हम सबके देश भारत और भारतवासियों की यह खुशकिस्मती है कि हमें समय-समय पर प्रेरणा के दीप जलाकर अंधेरों को दूर करने वाले सच्चे साधु-संतों, उपदेशकों, कथावाचकों का आशीर्वाद और सुखद सानिध्य मिलता रहा है। इस काल में भी कुछ ऐसे महामानव हैं, जिनकी मधुर प्रभावी वाणी नतमस्तक होने को विवश कर देती है। देवी नंदन ठाकुर, पंडित प्रेमानंद जी महाराज, पंडित प्रदीप मिश्रा, अनिरुद्धाचार्य और महिला कथावाचक जया किशोरी, देवी चित्रलेखा, पलक किशोरी आदि के कथा वाचन को जितना भी सुनें...जी नहीं भरता। आज के इस दौर में जब यह कहने वाले ढेरों हैं कि कथावाचकों तथा प्रवचनकारों का जमाना लद गया है। आज किसके पास फुर्सत है जो इनके रटे-रटाये प्रवचनों को सुनने के लिए अपना कीमती समय खराब करे। लेकिन फिर भी प्रभावी वाचकों के यूट्यूब और सोशल मीडिया पर लाखों-करोड़ोंफॉलोअर्स प्रशसंक हैं। यहां से इनकी झोली में लाखों रुपये बरसते हैं। इनके कथावाचन को रूबरू सुनने के लिए भी आयोजक लाखों रुपए सहर्ष देने को तैयार रहते हैं। यह उपलब्धि असंख्य जागरुक भक्तों, प्रशंसकों और श्रोताओं की बदौलत ही संभव है। यह सच अपनी जगह है कि पिछले कुछ वर्षों से कुछ प्रवचनकारों, बाबाओं के संदिग्ध आचरण के कारण लाखों लोगों ने संत समाज से ही दूरी बना ली है। उन्हें सभी संत-महात्मा एक जैसे लगते हैं। इसलिए वे उनके निकट जाना भी पसंद नहीं करते। लेकिन यह अधूरा सच है। अपने देश में ऐसे संतों की कमी नहीं जो वास्तव में निष्कंलक हैं।
बीते सप्ताह उत्तरप्रदेश के इटावा से जुड़े दांदरपुर गांव में एक कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहायक के साथ बदसलूकी की गई। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को भी लाखों लोगों ने देखा। जिसमें गांव के ब्राह्मणों ने उनकी जाति पूछी तो उन्होंने कहा कि पहले तो उनकी कोई जाति नहीं है। वे 14 साल से भागवत कर रहे हैं। उनको सुनने के लिए लाखों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन ग्रामीण उनकी जाति के बारे में जानने के लिए अड़े रहे। वे यह बताने से कतराते रहे कि वे यादव जाति से हैं। उन्होंने वहां पर उपस्थित साधुओं को भी समझाने का बहुतेरा प्रयास किया। गांव के कुछ युवा उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे। उन्हें बार-बार मुकुट मणि यादव पर गुस्सा आ रहा था। उसके पश्चात गुस्साये युवक उन्हें खींचकर गांव के बाहर ले गए। वहां पर उनसे मारपीट कर उनका मुंडन कर दिया। उनके साथी की भी चोटी काटी गई। इस अमानवीय, अपमानजनक घटना का भी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पक्ष और विपक्ष के बीच शाब्दिक युद्ध चल पड़ा।
लगभग हर विद्वान, बुद्धिजीवी का यही मानना है कि भागवत कथा करने का अधिकार सभी को है। किसी को रोका नहीं जा सकता। हमारी सनातन परंपरा में ऐसे तमाम गैर ब्राह्मण हैं, जिनकी गणना ऋषि के रूप में की गई है। इसमें चाहे महर्षि वाल्मीकि हों, वेद व्यास हों या रविदास हों। सनातन परंपरा में सभी को सम्मान और आदर प्राप्त है। सच तो यह है कि, जो शास्त्रों को जानते हैं, भक्तिभाव, सत्यनिष्ठ, ज्ञानवान और जानकार है, उन्हें