Thursday, July 24, 2025

परवरिश

चित्र : 1 इंसान तो इंसान है। देशी हो या विदेशी। उसे जहां प्यार मिलता है वहीं का हो जाता है। जैसी परवरिश मिलती है उसी में ढल जाता है। बच्चों पर यह हकीकत काफी ज्यादा लागू होती है जैसा देखते हैं वैसा ही करते हैं। जिस तरह से मां-बाप अपने बच्चों के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं। वैसे ही संस्कारित, संवेदनशील संतानें भी अपने जन्मदाताओं के प्रति समर्पित होने में आगा-पीछा नहीं देखतीं। लापरवाह माता-पिता का अंधापन कभी-कभी उनके बच्चों के वर्तमान और भविष्य का किस तरह से सत्यानाश कर देता है उसका सटीक प्रमाण है ये खबर : शराब पीकर नशे में टुन्न रहने वाली उस औरत ने बेटे को जन्म तो दिया, लेकिन उसकी परवरिश से कन्नी काट ली। उस लापरवाह मां ने मेहनत-मजदूरी से धन कमाकर बच्चे की देखरेख करने की बजाय उसे लावारिस हालत में उसी गंदी बदबूदार झोपड़पट्टी में छोड़ दिया, जहां पर कीचड़ में मुंह मारते सुअरों और कुत्तों का जमावड़ा लगा रहता था। शहर के गली कूचों में दिन-भर भटक-भटक कर वह निर्दयी, स्वार्थी मां भीख मांगती और अंधेरा घिरते ही शराब गटककर बेसुध हो फुटपाथ पर ही सो जाती। मां की देखरेख और ममता से वंचित मासूम बच्चे ने कुत्तों के बीच रहते-रहते जानवरों को ही अपना सबकुछ मान लिया। कुत्ते जो खाते, वही वह खाता और रात को उन्हीं के साथ सो जाता। संगत का असर पड़ना ही था। वह भी कुत्तों की तरह लड़ने-झगड़ने और भौंकने लगा। आसपास के मोहल्लों में रहने वाले लोगों ने अपने बच्चों को उसके निकट जाने पर यह सोचकर पाबंदी लगा दी कि वे भी कहीं भौंकने न लगें और पागल कुत्तों की तरह काटने पर उतारू न हो जाएं। बच्चे के कुत्ते की तरह व्यवहार करने की खबर जब प्रशासन तक पहुंची तो पुलिस और अधिकारियों का दल नशेड़ी महिला की झोपड़ी में पहुंचा। झोपड़ी में बच्चा कुत्तों के झुंड के साथ खेल रहा था। वह उन्हें देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा। अधिकारी असली कुत्तों के भौंकने और बच्चे के भौंकने में फर्क तलाशते रहे, लेकिन काफी माथापच्ची के बाद भी तय नहीं कर पाये कि दोनों में क्या फर्क है। बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी एक महिला कार्यकर्ता को देखकर जब बच्चा भौंकते हुए उसे काटने को दौड़ा तो उसका शरीर कांपने लगा। वह वहां से ऐसे भागी जैसे बच्चा उसकी जान ही ले लेगा। कुछ दूर जाने के पश्चात उसने खुद को भयमुक्त कर पानी पिया और यह निर्णय भी लिया कि वह इस बच्चे को नई जिन्दगी देगी। मां के साथ-साथ समाज ने इसके साथ जो अन्याय किया है उसका दंड वह किसी और को नहीं खुद को ही देगी।

चित्र 2 : दो हजार पच्चीस की 9 जुलाई की दोपहर कर्नाटक के दक्षिणी तट पर स्थित रामतीर्थ पहाड़ियों में पुलिस जब नियमित गश्त पर निकली थी तब उसने जंगल की एक गुफा में हलचल और इंसानी आवाज़े सुनीं। गुफा के बाहर कपड़े भी लटके नज़र आए। सतर्क पुलिस वालों का माथा ठनका तो उन्होंने गुफा के भीतर झांका। वहां का नजारा देखकर तो वे स्तब्ध के स्तब्ध रह गये। पैरों तले की जमीन गायब होती सी लगी। गुफा के भीतर एक विदेशी महिला अपने दो मासूम बच्चों के साथ बड़े आराम से हंसती-खेलती बैठी थी। महिला को तुरंत बाहर आने को कहा गया। महिला बिना किसी ना नुकुर के झुकते-झुकते-झुकाते बड़ी सावधानी से बच्चों के साथ गुफा से बाहर निकल आई। पुलिस को पता चला कि नीना कुटिना नाम की यह चालीस वर्षीय रूसी महिला बिना पासपोर्ट और विजा के पिछले आठ वर्षों से भारत में अवैध रूप में बड़ी बेफिक्री के साथ रह रही थी। नीना और उसकी बेटियों को बेंगलुरु में आश्रयगृह में लाया गया तो वह खुद को बहुत असहज महसूस करने लगी। जंगल से निकलने के बाद उसने तुरंत अपना फोन रिचार्ज कर सबसे पहले अपने करीबी रिश्तेदार को रशियन भाषा में एक मेल किया। उसमें उसने लिखा कि हमारी गुफा वाली शांतिपूर्ण जिन्दगी खत्म हो गई है। हमारा गुफा वाला आनंददायक ठिकाना उजड़ गया है। सालों से खुले आसमान के नीचे हम प्रकृति के साथ जीते आ रहे थे, लेकिन अब पता नहीं क्या होगा? जंगल से बाहर निकलने के लिए भी नीना बहुत मुश्किल से मानी। पुलिस ने उसे जंगल के खूखांर जानवरों, जीव, जंतुओं और ज़हरीले सांपों का भय भी दिखाया। नीना ने बड़ी बेबाकी से यह कहकर उनका मुंह बंद कर दिया, उसे कभी भी जंगल के जानवरों से डर नहीं लगा। उसे न कभी सांप ने काटा और न ही किसी जानवर ने उस पर या बच्चों पर हमला किया। उसे तो बस इंसानों से डर लगता है। इसलिए वह शहर छोड़ जंगल में रहने चली आई। जितने भी दिन यहां कटे, बहुत मज़े से कटे। जब मन करता सोती और जागती। झरने के नीचे नहाने का आनंद लेती। यहीं की लकड़ियों से खाना बनाती। बच्चों को खिलाती और खुद भी मज़े से खाती थी। 

