Thursday, April 8, 2010

यह कैसा तमाशा?

हिंदुस्तानी फिल्मों का ‘हीरो' फिर विवादों के घेरे में है। वैसे भी विवादों से उनका पुराना नाता रहा है। उनका कहना है कि वे आलोचनाओं से कतई नहीं घबराते। विवादों और आलोचनाओं से उन्हें प्रेरणा मिलती है। उन्हें राजनीति काजल की कोठरी लगती है। पर फिर भी राजनेताओं और राजनीति के इर्द-गिर्द मंडराते नजर आते हैं। किसी से उन्हें कोई परहेज नहीं है। वे सत्ताधारियों के इशारे पर कोई भी राग गा सकते हैं और तरह-तरह के ठुमके लगा सकते हैं। दोस्ती निभाने की कला भी उन्हें खूब आती है। इस चक्कर में उन्हें वही दिखता है जो उनके चहेते बताते और दिखाते हैं। उत्तर प्रदेश में जब मुलायम सिंह की सरकार थी तब अमिताभ ने कुछ इस तरह का गीत गाया था कि यूपी में है दम क्योंकि वहां जुर्म होते हैं कम...। जबकि सचाई यह थी कि नकली समाजवादी मुलायम सिंह ने उत्तरप्रदेश का कबाड़ा करके रख दिया था और अपराधी बेलगाम हो चुके थे। कानून की धज्जियां उड़ रही थीं पर बिकाऊ नायक को चारों तरफ अमर और शांति नजर आ रही थी। यही वजह थी कि तब भी इस झूठे, मक्कार और अंध भक्त चाटूकार की सारे देश में थू...थू हुई थी पर अमर प्रेम में डूबे पर्दे के हीरो को कोई फर्क नहीं प‹डा था।मुलायम सिंह यादव जब तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तब तक हीरो पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर अपनी हीरोगिरी दिखाता रहा और जैसे ही मुलायम की सत्ता का सूरज अस्त हुआ हीरो यूपी का नाम ही भूल गया। दरअसल हीरो को ताकतवर सत्ताधारियों के साये में रहने की आदत पड़ चुकी है। किसी जमाने में जब गांधी परिवार का हाथ उसके सर पर था तब उसका अहंकार देखते बनता था। उसकी निगाह में मीडिया की दो कौड़ी की भी औकात नहीं थी। इसी अहंकार की वजह से ही गांधी परिवार ने उससे दूरियां बनाना बेहतर समझा। वैसे और भी बहुत से कारण बताये जाते हैं। पर हीरो ने कभी भी खुद को गलत नही माना। वह अपने आपको भगवान समझता है। दरअसल पर्दे के नायक को कुछ लोगों ने सचमुच का नायक मानकर इतने ऊंचे सिंहासन पर बिठा दिया कि उसे भ्रम हो गया कि वो बहुत बड़ी हस्ती है। वह जिसके साथ भी खड़ा होगा उसका कद अपने आप ऊंचा हो जायेगा। वास्तविकता यह है कि वह अंदर से बेहद भय ग्रस्त है। अमर सिंह जैसे दलालों से दोस्ती और भाईचारा बनाये रखना उसकी मजबूरी है।गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में जाना भी उसकी कूटनीति का एक हिस्सा है। हीरो ने यह कदम ऐसे ही नहीं उठाया। उसे मालूम था उसके मोदी के दरबार में दस्तक देते ही कांग्रेस में हलचल मच जाएगी। मीडिया में उसे भरपूर सुर्खियां मिलेंगी। कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी तक भी यह संदेश पहुंच जायेगा कि मुझे कमजोर और अकेला मत समझो। मैं जिसके साथ चाहूं खड़ा हो सकता हूं। यह तो तुम्हारी भूल थी कि तुमने मेरी कीमत नहीं समझी और मुझे भाव देना छोड़ा दिया। वैसे लगता नही कि मैडम किसी के यहां-वहां भटकने से qचतित होती होंगी। यह भी सच है कि कांग्रेस में शुरू से चाटूकारों का जमावड़ा रहा है। अपने ‘आकाङ्क को खुश करने के लिए चाटूकार ही ज्यादा उछल-कूद मचाते रहते हैं। हीरो के मामले में भी यही लगता है। यह बात भी समझ से बाहर है कि क्या कांग्रेस विरोधी राजनीतिक पार्टियों के पास आज और कोई काम नही बचा है जो हीरो के लिए ढाल बन कर खड़ी हो गयी हैं! भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने तो यहां तक फरमा डाला है कि अमिताभ बच्चन यदि भाजपा में शामिल होते हैं तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी। हीरो की झोली भरने के लिए और भी बहुत-सी मांगे की जा रही हैं। यानि हीरो की भरपूर चम्मचागिरी जारी है और देशवासी हतप्रभ हैं कि यह कैसा तमाशा हो रहा है?

2 comments:

  1. नागपालजी,
    आपने ठीक ही लिखा है। वाकई अमिताभ बच्चन जिस प्रकार राजनीतिक मामलों में अपनी भूमिका निभा रहे हैं, वह विश्वसनीय नहीं है।

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  2. vaah bhai, aap bhi bloger ho gaye. khushi hui dekh kar.. vigyapan ki duniyaa to log parhate hi hai.ab log yahaan bhi parhate rahenge. tippaniyaan bhale hi kam karen lekin log parhate to hai. abhi shuruaat hai. dheereidheere karavaan banataa jayega.''kyaa tamaasha hai'' behad samyik vishay par sateek vimarsh hai.

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