने वाले अधिकांश नेताओं की असली फितरत से रघु खूब वाकिफ है। उसने कई नेताओं को अपने रिक्शे पर बैठाकर यहां-वहां घुमाया है। उसने फटेहाल नेताओं को विधायक, सांसद बनने के बाद करोड़ों में खेलते देखा है। उसे यह जानकर हैरानी होती है कि प्रदेश के कुछ नेता हजारों करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। यह सारी धन-दौलत उन्होंने विधायक, सांसद और मंत्री बनने के बाद जुटायी है। शहर के कुछ नेता भी उनका अच्छी तरह से अनुसरण कर रहे हैं। किसी अनपढ़ विधायक को मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज चलाते देख अब उसे कोई हैरानी नहीं होती। हां, पहले जरूर होती थी। शहर में कुछ नेता ऐसे भी हैं, जिन्होंने चुनाव जीतने के बाद धड़ाधड़ सरकारी जमीनें अपने नाम करायीं और स्कूल, कॉलेज और शराब के कारखाने तान दिए। करोड़ों की जमीने कौड़ी के मोल हथियाने वाले नेताओं में कुछ तो ऐसे हैं, जिनके विभिन्न शहरों में पचासों स्कूल कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में गरीब आदमी के बच्चों को प्रवेश ही नहीं मिलता। खुद रघु इसका भुग्तभोगी है। उसके बेटे को योग्य होने के बावजूद मंत्री जी के मेडिकल कॉलेज में दाखिला इसलिए नहीं मिला था, क्योंकि उसकी पचास लाख रुपए डोनेशन देने की औकात नहीं थी। रघु ने मंत्री महोदय की उन दिनों की याद भी दिलायी थी जब वे फटेहाल उसके रिक्शे की सवारी किया करते थे! आज कई कारों और कोठियों के मालिक बन चुके नेताजी बस मुस्कराते रह गए थे। अपने इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाने का रघु का सपना धरा का धरा रह गया। कुछ महीने पहले ओडिशा के बालासोर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने प्रताप चंद्र सारंगी शहर में आये हुए थे। रघु ने ही उन्हें शहर घुमाया था। उनका लिबास और व्यवहार देखने के बाद रघु सोचता रह गया था कि कोई सांसद इतना सहज और सरल भी हो सकता है। उसे यह जानकर हैरत हुई थी कि सारंगी ने चुनाव में एक पैसा भी खर्च नहीं किया और करोड़पति को मात दे दी। सारंगी दो बार विधायक भी रह चुके हैं। अपना एक साप्ताहिक अखबार निकालते है, जिसमें आम आदमी की समस्याओं को निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ उठाया जाता है। गांव और शहर की गलियों में पैदल घूमते हैं। चुनाव लड़ने से पहले जिस मिट्टी और बांस के कच्चे घर में रहते थे। वह आज भी जस का तस है। उनके घर के दरवाजे चौबीसों घण्टे सभी के लिए खुले रहते है। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में कई स्कूल और अस्पताल बनवाये हैं, जहां मुफ्त शिक्षा और इलाज की सुविधा उपलब्ध है। लोकसभा चुनाव जीतकर जब सारंगी संसद भवन पहुंचे थे तब हर कोई इन्हे देखने और मिलने को आतुर था। उनकी ईमानदारी और सादगी को देखते हुए पहली बार सांसद बनने पर भी उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई। जब उन्होंने मंत्रीपद की शपथ ली तब तालियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं। रघु कहता है कि शहर के अधिकांश नेताओं ने भले ही कितनी-कितनी काली माया बटोर ली हो, लेकिन सारंगी जैसा मान-सम्मान उनके नसीब में नहीं। बेइमानों का लोग भले ही ऊपर-ऊपर से सजदा करते हैं, लेकिन पीठ पीछे भद्दी-भद्दी गालियों से नवाजते हैं। रघु वर्षों से सपना देखता आ रहा है कि, उसके शहर में भी सारंगी जैसा कोई शख्स विधायक और सांसद बने जो हर आम आदमी के सुख-दु:ख का सच्चा साथी हो...।