उसका जंगल में मंगल चल ही रहा था कि पुलिस की उस पर नज़र पड़ गई। वर्ना कौन जाने कब तक वह गुफावासी बनी रहती। शहर के भीड़-भाड़ वाले वातावरण में स्थित आश्रयस्थल तो उसे जेल से भी बदतर लग रहा था। यहां से उसे न जंगल जैसा खुला-खुला आसमान दिख रहा था और न ही दूर-दूर तक मन को लुभाती हरियाली और ताजी-ताजी हवा के सुकून का अता-पता था। उसे गुफा की उबड़-खाबड़ जमीन पर जो नींद आती थी वो भी यहां नदारद थी। पुलिस जब उसे और उसकी छह और चार साल की बेटियों को चेकअप के लिए हॉस्पिटल लेकर गई तो तीनों को पूरी तरह से ठीक-ठाक पाया गया। नीना ने यह भी बताया कि उन्हें जंगल में कभी भी बीमारी ने नहीं घेरा। यहां तक कि उन्हें कभी सर्दी और जुकाम भी नहीं हुआ। जहांं वह रह रही थीं वहां से गांव ज्यादा दूर नहीं था। गुफा की खिड़की से समुद्र का नजारा भी साफ-साफ दिखता था। लोग भी वहां से यदाकदा गुजरते दिखायी देते थे। 

गुफा में ही बगैर किसी डॉक्टर या नर्स की मदद से एक बेटी को जन्म देने वाली नीना का पति इजरायली कारोबारी है। कई देशों का भ्रमण कर चुकी यह रूसी महिला 2017 में पर्यटक वीजा पर भारत में आने के बाद सबसे पहले गोवा में रही। उसने यह खुलासा कर भी पुलिस को चौंका दिया कि मैं रूस से 15 साल से बाहर हूं। मैंने अपना ज्यादातर समय कोस्टा रिका, मलेशिया,  बाली नेपाल और यूक्रेन में गुजारा है। मेरी बड़ी बेटी का जन्म भी यूक्रेन में हुआ। गोवा में रूसी भाषा की ट्यूटर के तौर पर काम कर चुकी नीना कभी भी स्थायी रूप से गोकर्ण की गुफा में नहीं रही। उसका जब-जब मन करता वह यहां रहने चली आती। भारत में इतने ज्यादा समय तक रहने की उसने वजह बतायी कि यहां की प्रकृति अत्यंत सुहावनी है। तन और मन सेहतमंद और शांत रहता है। लोग भी अपने काम से काम रखते हैं। अब तो वह और उसके बच्चे यहां रहने के अभ्यस्त हो गये हैं। कहीं दूसरी जगह हमारा मन भी नहीं लगेगा। जंगल में रहने के दौरान वॉटरफॉल में नहाने, मिट्टी के बर्तन बनाने और पेंटिंग करने तथा मिट्टी के चूल्हे पर रोटियां बनाने का मनचाहा सुख और कहीं मिल भी नहीं सकता। नीना जिस गुफा में रहती मिली उसके अंदर खाने-पीने का अच्छा-खासा सामान मिला। उसने यह भी बताया कि वह आर्ट और म्यूजिक वीडियो बनाकर पैसा कमाती थी। उसके पिता और भाई भी पर्याप्त पैसे भेज देते थे। पति भी जब मिलने के लिए आते थे तो थोड़ी बहुत सहायता कर देते थे। हालांकि उनसे ज्यादा नहीं बनती है।

चित्र 3 : बाप और बेटे का रिश्ता भी बड़ा खट्टा-मीठा होता है। बेटे पिता को भले ही देरी से समझें, उससे दूरियां बनाये रखें लेकिन पिता की उन्हीं में जान अटकी रहती है। उनके अच्छे भविष्य के लिए अपनी जीवनभर की कमायी को दांव पर लगाने से नहीं हिचकते। कुछ पिता तो अपनी औलाद के भले के लिए अपराध करने से भी नहीं चूकते। राजस्थान में बीते दिनों एक ट्रेनी थानेदार और उसके पिता को गिरफ्तार किया गया। आदित्य को सब इंस्पेक्टर बनने का मौका उसकी मेहनत और काबिलियत से नहीं, पेपर माफिया की बदौलत मिला था। इसमें उसके पिता बुद्धि सागर की प्रमुख भूमिका सामने आयी। किसी भी हालत में अपने बेटे को खाकी वर्दी में देखने का सपना संजोये बुद्धि सागर ने जब देखा कि बेटा अपनी योग्यता के दम पर झंडा नहीं गाड़ सकता तो उसने नकल माफिया से संपर्क पर 10 लाख रुपये में परीक्षा का पेपर खरीदा। आदित्य ने नकल के दम पर एसआई परीक्षा में न केवल सफलता हासिल की बल्कि प्रदेश भर में 19वीं रेंक हासिल कर सभी को चौंका दिया। लेकिन गलत राह अपनाने की जानबूझकर की गई गलती ने बाप-बेटे दोनों को जेल भी पहुंचा दिया।

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