राजनीति के मैदान में चुनावी योद्धा एक दूसरे को नीचा दिखाते-दिखाते नीचता की हर हद को लांघ रहे हैं। देश में जब भी कहीं चुनाव होने होते हैं, तो विपक्षी दल और नेता सत्तासीन होने के सपने देखने लगते हैं। सपने देखना गलत नहीं। वर्षों से यही होता आया है। चुनाव प्रचार के दौरान पक्ष और विपक्ष के नेताओं से शालीनता और मर्यादा के पालन की उम्मीद की जाती है, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही। तब विरोध में भी शिष्टाचार समाहित रहता था। उम्र और पद की गरिमा का पूरा-पूरा ध्यान रखते हुए अपनी जुबान पर नियंत्रण रखा जाता था, लेकिन अब कई नेता घटिया से घटिया भाषा का इस्तेमाल कर अपने घोर पतित और चरित्रहीन होने के भी सबूत पेश कर रहे हैं। उनकी यह गिरावट उनकी पार्टी को भी कठघरे में खड़ा कर रही है। सत्ता की चाहत के लिए ऐसे पतन की यकीनन कल्पना नहीं की गई थी। सत्ताधीशों की कार्यप्रणाली से नाखुश होने पर उनके खिलाफ जनजागरण करने की बजाय गालीगलौच करने की प्रवृत्ति अक्षम्य होने के साथ-साथ खुद के लिए मौत का कुआं खोदने वाली बेवकूफी है।
जब से नरेंद्र मोदी भारत वर्ष के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कुछ नेता, पत्रकार, संपादक, उम्रदराज वकील तथा खास किस्म के बुद्धिजीवी पानी से बाहर फेंक दी गई मछली की तरह छटपटा और फड़फड़ा रहे हैं। मोदी की हर अच्छी बात में खोट निकालने की जिद में जोकर बने नज़र आ रहे हैं। साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि नरेंद्र मोदी पर वोटों की हेराफेरी कर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के आरोप वो ‘मंडली’ लगा रही है, जो वर्षों से येन-केन प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिए बौखलायी और पगलायी है। यह मंडली जब कहीं से चुनाव जीतती है तो जोर-शोर से अपनी पीठ थपथपाती है, लेकिन शर्मनाक पराजय होने पर ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में हुई वोटों की हेराफेरी के राग अलापने लगती है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पीएम बनने की बहुत जल्दी है। जिस तरह से राहुल धैर्य खोकर आक्रामक हो गये हैं, उससे भाजपा ही नहीं सजग देशवासी भी हैरान हैं। राजनीति में एक दूसरे पर बयानों की तोप चलाना, खामियां गिनाना भी कोई नई बात नहीं। ये तो सतर्कता की पहचान है, लेकिन ओछेपन पर उतर आना तो अज्ञानी और नालायक होने की निशानी है। कुछ वर्ष पहले तक भाजपा के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी का खूब मजाक उड़ाया। उन्हें शहजादे कहकर प्रधानमंत्री ने भी उन पर तंज कसे। उन्हें नासमझ ‘पप्पू’ साबित करने का भरपूर अभियान भी भाजपा वालों ने चलाया। अब राहुल खुद को परिपक्व दिखाने के चक्कर में बार-बार आपा खोते नज़र आते है। उनके कार्यकर्ता और नेता भी अपने नायक का अनुसरण कर रहे हैं। उनकी वोट अधिकार यात्रा के दौरान दरभंगा के मंच से एक कांग्रेसी ने विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री को मां की गाली देकर अपने मुंह पर कालिख पोत ली। राहुल गांधी को लोकसभा चुनावों में आंशिक सफलता क्या मिली कि उनके तेवर ही बदल गये। उनकी देखा-देखी कांग्रेस के अदने से कार्यकर्ता और नेता भी तू-तड़ाक करते हुए बेहूदगी और निर्लज्जता के काले परचम लहराने लगे। दरभंगा में जिस मंच पर माननीय प्रधानमंत्री और उनकी आदरणीय माताजी के लिए अपमानजनक शब्द उगले गये, वहां हालांकि स्वयं राहुल गांधी मौजूद नहीं थे, लेकिन