‘‘आप लोगों को शर्म आनी चाहिए, आपके घर में मां-बाप हैं, आपके बच्चे हैं, शर्म नहीं आती?’’
अथाह गुस्से में कहे गये यह शब्द फिल्म अभिनेता सनी देओल के थे। उनकी यह फटकार, भड़ास और लताड़ तेजाब की तरह बरसी थी उन पैपराजी पर जो सुबह-सुबह तस्वीरें खींचने के लिए उनके बंगले के बाहर भीड़ की शक्ल में आकर डट गये थे। ‘गदर’ फिल्म के नायक का यह गुस्सा काफी हद तक वाजिब था। सैकड़ों फिल्मों के कसरती नायक, उनके पिता धर्मेंद्र को लगातार 11 दिनों तक मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती रहने के पश्चात यह सोचकर घर लाया गया था कि घरवालों को सुकून से उनके साथ रहने और सेवा करने का अवसर मिलेगा। ऊपर वाले ने जितने दिन की मोहलत दी है वो तो कम अ़ज कम ठीक-ठाक कटेंगे। करोड़ों देशवासियों के चहेते ‘शोले’ के हीरो को शांति मिलेगी। पूरा परिवार उनकी सेवा और देखरेख में लगा हुआ था। ऐसे में कोई भी नहीं चाहता था कि घर के आसपास भीड़भाड़ और शोर-शराबा हो, लेकिन पैपराजी कहा मानने वाले थे। जैसे ही 89 वर्षीय बीमार अभिनेता को अस्पताल से घर लाया गया, हंगामा और शोर-शराबा करती बेतहाशा भीड़ घर के बाहर आ जुटी। इस हुजूम को देखते ही सनी गुस्से से लाल-बेहाल हो गए।
मायानगरी मुंबई में पिछले पांच-सात सालों से ‘पैपराजी’ की सेलिब्रिटीज की निजता में डकैती और उनके इर्द-गिर्द सतत उछल-कूद की खबरों ने देशवासियों को भी हैरान कर रखा है। दरअसल, बॉलीवुड ही नहीं, महानगरों में जहां-तहां पैपराजी की जमात कुकरमुत्ते की तरह उगी देखी जाने लगी है। यह वो अनियंत्रित अति उत्साहित फोटोग्राफर हैं, जो सेलिब्रिटीज की तस्वीरें खींचने और वीडियो बनाने के लिए दिन-रात पगलाये रहते हैं। किसी की मजबूरी, दुख तकलीफ और समय से इनका कोई लेना-देना नहीं है। किसी भी इंवेट, होटल, घर से बाहर जैसे ही किन्ही अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, संगीतकारों, उद्योगपतियों तथा राजनेताओं जैसी मशहूर हस्तियों और यहां तक कि उनके मासूम बच्चों को देखते ही ये बिना किसी अनुमति के अधिकारपूर्वक फोटो खींचने तथा वीडियो बनाने लगते हैं। सेलिब्रिटीज के हर मूवमेंट पर नज़र रखने वाले पैपराजी छाती तान कर श्मशानघाट और कब्रिस्तान तक भी धड़धड़ाते हुए पहुंच जाते हैं और वहां पर पूछा-पाछी और तस्वीरें खींच-खींच कर मृतक के परिवार को परेशान करके रख देते हैं।
दरअसल, इनका लक्ष्य ऐसी तस्वीरें कैप्चर करना होता हैं, जो सनसनीखेज और मनोरंजक हों, ताकि वे उन तस्वीरों को न्यूज एजेंसियों, सोशल मीडिया, अखबारों तथा विभिन्न पत्रिकाओं को बेचकर कमाई कर सकें। यह भी सच हैं कि पैपराजी का काम अत्यंत जोखिमभरा होता है। सेलिब्रिटीज का लगातार पीछा करने वाली भागदौड़ में इन्हें बहुत सावधान रहना पड़ता है। मशहूर हस्तियों की निजता में दखल देने के कारण यह बार-बार अपमानित भी होते रहते हैं। पैपराजी दरअसल, इतालवी भाषा का शब्द है और इसका सही उच्चारण पापाराजी है, लेकिन समय के साथ अपभ्रंश होते हुए