Thursday, April 10, 2025

अपना-अपना सफरनामा

चित्र-1 : उसने एमए किया था। मां-बाप को यकीन था कि बेटा शीघ्र अच्छी नौकरी हासिल करेगा। सभी तकलीफें दूर हो जाएंगी। उनकी तपस्या रंग लाएगी। उसे शिक्षित करने के लिए उन्होंने साहूकार से अच्छा-खासा लोन लिया था। कर्जे की वसूली के लिए उसने बार-बार घर में दस्तक देनी शुरू कर दी थी। उन्होंने जवान बेटे की किसी अच्छी गुणवान लड़की से शीघ्र शादी करने की पुख्ता योजना भी बना ली थी, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी बेटे को मनचाही नौकरी नहीं मिल पायी। उसके चचेरे भाई को बीए पास करने के बाद ज्यादा हाथ पैर नहीं मारने पड़े थे। उसे शहर की विख्यात रेडिमेड कपड़े की दुकान पर हाथों-हाथों सेल्समैन की नौकरी मिलने से उसके परिजन खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। फर्स्ट डिविजन से एमए करने वाले युवक को लगातार मानसिक तनाव में रहना पड़ रहा था। वह ऐसी-वैसी जगह पर नौकरी नहीं करना चाहता था। उसकी तो बस सरकारी नौकरी कर मज़े से दिन काटने की चाह थी। एक दिन की सुबह जब वह काफी देर तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला तो मां-बाप ने दरवाजा खटखटाया, काफी हो-हल्ला भी मचाया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। आखिरकार पड़ोसियों के सहयोग से दरवाजे को तोड़ा गया। अंदर युवक का शव फांसी पर लटका मिला। बिस्तर पर जो सुसाइड नोट मिला, उसमें लिखा था, कई महीनों तक चप्पलें घिसने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिली। उस पर परिजनों के असफल और नकारा होने के तानों ने मेरा जीना दूभर कर दिया है। इसलिए मैंने मर जाना ही उचित समझा। युवक ने खुदकुशी करने के दौरान अपने मोबाइल में तीन घंटे का वीडियो भी बनाया, जिसमें उसकी अपनी ही हत्या करने की हकीकत रिकार्ड हो गई। अच्छे खासे हट्टे-कट्टे युवक की खुदकुशी से घर में कोहराम मच गया। माता-पिता रो-रोकर कर बेहाल हैं।

चित्र-2 : प्रशांत हरिदास, राजधानी दिल्ली का निवासी है। सरकारी, अर्ध सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों के चक्कर काटते-काटते थक गया, लेकिन नौकरी नदारद। निराशा और हताशा ने जब लस्त-पस्त कर दिया उसने खुद के लिए एक शोक संदेश पोस्ट कर दिया। इसमें उसने अपनी तस्वीर पर ‘रेस्ट इन पीस’ लिखते हुए नौकरी की तलाश में मिली हताशा और निराशा का खुलकर वर्णन करते हुए स्पष्ट किया कि, भले ही उसकी नौकरी पाने की कोशिशें रंग नहीं लाईं, लेकिन फिर भी उसने किसी भी तरह से खुद को चोट पहुंचाने की कभी नहीं सोची। मैं खुद को उन लोगों में शामिल कर भगौड़ा और कायर नहीं कहलाना चाहता, जो विपरीत परिस्थिति से घबराकर खुदकुशी कर लेते हैं। अभी मेरी उम्र ही क्या है। मुझे कई वर्षों तक जीते हुए तरह-तरह के खाने का स्वाद चखना है। देश और दुनिया में घूमने फिरने की कई जगहें हैं, जहां की मुझे यात्राएं करनी हैं। करीब तीन साल तक बेरोजगार और अलग-थलग रहने के बाद जो अनुभव मेरे हिस्से में आये हैं, वो भी मेरे लिए बहुत कीमती हैं। इन्होंने ही मुझे बिगड़ी चीज़ों को दुरुस्त करने, नौकरी पाने की और...और कोशिशें करने और जीवन से प्यार करने की प्रेरक ऊर्जा और शक्ति दी हैं।’