कथा कहने का अधिकार है। किसी भी विद्वान और ज्ञानी को अपना धर्म और जाति छिपाने की कोई जरूरत नहीं। किसी को उसकी जाति के कारण अपमानित करने का भी कोई अधिकार नहीं है। मुकुट मणि यादव और उसके साथी पर जाति छुपाने और दो आधार कार्ड रखने के आरोप हैं। उन्होंने ऐसा क्यों किया, क्यों करना पड़ा, यह भी चिंतन और खोज का विषय है। हालांकि, मुकुट मणि बार-बार कहते रहे कि मुकुट मणि अग्निहोत्री नाम का जो आधार कार्ड वीडियो पर वायरल हुआ उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह तो उनके खिलाफ उन अपराधियों की साजिश है, जिन्होंने उन्हें अपमान कर सिर के बाल काटे, नाक रगड़वाई, पैर छूने को विवश कर मूत्र छिड़कने का आतंकी कृत्य किया। अपने देश में ऐसे मामलों में राजनीति न हो, नेताओं की बिरादरी चुप रहे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। नेताओं को तो ऐसे अवसरोेंं का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसे समय में स्वार्थी नेता आग में घी डालने की अपनी शर्मनाक आदत से बाज नहीं आते।
यदि कथावाचक की कथा में कोई खोट था, या कोई भारी कमी थी तो एक बार उसका विरोध समझ में आता और इतना शोर-शराबा भी नहीं होता। लेकिन उनके गैर ब्राह्मण होने के कारण उन्हें अपमानित करना यकीनन अक्षम्य है। हां, खुद की जाति छुपाने की उनकी कोशिश कहीं न कहीं संशय खड़ा करती है और उनका आतंरिक बौनापन भी उजागर करती है। विद्वान तो डंके की चोट पर अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। झूठ और छल-कपट तो धूर्तों के बनावटी सुरक्षा कवच हैं। जिनके तहस-नहस होने में अंतत: देरी नहीं लगती। एक सच यह भी कि कुछ चतुर चालाक और अति होशियार लोगों ने राजनीति और समाज सेवा की तर्ज पर प्रवचन और कथावाचन को भी धंधा बना लिया है। उन्हें वे लाखों रुपये प्रलोभित करते हैं, जो स्थापित कथावाचकों को उनकी साख की बदौलत बड़ी आसानी से मिलते हैं। लेकिन उनके द्वारा किये जाने परोपकारी, जनहितकारी कार्य किसी को दिखायी नहीं देते। जिस तरह से कई लुच्चे-लफंगे नेता, जाति-धर्म के नाम पर चुनाव जीत कर विधायक, सांसद और मंत्री बन जाते हैं, वैसे ही कुछ कपटी बाबा भीड़ की आंखों में धूल झोंक कर माया बटोर रहे हैं। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। सच की राह पर चलने के उपदेश देनेवाले झूठे, मक्कार प्रवचनियों की जब पोल खुलती है, जैसे-जैसे उनका घिनौना और शर्मनाक सच बाहर आता है, तो उनका हश्र भी कलंकित आसाराम, राम रहीम आदि-आदि जैसों जैसा हो ही जाता है।
संतई के क्षेत्र में नाम और दाम कमाने को आतुर शैतानों को यही लगता है कि वे उन जेल यात्रियों से बहुत ज्यादा चालाक और चौकन्ने हैं, जो अपने कर्मों की सजा भुगत रहे हैं। कोई लाख कोशिशें करता रहे लेकिन उनका तो बाल भी बांका नहीं हो सकता। बनावटी और नकली बाबाओं को अपना परचम लहराने के लिए यदि असली-नकली भक्तों-अंधभक्तों का साथ न मिले तो उनका एक कदम भी आगे बढ़ पाना असंभव है। लेकिन एक-दूसरे की देखा-देखी भेड़चाल चलने वालों ने दुष्टों का हौसला बढ़ाने और देश का बेड़ा गर्क करने में कोई कसर नहीं छोड़ने की जैसे कसम ही खा रखी है।