Thursday, April 8, 2010

जानवर और जानवर में भेदभाव क्यों?

वो जंगल तो अब लगभग खत्म होने के कगार पर हैं जहां पर जंगली जानवरों का बसेरा था। खूंखार जानवरों को भी शिकारियों की जमात ने एक-एक कर मौत की नींद सुला दिया। वो खूंखार जानवर जो अपना आपा खोकर जंगल से शहर की ओर दौड़े चले आते हैं और आतंक मचाते हैं उनको भी शासन और प्रशासन द्वारा गोली का शिकार बनाने में देरी नहीं की जाती। वैसे अधिकांश जंगली जानवर इंसान के उतने दुश्मन नहीं जितने वो समझता और मानता रहा है। फिर भी इंसानों को जानवरों से भय लगता है। अब तो कि नये किस्म के जंगल विकसित हो चुके हैं और नये-नये खूंखार जानवर भी। कांक्रीट के जंगलों में मंगल मनाते यह वहशी जानवर कितने बेलगाम हैं यह बताने और लिखने की जरुरत ही कहां बची है। पुणे को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक नगरी का दर्जा मिला हुआ है। देश और दुनिया के हजारों युवक युवतियां यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं और बेहद आकर्षण रोजगार भी पाते हैं। यही वजह है कि युवाओं के मन में पुणे के प्रति बेहिसाब आकर्षण है। यहां की शालीन आबोहवा उनकी जीवन शैली को बदलने का फर्ज भी निभाती चली आ रही हैं। परंतु इसी आबोहवा को दूषित करने का कुचक्र चलाया जा चुका है। अपराधियों और नेताओ की एक ऐसी कौम तैयार हो चुकी है जिनके लिए कानून के कोई मायने नहीं हैं। बीते सप्ताह एक युवती पर सरे राह बलात्कार हो गया। यह युवती पढ़ी-लिखी है। उसने एमबीए किया है। नागपुर से पुणे वह नौकरी की तलाश में आयी थी। नौकरी पाने से पहले ही वह अपनी अस्मत लुटा बैठी। शालीनता और सभ्यता के प्रतीक मानें जाने वाले एक शहर के भूखे भेड़ियों ने उसके साथ ऐसा विश्वासघात किया कि वह जिंदगी भर नहीं भूल पायेगी। पुणे का नाम ही उसकी रूह को डराता और कंपाता रहेगा। पुणे की ओर रूख करने को आतुर बैठी कई युवतियों के दिलों में भी इस निर्मम और शर्मनाक बलात्कार कांड ने दहशत भर दी है। अभी तक तो महाराष्ट्र की आर्थिक नगरी मुंबई को ही अपराधियों का गढ़ माना जाता था पर अब पुणे भी अछूता नहीं रहा। पुणे बलात्कार कांड का प्रमुख अभियुक्त सुभाष भोसले कितना दमदार है इसका अनुमान तो इससे लग जाता है कि उसने त‹डीपारी की कार्रवाई को सीधे मंत्रालय से ही रद्द करवाने में सफलता पायी थी। वह अनेकों गंभीर अपराध कर चुका है पर उसकी नेताओं से भी खूब छनती है। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के यहां भी उसका आना-जाना है। ऐसे में उसके हौसले बढ़ने ही थे। जिस तरह से बेखौफ होकर भोसले और उसके साथियों ने युवती को लिफ्ट देने के बहाने अपना शिकार बनाया उससे तो यही लगता है कि मुंबई की तरह अब पुणे में भी कानून का भय खत्म हो चुका है या फिर खत्म होने की राह पर है। पुणे में हुए इस बलात्कार की खबर आने के बाद कुछ नेताओं की प्रतिक्रिया थी कि इसमें युवती भी कम दोषी नहीं है। उसे अनजान लोगों से लिफ्ट नहीं लेनी चाहिए थी। कुछ 'मर्दों' ने तो यहां तक कह डाला कि युवती को अकेले जाने की क्या जरूरत थी? सबको पता है कि अकेली युवती के लिए शहर कितने खतरनाक हो चुके हैं। पुणे में तो पहले भी कई बलात्कार हो चुके हैं। वर्ष २००९ के अक्तूबर महीने में पुणे में एक साफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली नयना पुजारी नामक युवती पर गैंगरैप हुआ था। वर्ष २००८ के फरवरी माह में बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रही एक युवती का पहले अपहरण किया गया फिर उसे सामूहिक बलात्कार की शिकार बनाया गया। २००७ में भी एक शिक्षित युवती का सरे आम शील हरण कर लिया गया। यह हकीकत कम हैरतअंगेज नहीं है कि बलात्कार के सभी मामले सामने नहीं आ पाते। कुछ ही युवतियां रिपोर्ट दर्ज करवाने का साहस दिखाती हैं। कई युवतियां तो राक्षसों के द्वारा बलात्कार करने के पश्चात मौत की नींद भी सुला दी जाती हैं।बीते वर्ष देश की राजधानी दिल्ली में जब लगातार महिलाओं पर बलात्कार होने की खबरें खलबली मचाने लगी थीं तो वहां की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी 'मर्दों' वाली दलील दी थी कि महिलाओं को रात-बेरात अकेले नहीं निकलना चाहिए। अपनी सुरक्षा का भी खुद ख्याल रखना चाहिए। सरकार और प्रशासन भी आखिर कहां-कहां पर ध्यान दे। 'खाकी' की भी अपनी सीमाएं और मजबूरियां हैं। नेता हमेशा घुमा-फिराकर बातें करना जानते हैं। वे कभी भी यह स्वीकार नहीं करने वाले कि कहीं न कहीं अपराधियों, बलात्कारियों को उनकी शह मिली हुई है। वैसे यह भी सच है कि किसी भी जानवर में इतना दम नहीं है कि वह कांक्रीट के इन नये जंगलों में बेखौफ होकर नंगई दिखा सके। इनको जिन्होंने ताकत दी है वे अक्सर पर्दे के पीछे रहते हैं। वैसे भी हर किसी को पता है कि राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। सवाल यह है कि अगर ऐसा नहीं है तो जिस तरह से अपना आपा खो चुके उन खूंखार जंगली जानवरों का सफाया कर दिया जाता है। उसी तरह से इन वहशी जानवरों का भी काम तमाम क्यों नहीं कर दिया जाता? आखिर जानवर तो जानवर ही होते हैं फिर उनमें भेदभाव क्यों?

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