चित्र-3 : राजस्थान के बांसवाड़ा में जन्मे बालक कृष्णा के जन्म से ही हाथ- पांव नहीं हैं। दिव्यांगता के बावजूद जन्म से ही कृष्णा की मुस्कान इतनी मनमोहक थी, जिसकी वजह से माता-पिता ने सभी गमों को भुलाते हुए उसका नाम कृष्णा रख दिया। डॉक्टरों ने कृष्णा के बचने की बहुत कम संभावना बतायी थी, लेकिन कृष्णा ने उनके अनुमान पर पानी फेर दिया। कृष्णा जैसे-जैसे बढ़ा होता गया, अपनी अपंगता के अटल सच को समझते हुए हिम्मती और आत्मविश्वासी बनता चला गया। उसके मनोबल को दिव्यांगता कहीं भी शिथिल नहीं कर सकी। चार साल का होने पर वह खुद ही नहा-धोकर घुटनों से चलते हुए स्कूल जाने लगा। अभी वह पांच साल का ही था कि मां का देहांत हो गया। घुटनों में चप्पल और कोहनियों के सहारे लिखने वाले होनहार छात्र कृष्णा की बड़ा होकर एक अच्छा शिक्षक बनने की तमन्ना है। वह जब कोहनियों से क्रिकेट खेलता है तो लोग तालियां बजाते नहीं थकते। कृष्णा के पिता मजदूरी करते हैं। उसके दादा उसे घर से दो किमी दूर स्थित स्कूल छोड़ने जाते हैं। दादा कभी-कभार चलते-चलते थक जाते हैं, लेकिन कृष्णा बिलकुल नहीं थकता-रूकता। स्कूल की छुट्टी होने पर वह पैदल-पैदल अकेला ही घर पहुंच जाता है। जिन शिक्षकों को शुरू-शुरू में लगता था कि वह भविष्य में कुछ नहीं कर पायेगा, अब वही क्लास के सबसे होनहार छात्र के बारे में यह कहते हैं कि, परम पिता परमेश्वर ने इसे कोई नया इतिहास रचने के लिए भेजा है। वह बीमार होने पर भी कभी स्कूल मिस नहीं करता। कहता है, स्कूल तो मेरा मंदिर है...।

चित्र-4 : संघर्ष के बिना मनचाही सफलता नहीं मिलती। कुछ लोगों का संघर्ष हतप्रभ कर देता है। आंखें नम हो जाती हैं। उनके कभी हार नहीं मानने के जज्बे को बार-बार सलाम करने को जी चाहता है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो तमाम सुख-सुविधाओं के होने के बावजूद नाकामयाब होने पर तरह-तरह की शिकायतों और बहानों की झड़ी लगा देते हैं। वहीं भुखमरी, गरीबी और लाचारी के शिकार कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोई शोर-शराबा नहीं करते। उन्हीं में शामिल हैं आईएएस बी अब्दुल नासर। कम उम्र में पिता की मौत हो जाने की वजह से बी अब्दुल नासर को अनाथालय में रहना पड़ा। स्कूल की फीस भरने के लिए घर-घर अखबार बांटे, ट्यूशन पढ़ाई, होटल में खाना परोसा, फोन आपरेटर की नौकरी की और अनेकों अवरोधों का डट कर सामना किया, लेकिन फिर भी अपनी पढ़ाई पर अपना सारा ध्यान केंद्रित रखा। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद भी अब्दुल नासर ने केरल स्वास्थ्य विभाग में सरकारी नौकरी की। उसके पश्चात केरल की राज्य सिविल सेवा परीक्षा पास करके डिप्टी कलेक्टर बने। उन्हें सर्वश्रेष्ठ डिप्टी कलेक्टर के रूप में सम्मानित भी किया गया। उनकी शानदार परफॉर्मेंस और प्रशासनिक कुशलता को देखते हुए कलांतर में केरल सरकार ने उन्हें आईएएस अधिकारी के तौर पर प्रमोट किया। इसके बाद वह कोल्लम के जिला कलेक्टर और केरल सरकार के हाउसिंग कमिश्नर जैसे उच्च पदों पर विराजमान रहे। अनाथालय से आईएएस अफसर बनने तक के उनके सफरनामे से हजारों युवक-युवतियों को प्रेरणा मिल रही है और वे भी उन्हीं की तरह शिखर पर पहुंचने के लिए सतत संघर्ष करने को तैयार हैं...।

Thursday, April 3, 2025

चरित्र के चित्र...

