Thursday, July 17, 2025

शिकारी

 यह षडयंत्र, घटनाएं, वारदातें और दुर्घटनाएं इंसानी बेवकूफी और फितरत का परिणाम नहीं तो क्या हैं?...

अनुराधा की 2014 में शादी हुई थी। वैवाहिक जीवन के दस साल बीतने के बाद भी मां नहीं बन पाई थी। इस दौरान सास-ससुर और देवरानी की तानेबाजी शिखर पर पहुंच गयी। मां बनना उसके बस में तो नहीं था। सभी के ताने-उलाहने सुनने के सिवा उसके पास और कोई चारा भी नहीं था। उसके साथ-साथ पति की भी डॉक्टरी जांच करवाने पर दोनों शारीरिक तौर पर दुरुस्त पाये गए। अनुराधा की सास को किसी ने ओझा के पास ले जाने का पुरजोर सुझाव दिया तो वह बिना देरी किये तांत्रिक के यहां जा पहुंची। तांत्रिक ने एक लाख रुपये में अनुराधा को मां बनाने का ठेका लेने के पश्चात झाड़-फूंक प्रारंभ कर दी।

झाड़-फूंक के दौरान धन के लालची तांत्रिक ने अनुराधा को बार-बार बाल पकड़ कर घसीटा और टॉयलट का पानी भी जबरदस्ती पिलाया। अनुराधा ने जब टॉयलेट का पानी पीने में असमर्थता जतायी तो ओझा और सास ने उसे खूब फटकारा। न चाहते हुए बच्चे की चाह में अनुराधा ने बदबूदार पानी किसी तरह से घूंट-घूंट कर पिया। तांत्रिक ने अनुराधा और उसकी सास को तीन-चार दिन बाद फिर से बाकी के पैसों के साथ आने का निर्देश दिया। दरअसल उसे एडवांस में मात्र बीस हजार रुपए ही दिए गए थे। चार दिन के पश्चात बाकी के पूरे पैसों के साथ सास-बहू ने बच्चा होने के यकीन के साथ तांत्रिक के यहां दस्तक दी। पूरे रुपये हाथ में लेते ही वह गद्गद् हो गया। इस बार वह पहले से ज्यादा जोश में था। उसने अपनी पत्नी शबनम और दो सहयोगियों के साथ मिलकर अनुराधा को बाल पकड़कर जोर से घसीटते हुए गले और मुंह को दबाने में पूरी ताकत लगा दी तथा चीच-चीखकर कहना शुरू कर दिया कि इसके ऊपर जबर्दस्त भूत-प्रेत की छाया है। इसका यही एकमात्र उपाय है। भूत-प्रेत के भागने के बाद इसे मां बनने से कोई नहीं रोक सकता। तांत्रिक भूत को भगाने के लिए और...और आक्रामक होता चला गया। असहनीय पीड़ा से उपजी अनुराधा की चीत्कार बेअसर रही। वह कब बेहोश हुई किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 

बिहार के पूर्णिया के रानीगंज पंचायत टोले में डायन होने के शक में एक ही परिवार की तीन महिलाओं और दो पुरुषों को पेट्रोल छिड़ककर जिन्दा जला दिया गया। इसके पश्चात सभी शवों को गांव वालों सहयोग से घर से दो किमी दूर तालाब में फेंक दिया गया। कुछ दिन पूर्व टीले के ही रहने वाले एक शख्स के बच्चे की मौत हो गई थी। बच्चे की मौत के बाद उस शख्स के भांजे की भी तबीयत बिगड़ गई। वहीं वर्षों से रह रहे बाबूलाल उरांव के परिवार पर दबाव बनाया गया कि किसी भी हालत में उनके भांजे को ठीक करो। उस शख्स तथा टोले के अन्य लोगों को शक था कि बाबूलाल उरांव के परिवार ने खासतौर पर उनकी पत्नी सीता देवी ने जादू-टोना कर उसके बच्चे की जान ली है तथा भांजे की तबीयत भी बिगाड़ दी है। बच्चे की मौत के बाद गांव में पंचायत बैठी। इसमें लगभग तीन सौ लोग शामिल हुए। पंचायत ने जो तालिबानी फैसला सुनाया उसी का यह असर हुआ कि देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में आदमी-औरत और बच्चों ने धारदार हथियार और लाठी-डंडों के साथ बाबूलाल उरांव के घर पर हमला कर दिया। इस हिंसक घटना के एकमात्र चश्मदीद बाबूलाल के बेटे ने किसी तरह से वहां से भाग कर अपनी जान बचाई। उसने बताया कि रात करीब 10 बजे गांव के कई लोग हथियारों के साथ घर पर आए। उन्होंने सबसे पहले मेरे पिता को पकड़कर बुरी तरह से पीटा। फिर मेरी भाभी, भाई, मां और दादी के साथ जानवरों की तरह मारपीट की। रात करीब 1 बजे मेरे पिता, मां, भाई, भाभी और दादी को बांधकर पेट्रोल छिड़का और आग लगा दी। मैंने अपनी आंखों के सामने सभी को जिन्दा जलते देखा। वहां पर मौजूद एक महिला ने मुझसे कहा कि, तुम यहां से तुरंत भागो, नहीं तो तुम्हें भी जिंदा जला देंगे। इसके बाद मैं वहां से भाग गया। पूर्णिया शहर से महज 12 किमी की दूरी पर स्थित इस टोले में उरांव जनजाति के करीब 60 परिवार रहते हैं। मजदूरी और खेती करके किसी तरह से गुजारा करने वाले ये लोग लगभग अनपढ़ हैं। यह लोग बीमार पड़ने पर सबसे पहले ओझा के पास ही जाते है। जब ओझा से केस बिगड़ जाता हैं तब मरीज को अस्पताल ले जाते हैं। बाबूलाल भी ओझागिरी यानी झाड़-फूंक करता था। लेकिन बच्चे की मौत हो गई तो उसे तथा उसके सारे परिवार को डायन घोषित कर यह दिल दहला लेने वाला हश्र कर दिया गया।