उनका अनुसरण कर जहर उगलने वालों का हौसला बुलंद था। लगता है अब राहुल गांधी एंड कंपनी के पास और कोई रास्ता नहीं बचा है। पिछले एक दशक से कांग्रेस को देश और प्रदेशों में लगातार चुनावी हार झेलनी पड़ रही है। आज केवल हिमाचल, तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। साउथ और नॉर्थ मेें भी कांग्रेस अकेले दम पर सरकार बनाने की हैसियत में नहीं है। जाहिर है कि ऐसे में निराशा और हताशा स्वाभाविक है, लेकिन एटम बम और हाइड्रोजन बम फोड़ने की धमकी देने के क्या मायने हैं? आपको सच्चाई बताने से कौन रोक रहा है, लेकिन बम और बारूद की भाषा तो मत बोलिए। लगता है कि जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए कांग्रेस के नायक को खलनायक बनने में संकोच नहीं हो रहा है तथा उनकी पार्टी के छोटे-मोटे नेताओं को अपमानजनक और आक्रामक भाषा के जरिए विषैले तीर चलाने की आदत पड़ती जा रही है। कांग्रेस के अधिकांश प्रवक्ता भी हर उस शख्स को अपना शत्रु मानने लगे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के प्रति श्रद्धा तथा सॉफ्ट कार्नर रखता है। यह लाइलाज बीमारी तो कुछ चुनिंदा पत्रकारों को भी अपनी गिरफ्त में ले चुकी है। उन्होंने भाजपा और मोदी की बुराई करने की शपथ ले रखी है। ऐसा तो नहीं है कि मोदी सरकार ने जनहित के कोई कार्य ही न किए हों, लेकिन इन्होंने तो अपनी आंख पर पट्टी और मुंह पर ताले लगा रखे हैं। इन्होंने कसम खा रखी है कि ये ताले तभी खुलेंगे, जब कांग्रेस सत्ता पायेगी और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे।
हाल ही में इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से मूड ऑफ नेशन सर्वे कराया गया है। इस सर्वे का मकसद यह जानना है अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएं तो क्या नतीजे बदलेंगे या वही रहेंगे। यह सर्वे कहता है कि अभी चुनाव होने पर सरकार तो एनडीए की ही बनेगी! सीटों की संख्या में भी मामूली बदलाव हो सकते हैं। 2024 में 293 सीटें जीतने वाली एनडीए 324 सीटें जीत सकती है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन की सीटें 234 से घटकर 208 में सिमट जाने का अनुमान है। यानी विपक्ष अभी इस लायक नहीं कि अपनी छाती तान सके। आम जनता की सोच एक पक्षीय सोच वाले मीडिया जैसी नहीं है। वह यह भी जानती है कि नरेंद्र मोदी का विकल्प देश में अभी तो दूर-दूर तक दिखायी नहीं दे रहा है। अब बात करते हैं नरेंद्र मोदी के अपनी उम्र के 75 साल पूर्ण करने के पश्चात रिटायर होने की। वैसे तो अनुमान तो संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के रिटायर होने के भी लगाये जा रहे थे। 11 सितंबर को 75 साल के होने जा रहे मोहन भागवत ने स्पष्ट कर दिया है कि, उनका रिटायर होने का कोई इरादा नहीं। एक कार्यक्रम के मंच पर उन्होंने स्पष्ट किया कि, मैंने यह नहीं कहा था कि मैं रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को 75 साल के होने पर रिटायर हो जाना चाहिए। मैं 80 की उम्र तक शाखा लगाऊंगा। तय है कि विरोधी कितना भी सिर पटक लें, आरोपों के हाइड्रोजन बम फेंक लें, लेकिन 17 सितंबर को 75 साल के होने जा रहे नरेंद्र मोदी भी गद्दी नहीं छोड़ने वाले। उनमें कम अज़ कम 85 साल की उम्र तक देश की सेवा करने का पूरा दमखम है। विरोधी उनके रिटायर होने के दिन-रात सपने देखने और धड़ाधड़ गालियां देने के लिए स्वतंत्र हैं।
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