 आज सुबह अखबार को हाथ में लेते ही सबसे पहले इन दो खबरों पर नज़र गढ़ी की गढ़ी रह गई। पहली खबर का शीर्षक है, ‘‘टुकड़े कर ड्रम में भर दूंगी, बिगड़े पति को पत्नी की धमकी’’ 

‘‘उत्तरप्रदेश के शहर मेरठ में एक युवक ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी है कि उसकी बीवी ने उसे ईंट मारकर बुरी तरह घायल कर दिया। युवक के सिर पर पट्टी बंधी थी। रात को वह शराब पीकर घर पहुंचा था। हमेशा की तरह दोनों में कहा-सुनी हुई। खाना खाने के बाद वह चारपाई पर लेट गया। पत्नी का बड़बड़ाना कम नहीं हुआ, जिससे विवाद और बढ़ता चला गया। पहले भी वह विरोध जताती थी, लेकिन इस बार तो उसने ईंट उठाकर सिर पर दे मारी और उसे लहूलुहान कर दिया। इतने से भी शायद उसका मन नहीं भरा। उसने चीखते हुए धमकी दे दी कि इस बार तो उसने सिर फोड़ा है, अगली बार यदि वह अपनी पीने की आदत से बाज नहीं आया तो जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर ड्रम में भर देगी। किसी को उसकी लाश का भी अता-पता नहीं चल पायेगा।’’

दूसरी खबर का शीर्षक है, ‘‘महिलाएं भी रिश्वतखोरी में कम नहीं, खेल अधिकारी डेढ़ लाख लेते पकड़ाई’’ 

‘‘एंटी करप्शन ब्यूरो ने जिला महिला खेल अधिकारी कविता को डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया है। एक ठेकेदार के बिल को मंजूर करने की ऐवज में यह वसूली की जा रही थी। आरोपी कविता के परभणी स्थित घर की तलाशी के दौरान एसीबी ने एक लाख पांच हजार रुपए नकद जब्त किए। उसके छत्रपति संभाजी नगर और पुणे स्थित घरों की तलाशी का अभियान चल रहा है...।’’ इन दोनों खबरों को पढ़ते ही मेरे दिमाग की घड़ी की सुई दो हफ्ते पहले की उन दो खबरों पर जाकर रुक गई, जो लगातार देशभर के न्यूज चैनलों तथा अखबारों की सुर्खियां बनी रहीं। उत्तरप्रदेश के मेरठ में वासना की आंधी में उड़ती मुस्कान नामक युवती ने प्रेमी के साथ मिलकर मर्चेंट नेवी अधिकारी अपने पति सौरभ के 15 टुकड़े किए फिर उन्हें एक ड्रम में भरकर सीमेंट और रेत के साथ ड्रम में बंद कर दिया। मुस्कान और उसके प्रेमी साहिल ने पुलिसिया पूछताछ में बताया कि उन्होंने सौरभ का गला काटा और सिर धड़ से अलग करने के साथ-साथ उसकी उंगलियों को भी काट डाला। इस नृशंस हत्याकांड को बड़ी चालाकी से अंजाम देने के बाद सिर को धड़ से अलग किया। कलाइयां भी काटीं। फिर सिर और धड़ को अलग-अलग रख दिया, ताकि लाश पहचान में ही न आए। शराब, गांजा और चरस की लत में डूबी मुस्कान लंबे समय से कर्मठ सौरभ को रास्ते से हटाने की योजना बना रही थी। सौरभ मुस्कान से बहुत प्यार करता था। वह उसे दुनिया की सभी खुशियां देना चाहता था, लेकिन मुस्कान का वफा और समर्पण से कोई वास्ता नहीं था। देह की भूख ही उसके लिए सबकुछ थी। इसलिए उसने जिस शख्स के साथ कभी जीने-मरने की कसमें खाई थीं, उसी के टुकड़े-टुकड़े कर ड्रम में दफन कर दिया। 

अपने साथी को फ्रिज, कूकर, बैग, दीवार, फर्श, बोरे, बिस्तर और ड्रम में दफन करने वाले प्रेमी, प्रेमिका, पति, पत्नी बाद में चैन से कैसे जी पाते होंगे? संवेदनशील लोग तो सोच-सोचकर बेचैन हो जाते हैं। उनकी रातों की नींद उड़ जाती है। मेरठ के लोगों ने तो अब ड्रम भी सोच-समझकर खरीदने का निर्णय कर लिया है। हत्यारी मुस्कान ने जिस ड्रम मेें पति की लाश के टुकड़ों को पैक किया था उसका रंग नीला था। लोगों ने नीले रंग के ड्रमों से ही दूरी बनानी प्रारंभ कर दी है। बेचारे दुकानदार ग्राहकों को समझा-समझा कर थक गए हैं कि इन नीले ड्रमों का कोई कसूर नहीं है। कसूरवार तो वो इंसानी हरकतें हैं, जिनके चलते इंसान शैतान, हैवान और पत्थरदिल  बन जाता है और रिश्तों की अहमियत और मान-मर्यादा को सूली पर लटका देता है। लेकिन लोग हैं कि अब नीले रंग के ड्रम को छूने को तैयार नहीं। आखिरकार दुकानदारों ने भी अपनी दुकानों से नीले रंग के ड्रमों को हटा कर नए-नए रंगों के ड्रम रखने प्रारंभ कर दिए हैं...। 