इस हत्याकांड ने इस हकीकत पर मुहर लगा दी है कि भारत में आज भी जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, अंधश्रद्धा और तांत्रिकों-ओझाओं का अस्तित्व बरकरार है। महिलाओं को जिंदा जलाने, मल खिलाने, बाल काटने और कपड़े उतार कर नग्न घुमाने जैसी भयावह और अमानवीय घटनाओं की खबरें सिर्फ अनपढ़ों की बेवकूफी की देन नहीं हैं। खुद को पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी दर्शाने वाले कई लोग धूर्त बाबाओं के चक्कर में किस तरह से फंस जाते हैं, या उन्हें फंसाया जाता है, इसकी गवाह है अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर छायी यह बहुचर्चित खबर ‘‘एक चतुर चालाक व्यक्ति जिसकी अथाह धन कमाने की तमन्ना थी, लेकिन धनवान बनने को उसे कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। काफी माथापच्ची करने के पश्चात एक दिन उसके मन में विचार आया कि क्यों न दूसरे करोड़पति बाबाओं, ओझाओं और फ्रॉड  ज्योतिषियों की तरह वह भी लोगों को बेवकूफ बनाए और हो सकता है उसकी भी किस्मत चमक जाए। वर्ष 2010 में इस भिखमंगे ने टोना-टोटका के कुछ दांव-पेंच और हुनर सीखे। उसके बाद वह साइकिल पर घूम-घूमकर नकली नग, अंगूठी, टोने-टोटके से संबंधित सामान को बेचने के साथ-साथ झाड़-फूंक करने लगा। वह अपनी-अपनी परेशानियों से त्रस्त लोगों के पास जाता और उन्हें खुशहाल, बेफिक्र स्वस्थ और मालामाल होने के लिए ताबीज के साथ-साथ मूंगा, मोती, माणिक्य, पुखराज पन्ना,  नीलम गोमेद आदि धारण करने की सलाह देता। अपने भाग्योदय के लिए भटकते लोगों को फांसने के लिए शुरू हुई उसकी यात्रा सफलता के साथ आगे बढ़ती रही। इस दौरान उसने अपने प्रचार के लिए भाड़े के कुछ लोगों को भी काम पर लगा दिया। यह भाड़े के टट्टू शहर और गांव-गांव जाकर प्रचारित करने लगे कि यह बंदा तो बहुत पहुंचा हुआ पीर है। इसके रूहानी इलाज ने कई लोगों को भला-चंगा किया है। इसके द्वारा दिये गए विभिन्न रत्नों को धारण करने के बाद अनेकों बेरोजगारों को नौकरी, बीमारों को सेहत, मनचाही शादी और व्यापार में तरक्की और उद्योग-धंधे में अत्याधिक फायदा हुआ है। उसके चमत्कारों की गूंज दूर-दूर तक फैलती चली गई। दूर-दराज से लोग उसकी शरण में आने लगे। देखते ही देखते उसने सर्वसुविधायुक्त आलीशान कोठी तान ली। उसकी कंटीले तारों से घिरी आलीशान कोठी में कब अवैध गतिविधियां चलने लगीं। इसका पता तो तब चला जब हाल ही में उसे युवतियों को बहला-फुसलाकर उनके धर्मांतरण करने के आरोप में हथकड़ियां पहनाकर जेल में डाला गया। छांगुर बाबा के नाम से सुर्खियां बटोरने वाले इस कपटी, शैतान का असली नाम जलालुद्दीन शाह है। इसने कई युवतियों की अस्मत लूटी है। एक लड़की ने बताया है कि यह कपटी बाबा भारत को इस्लामिक देश बनाने की बात करता था। अनेकों लोगों का धर्मान्तरण कर चुका यह बदमाश सीधी बात करने की बजाय इंटरनेट कॉल के जरिए संपर्क बनाते हुए असंख्य लोगों को बेवकूफ बनाता रहा और लोग बिना सोचे-समझे बनते भी रहे...।

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