Thursday, November 13, 2025

खुद के कातिल

 सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सार्थक अभिनय और अथाह परिश्रम से बनी, 2022 में रिलीज हुई फिल्म ‘झुंड’ का नाम कई देशवासियों ने नहीं सुना होगा। यह फिल्म स्लम सॉकर के संस्थापक विजय बारसे के जीवन पर आधारित है। इसमें अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे रिटायर्ड स्पोर्टस कोच की भूमिका अत्यंत प्रभावी ढंग से निभाई है, जो झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित करता है तथा उनमें खेल के प्रति उत्साह जगा कर बुराइयों से दूर रहने की सीख देता है। फिल्म ‘झुंड’ की अधिकांश शूटिंग भी महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में हुई थी। स्लम सॉकर एक गैर सरकारी संगठन है, जो गरीब असहाय बच्चों और युवाओं को कर्मठ और संस्कारवान बनाने के लिए वर्षों से कार्यरत है। यह संगठन खेल के साथ-साथ किताबी और व्यवहारिक ज्ञान और स्वास्थ्य से संबंधित कार्यशालाओं का आयोजन कर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने तथा सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए प्रेरित करता है। स्लम यानी झुग्गी बस्ती की असुविधाओं के बीच जीवनयापन कर रहे परिवारों के बच्चों को इधर-उधर के घातक भटकाव से बचाने और उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने के स्लम सॉकर के नि:स्वार्थ प्रयास से प्रभावित होकर फिल्मी बादशाह अमिताभ बच्चन ने बहुत ही कम जाने पहचाने फिल्म निर्माता-निर्देशक नागराज मंजुले द्वारा निर्देशित फिल्म ‘झुंड’ में मुख्य भूमिका निभायी। बिल्कुल वैसे ही जैसे विजय बारसे ने बेरोजगारी और बदहाली में जीते मलीन बस्ती के बच्चों की फुटबॉल टीम बनाकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी। 

इस नितांत सच्ची प्रेरक हकीकत पर आधारित फिल्म ‘झुंड’ में जान डालने के लिए फिल्म निर्माता नागराज मंजुले ने गगनचुंबी अट्टालिकाओं के पास और दूर बदबूदार कचरे के ढेर में सांस लेती झोपड़पट्टियों को नजदीक से देखने के लिए महीनों चक्कर काटे। इसी दौरान जब वे अपने गले में कैमरा लटकाये रेल की पटरियों के करीब से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे मालगाड़ी से कोयला चुरा रहे हैं। उन पर तुरंत अपना कैमरा केंद्रित कर वे धड़ाधड़ तस्वीरें लेने लगे। प्रियांशु नामक युवा भी इन कोयला चोरों में शामिल था। मंजुले ने उससे बातचीत की तो पता चला कि वह फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी है। फुटबॉल खेलने के लिए उसने अपनी टीम भी बना रखी है। उन्होंने प्रियांशु और उसके साथियों से ‘झुंड’ में काम करने की बात की तो वे फौरन राजी हो गए। इस अनूठी फिल्म में अधिकांश स्थानीय चेहरों के काम करने के कारण नागपुर ही नहीं संपूर्ण विदर्भ और महाराष्ट्र में उत्सुक्ता के साथ-साथ खुशी देखी गई थी। झुग्गी बस्ती के निवासियों के मन में यह आशा जागी थी कि उनके बच्चों के अब जरूर अच्छे दिन आएंगे। अमिताभ बच्चन जैसे विख्यात अभिनेता के साथ काम करने का उन्हे फायदा मिलेगा। मायानगरी मुंबई उन्हें हाथों-हाथ लेगी। 

विदर्भ और खासतौर नागपुर जिले में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें मुंबई जाकर संघर्ष करने के बाद ही कभी-कभार पहचान मिल पाती है। मुंबई की ‘फिल्म सिटी’ की तरह संतरानगरी में भी फिल्मों के निर्माण के लिए ‘फिल्मसिटी’ जैसा प्रोजेक्ट साकार करने की खबरें कलाकारों को गुदगुदाती रहती हैं। संपूर्ण विदर्भ की प्राकृतिक सुंदरता देश के बड़े-बड़े फिल्मी निर्माताओं को आकर्षित करती आयी है। कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है। नागराज मंजुले ने मलीन बस्ती के लड़कों से अभिनय करवाकर उन्हें यह अहसास तो करवा ही दिया कि उनके अंदर भी कलाकार छिपा है। वे यदि सतत अपने अभिनय को निखारें और संघर्ष करेें तो वे भी फिल्मों में काम कर अमिताभ बच्चन की तरह करोड़ों लोगों के चहेते बन सकते हैं। 