जिस देश में न्याय पालिका भ्रष्टाचार के छींटों से दागदार हो रही हो, कुछ वकीलों और जजों की मिलीभगत से न्याय के बिकने-बिकाने की खबरों का अंबार लगा हो, वहां पर यदि कोई नारी रिश्वत लेते पकड़ी जाए तो आश्चर्य कैसा? शासकीय कार्यालयों में रिश्वत लेकर जायज काम करने की नाजायज परंपरा से तो देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। मेहनतकश आम आदमी को हजार पांच सौ रुपए कमाने के लिए कई-कई तिकड़मे और कसरतें करनी पड़ती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी, कर्मचारी, नेता, मंत्री की तिजोरी चुटकी बजाते-बजाते भर जाती है। इस लुटेरी जमात के मान-सम्मान पर भी कभी कोई आंच भी नहीं आती। इनके बचाव के लिए पूरा तंत्र-मंत्र चौबीस घंटे लगा रहता है। रात को कोर्ट के दरवाजे तक खुल जाते हैं। किसी को पता ही नहीं चलता और संगीन अपराधी बाइज्जत बरी हो जाते हैं। उनका स्वागत, मान-सम्मान करने के लिए हार-गुलदस्ते लेकर भीड़ भी अदालतों तक पहुंच जाती है। 

14 मार्च 2025 के दिन होली थी। लोग रंग और भंग में डूबने के बाद रात को गहरी नींद में थे। दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय (?) जज यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में लगी आग में करोड़ों रुपयों की नोटों की गड्डियां धू...धू कर जलते हुए इंसाफ के रखवाले को कटघरे में खड़ा कर रही थीं। जज साहब के स्टोर रूम में जले-अधजले नोटों को बड़ी चालाकी से रहस्य की काली चादर में लपेट-समेट दिया गया। नोटों के वीडियों तथा तस्वीरें तो सभी ने देखीं, लेकिन नोट नहीं दिखे! यानी अधजले नोट भी गायब कर दिये गए। 15 से 20 करोड़ की रकम कम नहीं होती। यदि किसी व्यापारी, उद्योगपति के यहां यह अग्निकांड हुआ होता तो पूरे देश में हंगामा मच जाता। इस रहस्यमय कांड ने जजों के चरित्र और साख पर सवालिया निशान तो लगा ही दिया है। न्याय की कुर्सी पर विराजमान कुछ जजों पर पहले भी कलंक के छींटे पड़ चुके हैं। कुछ विद्वान जजों ने ऐसे-ऐसे फैसले सुनाये हैं, जिन्हें भरपूर शंका की निगाह से देखा गया है। कुछ जजों ने तो बचकाने निर्णय सुना कर आम जनों को चौंकाते हुए मीडिया की भरपूर काली-पीली सुर्खियां बटोरी हैं। बीते कई वर्षों से देश की न्यायपालिका के पूरे तंत्र में बदलाव लाने की वर्षों से मांग उठ रही है। आम लोगों को लगने लगा है कि उन्हें न्याय नहीं मिलता। अदालतों में तारीख पर तारीख देकर गरीबों की कमर तोड़ने और अमीरों को राहत देने की कष्टदायी परिपाट बन चुकी है। 17 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर मिश्रा ने अपने एक निर्णय में यह कहकर देश और दुनिया को हतप्रभ कर दिया कि नाबालिग लड़की के स्तनों को छूना, उसके पायजामे के नाड़े को खोलना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। यह मामला उत्तरप्रदेश के कासगंज का है। जहां 2021 में दो व्यक्तियों पर 11 वर्षीय नाबालिग लड़की पर बलात्कार का आरोप लगाया गया था। जज साहब के ‘स्व विवेकी’ निर्णय ने सजग भारतीयों के मन-मस्तिष्क की संवेदनशील जड़ों को ज़मीन विहीन करके रख दिया है...।