बीते हफ्ते अमेरिका के दो शादीशुदा जोड़ों का वीडियो देखने में आया। चारों एक ही घर में मिल-जुलकर रहते हैं। खाते-पीते और खुलकर रोमांस करते हैं। उनके हंसते-खेलते चार सेहतमंद बच्चे हैं। एक दूसरे के पति के साथ हमबिस्तर होने वाली महिलाओं को पता ही नहीं है कि वे किससे गर्भवती हुईं और बच्चों का पिता कौन है। उन्होंने कभी इस विषय पर गंभीरता से दिमाग नहीं खपाया। अंधी वासना के झूले में झूलते पुरुषों ने भी बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। उनके लिए तो बस दिन-रात सेक्स और मौज-मजा ही सबकुछ है। परिवार, समाज और मानवीय मूल्यों को सीधी चुनौती देते ऐसे और भी कुछ लोग अमेरिका तथा अन्य देशों में हो सकते हैं। चार पैरेटंस और चार बच्चों वाली इस अजूबी फैमिली का वीडियो देखने के बाद कई लोगों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। किसी ने कमेंट किया कि दरअसल, यह परिवार नहीं, बल्कि एक अजीबोगरीब प्रयोगशाला है, तो किसी ने लिखा कि बेचारे बच्चे! जब उन्हें पता ही नहीं कि उनका असली बाप कौन है तो बड़े होकर पूछने वालों को क्या जवाब देंगे? शर्म के मारे इधर-उधर मुंह छिपाते फिरेंगे। किस्सों तथा कहानियों का ऐसे ही जन्म होता है। यह अजब-गजब कारनामें लेखकों के प्रेरणा स्त्रोत होते हैं। रोमांचक और मनोरंजक फिल्में और किताबें इन्हीं से ही प्रेरित होकर बनायी और लिखी जाती हैं। भारतवर्ष के विशाल प्रदेश उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले मेंदो सगी बहनों ने चुपचाप बड़ी शांति से आपस में अपने पति ही बदल लिए...
दस वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम पाली के निवासी एक समझदार पिता ने बड़ी धूमधाम से अपनी दो बेटियों की शादी अलग-अलग ग्रामों के दो युवकों से की थी। दोनों बहनें अपने-अपने पतियों के संग सामान्य जीवन जी रही थीं। समय के बीतने के साथ-साथ उनके बाल-बच्चे भी हो गये। दोनों बहनों का एक दूसरे के घर आना-जाना भी बना रहा। इसी दौरान छोटी बहन अपने जीजा के प्रति आकर्षित हो गई। जीजाश्री का भी मन खूबसूरत साली के गोरे कसे बदन पर डांवाडोल हो गया और दोनों में जिस्मानी संंबंध बन गए। एक दिन ऐसा भी आया जब साली और जीजा ने परिवार और समाज की चिंता और परवाह न करते हुए शादी कर ली। बड़ी बहन को बहुत सदमा लगा। फिर भी उसने धैर्य का दामन नहीं छोड़ा। मन ही मन वह कोई हल निकालने की उधेड़बुन में लगी रही। बिल्कुल फिल्मी-सी लगने वाली इस रोचक-अजूबी कथा में झटकेदार नया मोड़ तब आया जब बड़ी बहन ने छोटी बहन के पति को मिल-बैठकर समझाया और सबकुछ भूलभाल कर नये सिरे से जीवन की शुरुआत करने के लिए मनाते हुए उससे शादी कर ली। यह भी कहा जा सकता है कि दोनों बहनों ने खुशी-खुशी आपसी रजामंदी से पतियों की अदला-बदली कर ली। इसके साथ ही बड़ी बहन ने अपने तीनों बच्चे छोटी बहन को देते हुए उसके दोनों बच्चों को अपने पास रख लिया। दोनों का एक-दूसरे के घर फिर से आना-जाना भी शुरू हो गया। घोर आश्चर्य की बात तो यह है कि उनके इस हैरतअंगेज कारनामे का पता उनके माता-पिता को तब चला, जब छोटी बहन अपने जीजा यानी अपने नये पति के साथ मायके पहुंची। पिता को जैसे ही इस अजूबी मर्यादाहीन अदला-बदली के बारे में बेटी ने बताया तो उन्होंने फटकारते हुए फौरन घर से बाहर कर दिया। बड़ी बेटी के लिए भी माता-पिता ने अपने घर के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिए। एक-दूसरे के पतियों के साथ रह रहीं दोनों बहनों के कृत्य से रिश्तेदार भी नाखुश हैं। अधिकांश ग्रामवासियों ने उनसे दूरी बना ली है। वे अपनी बहू-बेटियों को उनके निकट जाने से रोकते हुए एक नई बहस, भय और चिन्ता में उलझे हैं...।