दशहरा-दीपावली से कुछ दिन पहले विभिन्न दैनिक अखबारों के प्रथम पेज पर छपी इस खबर ने सभी को हतप्रभ कर दिया, ‘‘झुंड’ के कलाकार प्रियांशु की नृशंस हत्या’ अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘झुंड’ में फुटबॉल खिलाड़ी का किरदार निभाकर लोकप्रियता और तारीफें बटोरने वाले कलाकार प्रियांशु को उसी के दोस्त ने घातक हथियार से मौत के घाट उतार दिया। प्रियांशु और ध्रुव गहरे दोस्त थे। दोनों का एक-दूसरे के घर आना-जाना था। आधी-आधी रात तक दोनों आवारागर्दी करते देखे जाते थे। दोनों पर सेंधमारी, लूटमारी और चोरी-चकारी जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। रात को जब दोनों बैठकर शराब पी रहे थे तो उसी दौरान उनमें किसी बात को लेकर विवाद हो गया। दोनों ने एक दूसरे को देख लेने की धमकी दी। इसके बाद नशे में धुत धु्रव ने अपनी सुध-बुध खो चुके प्रियांशु के शरीर को चाकू से गोद डाला। इतना ही नहीं जिंदा होने के शक में उसने बड़ा-सा पत्थर उठाया और अपने दोस्त के सिर को बुरी तरह से कुचल कर घर जाकर आराम से सो गया।’’

मन में तरह-तरह के विचार लाने और चौकाने वाली यह खबर कई दिनों तक मेरा भी पीछा करती रही। रह-रहकर ‘झुंड’ में देखा प्रियांशु का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहा। जिसे अपनी किस्मत बदलने का अपार अवसर मिला था और भाग्य से मिले इस अवसर का फायदा उठाकर आगे बढ़ना था, ...और बार-बार पर्दे पर चमकना था, वह कुत्ते की मौत मारा गया! उसके मरने पर किसी ने कोई सहानुभूति और गम के दो शब्द तक नहीं कहे। सभी का बस यही कहना था कि गलत संगत और नशा करने वालों का अंतत: यही हश्र होता है। यह भी सच है कि प्रियांशु फुटबॉल का दिवाना था। उसने अपनी फुटबॉल की टीम भी बना रखी थी। उसकी टीम को ‘झुंड’ के लिए चुना गया था। खेल के प्रति उसके पागलपन को देखते हुए कई लोगों को उम्मीद थी कि वह अच्छा खिलाड़ी बनेगा, लेकिन अपने घर-परिवार तथा आसपास के लोगों की सोच के तराजू पर खरा उतरने की उसने कोशिश ही नहीं की। फिल्म में काम कर उसने जो प्रसिद्धि बटोरी, उसका भी ट्रेनों में यात्रियों के विभिन्न कीमती सामानों और धड़ाधड़ मोबाइलों की चोरी कर सत्यानाश कर दिया। किसी ने सच ही कहा है कि नशे और अय्याशी की लत इंसान की सबसे बड़ी शत्रु है। चरित्रहीनों को अंधा और बहरा बनने में देरी नहीं लगाती। तभी तो अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मारते हुए वर्तमान और भविष्य का सदा-सदा के लिए कबाड़ा कर देते हैं। फिल्में देखने के कई शौकीनों ने अपनी एक गलती की वजह से तबाह हुए फिल्म अभिनेता शाइनी आहूजा का नाम कभी न कभी जरूर सुना होगा। सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड हासिल करने वाले इस एक्टर की धूम मचा देनेवाली फिल्म ‘गैंगस्टर’ भी देखी होगी। शाइनी आहूजा ने इस फिल्म के अलावा ‘वो लम्हे’, ‘भूल भुलैया’, ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ जैसी सफल फिल्मों में सशक्त अभिनय कर मायानगरी में बड़ी मेहनत से अपनी खास जगह बनाई थी। गोरे-चिट्टे हैंडसम, भूरी आंखों वाले शाइनी के निरंतर ऊंचाइयां छूते ग्राफ से अन्य अभिनेता घबराने लगे थे, लेकिन वह खुद को नियंत्रित नहीं रख पाया। साल 2011 में एक दिन की सुबह के सभी अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर बस एक ही खबर थी, ‘‘फिल्म अभिनेता शाइनी आहूजा ने अपने घर की नौकरानी से किया बलात्कार’’ मुंबई की फास्ट ट्रैक कोर्ट में इस शर्मनाक दुराचार के मामले की सुनवाई हुई। उसे दोषी ठहराते हुए सात साल की सजा सुना दी गई। अभिनेता बार-बार हाथ जोड़कर कहता रहा कि उसने बलात्कार नहीं किया। दोनों की सहमति से ही शारीरिक संबंध बने। वह बेकसूर है, लेकिन उसकी फरियाद किसी ने भी नहीं सुनी। किसी भी कलाकार से कलाप्रेमी यह अपेक्षा रखते हैं उसका चरित्र निष्कलंक हो। अपराध से दूर-दूर तक उसका कोई नाता न हो। प्रियांशु का तो अभी ठिठकता पहला कदम ही था। यहां तो वर्षों से जड़े जमाये विख्यात से विख्यात कलाकार भी सूखे पत्तों की तरह रौंद दिए जाते हैं। शाहनी को फिल्मों में काम मिलना भी बंद हो गया। चमकता-उभरता सितारा गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गया। वह जहां भी जाता लोग दुत्कार और तिरस्कार भरी निगाह से देखते। आखिरकार वह देश से भाग खड़ा हुआ। सुनने में आया है कि अब वह दिन-रात पश्चाताप की आग में जलते हुए फिलीपींस में छोटी-मोटी गारमेंट की फैक्ट्री चलाते हुए बस जैसे-तैसे दिन काट रहा है...।

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