Thursday, April 3, 2025

चरित्र के चित्र...

 आज सुबह अखबार को हाथ में लेते ही सबसे पहले इन दो खबरों पर नज़र गढ़ी की गढ़ी रह गई। पहली खबर का शीर्षक है, ‘‘टुकड़े कर ड्रम में भर दूंगी, बिगड़े पति को पत्नी की धमकी’’ 

‘‘उत्तरप्रदेश के शहर मेरठ में एक युवक ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी है कि उसकी बीवी ने उसे ईंट मारकर बुरी तरह घायल कर दिया। युवक के सिर पर पट्टी बंधी थी। रात को वह शराब पीकर घर पहुंचा था। हमेशा की तरह दोनों में कहा-सुनी हुई। खाना खाने के बाद वह चारपाई पर लेट गया। पत्नी का बड़बड़ाना कम नहीं हुआ, जिससे विवाद और बढ़ता चला गया। पहले भी वह विरोध जताती थी, लेकिन इस बार तो उसने ईंट उठाकर सिर पर दे मारी और उसे लहूलुहान कर दिया। इतने से भी शायद उसका मन नहीं भरा। उसने चीखते हुए धमकी दे दी कि इस बार तो उसने सिर फोड़ा है, अगली बार यदि वह अपनी पीने की आदत से बाज नहीं आया तो जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर ड्रम में भर देगी। किसी को उसकी लाश का भी अता-पता नहीं चल पायेगा।’’

दूसरी खबर का शीर्षक है, ‘‘महिलाएं भी रिश्वतखोरी में कम नहीं, खेल अधिकारी डेढ़ लाख लेते पकड़ाई’’ 

‘‘एंटी करप्शन ब्यूरो ने जिला महिला खेल अधिकारी कविता को डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया है। एक ठेकेदार के बिल को मंजूर करने की ऐवज में यह वसूली की जा रही थी। आरोपी कविता के परभणी स्थित घर की तलाशी के दौरान एसीबी ने एक लाख पांच हजार रुपए नकद जब्त किए। उसके छत्रपति संभाजी नगर और पुणे स्थित घरों की तलाशी का अभियान चल रहा है...।’’ इन दोनों खबरों को पढ़ते ही मेरे दिमाग की घड़ी की सुई दो हफ्ते पहले की उन दो खबरों पर जाकर रुक गई, जो लगातार देशभर के न्यूज चैनलों तथा अखबारों की सुर्खियां बनी रहीं। उत्तरप्रदेश के मेरठ में वासना की आंधी में उड़ती मुस्कान नामक युवती ने प्रेमी के साथ मिलकर मर्चेंट नेवी अधिकारी अपने पति सौरभ के 15 टुकड़े किए फिर उन्हें एक ड्रम में भरकर सीमेंट और रेत के साथ ड्रम में बंद कर दिया। मुस्कान और उसके प्रेमी साहिल ने पुलिसिया पूछताछ में बताया कि उन्होंने सौरभ का गला काटा और सिर धड़ से अलग करने के साथ-साथ उसकी उंगलियों को भी काट डाला। इस नृशंस हत्याकांड को बड़ी चालाकी से अंजाम देने के बाद सिर को धड़ से अलग किया। कलाइयां भी काटीं। फिर सिर और धड़ को अलग-अलग रख दिया, ताकि लाश पहचान में ही न आए। शराब, गांजा और चरस की लत में डूबी मुस्कान लंबे समय से कर्मठ सौरभ को रास्ते से हटाने की योजना बना रही थी। सौरभ मुस्कान से बहुत प्यार करता था। वह उसे दुनिया की सभी खुशियां देना चाहता था, लेकिन मुस्कान का वफा और समर्पण से कोई वास्ता नहीं था। देह की भूख ही उसके लिए सबकुछ थी। इसलिए उसने जिस शख्स के साथ कभी जीने-मरने की कसमें खाई थीं, उसी के टुकड़े-टुकड़े कर ड्रम में दफन कर दिया। 