कुछ लोग भोग विलास के ऐसे गुलाम हैं कि उन्हें विवाह की परिभाषा का ही पता नहीं है। देश के बड़े-बड़े महानगरों में तथाकथित आधुनिक सोच वाले विवाहित जोड़े आपसी सहमति से कुछ घंटों के लिए जीवनसाथियों की अदला-बदली कर शारीरिक संबंध बनाकर आनंदित होते हैं। अंधी वासना की तृप्ति के इस खेल में अधिकांश महिलाएं आसानी से तैयार नहीं होतीं। पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा उन्हें दूसरे पुरुष के समक्ष वस्त्रहीन तथा लज्जाहीन होने से बार-बार रोकती-टोकती है। वे जानती-समझती हैं कि, शादी बंधन नहीं बोध है। एक दूसरे को जानने समझने का सुखद मंच है। भारतीय संस्कृति में विवाह केवल स्त्री-पुरुष का नहीं, दो परिवारों, दो संस्कृतियों और दो आत्माओं का अलौकिक और पवित्र मिलन है। जहां पति-पत्नी केवल एक दूसरे का साथ नहीं निभाते, बल्कि धर्म, कर्म, अर्थ और मोक्ष की अनंत यात्रा के सहचर बन एक दूसरे के लिए जीते-मरते हैं। यह अपना देश भारत ही है, जहां अपने पति के लंबे जीवन और स्वस्थ बने रहने के लिए निर्जला व्रत रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सुहागन स्त्रियों के साथ-साथ कुंआरी लड़कियां भी मनचाहा पति पाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह भी अत्यंत सुखद हकीकत है कि अब तो कई पुरुष भी निर्जला व्रत रख पत्नी का साथ देने लगे हैं। एक दूसरे की खुशहाली के लिए प्रेम और समर्पण का यह भाव वाकई वंदनीय है। बताया जाता है कि, हजारों वर्ष पहले जब दुनिया में शादी-ब्याह करने का चलन नहीं था तब स्त्री-पुरुष चलते-फिरते जिस्मानी संबंध बनाते थे और फिर भूल जाते थे। बच्चों के जन्मने पर पूरा गांव उन्हें पालता-पोसता था। मां को भी पता नहीं चलता था कि उसके गर्भ में किसका बच्चा है। लगभग दस हजार वर्ष पहले तक यही स्थिति थी। तब पेड़-पौधों के पत्तों, टहनियों तथा जानवरों का शिकार कर सभी मानव अपने पेट की भूख को शांत करते थे, लेकिन धीरे-धीरे एक दौर ऐसा आया जब खेती-बाड़ी की जाने लगी। कृषि क्रांति ने इंसानों की सोच, खान-पान और रहन-सहन को बदल दिया। खून-पसीना बहाकर उपजाये गए अनाज और जमीन पर मौत के बाद किसका अधिकार होगा, ये सवाल जब बलवती हुआ तो शादी-ब्याह की शुरुआत हुई। अग्नि के समक्ष सात फेरे लेकर हमेशा के लिए एक दूसरे के होने और मां-बाप बनने के सुख और संतुष्टि ने कई चिंताओं तथा समस्याओं का समाधान भी कर दिया। बच्चों को पिता का नाम देने से यह भी निश्चित हो गया कि वही उनके वारिस हैं।
आजकल कई महिलाएं शादी करने से कतराती और घबराती हैं। उन्हें शादी ऐसा बंधन लगती है, जहां पति का ही दबाव तंत्र चलता है। पुरुष मालिक तो पत्नी गुलाम की तरह जीने को विवश कर दी जाती है। जो महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होकर कमाने-खाने लगती हैं उनकी सोच भी बदल जाती है। अपने आसपास रह रहे पति, पत्नी में होने वाले झगड़ों और तलाक में बढ़ते मामलों ने सिर्फ महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी भयभीत कर दिया है। कुछ वर्ष पहले तक पति तथा घर-परिवार के जुल्मों से तंग महिलाओं की खुदकुशी की खबरें सुनने-पढ़ने में आती थीं, लेकिन अब तो पत्नियों की गुंडागर्दी के शिकार पति भी आत्महत्या करते देखे जा रहे हैं। सच तो यह है कि हर बात के दो पहलू हैं। अपवाद भी सर्वत्र हैं। शादी-ब्याह के साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हुई हैं।
जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी, टोका-टाकी आज के दौर में किसी को भी पसंद नहीं। उस पर जब महिला अच्छा खासा कमा रही हो तो वह यह भी चाहेगी उसकी कमायी पर उसका भी हक हो। वह उसे अपनी पसंद से खर्च करने के लिए स्वतंत्र हो। वह अपने किसी दोस्त या परिचित से जब भी और जहां भी मिलना चाहे कोई उस पर अंकुश न लगाए। दरअसल, जहां मिलजुलकर जिम्मेदारियां नहीं उठायी जातीं, समझौता करने की बजाय शंका, क्रोध, अविश्वास, अहंकार बलवति रहता है, वहां क्लेश और दूरियां खुद-ब-खुद दौड़ी चली आती हैं।

No comments:
Post a Comment