यह पैपराजी हो गया। इस पेशे से जुड़े लोगों की जिद और जुनून ने तब पूरे विश्व के मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं, जब प्रिसेंस ऑफ वेल्स डायना की मौत हुई थी। इस भयावह दिल दहलाने वाली दुर्घटना के लिए पैपराजी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा गया था कि राजकुमारी डायना और उनके प्रेमी की किसी भी हालत में तस्वीरें लेने के लिए यदि यह लोग शिकारी की तरह उनका पीछा नहीं करते तो प्रेमी-प्रेमिका को अंधाधुंध कार नहीं दौड़ानी पड़ती और जानलेवा हादसा भी नहीं होता। नामी-गिरामी हस्तियों तथा अपने-अपने क्षेत्र में उभरते चेहरों को शुरू-शुरू में तो प्रसिद्धि पाने के लिए पैपराजी का तस्वीरेें खींचना और वीडियो बनाना बहुत भाता है, लेकिन जब वे अपनी सीमाएं लांघते हुए उनके बेडरूम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें मुक्के और गालियां भी झेलनी पड़ती हैं। फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के पिता की श्रद्धांजलि सभा में पहुंची उम्रदराज फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन का एक वीडियो बार-बार वायरल होता रहता है, जिसमें वे फोटोग्राफर्स पर भड़कते हुए कहती नजर आती हैं, ‘‘आप लोगों को कोई लिहाज शर्म नहीं है न?’’ बॉलीवुड में तेजी से उभरी एक अभिनेत्री का कहना है कि, जब तक मैं ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुई थी, तब तक कहीं भी बड़े आराम से आती-जाती थी, लेकिन अब तो किसी रेस्टॉरेंट, कैफे, पब, होटल, गार्डन आदि में जाना हराम हो गया है। मेरे पहुंचने से पहले पैपराजी पहुंच जाते हैं और बंदूक की तरह कैमरे तान देते हैं। अब यदि बेहयायी की बात करें तो अकेले सोशल मीडिया और रोजी-रोटी के लिए एड़िया रगड़ते पैपराजी ही हद दर्जे के बेशर्म नहीं हैं।
देश के स्थापित न्यूज चैनल भी सबसे पहले लोगों तक न्यूज पहुंचाने के चक्कर में कैसी-कैसी बदतमीजियां और बेवकूफियां करते हैं, अब सभी जान गये हैं। हिट पर हिट फिल्में देनेवाले शांत और शालीन गरम-धरम सदाबहार अभिनेता की मौत की झूठी खबर बार-बार दिखाकर ‘आज तक’ जैसे विख्यात न्यूज चैनल की प्रख्यात एंकर अंजना ओम कश्यप ने गैरजिम्मेदार होने का सबूत पेश करते हुए अपनी जो खिल्ली उड़वायी उससे यह भी साबित हो गया कि टीआरपी और नंबर वन बने रहने के लिए भारत का इलेक्ट्रानिक मीडिया कितना गिर चुका है। जिंदादिल नायक धर्मेंद्र से पूर्व जाने-माने कॉमेडियन असरानी की झूठी मौत की खबर फैलाकर सोशल मीडिया को भी काफी बदनामी झेलनी पड़ी, लेकिन यह भी तो सच है कि, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया में जमीन-आसमान का फर्क है। सोशल मीडिया तो झूठ और अफवाहों का पुलिंदा है, जो पूरी तरह से बेलगाम है। उस पर किसी का कोई अंकुश नहीं है, लेकिन हर न्यूज चैनल से यह उम्मीद की जाती है कि वह बिना पुष्टि के कोई खबर दर्शकों तक न पहुंचाए, लेकिन अब उम्मीद और भरोसे के परखच्चे उड़ चुके हैं। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की इनकी वहशी भूख का कहां जाकर अंत होगा, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। अस्पताल से अपने घर में लाये जाने के कुछ दिन बाद जब निहायत ही जमीनी अभिनेता की वास्तव में मौत हुई तो घर परिवार वालों ने बिना किसी शोर-शराबे के उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अपनी साख पर बट्टा लगवा चुके मीडिया को भी उनके चल बसने की खबर देरी से मिली। दमदार करिश्माई अभिनेता के जिन्दा रहते उनकी मौत की खबरें फैलाने वाले हतप्रभ रह गए। अपने जन्मदाता की मौत की झूठी खबरों से आहत परेशान सनी देओल तथा परिवार ने सब पर प्यार लुटाने वाले पिता के सचमुच हुई मौत की दुखद खबर से मीडिया को फौरन इसलिए अवगत नहीं कराया, क्योंकि उनके मन में उसके प्रति अथाह गुस्सा था। साथ ही वे नहीं चाहते थे अभिनेता की अंतिम विदाई के वक्त उमड़ने वाली भीड़ से किसी को कोई परेशानी हो। लगभग सात दशक तक फिल्मी आकाश में जगमगाने वाला सितारा चुपचाप विदा हो गया। यह दु:ख उनके उन लाखों प्रशंसकों के दिलों में सदैव बना रहेगा। इसके लिए वो लोग भी दोषी हैं, जिन्होंने असंख्य भारतीयों के प्रिय सितारे की जीते जी मौत की खबरें चलाकर देओल परिवार ही नहीं समस्त सजग देशवासियों को आहत किया। मुझे वो पल याद आ रहे हैं, जब लगभग बीस वर्ष पूर्व मैं फिल्म सिटी में किसी फिल्मी पत्रिका के लिए उनका साक्षात्कार ले रहा था, तब एकाएक उन्होंने मुझसे पूछा था कि, मेरी ऐसी कौन-सी खासियत है, जो तुम्हें वाकई प्रभावित करती है? मेरा जवाब था, पर्दे पर जब आप खलनायक की धुनाई करते हैं तो अधिकांश दूसरों अभिनेताओं की तरह नकली नहीं लगते। आपका मजबूत जिस्म खुद-ब-खुद बोलता नज़र आता है। मेरा जवाब सुनकर शायरी, नज़्मों और कविताओं के शौकीन भावुक नायक ने मुस्कुरा कर जिस तरह से मेरी पीठ थपथपायी थी, मैं शायद ही कभी भूल पाऊं...। सपने तो सभी देखते हैं लेकिन उन्हें कितने लोग वास्तव में साकार कर पाते हैं? आलस्य, बहानेबाजी, टालमटोल और खुद पर भरोसे का अभाव उन्हें आगे बढ़ने ही नहीं देता। जहां के तहां अटके रह जाते हैं। विशाल हृदय और सादगी से परिपूर्ण धर्मेंद्र जब पंद्रह-सोलह वर्ष के थे, तब सड़कों, चौराहों तथा फिल्म थियेटर पर फिल्मी सितारों के पोस्टर देखते-देखते उनके मन में बार-बार विचार आता कि वो दिन कब आयेगा जब इन पोस्टरों पर उनका चेहरा होगा और भीड़ उनके पीछे दौड़ेगी। अपनी चाहत, अपने सपने को साकार करने के लिए कुछ वर्ष बाद पंजाब की मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ मुंबई जा पहुंचे और वहां पर दिन-रात संंघर्ष करते हुए फिल्मी दुनिया में अपनी जो पताका फहराई किसी विशाल प्रेरक किताब जैसी ही है। इसे सभी को पढ़ना और अपने सपनों को कुशल कुम्हार की तरह गढ़ने और रंगने में खुद को झोक देना चाहिए। जिस्मानी तौर पर भले ही धरमजी हम सबके बीच नहीं है लेकिन उनकी गर्मजोशी, आकर्षण और उनकी यादगार फिल्में हमारे साथ हैं।