अपने साथी को फ्रिज, कूकर, बैग, दीवार, फर्श, बोरे, बिस्तर और ड्रम में दफन करने वाले प्रेमी, प्रेमिका, पति, पत्नी बाद में चैन से कैसे जी पाते होंगे? संवेदनशील लोग तो सोच-सोचकर बेचैन हो जाते हैं। उनकी रातों की नींद उड़ जाती है। मेरठ के लोगों ने तो अब ड्रम भी सोच-समझकर खरीदने का निर्णय कर लिया है। हत्यारी मुस्कान ने जिस ड्रम मेें पति की लाश के टुकड़ों को पैक किया था उसका रंग नीला था। लोगों ने नीले रंग के ड्रमों से ही दूरी बनानी प्रारंभ कर दी है। बेचारे दुकानदार ग्राहकों को समझा-समझा कर थक गए हैं कि इन नीले ड्रमों का कोई कसूर नहीं है। कसूरवार तो वो इंसानी हरकतें हैं, जिनके चलते इंसान शैतान, हैवान और पत्थरदिल  बन जाता है और रिश्तों की अहमियत और मान-मर्यादा को सूली पर लटका देता है। लेकिन लोग हैं कि अब नीले रंग के ड्रम को छूने को तैयार नहीं। आखिरकार दुकानदारों ने भी अपनी दुकानों से नीले रंग के ड्रमों को हटा कर नए-नए रंगों के ड्रम रखने प्रारंभ कर दिए हैं...। 

जिस देश में न्याय पालिका भ्रष्टाचार के छींटों से दागदार हो रही हो, कुछ वकीलों और जजों की मिलीभगत से न्याय के बिकने-बिकाने की खबरों का अंबार लगा हो, वहां पर यदि कोई नारी रिश्वत लेते पकड़ी जाए तो आश्चर्य कैसा? शासकीय कार्यालयों में रिश्वत लेकर जायज काम करने की नाजायज परंपरा से तो देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। मेहनतकश आम आदमी को हजार पांच सौ रुपए कमाने के लिए कई-कई तिकड़मे और कसरतें करनी पड़ती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी, कर्मचारी, नेता, मंत्री की तिजोरी चुटकी बजाते-बजाते भर जाती है। इस लुटेरी जमात के मान-सम्मान पर भी कभी कोई आंच भी नहीं आती। इनके बचाव के लिए पूरा तंत्र-मंत्र चौबीस घंटे लगा रहता है। रात को कोर्ट के दरवाजे तक खुल जाते हैं। किसी को पता ही नहीं चलता और संगीन अपराधी बाइज्जत बरी हो जाते हैं। उनका स्वागत, मान-सम्मान करने के लिए हार-गुलदस्ते लेकर भीड़ भी अदालतों तक पहुंच जाती है। 

14 मार्च 2025 के दिन होली थी। लोग रंग और भंग में डूबने के बाद रात को गहरी नींद में थे। दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय (?) जज यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में लगी आग में करोड़ों रुपयों की नोटों की गड्डियां धू...धू कर जलते हुए इंसाफ के रखवाले को कटघरे में खड़ा कर रही थीं। जज साहब के स्टोर रूम में जले-अधजले नोटों को बड़ी चालाकी से रहस्य की काली चादर में लपेट-समेट दिया गया। नोटों के वीडियों तथा तस्वीरें तो सभी ने देखीं, लेकिन नोट नहीं दिखे! यानी अधजले नोट भी गायब कर दिये गए। 15 से 20 करोड़ की रकम कम नहीं होती। यदि किसी व्यापारी, उद्योगपति के यहां यह अग्निकांड हुआ होता तो पूरे देश में हंगामा मच जाता। इस रहस्यमय कांड ने जजों के चरित्र और साख पर सवालिया निशान तो लगा ही दिया है। न्याय की कुर्सी पर विराजमान कुछ जजों पर पहले भी कलंक के छींटे पड़ चुके हैं। कुछ विद्वान जजों ने ऐसे-ऐसे फैसले सुनाये हैं, जिन्हें भरपूर शंका की निगाह से देखा गया है। कुछ जजों ने तो बचकाने निर्णय सुना कर आम जनों को चौंकाते हुए मीडिया की भरपूर काली-पीली सुर्खियां बटोरी हैं। बीते कई वर्षों से देश की न्यायपालिका के पूरे तंत्र में बदलाव लाने की वर्षों से मांग उठ रही है। आम लोगों को लगने लगा है कि उन्हें न्याय नहीं मिलता। अदालतों में तारीख पर तारीख देकर गरीबों की कमर तोड़ने और अमीरों को राहत देने की कष्टदायी परिपाट बन चुकी है। 17 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर मिश्रा ने अपने एक निर्णय में यह कहकर देश और दुनिया को हतप्रभ कर दिया कि नाबालिग लड़की के स्तनों को छूना, उसके पायजामे के नाड़े को खोलना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। यह मामला उत्तरप्रदेश के कासगंज का है। जहां 2021 में दो व्यक्तियों पर 11 वर्षीय नाबालिग लड़की पर बलात्कार का आरोप लगाया गया था। जज साहब के ‘स्व विवेकी’ निर्णय ने सजग भारतीयों के मन-मस्तिष्क की संवेदनशील जड़ों को ज़मीन विहीन करके रख दिया है...।

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